मेरा अपराधी – ऋचा उपाध्याय : Moral Stories in Hindi

चार भाइयों की दुलारी चंदा दीदी , उनकी आज्ञा के बिना मायके में पत्ता भी नहीं हिलता था क्योंकि ससुराल में तीन दबंग ननदों के सामने उनकी एक न चलती। वैसे वो अपनी ननदों की भी नहीं चलने देतीं पर बेवजह की लड़ाई झगड़े और बहस से त्रस्त ससुराल का सारा गुस्सा मायके आकर उतारतीं सरल सहज भाभियाँ भी उनके हर गुस्से को चुपचाप सुन कर उनकी हर बात हर आज्ञा को पूरा मान देतीं।

      समय के साथ सब अच्छा चल रहा था। जिस इकलौते आज्ञाकारी बेटे पर चंदा दीदी को बड़ा गर्व था और वो सब को धौंस दिखाया करती थीं, उस आज्ञाकारी, संस्कारी बेटे ने ऐसा काम कर डाला था कि उनके हिसाब से अब वो कहीं मुँह दिखाने के काबिल नहीं रही थीं । उस दिन सुबह सुबह ही एक विजातीय लड़की और दो नन्हे नन्हे बच्चे लाकर बोला माँ ये तुम्हारी बहू और ये पोते। और माँ ये बेसहारा  विधवा थी इसलिए मैने इसका हाथ थामा। चंदा दीदी तो बेहोश ही हो गईं। और सब को बातें करने का मौका मिला।

      भाभियाँ मन ही मन भले खुश हो रही होंगी पर सामने से किसी ने कुछ भी नहीं कहा पर चंदा दीदी की  प्रचंड ननदों को तो मौका ही मिल गया। दीदी के द्वारा दिए गए संस्कार से लेकर उनके लालन-पालन और व्यवहार तक पर ऊँगलियाँ उठ चुकी थीं।

         हमेशा की तेज-तर्रार दीदी बिल्कुल मौन हो बैठी थीं और सबकी बातें चुपचाप सुनती रहीं फिर  थोड़ी देर के बाद दीदी ने अपने कमरे में जाकर कमरा अंदर से बंद कर लिया। बेटा दरवाज़े के बाहर से रोता गिड़गिड़ाता रहा और अपने मामाओं की क्रुद्ध दृष्टि और बुआओं की तरह-तरह की बातें और ताने झेलता , सुनता रहा। दीदी के इस तरह कमरा बंद कर लेने से सबका ध्यान बेटे पर केंद्रित हो गया था।

    उधर कमरे में दीदी दीवार से टिक‌ कर बैठ गईं और आत्ममंथन करने लगीं। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कहाँ गलती हो गई। बेटे के पैदा होने से लेकर अब तक का सारा दृश्य उनकी आँखों के सामने एक चलचित्र की तरह घूम गया। मायके से लेकर ससुराल तक में मेरी तानाशाही चली। छोटे भाई कान्हा की जिंदगी

बर्बाद करने में क्या मैंने कोई कसर छोड़ी थी, उसके गहरे प्रेम प्रसंग की सबसे बड़ी दुश्मन मैं थी। वो तो ईश्वर की कृपा है कि उसकी पत्नी हीरा निकली और कान्हा को बर्बाद होने से बचा लिया। ननदों  का मायके में दखल क्या, आना जाना तक कभी पसंद नहीं किया । बेटे के जीवन से जुड़े सारे छोटे बड़े फैसले भी मैंने स्वयं लिए, उसकी सोच इच्छा जानने की कभी कोशिश भी नहीं की। कहीं मेरे इसी रवैए ने तो इसे विद्रोही नहीं बना दिया।

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   तभी बाहर से बेटे की भर्राई सी आवाज़ आई “माँ एक बार तो मेरी बात सुन लो”। मैने छोटे मामा की हालत देखी थी उनके प्रेम का हश्र देखा था इसलिए आपको बिना बताए ये फैसला कर लिया और आपको बताने की हिम्मत जुटाने में एक लंबा समय ले लिया। मुझे माफ कर दो माँ।

और पता नहीं क्या सोचकर थोड़ी देर बाद चंदा दीदी कमरे से बाहर आईं और सबके सामने हाथ जोड़कर बोलीं कि “आप सब शांत हो जाइए, कोई भी मेरे बेटे को कुछ नहीं बोलेगा ये सिर्फ ‘मेरा अपराधी’ है, क्योंकि इसने सिर्फ मेरा विश्वास तोड़ा है, मेरे अरमानों का गला घोंटा है।और मुझे सब के सामने गलत साबित कर दिया है।

      थोड़ी देर रुक कर वो फिर बोलीं “पर मैं आप सब की अपराधी हूँ” आप सब मुझे माफ कर दीजिए।

ऋचा उपाध्याय

 स्वरचित

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