मैं घर की सबसे छोटी प्यारी सी बेटी रही, आज भी मायके के नाम पर, शब्द उच्चारण करते ही, एक सकारात्मक दुनिया का आभास होता है। समय धीरे धीरे सरकता रहा, सब बहनों की शादी हो गयी, घर मे रह गए, मैं और मेरा छोटा भाई, और मेरी ममतामयी मम्मी। भाई से मेरा रिश्ता, दोस्त का भी था, हम दुनिया जहान की बाते करते थे।
एक दिन ब्रह्मांड के रचयिता द्वारा रचित नियम कानून के कारण, मायका मेरा भी छूटा। ससुराल आयी, मायके से ससुराल दूर शहर में होने के कारण एक छटपटाहट थी दिल परेशान रहता था। वो 1985 के समय फ़ोन इतना कॉमन नहीं हुआ था, एक हफ्ता ही हुआ था, मम्मी बहुत चिंता करती थी। पास के एक घर मे लैंडलाइन फोन था, उनका नंबर मैंने भाई को दिया था, मम्मी से टूटी फूटी बात हुई, ठीक से कनेक्शन नही मिल रहा था।
फिर एक दिन पता चला, मम्मी अकेले घर मे ब्लड प्रेशर के कारण गिर गयी थी, शाम को जब भाई आफिस से आये तब डॉक्टर को दिखाया, वो मेरी बहुत चिंता करती थी।
उसके बाद एक बार जब मैं उनसे मिलकर आयी, कुछ मन ठीक हुआ। धीरे धीरे फ़ोन आया, और हम रोज बाते करने लगे।
घर मे भाभी भी आ गयी, मैं भी अपने घर संसार मे व्यस्त हो गयी। मुझे कभी मायके के किसी भी अपने से शिकायत नही रही। मैं भावुक हूँ और समझती हूँ, भाई भाभी की भी अपनी जिम्मेदारी होती है, अपनी दुनिया होती है। 2007 में प्यारी मम्मी स्वर्ग सिधार गयी, यूँ लगा शरीर से मेरी आत्मा चली गयी। उसके बाद मेरी सबसे बड़ी बहन ने मायके की पूरी रीत निभाई क्योकी वो मेरे ही शहर में थी।
अब सबलोग अपनी अपनी जगह खुश है, ईश्वर से यही प्रार्थना है, सबमे प्रेम भाव बना रहे।
हमेशा होंठो पर एक गीत रहता है……शायद वो सावन भी आए, जो पहला सा रंग न लाए, छोटी बहन को न भुलाना, भैया मेरे राखी के बंधन को भुलाना।
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
बैंगलोर