फोन की घंटी बजी तो आरती ने मां का नम्बर देखकर अनमने मन से फोन उठाया। उधर आरती की माँ थी।
“आरती बेटा, बहुत दिन हो गए तुझे यहाँ आए। तेरे बच्चों को देखने का बहुत मन कर रहा है…। इस बार तो छुट्टियों में आ जा। तेरे लिए अचार और पापड़ भी बना रखे हैं।” आरती की माँ की आवाज में अपनी बेटी के लिए प्यार और मनुहार था ।
“क्या माँ तुम भी, क्यों फालतू में इतनी मेहनत करती हो? यहाँ शहर में सबकुछ मिलता है।और फिर वहाँ आकर क्या करूँगी??… बच्चों का मन भी नहीं लगता गाँव में ।….ना कोई शापिंग माॅल है ना हीं कोई घूमने की जगह। यहाँ मेरे बिना बहुत मुश्किल हो जाती है। इसलिए इस बार नहीं आ पाऊंगी। फोन पर बातें तो हो हीं जाती हैं ।”
पांच साल हो गए थे आरती की माँ को उसे मायके बुलाते हुए लेकिन आरती इसी तरह हर साल अपनी माँ को मना कर देती थी । माता पिता की आंखें तरस गई थीं अपनी बेटी और उसके बच्चों का देखने के लिए। वो लोग भी शहर अपनी बेटी के घर बिना बुलाए आने में संकोच करते थे ।
आरती शहर के एक खानदानी घर में ब्याही गई थी। पैसे और ऐशो-आराम का ऐसा नशा छाया की सच में बाबुल का घर पराया लगने लगा। उसका मन ही नहीं करता था माँ- बाबा के पास गाँव जाने का। शुरू- शुरू में कभी जाती तो भी अपनी गाड़ी में जाती और दूसरे दिन हीं वापस आ जाती। माँ- बाबा जी भरके बातें भी नहीं कर पाते थे। फिर भी अपनी बेटी को खुश देखकर संतोष कर लेते। अपने नाती को लाड प्यार करने की इच्छा मन में हीं रह जाती।
धीरे – धीरे समय बीतता गया। आरती के बच्चे बड़े हो गए । आरती चाहती तो नहीं थी उन्हें दूर भेजना लेकिन वक्त का तकाजा देखकर वो पढ़ाई- लिखाई के लिए बाहर चले गए । आरती को अपने बच्चों को देखे बहुत- बहुत दिन हो जाते। जब वो छुट्टियों में आते तो आरती उनके आगे- पीछे लगी रहती। कभी उनके लिए उनका मनपसंद खाना बनाती तो कभी चाहती कि बच्चे थोड़ी देर अपनी माँ के पास बैठकर
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उनसे अपनी दिनचर्या और मन की बातें करें ।…लेकिन अब बच्चों के पास इन सब चीजों के लिए वक्त हीं नहीं था । वो तो खुद में और दोस्तों में हीं मग्न रहते थे। आरती का दिल बहुत टूटता लेकिन क्या कर सकती थी। कुछ सालों बाद बड़े बेटे की जाॅब विदेश में लग गई। वो वहीं सैटल हो गया और अपनी पसंद की लड़की से शादी भी कर ली। आरती को ऐसा महसूस हो रहा था
जैसे किसी ने उसके सारे अधिकार छीन लिए हों । किसी के पास आरती के लिए वक्त नहीं था। अब वो खुद को अकेला महसूस करने लगी। जींदगी के इस पड़ाव पर अब उसे अपने माँ -बाबा की याद आ रही थी जो शायद अब भी उसके आने की बाट देख रहे थे। आरती खुद को अब अपने माँ- बाबा की जगह देख रही थी जिनका मन अपने बच्चों से मिलने के लिए तड़प रहे था ।
गाँव से खबर आई कि आरती की मां बीमार हैं। ये खबर सुनकर वो खुद को रोक नहीं पाई। जब आरती ने अपने पति से कहा कि वो एक बार गाँव जाना चाहती है तो उन्होंने हामी भर दी और ड्राइवर के साथ गाँव भेज दिया ।
आरती को वहाँ देख माता- पिता को विश्वास हीं नहीं हो रहा था । उनकी बूढ़ी आंखे बरस रहीं थीं । माँ ने कांपती आवाज में कहा , ” हमारी तो आंखें पथरा गईं तुझे देखने के लिए। तुझे अपने माँ बाबा की याद नहीं आई ?”
” मुझे माफ कर दो माँ- बाबा, में आपकी पीड़ा को समझ नहीं पाई । शायद भगवान मुझे इसी बात की सजा दे रहा है जो मैं भी अब अपने बच्चों की एक झलक पाने के लिए तरस गई हूँ ।” आरती भारी मन से बोली ।
आज आरती के बूढ़े माँ- बाबा की आत्मा अपनी बच्ची से मिलकर तृप्त हो रही थी । अंत समय में हीं सही लेकिन उनकी ममता का स्पर्श पाकर आरती भी तृप्त हो रही थी। उसके बेचैन मन को अब ठंडक महसूस हो रही थी…. आज उसे ये गाँव फिर से अपना लग रहा ।
लेखिका : सविता गोयल