*अनुभूति* – मधुलता पारे : Moral Stories in Hindi

मंदिर की घंटियों की आवाज से अन्विता की नींद खुली देख कमरे में झकाझक उजाला फैला था । उसकी कल की थकान अभी तक नहीं उतरी थी। पर बहुत काम पड़ा था पर उठना जरूरी था। असल में रवि का ट्रान्सफर प्रदेश की राजधानी में प्रमोशन पर हुआ था। कल ही वे लोग इस घर में आये थे। जरूरी सामान जमाते करते बहुत रात हो गई थी।

इसीलिए वह सुबह जल्दी नहीं उठ पाई थी। इतने में दूसरे कमरे से रवि की आवाज आई फिर उसने दूसरे कमरे में जाकर देखा रवि तैयार हो गए थे | तथा गोलू अभी तक सोया हुआ था। उसे देखकर रवि ने कहा तुम बहुत गहरी नींद में थें इसीलिए तुम्हें नहीं उठाया, मैंने चाय बना दी है । मैं जा रहा हूँ। गोलू का एडमिशन कराना है वहीं से आफिस चला जाउंगा ।

मेरे खाने की चिंता मत करना। मैं वहाँ कुछ खा लूंगा। बड़े बाबू से कह दिया है । एक इलेक्ट्रिशियन तथा एक मजदूर को भेज देंगे। उनसे सारा काम करवा लेना | यह कहते हुए रवि बाहर निकल गये आफिस के बड़े बाबू सक्सेना जी इस कॉलोनी की सोसाईटी के अध्यक्ष थे। ये मकान उन्होंने ही रवि को दिलवाया था । यह कॉलोनी डिपार्टमेंट के लोगों की थी,

कुछ वर्ष पहले प्लाट लेकर लोगो ने मकान बनवाये थे। यह मकान भी बहुत अच्छा था तीन बडे हवादार कमरे किचन के सामने कॉलोनी की सड़क और ठीक सामने मंदिर का गेट । नहा – धोकर अन्विता बहुत फ्रेश महसूस कर रहीं थी। गोलू भी अभी तक उठ गया था, लगभग आधा किचन अन्विता ने कल ही जमा लिया था।

जल्दी से उसने पुलाव बनाया माँ-बेटे खाना खाकर उठे थे कि डोर बेल बजी गोलू ने दरवाजा खोला अन्विता भी तब तक वहा पहुंच गई थी, आगंतुको को देखते ही पहचान गई इलेक्ट्रिशियन तथा उसका साथी था |

अन्विता ने दोनो के साथ मोर्चा संभाला और काम चार बजे तक सारा सामान जम गया फिर दोनो को पारिश्रमिक देकर विदा किया। एक बार दोपहर में चाय बना ली थी इसीलिए दोबारा पीने का मन नहीं हुआ ऐसे ही बरामदे में जाकर खड़ी हो गई । सामने मंदिर में कुछ महिलाएं दिख रहीं थी। समवेत स्वरों में भजन गाने की आवाज आ रहीं थी।

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अचानक उसकी नजर एक युवती पर जाकर टीक गई जो मंदिर के चबूतरे पर जहां पीपल का पेड़ लगा था अकेली चुपचाप बैठी हुई थी। थोड़ी देर के बाद भजन समाप्त हो गये |

 महिलाएं धीरे-धीरे आपस में बतियाते हुए मंदिर के मेन गेट की ओर बढ़ने लगी। वह युवती भी उठी और समूह में चलने वाली महिलाओं में से एक के साथ हो ली |

अन्विता तब तक उन दोनो को देखती रहीं जब तक वे दोनों आंखों से ओझल नहीं हों गई|

 धीरे-धीरे जिन्दगी पटरी पर आ गई। गालू का सेन्टर स्कूल में बराहवीं में तथा एक नई कोचिंग संस्था में दाखिला हो गया था।

 रवि तथा गोलू के जाने के बाद अन्विता के पास कोई खास काम नहीं रहता था, महरी भी 11 बजे तक काम करके चली जाती थी। उसके बाद समय अनुसार अन्विता टी.वी. देखकर या पत्र-पत्रिकाएं पढ़कर समय व्यतीत करती थी। गोलू का रहना न रहना बराबर था। स्कूल कोचिंग, पढ़ाई, दोस्ती इनके चलते या तो अपने कमरें में रहता था या फिर बाहर ।

एक शाम वह सामने के कमरे में बैठी थी दरवाजा खुला था मेन गेट बजा। उसने देखा गोलू की वय का एक दुबला-पतला लड़का चला आ रहा था। वह कुछ पूछती उसके पहले वह नमस्ते करते हुए पूछा अन्टी अन य है क्या?

मैं उसकी क्लास में ही पढ़ता हूँ आज मैं स्कूल नहीं गया था अन्विता ने उसको अन्दर आने को कहा वह कुछ झिझकता हुआ अन्दर आया इतने में गोलू साईकिल पर आता दिखा। जब रोहन को देखा तो अन्दर आकर उसने परिचय कराया । मम्मी यह रोहन है बड़े बाबू सक्सेना जी इसके नानाजी हैं। फिर चबूतरे पर बैठी युवती की ओर इशारा करते हुए कहा कि वो इसकी मम्मी है। इसके बाद स्कूल बैग वहीं रखा

और रोहन के साथ तुरन्त बाहर निकल गया अन्विता अब सब समझ गई थी। युवती सक्सेना जी की पुत्री हे । तथा साथ वाली महिला उसकी पत्नि है। मंदिर में भजन समाप्त हो गये थे महिलाएं बाहर निकल रहीं थी। जैसे ही वे दोनो गेट से बाहर निकली अन्विता ने उन्हें रोककर घर चलने का आग्रह किया। वे दोनों शायद उसे पहचान गई थी,

बड़ी महिला बोली आफिस में जो नए साहब आए हैं तुम उनकी बीबी हो फिर बेटी का हाथ पकड़कर साधिकार घर की ओर कदम बढ़ाए । बरामदे में चप्पल उतारकर कमरे में प्रवेश किया |अन्विता ने उनके स्वागत सत्कार में कोई कमी नहीं की।

 बेटी उम्र में अन्विता से छोटी लग रही थी। एक उदासी तथा मायूसी उसके चेहरे पर थी। साड़ी भी साधारण ही पहनी थी इसके विपरीत मॉ मुखर थी। लगातार बोल रही थी बेटि ये संध्या है मेरी पुत्री|

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शुरू से ही हमने पढ़ाने की कोशिक की पर ये पढ़ी ही नहीं। मुश्किल से ग्यारवहीं किया फिर हमने भरे-पूरे परिवार में इसका ब्याह कर दिया, दामाद घर में तीन भाइयों में सबसे बड़े थे | घर में माता पिता और बड़ी बहन ने संध्या के साथ पर वे लोग इसके साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया , तब एक दिन जाकर मैं उसे लिवा लाई । दामाद कई बार लेने आया फिर मैंने नहीं भेजा |

 रोहन का जन्म भी यहीं हुआ। मेरी एक शर्त थी परिवार से अलग रहो तो बीवी बच्चे को ले जाओ। इसके बाद वह कभी नहीं आया |

संध्या निर्विकार भाव से मां की बाते सुन रहीं थी। पर उसने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की अन्त मैने ही उसे टोका अरे तुमने तो कुछ लिया हीं नहीं। उसने चाय का कप उठा लिया । माँ निरंतर बोल रही थी, बिटिया इसके दो भाई है। भाभियां है दोनो के एक-एक बेटे हैं बहुत सब काम करती हैं। प्राईवेट स्कूल में पढ़ाती भी हैं पर इससे कुछ नहीं होता दिनभर मेरे साथ लगी रहती है। कि इतने में रवि आ गए उन्हें देखकर माँ ने अपनी बातों पर विराम लगाया और जाने की लिए उठ खड़ी हुई, संध्या का हाथ पकड़ा और जाते-जाते घर आने का निमंत्रण देते हुए कमरे से बाहर निकल गई।

 एक दिन अन्विता ने अपनी बोरियत का जिक्र किया तो रवि ने सलाह दे डाली अपनी कुकिंग, बैकिग की क्लास तुम यहां भी शुरू कर सकती हो इसमे तुम सक्सेना आंटी की मदद ले लो । अन्विता को नई-नई रसीपी बनाने का बहुत शोक था। इसी शोक के चलते उसने इसका कोर्स भी कर लिया था। पिछले शहर में उसकी क्लास अच्छी खासी चलती थी । उसने कुछ निश्चय किया और मिसेस सक्सेना से इस बात का जिक्र किया परिणाम

अनुकूल रहा । धीरे-धीरे इच्छूक महिलाओं ने आना शुरू कर दिया और हफ्ते में तीन दिन अन्विता ने क्लास शुरू कर दिया। संध्या ने भी उसके यहां आना शुरू कर दिया, कभी भाभियों के साथ कभी अकेले भी दोपहर में, अब उसका मंदिर जाना भी कम हो गया था। जिस दिन क्लास नहीं होती थी उस दिन भी वह अन्विता के यहां आ जाती थी।

धीरे-धीरे वह उनसे घुलने लगी थी अन्विता को भी उससे बाते करना अच्छा लगता था । अब अन्विता का समय भी अच्छे से बितने लगा । अपनी क्लास अनय की परीक्षा की तैयारी फिर परीक्षा परिणाम की प्रतीक्षा इन सब में आठ से दस माह का समय कब निकल गया पता ही नहीं चला |

 जब मैं हैदराबाद के इंजीनियरिंग कालेज में अनय को प्रवेश मिला तब जाकर अन्विता ने राहत की सास ली। इधर रोहन ने भी स्थानीय इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला ले लिया था। अनय के जाने के बार अन्विता को बहुत सुनापन लग रहा था पर उसके भविष्य के लिए मन को समझा लिया था। संध्या को भी रोहन की चिंता थी । अक्सर अन्विता से कहती दीदी मैं तो पूरी जिंदगी में कुछ नहीं कर पाई अब रोहन ही मेरी आशा है।

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मुझसे तो कोई काम कभी ठीक से नहीं होता । ससुराल में थी तब भी दाल में नमक तेज हो जाता था। कभी सब्जी जल जाती थी रोटियां भी जन्दी नहीं बना पाती थी। सब लोग नाराज रहते थे। पर रोहन के पापा कभी कुछ नहीं कहते थे। बड़ी दीदी का घर पास में था पर अक्सर यहीं बनी रहती थी । सासू मां के साथ मिलकर खूब ताने देती थी। एक दिन मम्मी घर आ गई दोनो ने मिलकर मेरी खुब शिकायत की। मम्मी उसी दिन मुझे ले आई। फिर कभी नहीं भेजा 

दीदी रोहन के पापा के प्रेस में नौकरी थी अधिक वेतन नहीं मिलता था पापा भी रिटायर होने वाले थे दोनो भाई पढ़ रहे थे। फिर मम्मी की अलग रहने की शर्त कैसे मानते । बहुत दिनो से उसकी कुछ खबर नहीं मिली एक बार भैया बता रहे थे कि अब वे गांव चले गये हैं संध्या की हर बात रोहन के पापा से शुरू होकर उन्हीं पर खतम होती थी। उसने उन दो महिनों में जैसे सारी जिन्दगी जी ली थी

उसके पास यादों का कभी खतम न होने वाला खजाना था । अन्विता बहुत अच्छी श्रोता थी । उसके तनमयता से देखकर संध्या और मुखर हो उठती थी | मिसेस सक्सेना हमेशा कहती कि बिटिया तुम्हारा बड़ा असर संध्या पर पड़ने लगा हे | अब तो उसका मन भी काम में लगने लगा। खाना भी अच्छा बनाने लगी हैं | 

चार साल का समय बीत गया अनय तथा रोहन भी इंजीनियर बन गए । अनय ने तो आगे पढ़ने के लिए एम.टेक में एडमिशन ले लिया। पर रोहन ने नौकरी की तलाश शुरू कर दी, कुछ दिनों के बाद एक दिन सबेरे-सबेरे संध्या अन्विता के घर आई हाथ में मिठाई का डिब्बा था उसे देखकर बोली दीदी रोहन की नौकरी दिल्ली में लग गई है।

उसकी आंखे थोड़ी छलछला आई थी मैं दोपहर में आउंगी कहकर उल्टे पांव लौट गई। उस दिन अन्विता की क्लास नहीं थी । अतः दोपहर में ड्राईन्ग रूम में संध्या की प्रतीक्षा करने लगी रोज के समय पर संध्या आई । आज तो खुशी जैसे चेहरे पर झलक रहीं है। आते ही शुरू हो गई दीदी रोहन कह रहा है पहले नौकरी ज्वाईन करेगा। घर का इन्तजाम करेगा फिर मुझे लेने आएगा । इस बात को दो महिने बीत गए वह दिन भी आया जब रोहन संध्या को लेने आया

 जाने से पहले वह अन्विता से मिलने आई उससे लिपटकर खुब रोई दीदी जा रहीं हूँ पर मुझे आपकी बहुत याद आएगी। जाने से पहले उसने अन्विता का फोन नंबर लिया तथा कागज पर रोहन का नंबर लिखकर उसे दिया अगले दिन सबेरे-सबेरे अन्विता का मोबाईल बजा देखा तो रोहन का नम्बर था सोचा अभी कल ही तो गई है संध्या इतनी जल्दी उसका फोन उसने फोन उठाया तो संध्या की आवाज आई दीदी एक सेंकेड रूककर कुछ भर्राई सी आवाज सुनाई दी दीदी रोहन उसके पापा को ले आया है । अन्विता यह सुनकर समझ ही नहीं पाई क्या कहें।

तब तक उधर से फोन बंद हो गया अन्विता बहुत देर तक उस आवाज को गहराई से महसूस करती रहीं जिस प्रकार गूंगे के द्वारा गुड़ के आश्वादन को परिभाषित नहीं किया जा सकता सिर्फ अनुभव किया जा सकता है ।  यही अनुभूति उसे हो रहीं थी । 

                           मधुलता पारे 

#रिश्तों में बढ़ती दूरियां

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