आजादी – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

मिहिर दो  भाई एवं एक बड़ी बहन से छोटा होने के कारण वह सबका लडला था  खासतौर से दादी के तो उसमें प्राण बसते थे।सो ज्यादा  लाड प्यार पाकर वह कुछ जिद्दी हो गया। अपने मन की करता किसी  की नहीं सुनता। पाढ लिख गया एक अच्छी में एम एन सी मैं साफ्टवेयर इंजिनीयर की हैसियत से नौकरी लग गई। अब उसके लिए रिश्ते आने लगे। माता-पिता ने कुछ लडकियाँ पसंद की थीं किन्तु जब उसे फोटो बगैरा बताये तो उसे कोई भी पसंद नहीं आई।

अब फिर तलाश जारी की गई। विज्ञापन के द्वारा ,सोशल मीडिया, सम्पर्क सूत्रों की सहायता से। परिवार वाले ऐसी लड़की चाह रहे थे जो पढ़ी- लिखी तो हो किन्तु पारिवारिक मूल्यों को भी समझने वाली हो क्योंकि उनका संयुक्त परिवार था। उनका बड़ा बेटा भी यहीं एक कम्पनी में  बतौर इन्जीनियर काम कर रहा था दूसरा बेटा सी. ए. था ।बहन की शादी भी लोकल ही हुई थी उसका पति भी कम्पनी में इंजीनियर था, ये सब  बैंगलौर में ही रहते थे। अच्छा  बडा मकान था। आखिर इनकी खोज महिमा पर जाकर रुकी सुन्दर, पढी लिखी, शालीन ,संस्कारी संयुक्त परिवार की बेटी थी।

लड़की एवं परिवार दोनों ही पसन्द आगाए। मिहिर और महिमा  ने भी एक  दूसरे  को पसन्द कर लिया और शादी हो गई। दो माह में ही चट मंगनी पट व्याह हो गया। महिमा चुलबुली लड़की थी किन्तु परिवार में घुलमिल गई। शादी को दस माह हो गए थे किसी  तरह की परेशानी नहीं थी। उसने अपने परिवार में अपनी भाभी को भी संयुक्त परिवार में रहते देखा था सो उसे पता था कि रोक-टोक तो होती  है। सिर पर बड़ों के सामने पल्ला करना ही पड़ता है सो वह अप्रत्यक्ष रूप से मानसिक तौर से उन परिस्थितियों से समझौता करने का प्रयास कर रही थी।

साडी पहनने में कठिनाई तो आती  किन्तु आदत डालने की कोशिश कर रही थी। दादी के खासतौर से वह ज्यादा करीब आ गई। उनमें उसे अपनी दादी जिन्हें वह छोड कर आई थी नजर आती। वहीं बैठना, प्यार करना, बातें करना। किस्से  सुनना सुनाना उसे बड़ा मजा आता था। हम उम्र ननद भी उसका दोस्तों सा ख्याल रखती। दोनों जेठानीयां भी उसे छोटी बहन सा प्यार करतीं। कुल मिलाकर  जिन्दगी आराम से चल रही थी कोई शिकवा – शिकायत नहीं थी। किन्तु मिहिर को यह सब नहीं भा रहा था।

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वह स्वच्छंद रहना चाहता था अपनी पत्नी के साथ। यहां तो सब साथ जाते थे, नहीं तो कोई एक न  एक तो साथ जाता ही था और मिहिर को यह सब पसंद नहीं था। वह कुछ ज्यादा ही आधुनिक विचारों  का था  वह पार्टीज, क्लब  में महिमा को लेकर जाना चाहता था जिसकी अनुमति परिवार में नहीं थी। वह चाहता कि उसकी पत्नी आधुनिक ड्रेसेज पहन कर उसके साथ घूमने जाए, वे कहीं लॉन्ग ड्राइव पर जायें। देर रात मूवी देख ,

खाना बाहर ही खाकर आयें। किन्तु परिवार में सबका समय पर आना एक साथ खाना खाने का नियम था। वह इन सब से उकता कर  अलग अपनी इच्छानुसार  अपनी जिन्दगी जीना चाहता था सो  हर समय  महिमा से कहता तुम्हें यहाँ सबके साथ रहने में कोई परेशानी नहीं होती। हर बात पर इतनी रोका-टोकी  कैसे सहन कर लेती हो। 

महिमा बोलती संयुक्त परिवार में तो यह सब चलता है। थोडा सहन कर लेने में क्या बुराई है  ,जिम्मेदारी से तो मुक्त हैं। खाओ-पिओ, काम कर लो और सबके साथ समय कब निकल जाता है पता ही नहीं  चलता। सबके साथ रहने  में दुख तकलीफ़ में सुरक्षा भी तो मिलती है।

मिहिर बोला अपन अलग रहें इच्छानुसार घूमे फिरें ,मन  का पहनो खाओ कोई रोकनेवाला नहीं जो मन चाहे करो। 

महिमा बोली यहाँ क्या परेशानी है सब

इतना प्यार करते है इत‌ना ध्यान रखते हैं

विशेषकर दादी तो मेरी दोस्त ही बन गई सब तरह की बातें उनसे कर लेती हूं मुझे तो यहाँ कोई परेशानी नहीं लगती।

 उसकी बातें सुनकर मिहिर को गुस्सा आता और कहता तुमसे बात करना पत्थर से सिर फोडने के बराबर है। समझना ही नहीं चाहती आजादी  भी  जीवन में कोई चीज होती है।

 आखिर एक साल बीतते न बीतते मिहिर ने  कम्पनी में कहकर पूना ब्रांच में ट्रान्सफ़र ले लिया। घरवालों ने बहुत समझाया  यहाँ क्या परेशानी है। अकेले परेशान हो जाओगे। किन्तु उसे तो  न मानना  था  सो नहीं माना। महिमा को लेकर पूना शिफ्ट हो गया।

 अब उसे अकेले रहने पर नये नये अनुभव हुए। फ्लैट का समय पर किराया देना, बिजली-पानी के बिल भरना, राशन-पानी जुटाना , सब्जी,फल ला कर रखना, दूध की व्यवस्था  ये काम घर में कब हो जाते थे कौन करता था उसे आज तक भी पता नहीं था। 

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महिमा को भी अकेले घर गृहस्थी सम्हालने का अनुभव नहीं था सो वह भी परेशान हो जाती। चाय, नाश्ता, खाना बनाना, घर की साफ-सफाई करते करते थक जाती। वहां तो कोई जिम्मेदारी नहीं थी जो काम सामने आता कर लेती। यहां कभी कोई चीज खत्म हो जाती, कभी कुछ लाना होता बाजार के चक्कर लग जाते। हां यह जरूर था मिहिर और वह आजादी से घूमने फिरने निकल जाते लेट रात भी आ जाते तो कोई कुछ कहने वाला नहीं था।

जीवन रुपी गाडी पटरी पर श्ननै श्ननै आ रही थी। महिमा को  ज्यादा पार्टीज बगैरा  पंसद नहीं थीं सो वह बोर हो जाती। मुसीबत तबआई जब उसे पता चला कि वह गर्भवती है। उसकी  तबीयत खराब रहने लगी। मार्निंग सिकनेस होने से सुबह उठते ही उल्टियां होने लगती। थकान के कारण काम नहीं  होता।समझ नहीं आ रहा था क्या  करें। ऐसी स्थिति में मिहिर ने  आकर कहा कि उसे आठ दिन के लिए कम्पनी  के काम से बाहर जाना है। अब वह अकेली रहने को तैयार नहीं। मैं यहाँ अकेली  नहीं रह सकती।

 मुझे  तो काम से जाना पडेगा।

मैं कुछ नहीं जानती। मेरी तबियत खराब है खाना भी नहीं बना पा रही उसकी गंध से ही उल्टी आ जाती है अकेली  नहीं रहूंगी। अभी सब के साथ होती तो सब मुझे सम्हालते । यहां सारा दिन अकेले पडी रहती हूँ। मेरे वश  का  नहीं है  यहां अकेले रहना घर लौट चलें। 

मिहिर ने  जाना तो निरस्त करा लिया। किन्तु उसकी बिगड़ती हालत देख परेशान हो गया। वह  सोचने लगा यदि घर पर होते तो मम्मी, भाभी, दादी सब सम्हाल  लेते हैं। भाभीयों की भी तो तबियत खराब हुई  होगी पता ही नहीं चला मम्मी ने कैसे मैनेज कर लिया ।

 महिमा बोली मुझे बुखार आया था दादी कैसे मेरे पास से  उठी नहीं थी। मम्मी भी, कितने प्यार से जो इच्छा होती  खिलाती थीं। यहां अकेले पडे रहो। तुम्हें ही भूत सवार था  अकेले रहने का अब भुगतो।

मैं तो कहती हूं बापस अपने घर चलो।चार लोगों में रहने से बेफिक्र रहते हैं।माना संयुक्त परिवार में टोका टाकी होती है कुछ 

बन्दिशें भी होती हैं किन्तु परवाह और सुरक्षा भी तो होती है।

आज मिहिर को अपनी ग़लती का अहसास हो गया और उसने भी लौटने का मन बना लिया 

बोला  तुम सही कह रही हो मुझे तुम्हारी ऑफिस में भी चिन्ता रहती है, घर में  रहती थीं  तब  मैं बेफ्रिक रहता था ।

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 देर आये दुरस्त आये अभी भी कुछ नहीं  बिगड़ा है बापस ट्रान्सफर ले लेता हूं और घर चलकर सबके साथ रहते हैं । यह सुन महिमा खुश हो गई ।

शिव कुमारी शुक्ला

24-9-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

संयुक्त परिवार में रोक-टोक****।

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