“हर्ष , रिचा… ऑर्डर करो न बेटा क्या क्या खाना है? मैं पापा को बुलाती हूँ, पता नहीं कहाँ रह गये वो! “कहते हुए नंदिता अपने पति को फ़ोन करने लगी…
-“मैं मिस्सी रोटी और हर्ष तेरे लिए नान… और मम्मा को… तो कुलचा पसंद है और पापा के लिए प्लेन रोटी …..ठीक है न मम्मा I” कहते हुए रिचा ने होटेल के वेटर को अपनी टेबल के क़रीब बुलाया…
-“हम लोग यहाँ….. ये रोटी, वो रोटी… ऑर्डर करते हैं, पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सादी रोटी को भी तरसते हैं..!” कहते हुए सिद्धार्थ (रिचा के पापा) टेबल के पास पहुँचे
-” कौन पापा…?” हर्ष ने विस्मित होकर पूछा…
-“होटेल के बाहर पार्किंग के पास ही बेटा, एक वृद्धा बड़ी लाचारी से कह रही थी … मेरे लिये बस, एक सूखी रोटी ही ला देना बेटा… कल से भूखी हूँ… कितने लोगों से कहा, पर कोई नहीं देता…!”
-और फ़िर ये क्या…. थोड़ी देर बाद टेबल पर खाना लगते ही हर्ष सारी प्लेट्स से अलग अलग रोटियाँ उठाने लगा.. तो सभी एक साथ बोले -” क्या कर रहे हो हर्ष! “
-” कुछ नहीं मैं बाहर से आता हूँ पापा, तब तक आप और रोटियाँ ऑर्डर कर दीजिए..! “
-बाहर से जब.. काफ़ी देर तक हर्ष वापस नहीं लौटा तो उसके पापा ने उसे फ़ोन लगाया -” क्या हुआ बेटा, कहाँ रह गये… आ जाओ खाना ठंडा हो रहा है.. क्या कर रहे हो..?”
-“कुछ नहीं पापा, मैं भूख के बाद का सुकून देख रहा हूँ.. जो हम लोग रोटी के अलग अलग स्वाद में ढूंढते हैं..! “
-मधु मिश्रा, ओडिशा.