आंचार – श्याम कुंवर भारती : Moral Stories in Hindi

अनिता ने अपनी सास ममता देवी को बहुत समझाने की कोशिश की उसकी सास रात का खाना खा ले लेकिन वो नही मानी ।उसके ससुर को बुखार था फिर भी उन्होंने दवा खाने से पहले खाना खा लिया और अपनी पत्नी से कहा ,_ देखो जिद मत करो खा लो जाओ चुपचाप सो जाओ।

खाना मुझे खाना है या आपको ।मुझे खाने का मन नहीं है।जिद मत कीजिए ।अपनी पत्नी की डांट सुनकर बेचारे आलोक नाथ जी चुप रह गए।

रात के करीब दस बजे अनिता का पति   विवेक अपने काम से आया ।

उसने अपनी पत्नी से अपने माता पिता और बच्चो का हाल चाल पूछा।

अनिता ने बताया बच्चे खा पीकर सो गए हैं।बाबूजी अभी अभी दवा खाकर सोए है ।लेकिन मां जी बिना खाए ही सो गई है।आपके पापा और मैंने भी उन्हें बहुत मनाया लेकिन वो मानी नही ।अपनी पत्नी की बात सुनकर विवेक को बड़ा आश्चर्य हुआ ।पूछा लेकिन मां बिना खाना खाए ही क्यों सो गई।

आज आँचार खत्म हो गया था इसलिए बिना आंचार का वो नही खाई।

उसकी पत्नी ने बताया।

तुम तो जानती हो मां को आंचार बहुत पसंद है ।वो दाल रोटी भी आंचार से खा लेती है ।जब हम छोटे थे तब मां तरह तरह के आंचार बनाकर रखती थी ।वो बड़े प्यार से आंचार बनाती थी ।रसोई में जब भी जाता था वहा आंचार की महक से भूख बढ़ जाती थी।आम ,नींबू,इमली,शब्जीयो , मिर्चा,मूली और पता नही कितने तरह के आंचार बनाती थी ।वो खुद भी आंचार खाती थी और परिवार के सभी लोगो को खिलाती थी ।मेहमान तो मां के हाथो के बने आंचार की तारीफ करते अघाते नही थे।

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पिता जी तो उनके आंचार के दीवाने थे।वो खुद बाजार से आंचार के मसाले और तेल खरीद कर लाते थे।

अपनी पति के मुंह से अपनी सास के आंचार प्रेम की बात सुनकर बहुत खुशी भी हुई और अफसोस भी हुआ की क्यों उसने बाजार सेआंचार मंगाकर नही रखा ।

उसने सोचा वो अब माता जी से आंचार बनाना सीख लेगी।ताकि फिर मां जी को बिना आंचार के खाना से मुंह मोड़ना न पड़े।परिवार वाले भी खा सके।

विवेक अपनी आदत के मुताबिक अपने सोए हुए बच्चो को देखता हुआ पिता जी के पास गया ।वो जागे हुए थे ।उसने उनका सिर छूकर उनका हाल चाल पूछा और कहा _ पापा मां बिना खाए ही सो गई आपने उन्हे मनाया नही ।

छोड़ो बेटा तुम तो जानते हो वो कितनी जिद्दी है ।सास बन गई है फिर भी उसका नखड़ा गया नही ।एक दिन आंचार नही मिला तो क्या हुआ।

आप नाराज मत हो पापा मैं मां से बात करता हूं ।उसने आंचार ही तो मांगा था कोई राबड़ी तो नही मांगी । मैं मां को ऐसे बिना खाए सोते नही देख सकता।

मां जागी हुई थी ।उसने मां का हल पूछा। अपने बेटे को आया देख कर वो उठ कर बैठ गई ।तुम आ गए विवेक ।खाना खाया नही ।आज तुमने आने में बड़ी देर कर दिया ।उसकी मां ने पूछा ।

नही मां अभी तो आया हूं ।आज ऑफिस में बहुत काम था इसलिए देर हो गई।

तुम्हारे बिना कभी खाया है जो आज खा लूंगा।तुम उठो और हाथ मुंह धो लो ।मैं अभी यूं बाजार गया और यूं आया तुम्हारी पसंद का आंचार लेकर।

विवेक ने कहा ।

अभी वो घर से निकलने वाला ही तभी बादल गरजने लगे ।उसने अपनी बरसाती निकाल कर पहन लिया और अपनी बाइक को किक मारने ही जा रहा था तभी अनिता ने कहा _ बरसात होने वाली है ।आप इतनी रात को बाजार जा रहे है ।कोई दुकान खुली होगी ।

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खुली नही भी होगी तो दुकान खुलवाकर मां के लिए आंचार लायेंगे।

विवेक निकल चुका था।

अनिता मन में सोच रही थी मेरा पति आंचार नही संस्कार लेने गया है।

ऐसा पति ,पिता और बेटा भगवान सबको दे ।उसे अपने पति पर नाज हो रहा था।

करीब आधा घंटा बाद अनिता ,उसकी सास और पति तीनो एक साथ खाना खा रहे थे।

आंचार के साथ घर में संस्कार की खुशबू बिखर रही थी ।उसकी सास ने अपने बेटे और बहू को बड़े प्यार से देखा और कहा _ तुम दोनो के रहते भला मैं कभी भूखी सो ही नही सकती।

       –  : समाप्त :-

लेखक_ श्याम कुंवर भारती

बोकारो,झारखंड

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