“माँ,आज फिर आपने आशु भैया को खाने पर बुला लिया, कब समझोगी आप “। रिया फिर गुस्सा हो गई।
“बेटे उसकी तबियत ठीक नहीं हैं, तो वो भी यहीं खा लेगा। बाहर का खाना उसको नुकसान करेगा”. ऊषा ने बेटी को समझाया।
“पर आपकी तबियत भी ठीक नहीं, ऊपर से आप आशु भैया के रूममेट को भी बुला ली, क्या जरूरत हैं, सब आपकी भावुकता का फायदा उठाते हैं, आप क्यों नहीं समझती हैं “।
“बेटे, भले ही वो फायदा उठाये पर मेरे मन को तसल्ली रहेगी की मेरे रहते मित्र के बच्चे भूखे नहीं थे”
ये थी रिया की मम्मी और रिया की नोंक -झोंक, जो अक्सर होती रहती। रिया आज की युवा थी।आशु और उसके रूममेट का खाना अक्सर रिया के घर में होता था। आशु रिया के पापा के मित्र का बेटा हैं, जो यहाँ रह कर इंजीनियरिंग कर रहा था। जब आशु ने हॉस्टल छोड़ा तो अपने एक सहपाठी संग रिया की सोसाइटी में ही दो बेडरूम का घर ले लिया।जब कुछ अच्छा खाने का मन हो रिया के घर आ जाता। ऊषा से फरमाइश कर बनवा कर खाता,खूब तारीफ करता।
ऊषा को लगता ये बच्चे घर से दूर हैं, घर को मिस करते हैं इसलिये यहाँ आ जाते। जाते समय रिया को पता नहीं क्यों आशु का मुस्कुरा कर अपने रुममेंट को देखना, ऐसा लगता मानों कह रहा कितना बेवकूफ बनाया, पैसे भी बच गये खाना भी घर का मिल गया। जब भी रिया नाराज होती, ऊषा समझा देती -कल को तुम लोग भी बाहर पढ़ने जाओगे
तो तुमको भी ऐसे ही कोई खिलाने वाला मिल जायेगा।ऊषा की कमजोरी थी वो खाने के लिये किसी को ना नहीं बोल पाती थी भले ही तबियत खराब हो, पर किसी के मुँह से सुन लेगी वो भूखा हैं तो खिला कर ही भेजती थी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
बात आई -गई हो गई, आशु की इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म हो गई जॉब पर आ गया। पोस्टिंग भी उसी शहर में मिली तो फ्लैट उसने छोड़ा नहीं। हाँ अब रिया के घर आना कम हो गया। पहले वो ऊषा को बोलता था आंटी, आपका बड़ा बेटा तो मै ही हूँ, देखिएगा जब रिया और ऋतिक बाहर चले जायेंगे तब मै ही आपका ख्याल रखूँगा, ये सुन ऊषा खुश हो जाती थी।रिया मुँह बिचका कर चली जाती थी ऊषा ऑंखें दिखती रह जाती थी।
एक दिन आशु आया बोला -आंटी मेरे साथ बाजार चलेंगी। पहली सैलेरी मिली हैं, मम्मी के लिये साड़ी खरीदनी हैं। ऊषा उसके साथ बाजार जा कर उसकी मम्मी की साड़ी, बहन के लिये घड़ी और पापा के लिये कोट खरीदवा कर शाम को जब लौटी तो थकान से बेहाल थी फिर भी आशु की फरमाइश पर आलू के पराठे बनाने की तैयारी करने लगी। मन में थोड़ा चुभ गया। जिस बच्चे की वो इतनी केयर करती थी, उसने एक बार भी नहीं कहा -ऑन्टी आप भी कुछ ले लो, या रिया और ऋतिक के लिये कुछ ले लो।
आशु के जाने के बाद रिया ने ऊषा की खूब खिंचाई की। मम्मी आपका लाडला आपको कुछ नहीं दिलवाया। अब भी छोड़ दो आप इनलोगो को, अपने बच्चे यानि मै और ऋतिक ही आपके काम आएंगे, दूसरा बच्चा नहीं। और वो जो आपको बड़ा बेटा कह, बहलाते हैं, वो कभी आपके काम नहीं आएंगे।
“चुप रह, क्या मै गिफ्ट के लिये उसे खिलाती -पिलाती थी, अरे वो भी बच्चा हैं।”
“दीदी, मम्मी के सर से आशु भैया का भुत इतनी जल्दी नहीं उतरेगा।ऋतिक ने रिया को समझाया।
कुछ समय बाद रिया एम. बी. ए. करने चली गई और ऋतिक इंजीनियरिंग करने चला गया। ऊषा अकेली रह गई। कुछ दिनों बाद होली पड़ी, बच्चे घर आये थे, उस दिन ऊषा की तबियत ठीक नहीं थी। होली खेलने के बाद सब अपने कमरों में आराम करने चले गये तभी कॉलबेल बज उठी, इस समय कौन आया होगा सोच महेश जी ऊषा को सोने को कह देखने चले गये। जब महेश जी बहुत देर तक नहीं आये और ड्राइंग रूम से आती
आवाजे सुन ऊषा बाहर निकल आई। देखा आशु अपने दोस्त के संग बैठा था।शाम के लिये कुछ स्नेक्स बनाया था ऊषा ने वही स्नेक्स, उनलोगो को दे दिया और तबियत खराब होने की वजह से सोने चली गई। खा कर आशु भी चला गया। उसके बाद बहुत दिनों तक नहीं आया, पता चला उसका ट्रांसफर मुंबई हो गया। ऊषा को बहुत दुख हुआ,आशु ने एक बार मिलना भी उचित ना समझा।जबकि खुद को बड़ा बेटा बोलता था।
कुछ दिनों बाद आशु की मम्मी आई तो ऊषा से मिलने आई। ऊषा ने उनसे आशु के बारे में पूछा तो वो हँस कर बोली -तुम्हारा लाडला फिर यहीं आने वाला हैं,। होली पर मैंने उससे पूछा था तेरी ऊषा आंटी ने क्या खिलाया तो आशु बोला -उन्होंने कुछ नहीं खिलाया बस कुछ सूखे नाश्ता सर्व कर दिया था।मैंने तो बोला भी उसे, ऐसा हो नहीं सकता तो वो बोला आप आंटी पर अंधविश्वास करती हो, जबकि सच में उस दिन उन्होंने हमें खाने को नहीं पूछा।मै विश्वास नहीं कर पाई
इस कहानी को भी पढ़ें:
ऊषा ने हैरानी से पूछा -सूखा नाश्ता, पर मैंने तो उसे कटलेट, पापड़ी चाट खिलाई थी, उसदिन मेरा माइग्रेन का दर्द बढ़ा हुआ था और आशु शाम के चार बजे आया था तो मुझे लगा खाना खा कर आया होगा।इसलिये मै नाश्ता दे सोने चली गई थी।
एक बार खाना ना खिला पाई तो उसने रिश्ते का चोला उतार फेंका। ऊषा के मन की गिरह खुल गई, रिया सही कहती थी, तुम्हारे अपने बच्चे ही काम आएंगे किसी दूसरे का बच्चा तुम्हारे काम नहीं आयेगा। अच्छा सबक दिया आशु ने, ऊषा ने मन में सोचा।
आशु तो आपका बेटा हैं रत्ना, मेरा बेटा तो ऋतिक ही हैं, किसी के कह देने से कोई रिश्ता नहीं बनता, रिश्ता तो निभाने से बनता हैं, जब तक मै आशु को खिलाती -पिलाती रही, वो मेरा बेटा बन गया था, और एक बार नहीं खिला पाई तो मै बुरी बन गई। उसने ये देखा ही नहीं, कई बार मै बीमारी में भी उसे बिना खाये नहीं जाने देती थी आशु को मेरा धन्यवाद कहियेगा, उसने मुझे नींद से जगा दिया।
कह ऊषा ने हाथ जोड़ दिया। रत्ना अपना सा मुँह लिये लौट गई, स्वार्थी तो उन्होंने ही बनाया था। आशु फिर उसी सोसाइटी में रहने आया, पर ऊषा ने उसको कोई महत्व नहीं दिया। हाँ धन्यवाद जरूर दिया क्योंकि ना आशु चोट देता ना ऊषा को सबक मिलता।ऊषा ने अपने दिल की भावुकता पर नियंत्रण रखना सीख लिया।
दोस्तों कई बार लोग सामने वाले की कमजोरी का फायदा उठाते हैं इसलिये ना कहना भी आना चाहिये। ऊषा ने आशु का बहुत किया कभी उसे घर की कमी महसूस होने नहीं दिया पर एक बार नहीं कर पाई तो आशु पिछला भी सारा भूल गया। रिश्ते दोनों तरफ से निभते हैं, जैसे ताली दोनों हाथों से बजती हैं।सबक यही हैं किसी को इतना मत करिये कि वो आपको ग्रांटेड ले ले और आपकी एक ना, उसे नागवार लगे।
संगीता त्रिपाठी