” कितनी सुघड़ बहू आई है शर्मा जी के यहां …. अरे अपनी शादी के सारे ब्लाउज और सूट खुद हीं सील कर लाई थी और यहां भी अपनी सास, ननद और सारे रिश्तेदारों के कपड़े सिलकर देती है । एक हमारे यहां है….. फटे में टांका लगाना भी ढंग से नहीं आता। ,, कमला जी आज फिर अपने पति और बेटे के साथ बैठकर चाय की चुस्की लेते हुए अपनी भड़ास निकाल रही थी।
अंदर रसोई में खाना बनाती हुई नंदा आज भी सुन कर अनसुना करने की कोशिश तो कर रही थी लेकिन फिर भी बर्तनों का शोर थोड़ा ज्यादा हो गया था।
नंदा को इस घर में बहू बनकर आए दस साल हो गए थे लेकिन आज भी हर दिन उसकी तुलना दूसरों की बहूओं से की जाती थी।
जब भी मौहल्ले या रिश्तेदारी में कोई बहू आती जिसे कुछ अलग करना आता हो तब तो तानों की बारिश ऐसे होती थी कि नंदा की सारी खूबियां उसमें गोते मारने लगती थीं। फलां की बहू इतना अच्छा चाईनीज खाना बनाती है, फलां की बहू इतनी अच्छी सिलाई बुनाई करती है , फलां की बहू तो हर रोज मंदिर जाती है
और कुछ नहीं मिलता तो ये भी कह दिया जाता था कि फलां की बहू के तो इतने लंबे लंबे बाल हैं … हे भगवान!! आखिर सारी बहुओं की खूबी बेचारी एक बहू में कैसे आ सकती है !!
नंदा इस उलझन में खोई हुई हीं थी कि सासु मां की आवाज सुनाई पड़ी , ” बहू … , आज शाम को शर्मा आंटी के यहां चली जाना …. उनकी बहू से थोड़ा बहुत टांका टेबा तूं भी सीख ले … वो तो अब लड़कियों को सिलाई भी सिखाने लगी है । ,,
” लेकिन मां जी, मुझे सिलाई कढ़ाई में रूचि नहीं है … ?? वैसे भी घर में कितने काम होते हैं। अब जरूरी तो नहीं कि सबको सबकुछ आए !! ,, आज नंदा भी बोल पड़ी ।
” हां हां, तुम्हें तो मेरा कुछ बोलना भी अखरता है।तेरे भले के लिए हीं बोल रही हूं.. मैं कौन सा सारी जिंदगी बैठी रहूंगी… कुछ सीखेगी तो तेरे हीं काम आएगा। सीखने की भला कोई उम्र थोड़े हीं होती है। सीखना चाहो तो सीख हीं सकती हो। ,,
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” मां जी, मानती हूं सीखने की कोई उम्र नहीं होती.. लेकिन क्या अब मैं आपसे कहूं कि कंप्यूटर चलाना सीख लो तो क्या आप सीख लेंगीं ?? मां जी दुनिया में ऐसे अनगिनत काम हैं जो शर्मा जी की बहू को भी नहीं आते होंगे। सबकी अपनी अपनी रूचि होती है .. कोई जबरदस्ती कोई काम नहीं सीख सकता।
अब आप दर्जी से कहेंगी कि वो बढ़ई का काम करे तो क्या वो कर लेगा?? नहीं ना …. तो मैं क्यों उन कामों में अपना समय बर्बाद करूं जो मुझे सीखना हीं नहीं है। यदि दुनिया की सारी बहूएं कपड़े सीलने लगीं तो बेचारे दर्ज़ियों की रोजी रोटी कैसे चलेगी ??? आपको मेरा सिलाई ना करना दिखता है
लेकिन आपकों ये नहीं दिखता कि मैं अपने बच्चों को खुद पढ़ाती हूं फालतू में ट्यूशन की फीस नहीं भरती। बैंक और सारे सरकारी काम भी खुद हीं कर देती हूं ये भी नजर नहीं आता। ,,
कमला जी हैरान सी अपनी बहू का मुंह ताकने लगी। कहती भी क्या। उन्होंने खुद भी तो कभी सिलाई बुनाई नहीं सीखी थी। उनकी बहू नंदा तो पढ़ी लिखी थी लेकिन उन्होंने खुद तो चौथी कक्षा में हीं पढ़ाई छोड़ दी थी क्योंकि उनकी पढ़ने में रूचि नहीं थी।
उस दिन के बाद कमला जी ने कम से कम दूसरों की बहू से नंदा की तुलना करना तो छोड़ ही दिया क्योंकि उन्हें समझ में आ गया था कि मेरी बहू जैसी भी है परफेक्ट हीं है।
दोस्तों ये कहावत काफी हद तक सही है कि दूसरे की थाली में घी हमेशा ज्यादा नजर आता है ….
वैसे हीं ऐसा अक्सर देखा जाता है कि अपने घर की बहू में चाहे कितनी भी खुबियां हों लेकिन फिर भी दूसरी बहुओं से उसकी तुलना की जाती है… आपकी इस बारे में क्या राय है?? कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं । आपकी सखी ❣️🙏
लेखिका : सविता गोयल