नीलांजना ( भाग-1 ) – रश्मि झा मिश्रा  : Moral Stories in Hindi

…अभिनव दत्ता ने कार को पार्क के पास रोका… उतरकर दरवाजे को धक्का दे… मोबाइल हाथ में लेकर फटाफट में दो-चार मैसेजेस किए… फोन पर तुरंत ही रिप्लाई आ गया… वह एक दिशा में आगे बढ़ गया…

बेंच पर नागार्जुन राय बैठे दूर से ही नजर आ रहे थे… दत्ता बेंच की तरफ बढ़ा… नागार्जुन जी ने उठकर आगे बढ़कर उससे हाथ मिलाया…

पहला सवाल अभिनव दत्ता ने किया…” हां तो राय साहब… क्यों मिलना चाहते थे आप मुझसे…!”

“सर मेरी पत्नी पिछले 15 दिनों से घर वापस नहीं आई…!”

“ओह…! अच्छा… थोड़ा खुल कर सब कुछ बताइए… तभी मैं आपकी कुछ मदद कर पाऊंगा…!” अच्छा एक मिनट रुक जाइए…! दत्ता ने अपने मोबाइल में रिकॉर्डर ऑन कर दिया…” हां तो राय साहब… सब कुछ अच्छे से… जितना जानते हैं… और जो नहीं जानते हैं… सब बताइए…!”

“सर नीलांजना राय नाम है मेरी पत्नी का… वह 15 दिन पहले… एक दिन अचानक शाम को घर से चली गई…

पांच दिनों का तो हमें पता है… वह कहां गई… कैसे गई… पर पिछले 10 दिनों से उसका कोई अता पता नहीं मिल रहा…

कुछ दिनों पहले मैं पुलिस स्टेशन भी गया था… मगर कोई जानकारी नहीं मिली… इसलिए मैंने प्राइवेट डिटेक्टिव की मदद लेने की कोशिश की है… अब आप ही मेरी कुछ मदद कर सकते हैं…

नीलांजना कई दिनों से परेशान थी… पर मैंने खुद को काम धंधे में इतना व्यस्त कर लिया था कि उसकी बेचैनी देख ही नहीं पाया…

सोलह दिन पहले… 13 अगस्त की रात को उसने मुझसे कहा था कि मैं कल जा रही हूं…

मैंने कोई ध्यान नहीं दिया… कहां जाएगी… यहां से मायके… चार कदम पर तो है… सुबह जाकर शाम आ जाएगी…

पर जब 14 तारीख को… मैं शाम ड्यूटी से आया… वह घर पर नहीं थी… रात होने लगी तो मैंने उसे फोन लगाया…

” नीला कहां हो… कहां चली गई… रात होने वाली है…!”

” मैंने तो बताया था आपको… मैं बाहर निकल आई हूं…!”

” क्या बताया था… कहां निकल आई हो…!”

” रात को ही तो कहा था… मैं कुछ दिनों के लिए बाहर जा रही हूं…!”

” क्या बकवास बात है… ऐसे कैसे बाहर जा रही हो… और चल दी… जिम्मेदारी नाम की कोई चीज है या नहीं तुम्हारे अंदर…!”

” आवाज नहीं आ रही जी… रखती हूं…!”

मेरा पूरा पुरुषत्व तांडव कर उठा…

” मां… क्या तुम्हें बता कर गई है नीला… कहां गई…?”

” नहीं बेटा… मुझे तो कुछ नहीं पता… कहां चली गई… कल इतना बोली थी कि कुछ दिनों के लिए बाहर जा रही हूं…

मैंने भी उतना ध्यान नहीं दिया… ऐसे कहां बाहर चली जाएगी… सारी जिम्मेदारियां यूं ही छोड़ कर… पागल हो गई क्या तुम्हारी बीवी… कहीं भांग तो नहीं चढ़ा ली…!”

” मां चुप करो… कुछ भी मत बोलो… चौबीस सालों का साथ है हमारा… इतना तो मैं भी जानता हूं…!”

इतना बोलते बोलते ही नागार्जुन के मोबाइल में मैसेज आया…

व्हाट्सएप मैसेज था… नीला का…” अर्जुन आपके पास कभी समय नहीं है… मेरे साथ बिताने को… इसलिए आपको नहीं बता पाई पूरी बात… थोड़ा इधर-उधर घूम फिर कर… कुछ दिनों में वापस आ जाऊंगी…

तब तक कुछ दिन जया से कह दिया है… वह सब मैनेज कर देगी… आप चिंता मत करिए… बच्चों के आने से पहले मैं आ जाऊंगी… बच्चों को कुछ कहने की जरूरत नहीं…उन्हें मैं बता दूंगी…

अब आप पूछेंगे… पर मैं जा कहां रही हूं… तो अर्जुन मैं जा रही हूं… अपने पाप धोने… उन पापों को जिन्होंने मुझे दिन-रात घेर रखा है…!”

मैसेज पढ़ कर अर्जुन वहीं सोफे पर बैठ गए… मां ने पास आकर पूछा…” क्या हुआ बेटा… कुछ पता चला…!”

” हां मां… आप चिंता मत करिए… आ जाएगी खुद ही कुछ दिनों में… जया से सब बोल कर गई है… खाना-वाना सब वह देख लेगी… चलिए आप आराम करिए… ज्यादा टेंशन की बात नहीं…

जितने पैसे हैं पास में उनका होम करने के बाद करेगी क्या… बिना पैसों के ना एक दिन… ना एक काम… ना एक रात… कुछ नहीं गुजार सकती… तुरंत वापस आ जाएगी…

कहा है उसने… बच्चों के आने से पहले आ जाएगी… बच्चों की छुट्टियां होने में अभी समय है… तब तक आ ही जाएगी………

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नीलांजना ( भाग-2 ) – रश्मि झा मिश्रा  : Moral Stories in Hindi

रश्मि झा मिश्रा

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