अहमियत – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“मम्मीजी,आज फ्रेंडशिप डे पर हम सभी फ्रेंड्स का मूवी और डिनर का प्रोग्राम है। मैं जाऊॅं ना? स्नेहा ने आशा भरी नजरों से मालती जी की ओर देखते हुए पूछा।

“कबतक आ जाओगी?”

“जी, रात में 9:30 बजे तक आ जाऊॅंगी।”

“इतनी देर रात तक अकेले बाहर रहना घर की बहू-बेटियों को शोभा नहीं देता। तुम अपनी फ्रेंड्स के साथ कल दोपहर में चली जाना।”

“पर, मम्मी जी….”

“स्नेहा, इस बारे में और कोई बहस नहीं। जाओ अपने कमरे में। इतनी रात गए तक अकेले बाहर रहने की मैं इजाजत नहीं दे सकती। समझी।”

यह सुनकर स्नेहा मुॅंह लटका कर अपने कमरे में चली गई और अपनी फ्रेंड को फोन करके मना कर दिया “रिया, मैं नहीं आ सकती। तुम सब इंजॉय करो।”

“क्यों,नहीं आ सकती? क्या हुआ?”

“हुआ कुछ नहीं। मेरी सासू माॅं का आर्डर है कि मैं इतनी रात तक बाहर नहीं रह सकती।”

“व्हाट! अब तू अपनी मर्जी से कहीं आना-जाना भी नहीं कर सकती। ससुराल है या जेल?”

“मत पूछ। जेल से भी बदतर है। हर वक्त सबकी नज़रें सीसीटीवी कैमरे की तरह मानो मुझ पर ही लगी रहती है। हर बात में रोक-टोक, खाना-पीना, उठना-बैठना, आना-जाना सब इन लोगों की मर्जी से ही होता है। ऐसा लगता है मानो मैं एक कठपुतली हूॅं जिसकी डोर दूसरों के हाथ में है। खैर, छोड़ यह सब बातें। तुम लोग इंजॉय करो। पिक्स जरूर भेजना।”

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यह कहकर स्नेहा ने फोन रख दिया। लेकिन, मन ही मन वह गुस्से से उबल रही थी।”आज मुझे अमन से बात करनी ही होगी। बर्दाश्त करने की भी कोई सीमा होती है।” ये सोचती हुई वह कमरे में अमन का इंतजार करने लगी।

जैसे ही अमन ऑफिस से आया स्नेहा को कमरे में इधर से उधर  घूमते देख चौंक गया। “अरे! स्नेहा, इस तरह कमरे में क्यों घूम रही हो?”

“तो और क्या करूॅं? बाहर तो घूमने जा नहीं सकती तो सोचा यही थोड़ा घूम लूॅं।”

“क्या हुआ? मैडम का मूड क्यों उखड़ा हुआ है?”

“इस घर में किसी का मूड ठीक रह सकता है क्या? हर वक्त रोक-टोक, हर वक्त टोका-टोकी।”

“स्नेहा, यहाॅं बैठो मेरे पास और अब बताओ क्या हुआ?”

सारी बातें सुनने के बाद अमन ने कहा “मम्मी को तुम्हारी चिंता हो रही थी। इसीलिए मना कर दिया। समझो यार।”

“हाॅं, हमेशा मैं ही समझूॅं। मैं अपने आप कहीं जा नहीं सकती। अपनी मर्जी का पहन नहीं सकती। कुछ बना नहीं सकती। याद है ना तुम्हें शुरू में जब मैंने पनीर की सब्जी बनाई थी तो मम्मी जी ने क्या कहा था ‘यह सब्जी तो बहुत हैवी है।हम हल्का खाना खाते हैं। शीतल (जेठानी) तुम्हें सिखा देगी।’ तब से आज तक मैं जो भी बनाती हूॅं, शीतल भाभी साए की तरह पीछे ही लगी रहती है। क्या मुझे कुछ नहीं आता?”

“ऐसा कुछ नहीं है स्नेह।वह तो इसलिए तुम्हारे साथ रहती है ताकि तुम्हें घर के तौर-तरीके सीखा सके।”

“तुमसे तो कुछ कहना ही बेकार है।”

“अच्छा, सुनो तुम्हें घूमने जाना है ना तो कल हम घूमने चलेंगे।”

“हम दोनों! क्या मजाक कर रहे हो।” स्नेहा ने मुॅंह बनाते हुए कहा। “हनीमून के अलावा हम कब अकेले घूमने गए हैं। कभी प्यारी नंद रानी साथ होती है तो कभी भाभी के दोनों बच्चे।”

अभी वह दोनों बातें ही कर रहे थे कि उसकी ननद मीनू की आवाज आई “भैया-भाभी बाहर आ जाओ। मम्मी चाय के लिए बुला रही है।”

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यह सुनते ही स्नेह और भड़क गई “अब हम दो घड़ी अकेले में बात भी नहीं कर सकते। यह जरूरी है क्या रोज सबके साथ में बैठकर ही चाय पी जाए? हम रूम में नहीं पी सकते क्या?”कहकर वह पाॅंव पटकती हुई चली गई।

उसे ऐसे जाते हुए देखकर अमन भौंचक्का रह गया। “क्या हो गया है इसे? कितनी चिड़चिड़ी हो गई है।वो जानता था कि स्नेहा मन की बुरी नहीं है बस संयुक्त परिवार में एडजस्ट नहीं कर पा रही है। वह समझ नहीं पा रही है कि संयुक्त परिवार में रोक-टोक जरूर है लेकिन एक सुरक्षा और परवाह भी है। पता नहीं, इसे कब समझ आएगी।” ऐसा सोचते हुए बोझिल कदमों से बाहर आ वह सब के साथ बैठकर चाय पीने लगा।

तभी उसके पिताजी खुशी से चहकते हुए बोले “मुझे तुम लोगों को एक खुशखबरी देनी है। इस गर्मी की छुट्टियों में हम सब वैष्णो देवी चल रहे हैं। मेरे दोस्त मंगेश की ट्रैवल एजेंसी इस बार वैष्णो देवी का टूर प्लान कर रही है। मैंने उसमें बुकिंग कर ली है। अगले महीने हम सब वैष्णो देवी की यात्रा पर जा रहे हैं। सब अपनी- अपनी तैयारी कर लो।”

यह सुनते ही सब खुश हो गए। बच्चे तो मारे खुशी के उछल ही पड़े। बस स्नेहा ही चुपचाप बैठी थी। तभी अमन ने स्नेहा के चेहरे की ओर देखते हुए कहा “बाबूजी, प्लान तो बहुत बढ़िया है। लेकिन, सॉरी। मैं और स्नेहा ना जा पाएंगे।”

“क्यों?”

“अगले महीने ऑफिस में नया प्रोजेक्ट लॉन्च हो रहा है जिसका हेड मैं ही हूॅं तो मेरा जाना इंपॉसिबल है।”

“अरे! ऐसे थोड़े ना होता है। जाएंगे तो हम सब साथ जाएंगे नहीं तो कोई ना जाएगा। ऐसा करो जी, आप प्रोग्राम कैंसिल कर दो। बाद में सब साथ चलेंगे।” सासू माॅं बोली।

“अरे माॅं, हमारे चलते आप सब अपना प्रोग्राम कैंसल मत करो। घूम आओ। हम सभी फिर साथ में चल पड़ेंगे।” यह सुनते ही स्नेहा मन ही मन खुशी से नाच पड़ी।

एक महीने बाद…..

सभी कोई वैष्णो देवी की यात्रा पर निकल गए। घर में सिर्फ अमन स्नेह और कामवाली सुखिया रह गई।

“क्यों मैडम, अब तो खुश हो ना। अब तो एक हफ्ते तक तुम्हें ना कोई रोकने वाला। ना टोकने वाला। जी लो अपनी जिंदगी, अपनी मर्जी से।”अमन ने उसे छेड़ते हुए कहा।

तभी सुखिया आकर बोली “भाभी जी, माॅंजी ने कहा था कि समय मिले तो मसाले धूप दिखा देना। तो, मैं छत पर जा रही हूॅं उन्हें धूप दिखाने।”

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“वे लोग इस सुखिया को भी अपने साथ ले जाते तो कितना अच्छा होता। कबाब में हड्डी बन रही है।”

“तो तुम दे दो ना इसे छुट्टी।बेचारी साल भर से अपने घर नहीं गई। खुश हो जाएगी और सुनो, तैयार रहना। ऑफिस से आकर डिनर और फिर लेट नाइट मूवी।”

यह सुनते ही स्नेहा उछल पड़ी और सुखिया को बुलाकर बोली “सुखिया सुन, मसालों को धूप में देने के बाद तू भी हफ्ता-दिन की छुट्टी लेकर अपने घर हो आ।”

“लेकिन,यहाॅं का काम भाभीजी?”

“अरे, यहाॅं कोई खास काम नहीं है। मैं सब संभाल लूॅंगी।”

“सच्ची भाभी जी!”

“हाॅं, अब जल्दी जा। एक हफ्ते बाद आ जाना।”

“जी।” बोलकर सुखिया चली गई। उसके जाने के बाद दिनभर स्नेहा ने फ्रेंड्स के साथ खूब मस्ती की। रात में अमन के साथ डिनर और लेट नाइट मूवी। उसकी तो खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। “अमन, कल सैटरडे है तो क्यों ना हम दोनों दो दिनों के लिए कहीं घूमने चलें।”

“एज यू विश जानेमन। शाम को आकर बात करते हैं।” बोलकर अमन ऑफिस के लिए निकल गया।

स्नेहा फोन पर रिया से गप्पें मारने लगी। “ठीक है मैं तैयार होती हूॅं। आज छज्जूराम की चाट खाने चलेंगे। अभी वह तैयार हो ही रही थी की बेल बजने लगी। “यह रिया भी ना हवाई घोड़े पर सवार रहती है।इतनी जल्दी आ भी गई। अरे बाबा, आ रही हूॅं एक मिनट रुक तो।” बोलते हुए जैसे ही स्नेहा ने  दरवाजा खोला उसकी चीख निकल गई।

सामने आर्यन के दोस्त आर्यन को पकड़े खड़े थे। उसके दाएं पैर और दाएं हाथ में प्लास्टर बंधा था। यह देखकर स्नेहा बुरी तरह घबरा गई। “भाभी घबराने की कोई बात नहीं है। आर्यन की बाइक अचानक से डिसबैलेंस हो गई थी जिसकारण यह गिर पड़ा और इसके दाएं हाथ और पैर में चोट लग गई है। डॉक्टर ने कुछ हफ्ते का बेड रेस्ट बोला है फिर सब सही हो जाएगा। यह रही इसकी दवाइयाॅं।” बोलकर उसके दोस्त चले गए।

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अब तो स्नेहा का सारा दिन आर्यन की देखभाल में ही बीतने लगा। उसे दवाईयाॅं देना। खाना बनाना। घर की साफ-सफाई करना। आर्यन से मिलने आए उसके दोस्तों की खातिरदारी करना। वह काम कर-करके पस्त तो हो रही थी। कामवाली सुखिया को भी उसने गाॅंव भेज दिया था। यहाॅं उसकी पूरी प्लानिंग ही उल्टी हो गई थी। कहाॅं तो वह सोच रही थी

कि जमकर मौज मस्ती करेगी। बिना रोक-टोक के ऐश करेगी। और यहाॅं तो उसकी हालत नौकरानी से भी बदतर हो रही थी। ना रात को नींद ना दिन को चैन। दो दिन में ही उसकी हालत पतली हो गई थी। उसे रह-रह कर अपनी सासू माॅं की याद आ रही थी।जब वह यहाॅं थी तो कितने ही काम बिना कहे हो जाते थे।

सासू माॅं और उसकी जेठानी ने उसे कभी महसूस ही नहीं होने दिया था कि घर के कामों में कितना झंझट है। उसे अब समझ में आ रहा था कि संयुक्त परिवार में रहने के कितने फायदे हैं। यहाॅं भले रोक-टोक है लेकिन, एक प्यार और परवाह भी है। सभी उसे कितना चाहते हैं। उसकी बेहतरी के लिए रोकने-टोकते हैं। वह बेसब्री से उन सब का इंतजार करने लगी।

हफ्ते भर बाद जब सब वापस लौटे तो घर की हालत देखकर चौंक गए। पूरा घर अस्त-व्यस्त पड़ा था। आर्यन बिस्तर पर था और स्नेहा भी बेहद थकी हुई लग रही थी। यह सब देखकर सासू माॅं ने उसे डांटते हुए कहा “यह सब क्या है? इतना सब कुछ हो गया और तुमने हमें कुछ बताना भी जरूरी नहीं समझा।इतनी बड़ी हो गई हो तुम और यह सुखिया कहाॅं है?”

“मम्मी जी उसे मैंने कुछ दिनों के लिए छुट्टी दे दी।”

“किससे पूछकर तुमने उसे छुट्टी दी? बहुत ज्यादा ही अपने मन की चलाने लग गई हो और कुछ भी बाकी हो तो वह भी बता दो।” उन्होंने गुस्साते हुए कहा।

यह सुनते ही स्नेहा कान पड़कर बोली “मम्मी जी, माफ कर दीजिए। गलती हो गई। मैंने आप लोगों से इसलिए कुछ नहीं बताया क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि आप सब अपनी यात्रा बीच में ही छोड़कर लौट आए।मुझे लगा था कि मैं सब संभाल लूंगी। लेकिन, आप सबके बिना मैं कुछ भी नहीं संभाल पाई।”

“ठीक है जो हुआ सो हुआ। अब हम सब आ गए हैं तो तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन, पहले हाथ-मुॅंह धोकर कपड़े बदलकर अपना हुलिया सुधारो। तुम घर की बहुरानी हो नौकरानी नहीं। तब तक शीतल और मीनू चाय बना कर ले आते हैं। फिर हमसब मिलकर साथ में चाय पियेंगे। मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद की मेथी मठरी लाई हूॅं।”

ये सुनते ही स्नेहा दौड़कर सासू माॅं के गले लग गई और बोली “मैं, अभी कपड़े बदल कर आती हूॅं।” उसे इसप्रकार देखकर अमन मुस्कुरा पड़ा और चुपके से अपनी सासू माॅं को फोन लगाकर बोला “मम्मी जी,’ऑपरेशन फ्रैक्चर’ सक्सेसफुल हो गया। मेरे नकली फ्रैक्चर ने स्नेहा को परिवार की अहमियत समझा दी है।

यह सुनकर वे हॅंसते हुए बोली “अरे! जमाई बाबू, प्लान सक्सेसफुल कैसे नहीं होगा। आखिर माॅं हूॅं उसकी। उसके दिमाग को कैसे ठिकाने लाना है। यह मैं अच्छी तरह जानती हूॅं।

धन्यवाद

लेखिका- श्वेता अग्रवाल

साप्ताहिक वाक्य कहानी प्रतियोगिता #संयुक्त परिवार में रोक-टोक जरूर है पर एक सुरक्षा और परवाह भी है।

शीर्षक -अहमियत

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