…सबसे पहले तो उसे नागार्जुन जी को कोई अपडेट देना था…
वरना वह उसका ही पीछा करना शुरू न कर दें…
अभिनव ने अपने फोन को कई बार सेट किया… यहां वहां ठोक लगाई… मगर उसमें कोई हलचल नहीं हुई…
बैग से चार्जर निकाल… आखिर उसने मोबाइल को चार्ज में लगाया…
करीब 2 घंटे लगातार चार्ज लेने के बाद… फोन में हल्की सी हलचल हुई…
फोन ऑन होते ही अभिनव ने देखा… कई मिस्ड कॉल पड़े हुए थे…
उसने सबको अपनी अपनी तरह से सेटल किया…
सबसे अधिक मिस्ड कॉल तो नागार्जुन जी का ही था…
उनसे बात करना ही सही जान.… अभिनव ने उन्हें फोन लगा दिया…
दरवाजा बंद था… इसलिए कोई खास दिमाग ना लगा…उसने नंबर डायल कर दिया…
” राय साहब… मैं माफी चाहता हूं… दरअसल मेरा एक छोटा एक्सीडेंट हो गया है…
शरीर में कई जगह चोटें आई हैं… इसलिए मुझे थोड़ा वक्त चाहिए…
प्लीज आप भरोसा रखिए… मैं सच के बहुत करीब पहुंच चुका हूं…
कुछ दिनों का इंतजार और कर लीजिए… मैं नीलांजना जी को लेकर ही वापस आऊंगा…!”
फोन रखते ही अभिनव की आंखें चकरा गईं…
सामने नीलांजना जी खड़ी थीं…
वह दरवाजे का लॉक लगाना भूल गया था…
नीलांजना जी खाना लेकर आई थीं… उन्होंने खाना बेड के पास टेबल पर रखते हुए कहा…
” नागार्जुन जी ने भेजा है तुम्हें…!”
” जी वह मैं बताने ही वाला था… मगर…!”
” देखो अभिनव दत्ता…तुम्हें इतना सच छुपाने की जरूरत नहीं थी…
तुम डिटेक्टिव एजेंसी के लिए काम करते हो… और तुम्हारे पिता सौमिल दत्ता का अपना नाम है…
यह मैंने तुम्हारे आई कार्ड में कल ही देख लिया था… मैं जानती थी कि तुम दिल्ली से आए हो…
मुझे ही ढूंढ रहे हो…
जब तुम्हें मैं मिल गई तो तुमने नागार्जुन जी को बता क्यों नहीं दिया…
उन्हें बता कर सारा मामला सेटल कर लेते… फिर झूठ क्यों कहा…?”
“मैम यह सब सच है… मैं अभिनव दत्ता डिटेक्टिव ही हूं… मगर साथ ही यह भी सच है… कि मैं आपके अचानक गायब होने का कारण जाने बिना… नागार्जुन जी को कुछ भी नहीं बताऊंगा…!” नीलांजना जी ने व्यंग्यात्मक हंसी हंसते हुए कहा…
” वाह… यह तो वही बात हुई… कि घोड़ा घास से दोस्ती कर ले…!”
” अब आप इसे जो भी कहना चाहें कह लें… लेकिन आपकी सारी बात जानकर ही मैं कुछ भी नागार्जुन जी से कहूंगा… या फिर आप अगर चाहें तो मैं आपकी भी मदद कर सकता हूं…!”
“शायद इस समय जो मदद मुझे चाहिए… वह मैं खुद भी नहीं जानती…!”
नीलांजना जी वहीं पड़ी एक कुर्सी पर अपना सर टिका कर बैठ गईं…
“प्लीज बताइए…मैम…!”
” हरिद्वार में नागार्जुन जी से बात करने के बाद मैंने शांभवी को फोन किया…
मैं बच्चों को भी बताना चाहती थी कि मेरा फोन गुम हो गया है… इसलिए परेशान ना हों…
फोन करते ही शांभवी चिल्ला उठी…
“मां कहाँ हो… जल्दी करो… कब से तुम्हें फोन कर रही हूं… क्या हुआ तुम्हारा फोन…
दीदी से बात करो ना… कुछ पता लगाओ… दीदी फोन नहीं उठा रही… कल ही उनका रिजल्ट आया था… वह इस बार भी फेल हो गई है…
मम्मी देखो ना मुझे बहुत डर लग रहा है…!”
मैंने तुरंत फोन रखकर अंकिता के हॉस्टल में फोन किया… उसका फोन सिर्फ रिंग हो रहा था…
उसके बाद मैंने वार्डन को फोन किया… तो उसने बताया कि सारे बच्चे पार्टी कर रहे हैं… पर मुझे भरोसा नहीं हुआ…
मैंने वहां से तुरंत में बेंगलुरु आने का फैसला लिया.…
यह बात मैं नागार्जुन जी को नहीं बता सकती थी… क्योंकि उनका रवैया बच्चों की पढ़ाई लिखाई के मामले में बहुत ज्यादा ही सख्त रहा है…
मैं सोच रही थी बेंगलुरु से बात कर लूंगी…
मगर हॉस्टल पहुंचकर जो मैंने देखा… उसके बाद मेरी हिम्मत जवाब दे गई…
मैं जब अंकिता के कमरे में पहुंची… तो अंकिता कमरे में ही बेसुध पड़ी थी…
उसने बहुत सारी एंटी डिप्रैशन पिल्स खा ली थी…
मैंने किसी को यह बात नहीं बताई.…
नहीं तो हर जगह हल्ला हो जाता… मैं चुपचाप अंकिता की एक दोस्त की मदद से… उसे अस्पताल लेकर आ गई…
दवाइयों का असर इतना गहरा था… कि अगर कुछ घंटे और लग जाते मुझे… तो मैं अपनी बेटी को खो देती…
होश में आने के बाद अंकिता काफी देर तक रोती रही… बस एक ही बात बोले जा रही थी…
” मम्मी पापा से कुछ मत कहना… मैं फिर फेल हो गई …!”
लगातार 2 सालों से अंकिता फेल हो रही थी…
वह इंजीनियर बनना कभी चाहती ही नहीं थी… पर पापा की जिद के कारण… उसे यहां एडमिशन लेना पड़ा…
अंकिता बचपन से ही पापा की फेवरेट बनना चाहती थी… हर समय जो पापा कहें… उनकी पसंद ना पसंद का ख्याल रखना… उनके घर आने से लेकर जाने तक… हर काम परफेक्ट रखना… ताकि पापा उसकी कभी प्रशंसा करें…
पर इन कामों से नागार्जुन जी को कोई मतलब नहीं था…
उन्हें मतलब था एकेडमिक्स के रिजल्ट से… जिसमें वह कभी भी पापा की बेस्ट बेटी नहीं बन पाई…
पापा के उम्मीद पर खड़ा उतरने के लिए… जो मेहनत उसे पढ़ाई पर करनी चाहिए थी… वह उससे कभी मुमकिन ही नहीं हुआ…
इसलिए दसवीं से निकलते ही पापा ने उसे हॉस्टल में डाल दिया…
वहां रहकर पढ़ाई में मन लगाओ… यहां बस घर के धंधों में उलझी रहती हो…
पर अंकिता घर छोड़ना बिल्कुल नहीं चाहती थी… वह लड़की कभी बाहर एडजस्ट ही नहीं कर पाई… जबरदस्ती की विज्ञान की पढ़ाई… जबरदस्ती बीटेक करवाने की जिद… पढ़ाई से नहीं निकाल पाई तो मैं डोनेशन दूंगा… पर करना तो तुम्हें बीटेक ही है…
अंकिता का साधारण दिमाग… मशीन और मशीनरी की बोझिल दुनिया में… कहीं फिट नहीं बैठ रहा था…
मैं अपनी बेटी के लिए कभी कुछ बोल ही नहीं पाई… नागार्जुन जी के जिद के आगे मैं हमेशा बेबस बनी रही…
पहले सेमेस्टर को दो बार में क्लियर कर… दूसरे सेमेस्टर में किसी तरह पास होकर… तीसरे में फिर फेल हो गई थी अंकिता…
इस बार नागार्जुन जी ने इतनी बेरहमी से उसे घर आने से ही मना कर दिया था… “जब तक पास ना हो जाओ… घर नहीं आना…!”
मैंने लाख कोशिशें की… मगर मेरी एक नहीं चली… नहीं मतलब नहीं…
अंकिता ने पास होने की बहुत कोशिश की… मगर अब उसकी कोशिश का असर उल्टा होने लगा था…
सारे अक्षर और कॉन्सेप्ट उसकी आंखों के आगे धुंधले हो गए थे…
अब उसे लगा कि वह ना ही कभी पास हो पाएगी… और ना कभी नॉर्मल जिंदगी जी पाएगी…
बुरी तरह डिप्रेशन की शिकार अंकिता… दो बार इस क्लास में फेल हुई थी… सबसे बातें करना बंद कर दिया था उसने…
बस शांभवी से अपने दिल की बातें कभी-कभी करती थी…
इसलिए वह अपनी दीदी के दिल की हालत जान रही थी…
शांभवी के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है… वह तो खूब पढ़ना चाहती है…उसे पढ़ने में ही मन लगता है…
अंकिता अभी भारी डिप्रेशन की शिकार हो गई है… उसे इससे बाहर निकाले बिना… जब तक वह ना कहे… मैं उसका सामना नागार्जुन जी से नहीं करवा सकती…
मुझे मेरी बेटी को खोने का डर सता रहा है… इसलिए मैं शांभवी को भी अपने साथ ले आई…
कहीं उसके कारण अर्जुन हम तक ना पहुंच पाएं…!”
” पर आप यहां क्यों आईं… नीलांजना जी… इस तरह गांव में आने का क्या मतलब है… आप कहीं और भी तो रह सकती थीं… यह तो शायद…!”
” हां ठीक समझा तुमने… यह नागार्जुन का ही पुस्तैनी घर है… जिसकी दो पीढ़ियों से कोई देखरेख नहीं हुई है… हमारा ही घर है…!”
थोड़ी देर कमरे में चुप्पी छा गई .…
अभिनव के सवालों का पूरा जवाब अभी भी नहीं मिला था…
वह सवालिया उत्सुक नजरों से नीलांजना की तरफ देख रहा था…
थोड़ी देर चुप रहने के बाद नीलांजना ने एक गहरी सांस भरी… और कहा…
“चलो… तुम भी बिना सब सुने नहीं मानोगे…!”
उनके चेहरे पर एक दुखी मुस्कान फैल गई……
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नीलांजना ( भाग-9 ) – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi
रश्मि झा मिश्रा