आत्मसम्मान की पहल – अमिता कुचया : Moral Stories in Hindi

एक दिन बच्चों की डायरी में फीस जमा करने का नोटिस लिखा होता है। और फोन पर भी फीस जमा करने की आखिरी डेट का मैसेज देखकर कंचन परेशान होने लगती है। उसको लगता कि ऐसा क्या करु कि पैसों का इंतजाम होने लगे। 

कंचन के पति की जॉब छूट हुए छह महीने हो गये थे। वो इतने दिन से काम चला रही थी। अब उसने सोचा क्या किया जाए!!कोई भी काम शुरू करने में पैसा तो चाहिए ही होगा, मुझे तो बीस हजार रुपये की आवश्यकता होती है। अब बैंक बैलैंस भी हिल गया था। पति के एक्सिडेंट के बाद से आंख में धुधंलापन आ गया है, डाक्टर ने बताया था कुछ कांच के कण आ गये थे। जिस कारण स्थिति ये हो गयी है।वो जानती थी

कि समय बहुत कठिन हो गया है। वह अच्छी सोसाइटी में रहती थी। दो बच्चे भी अंग्रेजी स्कूल में पढ़ते थे। वो नहीं चाहती थी कि उनके खर्च पर कहीं कोई कटौती करनी पड़े। और पति के सामने परेशानी जाहिर करे। वो परेशान होकर भगवान से प्रार्थना करती है- हे मां कोई तो रास्ता दिखा कि घर में जो परेशानी है ,वह खत्म हो जाए। 

एक दिन उसे अम्मा जी मंदिर में मिलती है , वो किसी से बात कर रही होती है, कि उनकी बहू मायके गई है। उन्हें खाने बनाने वाली की जरूरत है। तब कंचन सुन लेती है। तब उससे भी रहा नहीं जाता है। वह दुख की मारी सोचती है, कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता उसे यही सही लगता है,तो वह उधर अम्मा जी के पास जाती है,और उनसे काम के लिए बात करती है, तब वह दस हजार में तैयार हो जाती है।

और फिर उनके साथ वाली कहती है कि उन्हें भी घुटने की समस्या है, क्या मेरे यहाँ भी कंचन तुम काम करोगी? और कंचन को काम जरुरत के कारण हां कह दे देती है। और वो दोनों खाना बनाने अपने- अपने घर में रख लेती है। वह समय ऐसा निश्चित करती है कि घर में कोई परेशानी भी न हो। और दोनों घर का काम समय पर हो जाए। वह सुबह पांच बजे उठकर अपने घर का काम करती है,वह बच्चों को टिफिन पैक करके पति को नाश्ता देकर एक घर में नौ से ग्यारह बजे तक काम करती है, और दूसरे घर में साढ़े ग्यारह बजे से डेढ़ बजे तक काम करती है। 

पर किरण अम्मा जी की बहू वापस मायके से ससुराल आ जाती है। पर एक महीना पूरा नहीं होता है, तो फिर उसकी सास उसका एक महीना पूरा होने तक काम कराती है। 

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ऐसे में बहू किरण देखती है कि कामवाली बाई का रहन सहन तो इतना अच्छा है। कहीं से काम वाली लग ही न रही है,कपड़े भी ब्रांडेड लग रहे हैं ,हेयर कटिंग भी है, चप्पल भी अच्छी पहनती है। उसे उस पर शक होता है। वह उस पर नजर रखती है। पक्का ये तो कोई फ्रोड होगी। हो सकता है कोई गैग से मिली न हो!!पता नहीं इसका क्या इरादा है। 

वह अपने पति से कहती है-” अजी अपने यहां खाना बनाने वाली कंचन आती है। वो किसी भी तरीके से गरीब नही लगती है। पक्का कोई इसका इरादा होगा। शायद कोई अपने घर का भेद लेने आई हो। या किसी गैंग ने लंबा हाथ मारने भेजा हो। हमें ही कुछ करना होगा। तब किरण का पति राजेश कहता है। देखते हैं क्या करना है …. 

अगले दिन फिर किरण कहती-“क्यों न इसका आधारकार्ड मंगवाया जाए। हम कंचन से कहेंगे कि अपना आधार कार्ड लाकर दे दे। ” तब उसका पति भी सहमति देता है। फिर दूसरे दिन दोनों पति पत्नी कंचन से कहते है कंचन तुम अपना आधार कार्ड लाकर देना। हमें वैरिफिकेशन कराना है। क्योंकि हम लोग यूं ही रिस्क नहीं ले सकते हैं। आजकल बहुत धोखा हो रहा है। 

तब कंचन कहती- ” भाभी जी कैसी बातें कर रही है, हम ऐसे वैसे घर से नहीं हम तो मजबूरी में खाना बना रहे हैं।” तब किरण कहती -हम कुछ नहीं जानते। हमें तो तू अपना आधारकार्ड दिखा दे। और हम भी पुलिस को दिखा कर निश्चिंत हो जाए। तब वह कहती -जी भाभी जी कल ले आऊंगी। 

और अगले दिन कंचन आधारकार्ड लाना भूल जाती है तब किरण कहती आधारकार्ड ले आई? कहां है आधारकार्ड!!!

कंचन इतना सुनते ही वह कहती – भाभी जी मैं जल्दबाजी में आधारकार्ड लाना भूल गयी ,कल ले आऊंगी। 

यह सुन किरण कहती- यहाँ कोई बहाना नहीं चलेगा। तुम्हें आधारकार्ड लाना ही होगा। नहीं तो कल से मत आना। 

उसी दिन किरण की किटी होती है। वह उसी कालोनी जाती है। जहाँ कंचन रहती है। जब लौट रही होती है। तो बालकनी में किसी से हंस- हंस कर बात कर रही होती। उसकी बातों को करते देख उसे लगता है जैसे उसका उस आदमी से चक्कर हो।उसे चैन नहीं पड़ता। 

वह उसी फ्लैट में पहुंच जाती है। वह बैल बजाती है। तो कंचन डोर खोलती है तभी किरण उससे पूछती है -तू यहां कंचन क्या कर रही है। तू यहां पर भी काम करती है क्या? तूने इन साहब को भी फंसा रखा है, तभी तो इतने तेरे ठाट है। इतना सुनते ही उसका पति बाहर आ जाता है। चुप रहिये बहन जी आप क्या बकवास किए जा रही है मेरी पत्नी के बारे में। ये सुनते ही किरण के पैरों से जमीन जैसी खिसक गयी हो, उसकी बोलती बंद हो जाती है। वह क्या ,,क्या सकपकाकर बोलती है। 

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ये तुम्हारा घर…. तब कंचन कहती – भाभी जी आपको आधारकार्ड भी देखना था,तो वो भी दिखाती हूं। इसमें मेरे पति का नाम भी है। तो

किरण उसे आश्चर्य से देखते हुए पूछती – तो फिर आप हमारे यहां कैसे काम कर रही है ,आपका इतना अच्छा फ्लैट है, आप लोग इतनी अच्छी फैमिली से है। तो फिर ऐसा काम करने की जरूरत क्या आन पड़ी कि आपको हमारे यहां खाना बनाना पड़ रहा है? तब वो बताती है हमारी मजबूरी है। दिलीप जी का जबसे एक्सीडेंट हुआ तब से इनकी जाब छूट गयी और इनकी आंख में धुंधलापन आ गया । तब से न कंप्यूटर ,न लैपटॉप, न ही मोबाइल चला पाते हैं। डाक्टर ने स्क्रीन से दूरी बना कर रखने को कहा है।

इनकी आंख में आंसू आ जाते हैं। और घर पर ही आराम करने कहा है, इस कारण मुझे ही बाहर निकलना पड़ा। बिना पैसों के कोई काम शुरुआत नहीं कर सकते हैं। बैंक से लोन पहले से ही है। अब कैसे खर्च पूरा करुं।?इसलिए सोचा कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। ये सोचकर करने लगी। बच्चों की फीस फ्लैट का किराया, लोन की किश्त ,सब तो देखना बैंक बैलेंस भी हिल रहा था। पहले बैंक से किश्त चुकती थी। अब वो भी खत्म हो गया,तो क्या करती। मुझे बीस से तीस हजार चाहिए। किसी से उधार लेकर कर्ज में रहना नहीं चाहती थी। 

इतनी सब बातें सुनकर किरण ने कहा- तुम इस तरह कब तक आत्मसम्मान मारकर जिओगी। देखो किसी के यहां काम करने से अच्छा कुछ दूसरा काम शुरू करो। जैसे ट्यूशन ले लो, या सिलाई वगैरह का काम या कोई कंपनी में जॉब करने लगो। तब उसने कहा मुझे कोई एक्सपिरियन्स नहीं है। बिना एक्सपीरियंस के क्या करु!तब किरण ने कहा- हमारे यहां शोरूम में काम कर लो, तुम्हारी आवश्यकता के अनुसार सैलरी भी मिल जाएगी। जब तक चाहो तब तक कर लो। या फिर टिफिन काम ही चालू कर लो। तो मेरे जैसे लोगों की बातें न सुननी पडे़। 

अब फैसला तुम्हें ही करना है आखिर आत्मसम्मान खोकर कब तक दूसरों के यहां कब तक कोई काम करोगी। इससे अच्छा है, हमारे शोरूम में जॉब कर लो। कम से कम कोई सवाल तो नहीं करेगा। 

कम से कम तुम्हारा आत्मसम्मान बना रहेगा। 

तब कंचन और दिलीप फैसला करते हैं कि घर से टिफिन का काम शुरू करेगें। कम से कम खुद का काम होगा। इसमें लागत भी न के बराबर है। और इस तरह वह तीन घरो का खाना घर से भेजने की शुरुआत करती है,उसकी उतनी ही इनकम होने लगती है। कुछ समय पश्चात वह टिफिन सेवा का काम हास्पिटल, स्कूल में भी करने लगती है। इससे अच्छी इनकम होती है। 

इस तरह वह इस निर्णय से खुश होकर आत्मसम्मान से जीने लगती है। 

 

स्वरचित रचना

अमिता कुचया

निर्णय तो करना ही पड़ेगा कब तक आत्मसम्मान खोकर कैसे जीओगी……

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