“ये बंधन तो प्यार का बंधन है” – कुमुद मोहन : Moral Stories in Hindi

” करण! जल्दी कर जीजी की फ्लाईट का टाइम हो रहा है”?नयन ने गाड़ी निकालते हुए कहा!

बाकी दोनों बहनें भी लपक कर गाड़ी में जा बैठीं।

दरअसल वो सब साथ रहने का एक मिनट भी कम नहीं होने देना चाहते थे ।

क्रिसमस की छुट्टियां शुरू होने ही वाली थी कि करण और नयन के फोन आने शुरू हो गऐ थे ,कब आ रही हैं आप लोग?मीता- रीता आ चुकीं  थी, आज बड़ी नीता मुम्बई से आ रही थी ।

नीता-मीता-रीता तीन बहनें और दो दुलारे भाई करण और नयन !

तले-ऊपर के होने के कारण बचपन में खूब झगड़ते पर एक दूसरे के बिना रह भी नहीं पाते थे।

माता पिता सब की शादियां करके चल बसे थे,उनके जाने के बाद सबने तय किया कि वे लोग साल में एक बार फिर अपने घर में जरूर इकठ्ठे होंगे।

सबके पति बहुत सपोर्टिव थे, उन तीनों ने भी इजाजत दे रखी थी कि वे तीनों बहनें बिना पतियों के साल में एक बार मायके चली जाया करें।

करण की पत्नी रीमा के अपने कोई भाई-बहन ना होने की वजह से वह भी इन पांचों भाई-बहनों का प्यार,तकरार, मनुहार देख कर पूरा मजा उठाया करतीं।

नयन की पत्नि रिचा की भाभी बहुत तेज स्वभाव की थी इसलिए रिचा का मायका ना के बराबर था!उसे इन भाई बहनों का आपस का प्रेम प्यार देख कर अच्छा लगता!तीनों बहनें उसका खास ख्याल रखतीं!

बहनों ने पहले ही तय कर लिया था कि उनके आने से दोनों भाभियां चौके में नहीं जुटी रहेंगी,इस लिए सुबह का नाश्ता, लंच, डिनर तीनों बहनें ,भाभियां मिलजुल कर बनातीं।

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सब अपनी-अपनी फरमाईश करते और मिलजुल कर पकाते-खाते।

दोनों भाई सबकी पसंद की चीजें याद कर-करके लाते-खिलाते।

अलग कमरों में कोई सोने को तैयार नहीं था इसलिए हाॅल में गद्दे बिछा कर बड़ी-बड़ी रजाईयों में घुस-घुस कर सब देर रात तक एक-दूसरे के बचपन की यादें ताजा करते,गप्पे लगाते,ठहाके मारते ,एक दूसरे की खिंचाई करते कब सुबह हो जाती पता ही नहीं चलता।

बीच बीच में कभी काॅफी या चाय का दौर भी चल जाता।दोनों भाभियां भी अपने पतियों के बचपन की बातें सुनकर उन्हें खूब चिढ़ाती।

तीनों बहनें भी साल में ही मिल पातीं थी इसलिए एक दूसरे के लिए लाऐ गए सामान का आदान प्रदान भी होता।उनके मन में कभी मंहगे सस्ते का ख्याल नहीं आता।

किसी को रीता के हाथों का अचार पसंद था तो किसी को नीता के हाथ के लड्डू,और सबको मीता का आगरा का पेठा और नमकीन सबकी सब एक दूसरे की पसंद का सामान लाना नहीं भूलतीं।

भाभियों के लिए तीनों बहनें अच्छे से अच्छी चीजें लातीं ,भाभियां मना करतीं तो वे उन्हें यह कहकर चुप करा देतीं कि तुम छोटी हो,चुपचाप रखो”।

तीनों बहनों ने तय कर रखा था कि हर बार वे घर के लिए कोई भी सामान जो वहां नहीं है लगवाऐंगी,इसलिए कभी RO,कभी गीजर कभी माइक्रो जो नहीं होता या खराब हो गया उसे लगवाती।भाइयों के गुस्सा होने पर वे उन्हें छोटे बता समझा-बुझा कर मना लेतीं।

उनके इस प्रेम-प्यार के बीच में पैसे की कोई ना जगह थी ना अहमियत।

हाँ!राखी,भाई- दूज का अपना नेग वो जरूर लेतीं इस दुआ के साथ कि उनके भाई खूब तरक्की करें,उनकी वजह से उनका मायका सदा आबाद रहे,वे सब साल में ऐसे ही मिलते रहें,बहनों का हर साल का मायके का चक्कर लगता रहे ताकि उनकी बैट्री यूं ही चार्ज होती रहे।

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माँ-बाप के जाने के बाद अक्सर बेटियों का मायका  छूट जाता है,जिस घर में वो पली बढ़ी थीं ब्याह के बाद वे वहाँ जाने को तरस जाती हैं।  ससुराल में सारे सुख मिलने पर कभी-कभी हर लड़की का मन करता है कि वह कुछ दिन मायके जाकर अपनी भूली-बिसरी यादों को फिर से जी ले।बहुत किस्मत वाली होती हैं वे जो कम से कम साल में एक बार सब भाई-बहनों के साथ मिल कर अपना बचपन लौटा पातीं हैं ।

कुमुद मोहन 

स्वरचित-मौलिक

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