“ बड़ी बहू जल्दी जल्दी हाथ चलाओ.. शादी का घर है सौ काम पड़े हैं….और तुम हो कि आराम आराम से सब कर रही हो।” सुनंदा जी ने बड़ी बहू रति से कहा.
“ कर रही हूँ माँ जी आज तबियत थोड़ी सुस्त लग रही है इसलिए जल्दी जल्दी नहीं हो पा रहा।” सफ़ेद धोतियों को पीले रंग में रंगते हुए रति ने कहा.
तभी नित्या आकर बोली,“अरे बड़ी भाभी सब आप को ही ढूँढ रहे हैं…और आप यहाँ लगी पड़ी है…चलिए ना संगीत की क्या मस्त तैयारी चल रही है ।”
नित्या जैसे ही भाभी का हाथ पकड़कर ले जाने को हुई सुनंदा जी जोर से बोली,“ तू जा सीख डांस इसे क्यों लेकर जा रही है… ये चली गई तो काम कौन करेगा ?”
“ माँ शादी तो मानसी भाभी के बेटे की है ना तो उनसे भी काम करवाओ…रति भाभी ही सारे काम क्यों करें… मानसी भाभी मजे से बस अपने साज शृंगार और डांस प्रैक्टिस में लगी हुई है और यहाँ रति भाभी काम पर काम किए जा रही, किसी को उनकी जरा भी परवाह नहीं ।” नित्या थोड़े ग़ुस्से में बोली.
“ बेटा तू शादी में मजे करने आई है कर… तुम्हें तो काम करने नहीं कह रही ना..अब इस उम्र में मुझसे काम होता नहीं.. मानसी को ये सब काम आते नहीं और रति तो सब काम में माहिर हैं… इसलिए उसे करने दे।” सुनंदा जी बेटी को समझाते हुए बोली.
“ रहने दो माँ सब समझ आता… ये कोई नया नहीं कर रही हो आप…जब रचित और रचना की शादी थी तब भी रति भाभी ने सब काम सँभाले क्योंकि वो दोनों उनके बच्चे थे… तुमने ही कहा रति को ही करने होंगे…तब भी मानसी भाभी बस सज धज कर मेहमानों की तरह बैठी थी इस बार जब उनके बेटे का ब्याह है तब भी उन्हें सब कामों से आज़ाद कर रखी हो वो बस तैयार होकर लड़के की माँ कीं भूमिका अदा करने आ जाती और बेचारी रति भाभी सब कर के भी पीछे रह जाती तारीफ़ मानसी भाभी के हिस्से आ जाता .. वाह क्या तैयारी है।” कहते हुए नित्या वहाँ से चली गई.
इस कहानी को भी पढ़ें:
“ये क्या बहुरिया, अब तुम सास बन गई तो लापरवाह हो गई हो ” – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi
रति अपने बिखरे काम समेटने में व्यस्त हो गई.
“ देखो बहू नित्या की बात पर ज़्यादा ध्यान मत देना .. पन्द्रह साल हो गए शादी को पर बचपना ना गया उसका।” सुनंदा जी रति को समझाते हुए बोली.
रति कुछ ना बोली.. जानती थी इस घर में उसकी वैल्यू मानसी से कम ही आँकी जाती है…अमीर घराने की मानसी..काम करने की आदत नहीं रही संजोग से पति निहाल की नौकरी ऐसी की सारे ऐशो-आराम मिल रहे थे पर रति का पति निशांत ऐसे ही किसी कम्पनी में नौकरी करता था तनख़्वाह भी ज़्यादा नहीं थी…पर रति सब कुशलता से सँभाल रही थी… मानसी जब तब सुनंदा जी को तोहफ़े देती रहती जिससे वो मानसी के गुणगान गाती और उसे ज़्यादा काम करने ना कहती…हर बात पर रति से यही कहती रहती कि तुम्हें सब कामों की बढ़िया जानकारी है.. मानसी को कुछ आता नहीं सिखाने जाओ तो उतने में तुम ही कर दोगी..और बस ऐसे में सुनंदा जी रति पर काम का बोझ डालती जा रही थी…
रति ने अपने बच्चों की शादी में भी खुद ही सब कुछ किया.. मानसी ने जरा ना सहयोग किया..बस उसका सारा ध्यान खुद पर रहता था उपर से बातें बनाने में माहिर तो मीठा बोल सबके साथ घुलमिल जाती और तारीफ़ बटोरती रहती… उधर रति कितना भी काम कर ले सुनंदा जी नुक्स निकालती और सबके सामने डांटने से परहेज़ ना करती…निशांत कई बार सुनंदा जी को समझाता माँ तुम ये रति को हर समय डाँटा मत करो.. अब बहू आ गई है अच्छा नहीं लगता पर वो किसी की सुनी है जो बेटे की बात सुनती…जब तक पति जीवित थे वो भी समझा कर हार गए थे…
सोचते सोचते रति काम निपटा कर कमरे में जाकर लेट गई… कमर में दर्द हो रहा था तभी उसकी बहू कमरे में आई और बोली,“ मम्मी जी आप इतना काम क्यों करती है… दादी जी भी बस आपको ही बोलती है… लाइए कमर में दवा लगा दूँ ।”
“ बेटा जब परिवार में सब साथ में रहते हैं तो ये सब चलता रहता है… किस बात पर नाराज़ हो कर बैठ जाऊँ.. तुम्हीं बोलो ?” रति आह भरते हुए बोली
तभी मानसी किसी काम से रति के कमरे में आई तो उसे लेटे देख बोली,“ दीदी आप यहाँ हो… माँ कब से आपको बुला रही है… जाने कौन सी रस्म अब करनी है ।”
“ मानसी मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही … तुम कर लो खुद से …माँ जी से पूछ कर।” रति आँखें बंद कर लेटे हुए बोली
“ हाँ चाची जी अभी अभी मम्मी के कमर में दवा लगाई है उन्हें आराम करने दीजिए ।” बहू ने कहा
इस कहानी को भी पढ़ें:
“ क्या कहा तबियत ख़राब लग रही है.. ऐसे कैसे… शादी के इतने काम करेगा कौन …शादी के घर में बीमार पड़ने से कैसे काम चलेगा ?” सुनंदा जी बिफर पड़ी जैसे ही मानसी ने उन्हें रति की तबियत ख़राब का जाकर बताया
“ वैसे भाभी रति भाभी को देख कर आपने भी कुछ सीखा ही होगा…माँ के हिसाब से तो आपको सारे रस्मों रिवाज की जानकारी रख बेटे का ब्याह करना चाहिए…क्यों माँ ?” नित्या यहाँ आकर उनकी बातें सुन बोल पड़ी
“ पर मैं कहाँ सब जानती हूँ… कभी किए ही नहीं है!” मानसी ने कहा
“ कौन ऐसे करता रहता है भाभी… करने का मन हो और ज़रूरत हो तो करना ही पड़ता है..फिर माँ है ना बताने को..और मुझे भी जितना याद है बताती रहूँगी.. पर आप कुछ काम करिए तो सही।” नित्या ने कह दिया
सुनंदा जी को भी समझ आ रहा था ये सब उनकी ही लगाई आग है…कही बेटे भी बोलने ना आ जाए ये सोचकर उन्होंने मानसी से कहा,” वैसे बहू नित्या कह तो सही रही है…बेटे के ब्याह के लिए कुछ काम तो तुम्हें भी करने चाहिए… नहीं तो सीखोगी कैसे?”
मानसी को भी लगा बेटे का ब्याह है… रति भाभी पर आश्रित रहने से कही दिक़्क़त ना हो जाए… वो भी लग गई रस्में सीखने में.. ताकि सब काम समय पर निपट जाए।
उधर जब रति को ये पता चला कि मानसी काम कर रही है तो वो मन ही मन नित्या का धन्यवाद कर रही थी क्योंकि उसने ही कहा था ,“ भाभी आप जितना करोगी उतना सब आप पर थोपते जाएँगे…माँ को तो देख ही रही हूँ अब जो करना वो आपको ही करना होगा.. नहीं तो ना पहले शादी में मजे कर पाई ना इस बार ही कर पाओगी…।”
रति ने भी अपनी क्षमता से ज़्यादा काम का बोझ लेकर खुद को बीमार कर लिया था उसे भी लग गया कि वो बस कहीं काम के चक्कर में शादी ने शामिल ही ना हो सकें ।
दोस्तों कुछ लोगों की आदत होती है कहते रहने की कि मुझे कुछ नहीं आता और जो करता है उसपर ही सारी ज़िम्मेदारी थोप दी जाती है… फिर आजकल जिसके पास पैसा होता है उसकी परिवार मे पूछ भी होती है ऐसे में परिवार के बड़े का फ़र्ज़ होना चाहिए वो बच्चों में सा बहुओं में भेद ना कर बराबर का मान सम्मान दे… नहीं तो कुछ औरतों का हाल रति जैसा हो जाता है ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
vd