जैसेही रवि ऑफिस से घर आया , वह समझ गया आज फिर घर में कुछ हुआ है। हुआ क्या होगा संध्या ने फिर कुछ उल्टा सीधा कह दिया होगा माँ को और शिखा को, पिछले 1 साल से यही सब तो चल रहा है इस घर में। उसने देखा बरामदे मेंबैठा उसकी बहन का
6 साल का बेटा दिव्यांशु सुबक-सुबककर रो रहा है, और उसकी 4 साल की बेटी नायरा उसके आंसू पोछ रही है। भाई बहन के प्यार को देखकर उसकी भी आंखें भर आई। दोनों बच्चों का यही हाल है एक दूसरे के बिना रह भी नहीं पाते और लड़ते झगड़ते भी बहुत है। संध्या दिव्यांशु को ही डांटती रहती है,
अपनी बेटी नायरा की गलती उसे दिखती ही नहीं है। अपने कमरे में गया तो संध्या।ने पानी को भी नहीं पूछा। और अपने पति पर बरस पड़ी,,मुझसे अब तुम्हारी बहन की खिदमत नहीं होगी या तो मैं इस घर में रहूंगी या वोरहेगी। तुम्हारी मां क्या कम थी मेरी छाती पर मूंग दलने के लिए जोअब तुम्हारी बहन भी यहां आकर बैठ गई पति से झगड़ा होने के बाद ऐसे कौन मायके में आकर बैठता है? ऊपर से तलाक का मुकदमा भी डाल दिया।
भाई के घर को तो धर्मशाला सोच रखा है मुंह उठाओ और चल दो। संध्या जोर जोर से बोल रही थी जिससे आवाज शिखा के कानों तक भी अच्छी तरह पहुंच रही थी वह कमरे में आकर अपने भाई के कुछ कहने से पहले ही बोल पड़ी।यह क्या कह रही हो भाभी आप? आप तो सब जानती हैं उन्होंने मेरे साथ क्या-क्या नहीं किया है आपने तो मेरे शरीर पर पड़े निशान भी देखे थेथे। क्या फिर भी मैं पिटने के लिए उसे इंसान के पास चली
जाऊं? मायके के सिवा एक लड़की का सहारा और कौन बनता है? तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार करोगी मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा था। लेकिन अब मैं यहां नहीं रुकूंगी मैं अपने बेटे को लेकर यहां से चली जाऊंगी मैं आत्मनिर्भर हूं। लेकिन उस इंसान के पास नहीं जाऊंगी जिसे औरत की कोई कदर नहीं है। नहीं बेटा तुझे यहां से कहीं जाने की जरूरत नहीं है यह घर मेरा है अभी तेरी मां जिंदा है ईश्वर की कृपा से मेरा शरीर भी पूर्ण स्वस्थ है। एक दो महीने में तुम्हें उस आदमी से पूरी तरह छुटकारा भी मिल जाएगा। इस घर में मेरे दोनों बच्चों का बराबर अधिकार है। सरिता जी बोली।
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मैंने ऊपर वाला पोर्शन किराएदार से खाली करने के लिए कह दिया है। कल से तुम वही रहोगी मेरे साथ। तुम्हारे पापा ने तुम्हें अन्याय के सामने घुटने टेकना नहीं सिखाया है। उन्होंने तुम्हें इतना तो काबिल बनाया है।
और संध्या तुम्हें हम मां बेटी के लिए परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। मैं चाहूं तो तुमसे भी अपना घर खाली करवा सकती हूं लेकिन मेरा बेटा घर के क्लेश में पिसकर रह जाए मैं बिल्कुल नहीं चाहती , वह घर के झगड़ों में पेंडुलम की तरह पिसता रहता है। मुझे पता है वह हमसे भी बहुत प्यार करता है और अपनी सारी जिम्मेदारियां का उसे बखूबी ज्ञान है। मैं नहीं चाहती हमारी वजह से तुम्हारा रिश्ता भी खराब हो क्योंकि पति-पत्नी एक दूसरे के पूरक होते हैं इसलिए भविष्य को ध्यान में रखते हुए मैंने यह निर्णय लिया है
आत्म सम्मान बनाने के लिए रिश्तो में थोड़ी सी दूरी भी जरूरी है इसीलिए मैं चाहती हूं शिखा अपने भाई के साथ ही रहे। लेकिन अपनी गृहस्थी अलग ही रखें।
मेरा क्या है? उम्र के आखिरी पड़ाव पर क्या पता कब सांसे बंद हो जाए? कम से काम अलग रहते हुए भी भाई बहन साथ तो रहेंगे। एक दूसरे की जरूरत हर रिश्ते में पड़ती है। रवि के लाख मना करने के बाद भी।
सरिता जी अपनी बेटी के साथ ऊपर वाले पोर्शन में रहने लगी। थोड़ी सी रिश्तो में दूरी आने की वजह से आपस में खटपट भी बंद हो गई। समय के साथ परिपक्वता आने पर संध्या का व्यवहार भी अपनी नंद के प्रति बहुत उदार हो गया था। शिखा का अपने पति से तलाक हो चुका है , अपनी मां और भाई के लाख बार कहने पर भी वह दूसरी शादी के लिए हरगिज़ तैयार नहीं थी।आज उसका बेटा इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है
भगवान की दया से उसकी मां अभी बिल्कुल स्वस्थ है और अपनी बेटी के साथ ही रहती हैं। बहु संध्या भी अपनी किसी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटती है। सरिता जी के एक निर्णय ने रिश्तो में आई दूरियों को मिटा दिया था शायद वक्त के हिसाब से यही सही था।
कभी-कभी परिस्थितियों की नजाकत को समझते हुए हमें कठोर निर्णय भी लेने पड़ते हैं जो एक वक्त के बाद हमें सही लगने लगते हैं।
सच ही कहा है किसी ने रिश्तों को तोड़ना आसान होता है लेकिन निभाना मुश्किल होता है अपने जैसे भी हो अपनों से संबंध बनाए रखना ही समझदारी है।
पूजा शर्मा स्वरचित।