गौरांश के बेटे गन्धर्व की पसंद मुरलिका अपने मम्मी पापा के साथ आज उसके घर आने वाली है। इसलिये घर में काफी चहल पहल थी। उसकी अपनी कम्पनी में ही इन्जीनियर है मुरलिका, इसलिये वह कई बार मुरलिका से मिल भी चुका था लेकिन दोनों परिवार आज पहली मिल रहे थे।
कार दरवाजे पर आकर रुकी। पत्नी डॉ० माण्डवी और गन्धर्व के साथ गौरांश अतिथियों के स्वागत के लिये आगे बढ़ गया लेकिन कार से उतरती मुरलिका की मम्मी को देखकर ठिठक गया और कार से उतरती महिला की नजर भी जब गौरांश पर पड़ी तो उसके कदम भी लड़खड़ा गये।
गौरांश ने तो अपने को सम्हाल लिया लेकिन मुरलिका की मम्मी अम्बुजा की तबियत अचानक खराब हो जाने के कारण दुबारा जल्दी आने को कहकर वे लोग अधिक देर नहीं रुक पाये।
गौरांश ने तो कल्पना भी नहीं की थी कि जीवन के सफर में अचानक अम्बुजा से ऐसे मिलना होगा।
पापा की अचानक मृत्यु से परिवार पर विपत्ति आ पड़ी तो दादा और दादी ने एक समाधान निकाला जिसको स्वीकार करने के सिवा कोई रास्ता न था। अंततः चौदह वर्ष के गौरांश और बारह वर्ष की शिवि को लेकर उनकी मॉ सुचित्रा जी बेमन से कस्बे नुमा गॉव आ गईं।
परिस्थितियों से समझौता करके गौरांश और शिवि गॉव के स्कूल में पढने लगे। गौरांश ने देखा कि अशक्त और वृद्ध होते उसके दादा अब अपनी खेती की उचित देखभाल और व्यवस्था नहीं कर पा रहे हैं जिसके कारण उसके खेतों से बहुत कम आमदनी होती है। उसने अपनी पढाई के साथ दादा के साथ खेतों पर जाना और देखभाल शुरू कर दी।
उस समय तो घर में प्रलय सी आ गई जब इण्टरमीडियट में बहुत अच्छे नम्बर आने के बाद भी उसने मॉ की इच्छा के विपरीत बी० टेक के लिये कोचिंग पढ़ने से मना कर दिया –
” तुम पागल हो गये हो क्या? पैसे की चिन्ता मत करो, मैं अपने सारे जेवर बेंच दूॅगी। बस एक बार तुम्हारी नौकरी लग जाये फिर हम सब इस नर्क से आजाद हो जायेंगे। मजबूरी न होती तो मैं कभी यहॉ सड़ने के लिये न आती।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
” अच्छा! जब आपका मतलब था तब अपने बच्चों को लेकर यहॉ रहने आ गईं और जब आप और आपका बेटा समर्थ हो जायेगा तो दादा दादी को बुढापे में बेसहारा छोड़ कर चली जायेंगी? क्या यह उचित है? भले ही आपको न सुनाई पड़ती हो लेकिन मुझे इस गॉव, इन खेतों, इस मिट्टी में पापा सहित अपन पूर्वजों की पुकार सुनाई पड़ती है। मैं तो अब कभी उन्हें छोड़ कर नहीं जाऊॅगा, जिसने विपत्ति में हमारा साथ दिया, उसके प्रति ऐसा करना कृतघ्नता होगी।” सुचित्रा अपने ही बेटे के मुॅह से यह सब सुनकर आश्चर्य चकित रह गई।
” कहना क्या चाहते हो तुम? क्या भावुकता में आकर तुम आजीवन इस सड़े से गॉव में रहकर अपनी जिन्दगी बर्बाद करना चाहते हो? मैं तुम्हें इसकी अनुमति कभी नहीं दूॅगी। देख रहे हो, कैसे पापा की पेंशन और थोड़ी सी खेती से हम मुश्किल से अपना गुजारा करते हैं।”
दादा दादी ने भी उसे बहुत समझाया लेकिन गौरांश नहीं माना। उसने चन्द्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय से बी०एस०सी इन एग्रीकल्चर से स्नातक किया और वापस लौट आया अपने पिता और पितामह की भूमि पर लेकिन अपना दिल का कोई एक हिस्सा कानपुर में ही छोड़ आया था।
कानपुर में गौरांश जिस घर में किराये पर रहता था। अम्बुजा उसके मकान मालिक की बेटी थी। दोनों ही एक दूसरे को पसंद करते थे लेकिन जब अम्बुजा को पता चला कि गौरांश का सपना गॉव में रहकरअपने गॉव को समृद्ध करना है। तब उसने उसे समझाने का बहुत प्रयत्न किया –
” मैं शुरू से ही कानपुर में रही हूॅ, मैं गॉव की जिन्दगी में नहीं रह सकती।”
” मैंने तो स्नातक की पढ़ाई ही इसीलिये की है कि मैं रोटी कमाने और पैसा कमाने की मशीन बनकर न रह जाऊॅ बल्कि कुछ ऐसा करूॅ जिससे अपने साथ दूसरों का भी लाभ हो। गॉवों के विकास के लिये गये सरकारों के सारे प्रयत्न इसी लिये निष्फल हो जाते हैं क्योंकि हमारे युवा थोड़ी सी शिक्षा पाकर अपने ही गॉव, परिवार और समाज को छोड़कर शहरों में छोटी मोटी नौकरी करने चले आते हैं।”
” यह सब किताबी बातें हैं। साधन विहीन तुम्हारे गॉव की थोड़ी सी जमीन में ऐसा क्या है जो तुम अपनी जिद में अपना प्यार दॉव पर लगा रहे हो। उस जमीन पर तुम्हारे परिवार का गुजारा तो हो नहीं पाता है मेरे सपने जिसमें आलीशान जिन्दगी शामिल है, कैसे पूरे करोगे?”
” मेरा विश्वास करो, तुम मेरा साथ दो तो एक दिन मेरे पास सब कुछ होगा।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
” तुम्हारे उस ” एक दिन” की प्रतीक्षा करते करते मैं बूढी नहीं होना चाहती। यदि तुम अपनी जिद नहीं छोड़ सकते तो मैं अपने सपनों को बेमौत कैसे मार सकती हूॅ?”
” ठीक है, फिर हम आज आखिरी बार मिल रहे हैं। मैं अपने पूर्वजों की मिट्टी की पुकार को अनसुना, अनदेखा नहीं कर सकता।”
” सोंच लो गौरांश। यदि आज हम अलग हो गये तो कभी एक दूसरे को पा नहीं पायेंगे।” शायद अम्बुजा सोंच रही थी कि गौरांश अपना निर्णय बदल देगा लेकिन गौरांश सोंच रहा था कि अच्छा हुआ अम्बुजा का असली रूप समय से पहले सामने आ गया, अभी वो इतना आगे नहीं बढे हैं कि रास्ते बदलना असंभव हो । अभी अम्बुजा सिर्फ उसकी पसंद बनी थी, प्यार नहीं।
” यही बात तो मैं तुमसे भी कहना चाहता हूॅ कि शायद हमारे रास्ते आज से अलग हो रहे हैं। तुम अपने सपनों को पूरा करने वाले किसी के साथ आगे बढ़ जाओ।”
अम्बुजा को विश्वास था कि गौरांश वापस उसके पास लौट आयेगा।
अब उसने अपने दादा के साथ मिलकर आधुनिक ढंग से खेती करना शुरू कर दिया। इन्टरनेट से खेती, बीज, खाद साथ ही सरकारी योजनाओं की जानकारी प्राप्त करके उसने दूसरों को भी बहुत कुछ सिखाया। अपने घर के चारों ओर खाली पड़ी जमीन पर उसने अच्छे बीज लाकर फूलों की खेती कर दी।
उसके दादा अपने पोते के निर्णय से बहुत खुश थे। फूलों का काम उसने अपने दादा को सौंप दिया जिससे उन्हें अधिक भाग दौड़ न करनी पड़ी। अपने ही पड़ोस में रहने वाले लड़के सनी के साथ फूलों की मण्डी में जाकर बात की और सनी गौरांश के सारे फूल थोक मंडी में बेंच आता।
गौरांश को देखकर दूसरे लोगों ने विशेष रूप से स्त्रियों ने भी अपने घरों के आसपास फूलों की खेती करनी शुरू कर दी जिससे उन्हें अतिरिक्त आय होने लगी। सनी ही उनके भी फूल लेकर मण्डी जाता था।
परिश्रम का पसीना मोती बनकर चमकने लगा। काम बढने लगा तो अपने ही गॉव के लड़कों को अपने साथ काम पर लगा लिया । अपने दादा के थोड़े से खेतों के अतिरिक्त उसने दूसरे खेत और बाग खरीदने शुरू कर दिये। गॉव के लड़कों को उसने समझाया कि शहरों की छोटी छोटी नौकरियों के पीछे भागने के स्थान पर वो लोग अपने ही घर पर रहकर बहुत कुछ कर सकते हैं। अपनी शिक्षा का उपयोग खेती, पशुपालन और घरेलू उद्योगों के लिये करें तो उन्हें अच्छी आय होगी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
श्रमदान द्वारा खेतों के किनारे, घरों के आसपास की खाली पड़ी जमीन पर पेड़ लगवाये और उनकी देखभाल की जिम्मेदारी पॉच साल से ऊपर के बच्चों से करने को कहा तो हर बच्चा एक पेड़ की जिम्मेदारी लेने को तैयार हो गया। गौरांश ने उन्हीं बच्चों के नाम पर पेड़ का नाम रखा तो बच्चे उस पेड़ से अपना नाम जुड़ा होने के कारण अपनापन अनुभव करने लगे।
गौरांश अपने गॉव का हीरो बन गया। पूर्वजों की मिट्टी की पुकार ने दूसरे नौजवानों को भी पढाई पूरी करके वापस अपने गॉव की ओर आकर्षित करना शुरू कर दिया। इसके बाद गौरांश ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। तभी गॉव के नाम मात्र के अस्पताल में डॉक्टर माण्डवी आईं। डॉक्टर माण्डवी ने पता नहीं गौरांश और इस गॉव में क्या देखा कि फिर वापस ही नहीं गईं।
समय अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है। मन में अम्बुजा के लिये हल्की सी कसक होते हुये भी गौरांश ने माण्डवी को अपने जीवन में सम्मिलित कर लिया क्योंकि उसने अनुभव कर लिया था कि उसे अपने जीवन में माण्डवी से उपयुक्त साथी नहीं मिलेगा। समय बीतने के बाद पता चला शायद अम्बुजा के लिये उसके मन में प्यार नहीं मात्र आकर्षण था क्योंकि माण्डवी का साथ पाकर उसे लगा कि माण्डवी ही वह लड़की है जो हर कदम पर उसके साथ चल सकती है । शादी बाद तो वह अम्बुजा को भूल ही गया।
डॉक्टर माण्डवी के आने के बाद ही वह ग्रामीण स्त्रियों के जीवन और समस्याओं से अवगत हुआ। स्त्रियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये सहकारी समिति का गठन करवाया। माण्डवी के प्रयत्नों से ही उसने स्त्रियों के हाथों से बनी वस्तुओं का एक मेला लगवाया तो उसके और माण्डवी के नाम की धूम मच गई।
अब तो हर साल लगने वाली इस ” स्वाभिमान हाट ” में बहुत लोग जुड़ गये हैं जिसमें सारी वस्तुयें हस्तनिर्मित होती हैं। जब उसके गॉव को ” आदर्श ग्राम ” का सम्मान मिला तो पूरा गॉव खुशी से झूम उठा। उसके दादा दादी जैसे सभी वृद्ध, उसके प्रयासों से परिवर्तित जीवन वाले परिवार उसकी बलाइयॉ लेते नहीं थकते थे। खुशी से पागल उसके युवा साथियों सहित कई दिन पूरे गॉव ने उत्सव मनाया।
आज उसके पास खाद और बीज की तीन फैक्ट्रियों सहित सुख सुविधा के हर साधन उपलब्ध हैं जबकि अम्बुजा का पति मात्र बैंक मैनेजर है।
सुबह उसकी लाल ऑखें देखकर माण्डवी परेशान हो गई – ” कल से देख रही हूॅ कि मुरलिका के आने के बाद से तुम परेशान हो। क्या बात है मुरलिका पसंद नहीं है या और कोई बात है?”
” तुमसे कभी कुछ नहीं छुपाया है। मुरलिका से तो कई बार मिल चुका हूॅ और वह गन्धर्व के लिये उचित साथी के साथ ही उसका प्यार है लेकिन उसकी मम्मी के रूप में अतीत का एक अंश सामने आ गया है तो मन अतीत की गलियों में भटकने लगा था लेकिन तुम्हारे होते हुये मुझे कोई चिन्ता नहीं है।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
” गौरांश, हम सब जीवन में बहुत आगे बढ चुके हैं। न अब तुम कालेज में पढने वाले युवा गौरांश हैं और न अम्बुजा जी एक महत्वाकांक्षी युवती। तुम दोनों सिर्फ अपने बच्चों के माता पिता हो, केवल इतना ही याद रखना। अच्छा हुआ कि अम्बुजा जी और तुम्हारे बीच पहले सब स्पष्ट हो गया था वरना मैं तुम्हारे हृदय में कभी न आ पाती। इसी कारण मैंने आपके प्यार में कभी जरा भी कमी अनुभव नहीं की। इसी तरह हो सकता है कि अम्बुजा जी भी अपने जीवन में सुखी और सन्तुष्ट हों।”
” मेरे जीवन में तुमसे उचित और सुयोग्य कोई दूसरा नहीं आ सकता था। तुमने हर पग पर मेरा साथ दिया है, शायद तुम्हारे बिना मैं और मेरे बच्चे कभी इतना सफल नहीं हो सकते थे। तुम मेरे और मेरे परिवार का प्राण हो।” गौरांश ने माण्डवी को अपनी ओर खींच लिया।
” मैं अम्बुजा जी को पिछला सब कुछ भुलाकर अपनी सहेली बना लूॅगी, तुम निश्चिन्त रहो। उन्हें भी समझ आ गया होगा कि अपनी मिट्टी की पुकार को सुनकर तुमने कितना बड़ा कार्य किया है। परिवर्तन और निर्माण का बीज बोने का कार्य पालनकर्ता ने तुम्हें सौंपा था तो तुम्हें यह भार अपने कंधे पर उठाना ही था। ” माण्डवी ने गौरांश के होठों पर हाथ रख दिया।
गौरांश बिना कुछ बोले प्यार भरी नजरों से माण्डवी को देखे जा रहा था –
” इस रविवार को हम लोग मुरलिका के घर चलकर उसी समय उसे शगुन देकर अपना बनाकर आयेंगे। रही अम्बुजा जी की बात तो वो अब तुम्हारी समधन हैं।”
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर