“बहु भी तो किसी की बेटी ही है” – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

बहू आज  दोपहर के खाने में राजमा चावल , भरवा बैंगन और , खीरे का रायता बना लेना और मीठे में खीर हो जाएगी, दूध तुम्हारे ससुर जी से मैंने मंगा लिया था वो फ्रिज में रखा है। उसमें उबाल लगा लो और खीर के लिए चावल भी भिगो दो। क्यों मम्मी जी आज कोई आ रहा है क्या ?  बहु राशि ने पूछा।हां तुम्हारी बड़ी नंद मितालीऔर दामाद जी आ रहे हैं,  आज रितु की शादी का सारा कपड़ा  और जेवर खरीद दूंगी। शादी में देने के लिए मिताली को  भी उसकी पसंद की साड़ी और बच्चों के कपड़े आज ही दिलवा दूंगी।

  पूरा दिन ही   शादी की खरीदारी में लग जाएगा।खाना खाते ही हम लोग बाजार जाएंगे इसलिए जल्दी-जल्दी खाने की तैयारी कर लो। मेरी कमर में बहुत तेज दर्द हो रहा है। तब तक मैं थोड़ी सी कमर सीधी कर लेती हूं  और सामान की लिस्ट तुम्हारे पापा से पूछ कर बना लेती हूं।कहकर शोभा जी अपने कमरे की तरफ चली गई। लेकिन मम्मी आप पहले से भी तो बता सकती थी दीदी आने वाली है बिचारी भाभी इतना सारा काम कैसे करेंगी,  आज कमला भी छुट्टी पर है और कल भाभी को भी तो बुखार था।

छोटी नंद रितु ने अपनी मां से कहा। अरे अभी तो 2 घंटे हैं उसे आने में कुछ दिमाग में नहीं रहता भूल गई तो क्या करूं जल्दी-जल्दी हाथ चला कर बना लेगी? कुछ ज्यादा ही जुवान चलने लगी है तेरी। अपने नाक भौ सिकुड़ कर शोभा जी बोली। रितु भी अपनी मां का मुंह ताकती रह गई और अपनी भाभी के साथ काम करने में लग गई।  शोभा जी ने उससे कहा तेरी शादी में अभी 15 दिन ही बचे हैं अब तो काम में मत लग लेकिन उसने अपनी मां को आंखों से चुप रहने का इशारा किया। रितु  की अपनी भाभी के साथ अच्छी बनती थी।

15 दिन बाद शोभा जी की छोटी बेटी रितु की शादी है। राघव उनका इकलौता बेटा है जिसकी शादी को 3 साल हो चुके हैं उसकी पत्नी राशि सीधी-सादी सरल स्वभाव की लड़की है। राघव की बड़ी बहन मिताली की शादी को 6 साल हो चुके हैं जो इसी शहर में रहती है। और अक्सर अपने मायके आती जाती रहती है। अपने मायके की हर छोटी बड़ी बात में उसका पूरा-पूरा  हस्तक्षेप रहता है।शादी की खरीदारी वही अपनी मां के साथ करवा रही है। आज उनका शादी की खरीदारी करने का प्रोग्राम बना हुआ था

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लेकिन उनकी बहू को इस बारे में कुछ भी नहीं पता था। यह आज की बात नहीं थी हमेशा से यही हो रहा था उसके साथ। उसे लगता था जैसे वह घर में काम करने वाली की हैसियत से ही रह रही है घर के  महत्वपूर्ण  सलाह मशवरे तो उसके बिना ही होते थे। वह इस बारे में अपने पति से कहती थी तो उसका केवल यही जवाब होता था कि कौन तुम्हें मना करता है हमारे बीच में बैठने को तुम खुद आ जाया करो तुम भी तो परिवार की सदस्य हो,  लेकिन वह जानती थी उसके ससुराल में उसकी कितनी  अहमियत है।

लेकिन आज उसे मन ही मन कुढन हो रही थी। उसे भी कल से बुखार था आखिर वह भी एक इंसान है उसका शरीर भी लोहे का नहीं बना है। उसे सिर्फ काम के लिए पूछा जाता है घर के महत्वपूर्ण निर्णय तो घर के सब सदस्य मिलकर ले लेते हैं वह क्या नौकरानी है वह भी तो घर की सदस्य है? और तो और उसके पति पर भी इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता है। खाना खाने के बाद जब सब लोग बाजार जाने लगे तो रितु ने भाभी को भी साथ ले जाने के लिए कहा कि वह भी अपनी पसंद की साड़ी और  ड्रेसज ले लेंगे इस पर माँ ने  यह कह दिया कि हम खुद ले लेंगे उसकी पसंद अच्छी नहीं है।

और फिर शाम के खाने की तैयारी भी तो करनी है।

इतना कहकर वे चली गई। राशि का शरीर बुखार से तप रहा था वो तो आज जल्दी  ऑफिस से राघव आ गया जो उसने उसके माथे पर ठंडे पानी की पट्टी  रखनी शुरू कर दी। आज  राघव को अपनी पत्नी की हालत पर बहुत तरस आ रहा था और खुदपर ग्लानी भी महसूस हो रही थी। उसने सारा खाना बाहर से आर्डर करके डाइनिंग टेबल पर लगा दिया था,  शोभा जी को जब जाकर पता चला की बहू की तबीयत खराब है तब भी काम से बचने का बहाना बता कर उसे ताना देने लगी।

रितु ने जब अपनी मां को ऐसा कहने पर गुस्सा किया तो कह दिया मैं तो मजाक कर रही थी। लेकिन राशि ने मन ही मन सोच लिया था कि अब वह ससुराल में एक बहू का हक लेकर ही रहेगी,  अगले दिन उसने नाश्ता बनाने के समय भी बोल दिया मेरी तबीयत अभी ठीक नहीं है इसलिए मैं नाश्ता नहीं बना सकती। जब 2 दिन तक उसने कोई काम नहीं किया तो शोभा जी बोली। यह क्या तमाशा लगा रखा है तुमने? अब तुम्हारी तबीयत ठीक है तो फिर घर का काम क्यों नहीं कर रही हो?

तब राशि में कहा- मम्मी जी यह सब करने को मुझे अपने ही मजबूर किया है।  आप तो मुझे बेटी बनाकर लाई थी और बहू का हक भी ना दिलवा सकी।  मेरे मां-बाप के दिए संस्कारों का ही असर था जो मैंने आज तक आपसे कुछ नहीं कहा  लेकिन अब चुप नहीं रहूंगी। बहु कोई काम करने वाली नौकरानी नहीं है उसके भी अधिकार होते हैं। जो आपने मुझे कभी नहीं दिए कल के दिन आपकी बेटियों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार उनकी सास करें तो आपको कैसा लगेगा? मैंने तो इस घर को सदा अपना घर ही माना था।

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लेकिन आपने मुझे अब तक इस घर का सदस्य ही नहीं माना यहां तक की अपने ही कपड़े में अपनी पसंद के नहीं खरीद सकती।  भाभी बिल्कुल सही कह रही हैं मां। मैंने भी हमेशा आपको यही समझाया था इस घर पर भाभी का भी उतना ही अधिकार है जितना आपका आखिर वह बेचारी कब तक ना बोलती।  अपनी इज्जत अपने हाथ होती है जैसा व्यवहार हम दूसरे के साथ करते हैं वैसा ही बदले में हमें भी मिलता है। आज  राघव भी अपनी पत्नी के साथ ही खड़ा था। अब तो शोभा जी को समझ में आ गया था अगर वह बहू  को उसका हक नहीं देगी तो उनका बेटा भी उनके  विरुद्ध खड़ा हो जाएगा जो वो हरगिज नहीं चाहती थी।

उन्हें अपनी गलती मानने में ही अपनी भलाई लगी।

सही बात है कोई भी लड़की यह सोचकर ससुराल में प्रवेश नहीं करती कि वह सब का आदर सम्मान नहीं करेगी लेकिन परिवार के सदस्यों का भी कर्तव्य है कि

नए सदस्य का स्वागत प्यार से करें। और कर्तव्य के साथ-साथ उसको अधिकार भी दिए जाएं, तब शायद घर सचमुच स्वर्ग बन जाएगा।

लेखिका : पूजा शर्मा

VM

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