हृदय-परिवर्तन – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

     ” अरी सुनीता…कहाँ मर गई…कोई काम कहो तो उसी में घंटों बिता देती है महारानी…।” बाथरूम में कपड़ों का ढ़ेर देखकर राजेश्वरी अपनी ननद की बेटी पर चिल्लाई।

   ” बस..अभी आई मामी…छत पर…।” सुनीता अपनी बात पूरी कर पाती कि राजेश्वरी की आँखें गुस्से-से लाल हो उठीं,” मामी की बच्ची, कपड़े क्या तेरा बाप धोयेगा।समझी..तो तू नैन-मटक्का करने गई थी..हमारी नाक कटवाकर ही तू रहेगी..।बस…आज-कल में ही तुझे यहाँ से न भगाया तो मेरा नाम राजेश्वरी नहीं..।” पैर पटकती वो कमरे में चली गई।

        सुनीता जब पैदा हुई थी तब उसकी माँ को एक पंडित ने कहा था कि आपकी बेटी सौभाग्यवती है।बात सही भी निकली।सप्ताह भर के भीतर ही उसके पिता की एक ज़मीन जिसपर आठ सालों से मुकदमा चला रहा है,फ़ैसला उनके हक में हो गया था।

      समय के साथ सुनीता बड़ी होती गई और एक-एक करके सभी कक्षाओं की परीक्षा को पास करती हुई वो दसवीं कक्षा में पहुँच गई।उसने पिता से कहा कि दसवीं के बाद मैं साइंस लूँगी और डॉक्टर बनकर सबका इलाज़ करूँगी।तब उसके पिता ने उसके सिर पर प्यार-से अपना हाथ फेरते हुए कहा था, ” ज़रूर बेटी..इधर तू डाॅक्टर बनी और उधर तुझे क्लिनिक तैयार मिलेगा।” 

       बारहवीं की पढ़ाई के साथ-साथ वह मेडिकल के एंट्रेंस एग्ज़ाम की तैयारी भी करने लगी थी।उसकी आँखों में हज़ार सपने पल रहे थे।एक दिन स्कूल से आई तो देखा कि उसके पिता को एंबुलेंस में ले जाया रहा था।वह घबरा गई..।पड़ोस की एक चाची से पता चला कि उसके पिता को हार्ट अटैक आया है।

उसने रोती हुई अपनी माँ को दिलासा दिया और अपने पिता के ठीक होने की ईश्वर से प्रार्थना करने लगी।शायद उसकी प्रार्थना में कुछ कमी रह गई थी, तभी तो उसकी आवाज़ भगवान के पास नहीं पहुँच पाई…उसके पिता ने अगले दिन का सूरज देखने से पहले ही दम तोड़ दिया…वह एकदम-से टूट गई।

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        पिता के जाने के दुख के आँसू अभी थमे भी न थे कि सुनीता की माँ भी उसे भरी दुनिया में अकेली छोड़कर चली गई।आस-पड़ोस और रिश्तेदार उसे मनहूस- अभागी, कुलच्छनी..शब्दों के ताने मारकर उसका कलेज़ा छलनी करने लगे।तब उसके राजेश मामा उसे अपने संग ले आये।माँ के साथ मामी की पहले से ही बनती नहीं थी, सुनीता को देखकर तो उनकी त्योरियाँ चढ़ गई।

      राजेश ने सोचा कि सुनीता की मासूमियत देखकर  कुछ दिनों में पत्नी का हृदय-परिवर्तन हो जायेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं।उसकी पत्नी ने सुनीता पर घर के काम के साथ-साथ अपनी दो बेटियों की ज़िम्मेदारी भी उसके कंधों पर डाल दी थी जिसे उसने हँसकर स्वीकार कर लिया था।उसने बारहवीं की परीक्षा पास की तो मामा ने काॅलेज़ में उसका दाखिला करा दिया।वह रोज तड़के चार बजे उठती..घर का काम निपटाती..और रसोई तैयार करके काॅलेज़ चली जाती थी।

       इतवार का दिन था तो उसने बालों में शैंपू किये थे।उसे ही सुखाने वह थोड़ी देर के लिये छत पर गई थी कि मामी ने हंगामा खड़ा कर दिया।

       शाम को राजेश घर आये तो राजेश्वरी ने सुनीता की शादी की बात छेड़ दी।वो बोले कि अगले साल उसका ग्रेजुएशन कंप्लीट हो जायेगा तो…।लेकिन उसने एक न सुनी।रोज एक न एक रिश्ता बताकर…लड़के की फ़ोटो दिखाकर राजेश्वरी पति को सुनीता के विवाह के लिये बाध्य करने लगी। घर में कलह होने लगा।हारकर राजेश ने पत्नी की बात मान ली और सुनीता भी अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़कर विवाह के लिये राज़ी हो गई।

         पत्नी के बताये रिश्तों में से राजेश ने अतुल नाम के एक लड़के को पसंद कर लिया।दो भाई और एक विवाहित बहन का छोटा परिवार था।अतुल अपने बड़े भाई के साथ पिता के व्यवसाय में संलग्न था। 

       आकर्षक व्यक्तित्व का अतुल जयमाला के लिये मंच की ओर जाने लगा तो उसकी चाल देखकर राजेश चकित रह गया।वह दाहिने पैर से थोड़ा लंगड़ाकर चल रहा था।अपनी भांजी के साथ राजेश इतना बड़ा अन्याय नहीं कर सकते थे।उन्होंने बरात को वापस भेजने के लिये कदम बढ़ाये ही थे कि सुनीता सामने आ गई,

बोली,” मामा..मेरे सिर पर माता-पिता की मृत्यु का दोष तो है ही…बरात लौट गई तो मेरी छोटी बहनों के लिये भी एक समस्या खड़ी हो जायेगी…मैं मामी को और दुख देना नहीं चाहती…विवाह हो जाने दीजिये…शायद यही मेरा भाग्य हो।” कहकर वो विवाह-वेदी पर बैठ गई।

       ससुराल में सुनीता की सास स्नेहलता जी ने खुले दिल से उसका स्वागत किया लेकिन जेठानी ने उसे लँगड़े की पत्नी का संबोधन दे दिया।एक-दो दिन में ही उसने समझ लिया कि जेठानी ने सास को किनारे करके कमांड अपने हाथों में ले लिया है।उसे पिता की कही बात याद आ गई,” बेटी…परिस्थिति अपने अनुकूल न हो तो बैठकर उसपर आँसू बहाना मूर्खता है।उस स्थिति को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करो और परिणाम ईश्वर पर छोड़ दो।” फिर तो सुनीता ने भी कमर कस ली।

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      सबसे पहले उसने अतुल से कहा कि आपका पैर ठीक होने के बाद ही हम अपना वैवाहिक जीवन शुरु करेंगे।उसने डाॅक्टर से अपाॅइंटमेंट लेकर अतुल के पैर का इलाज़ शुरु कर दिया।उसे समय पर दवा देने और दाहिने पैर की थैरेपी करवाने में वह तनिक भी लापरवाही नहीं करती थी।फिर सास से बोली कि ससुर जी नहीं रहे तो अब आप ही इस घर की मुखिया हैं।जेठानी से भी उसने कहा कि मैं माँजी के आदेशों का पालन करूँगी…अच्छा होगा कि आप भी…।

     घर के हालात बदलने लगे।काम करने वाले अब जेठानी की जगह स्नेहलता जी की आज्ञा का पालन करने लगे।बदली हुई स्थिति को स्वीकारना उसकी जेठानी के लिये आसान न था लेकिन एक दिन अंततः उसको भी अपने हथियार डालने ही पड़े।अब वह अपने देवर को लंगड़ा नहीं बल्कि अतुल भइया कहने लगी थी।बदलते हालात देखकर उसके जेठ बहुत प्रसन्न थे।

         किसी ने ठीक ही कहा है कि दिल से कोई काम करो तो सफलता अवश्य मिलती है।सुनीता की मेहनत भी रंग ला रही थी..अतुल के पैरों में सुधार होने लगा था।अतुल अक्सर सुनीता से कहता कि तुम मेरे जीवन का सूरज हो।” सुनकर वह बस मुस्कुरा देती थी। एक दिन अचानक अतुल की छोटी बहन नित्या अपने मायके आई तो सभी की आँखों से खुशी के आँसू बह निकले।

        दरअसल अतुल के विवाह में जब नित्या आई थी तब उसकी बड़ी भाभी ने कुछ ऐसा कह दिया जिसे सुनकर उसे बहुत तकलीफ़ हुई थी।तब वह अपनी छोटी भाभी से मिले बिना ही वापस चली गई थी और फिर मायके नहीं आई।सुनीता को जब सारी बातें मालूम हुई तो उसने नित्या से फ़ोन पर बात की और उसे समझाया कि परिवार में छोटी- छोटी बातें तो होती ही रहती हैं, इसके लिये अपनों से रूठना तो सही नहीं है।माँजी आपको याद करतीं हैं…और दोनों भाई भी..कहिये तो मैं आपको लेने आऊँ…।

  ” नहीं भाभी..मैं खुद आ जाऊँगी..।” कहते हुए नित्या का गला भर आया था।महीनों बाद अपनी माँ-भाई से मिलकर नित्या का चेहरा खुशी-से खिल उठा था।

     सुनीता के मिलनसार व्यवहार के कारण अब उसकी जेठानी का हृदय-परिवर्तन हो गया था।जेठानी ने नित्या से मिलकर अपने सारे गिले-शिकवे दूर कर लिये।बीच-बीच में राजेश अपनी भांजी से मिलने आते और उसे आशीर्वाद देकर चले जाते थे।

       इसी तरह से एक साल पाँच महीने गुजर गये।एक दिन सुनीता अतुल को लेकर डाॅक्टर के पास गई और वापस आने पर घर वालों ने अतुल को अपने पैरों पर सीधा खड़ा देखा तो सभी बहुत प्रसन्न हुए।उसकी माँ तो खुशी-से रो पड़ीं थीं।उन्होंने बेटे को प्यार किया और जब सुनीता उनके चरण-स्पर्श करने के लिये झुकी तो उन्होंने अपनी बहू को ‘ दूधो नहाओ पूतों फलो ‘ का आशीर्वाद दिया।फिर उसका मस्तक चूमते हुए बोली,” मेरी बहू सौभाग्यवती है।”

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शुभंकरी – दीप्ति सिंह

      किस्मत के खेल भी निराले हैं।विवाह के छह बरस तक सुनीता की जेठानी की गोद सूनी थी और अब सुनीता के साथ-साथ वो भी गर्भवती थी।नौ माह पश्चाताप सुनीता एक बेटे और उसकी जेठानी एक बेटी की माँ बन गई।

      स्नेहलता जी के दोनों बेटे कारोबार में व्यस्त हो गये।उन्होंने दोनों बहुओं को घर की ज़िम्मेदारी सौंप दी और स्वयं अपने पोते-पोती के साथ खेलने में मग्न हो गईं।

                                     विभा गुप्ता

# सौभाग्यवती            स्वरचित, बैंगलुरु 

            मृत्यु तो एक सत्य है।उसके लिये एक इंसान को दोषी मानकर उसे अपमानित करना अन्याय करना है।सुनीता ने अपने जीवन में बुरे दिनों को देखा था।फिर ससुराल आकर वह अपने अच्छे व्यवहार से सौभाग्यवती कहलायी।

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