“ खून के रिश्तो से बढ़कर” – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

चलिए चलिए… पार्क बंद होने का समय हो गया है बाहर पार्क का समय लिखा हुआ है फिर भी लोग हैं कि समझते ही नहीं है, 10:00 बजे तक पार्क बंद हो जाता है फिर क्यों यहां बैठे रहते हो?  मुझे सभी को भगाना अच्छा नहीं लगता! सभी जल्दी-जल्दी वहां से निकलने लगे, मिस्टर एंड मिसेज गुप्ता जी तो अभी आधा घंटा पहले ही पार्क में आए थे

पर समय को ध्यान रखते हुए उन्हें भी निकलना पड़ा, जैसे ही वह पार्क से निकलने लगे देखा एक बुजुर्ग अंकल एक बेंच पर बैठे हुए थे तब उन्होंने गार्ड से पूछा, गार्डभैया… यह अंकल जी खुद ही घर जाते हैं या इन्हीं कोई लेने आता है? क्या बताऊं  सा..ब.. यह बूढ़े अंकल रोज यहां 7:00 बजे के आकर बैठते हैं और कोई भी इन्हें पूछने नहीं आता,

यह बेचारे पार्क बंद होने तक यहीं बैठे रहते हैं और फिर बाद में चले जाते हैं सुबह फिर जल्दी 7:00 बजे आ जाएंगे साब.. अगर यह किसी दिन घर नहीं भी पहुंचे तो भी उनकी चिंता फिक्र करने  वाला कोई नहीं है! अच्छा यह कहां रहते हैं और उनके परिवार में कोई नहीं है क्या? अरे साहब.. उनके परिवार में तो दो बेटे हैं जो की इंजीनियर हैं,

भरा पूरा परिवार है,यह खुद भी बहुत बड़े वकील थे बहुत नाम था इनका शहर में, एडवोकेट जी.डी. सक्सेना यानी घनश्याम दास सक्सेना, किंतु आज देखो सब कुछ अपने बच्चों के नाम पर करके खुद बेसहारा कि सी जिंदगी जी रहे हैं, जिस उम्र में इन जैसों को अपनों के साथ की जरूरत होती है यह बेचारे तन्हा अपना जीवन काटने को मजबूर हो जाते हैं,

दरअसल 5 साल पहले जब इन्हें दिल का दौरा पड़ा था तब इनके बच्चों ने इनकी खूब सेवा की थी और इन्हें लगा उनके बच्चे बहुत संस्कारी हैं,4 साल पहले उनकी पत्नी भी चल बसी थी, वकील होने के बावजूद भी और दुनियादारी की इतनी समझ होते हुए भी पता नहीं कैसे यह गलती कर बैठे कि उन्होंने अपनी जायदाद दोनों बेटों में बांट दी, अब दोनों बेटे तो हो गए मस्त,

रह गए  अकेले बुजुर्ग, इतनी बड़ी-बड़ी कोठियां है पर इनके लिए ढंग का कोई कमरा भी नहीं है, साब.. कई बार तो मेरा मन करता है मैं इन्हें अपने घर ले जाऊं पर मेरी तो छोटी सी नौकरी है उसमें मैं अपने माता-पिता पत्नी और दो बच्चों समेत दो कमरों के छोटे से किराए के घर में रहता हूं, पर साहब.. एक बात बताऊं आपको.. बड़े-बड़े लोगों से तो हम छोटे लोग अच्छे, कम से कम अपने माता-पिता को हमेशा अपने साथ रखते हैं

और भगवान की तरह मानते हैं, बड़े-बड़े लोगों के यहां तो मैंने अक्सर देखा है अगर माता-पिता दोनों जीवित होते हैं तो बच्चे उनका भी बंटवारा कर लेते हैं बेचारे उस उम्र में भी अपने जीवनसाथी से अलग होने का दुख दर्द झेलते रहते हैं और इन जैसे होनहार कपूतो के कारण ही तो वृद्ध आश्रम खोलने पड़े हैं

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, हम भी दो भाई हैं साहब पर मजाल है उनकी आदेश के बिना हम कोई काम कर ले और हमें तो फक्र है कि हमारे ऊपर बुजुर्गों का हाथ है, साहब अगर अपनों का साथ हो तो कैसी भी परिस्थितिया हो मायने नहीं रखती! गार्ड की बातें सुनकर गुप्ता जी और उनकी धर्मपत्नी घर वापस आ गए

किंतु अगले दिन गुप्ता जी के मन में उन बुजुर्ग अंकल से मिलने की जिज्ञासा प्रबल हो उठी और वह सुबह 7:00 बजे ही पार्क में पहुंच गए, थोड़ी देर तक तो अंकल जी ने कोई बात नहीं की किंतु फिर गुप्ता जी का अपनापन देखकर धीरे-धीरे वह खुलने लगे और बताने लगे बेटा… मैं हमेशा ही सोचता था

कि मेरे बच्चे औरों के बच्चों से बहुत अच्छे हैं वह मेरी हर बात मानते हैं बहुत गुरूर था मुझे अपने बेटों पर, मैंने तो रोज कोर्ट में जमीन जायदाद के लिए बाप बेटों भाई भाइयों को अलग होते देखा है, यह पैसा इतनी बुरी चीज है की  बच्चों को अलग कर देता है मैंने तो इतनी दुनिया देखी है

समझ नहीं आता फिर मुझसे गलती कैसे हो गई, मेरी  बहुएं मुझे खाने तक को सही से नहीं पूछती, भिखारी की सी हालत हो गई है मेरी, जबकि मैंने उन पर किसी तरह की कोई पाबंदी कोई रोक-टोक नहीं लगा रखी हमेशा अपनी बेटियों की तरह माना और वह  अपने बच्चों तक को मेरे पास नहीं आने देती,

मेरी बनाई हुई कोठियां में भी मुझे सबसे पीछे का कमरा दे रखा है, खुद में अपने बेटों से मिलने को तरस जाता हूं ,10-15 दिन हो जाते हैं मुझे  बेटों से बात किए हुए पर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि वह तो यह सोचते हैं की कब मैं मरूं और कब उनकी जान मुझसे छूटे, बेटा…

तू मुझ पर एक कृपा कर दे अगर कोई वृद्ध आश्रम हो तो तू मुझे वहां छोड़ कर आजा ताकि मैं अपनी बची हुई जिंदगी और यह अकेलापन वहां रहकर दूर कर सकूं, अभी मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूं हर काम कर सकता हूं चलने फिरने में कोई दिक्कत नहीं है पर घर वालों ने मुझे बेकार साबित करके पटक रखा है!

बुजुर्ग अंकल की बात सुनकर गुप्ता जी की आंखों से   दो बूंद आंसू गिर गए और उन्होंने अंकल जी से कहा… चलो अंकल जी आज आप मेरे घर चलिए फिर देखते हैं क्या होता है, मिसेज गुप्ता को हल्का सा अंदाजा तो था कि शायद गुप्ता जी बुजुर्ग अंकल को साथ ले आए, क्योंकि गुप्ता जी का दिल बहुत बड़ा था,  हर कोई वाकिफ था उनसे,

उन्हें देखते ही गुप्ता जी के दोनों छोटे बेटे बेटियां बाहर आ गए और अपने पापा के लिपटते हुए बोले… पापा.. क्या यह हमारे दादाजी हैं, क्या अब यह हमारे साथ रहेंगे, वाओ  पापा.. कितना मजा आएगा ना हमारे तो दादा-दादी है ही नहीं! अपने बच्चों की बात सुनकर गुप्ता जी अचंभित रह गए और सोचने लगे यह आइडिया उनके दिमाग में क्यों नहीं आया,

क्या ऐसे अनुभवी व्यक्ति मेरे बच्चों के दादाजी बनाकर मेरे घर में नहीं रह सकते मैं भी तो अपने पिता के प्यार के लिए तरसता हूं और यह अपने बच्चों के प्यार के लिए तरस रहे हैं, मुझ में और इनमें क्या अंतर है? नहीं नहीं यही सही रहेगा मैं इन्हें अपने घर पर ही रखूंगा,

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वैसे भी उनके परिवार को ना तो इनकी जरूरत है और ना इन्हें उपेक्षित जीवन जीना चाहिए, उनकी पत्नी और बच्चे भी उनके फैसले से खुश थे, आज कई दिनों बाद घनश्याम दास जी ने भरपेट और अपना पसंदीदा भोजन किया, शाम को मिस्टर गुप्ता घनश्याम दास जी को साथ लेकर उनके घर गए  जहां उनके दोनों बेटे और परिवार वाले बेचैन होकर घूम रहे थे, अपने पिता को देखकर दोनों बेटे उनके ऊपर चिल्लाने लगे…

कहां चले गए थे आप अरे कम से कम बता कर तो जाया करो, आपको पता है सारी मीटिंग सारे काम छोड़कर सिर्फ आपको ढूंढने में लग रहे हैं, आपको तो समय की कीमत का कोई ज्ञान नहीं है किंतु कम से कम हमारे बारे में कभी तो सोच लेते, अब से आप कमरे से बाहर कहीं नहीं जाएंगे,  अब से आपका घूमना फिरना सब बंद है

और धन्यवाद आपका भाई साहब जो आप इन्हें यहां छोड़ने आ गए! घनश्याम दास जी के बेटों की बात सुनकर गुप्ता जी को गुस्सा तो इतना तेज आया कि दोनों बेटों के गाल पर एक-एक थप्पड़ रशीद कर दे किंतु अपने आप को काबू में रखते हुए उन्होंने सिर्फ यही कहा… देखिए… घनश्याम दास जी मुझे पार्क में मिले थे और मैं आपसे सिर्फ यही कहना चाहता हूं अगर आपको कोई आपत्ति ना हो तो क्या मैं इन्हें  अपने घर ले जा सकता हूं ?

नहीं नहीं.. ऐसे आप हमारे पिताजी को घर कैसे ले जा सकते हैं यह कोई खिलौना है क्या? हालांकि दिल से सभी चाह रहे थे इन्हें कोई ले जाए! देखिए प्लीज… आप मना मत कीजिए कुछ दिनों के लिए ही सही, मेरे बच्चों को इनसे लगाव हो गया है, आप जब बुलाएंगे हम उन्हें ले आएंगे! बेटे बहु तो चाहते ही मन से यही थे किंतु ऊपरी दिखावा करते हुए बोले..

अगर लोगों को पता चला तो समाज बिरादरी में हमारी बदनामी हो जाएगी, लोग  कहेंगे दो बेटे अपने एक बाप को भी नहीं रख सके! देखिए.. ऐसा कुछ नहीं होगा अगर कोई आपसे इनके बारे में पूछे तो बस इतना ही कह देना कि यह अपने तीसरे बेटे के यहां गए हैं, गुप्ता जी के इतना सा कहने पर ही दोनों बेटों की आंखें शर्म से झुक गई!

गुप्ता जी घनश्याम दास जी को अपने घर ले आए और उन्हें वही आदर् सम्मान दिया जिसके वह हकदार थे, केवल खून के रिश्ते ही सब कुछ नहीं होते जो मन से रिश्ते बने वही अपने होते हैं और घनश्याम दास जी और गुप्ता जी का परिवार, दोनों को आज लगा अपनों का साथ कितना जरूरी है, घनश्याम दास जी को अपने बच्चे मिल गए और गुप्ता जी को अपने पिता!

     हेमलता गुप्ता स्वरचित 

   कहानी प्रतियोगिता (अपनों का साथ) .   

   “ खून के रिश्तो से बढ़कर”

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