पूरे मोहल्ले में चच्चा की अलग ही पहचान थी।
आते जाते लोग नमस्कार चच्चा कैसे हो?
बोलते ही चलते थे।
चच्चा भी बड़े गुरुर से हाथ ऊपर कर कहते ” ऊपर वाले की मेहरबानी है “
वैसे चच्चा में कोई खास बात नही थी
छोटा कद,बड़ी बड़ी आखें ,छोटी सी मूछ।
पर उनके गुरुर का कारण था उनके आंगन में लगा पुश्तैनी
आम का वृक्ष।
चच्चा के आंगन में लगा हारा भरा वृक्ष पूरे मोहल्ले की रौनक था।
सुबह जब चच्चा पोस्ट ऑफिस जाते पीछे से मोहल्ले की सभी महिलाएं आम के घने वृक्ष के नीचे पंचायती करती करती आम का आचार, लांजी इत्यादि शेयर करती।
और चाची के हाथ से कटे आम की फाकिया खाने का लुफ्त
उठाती।
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चाची जी अब तो बंटू ( बेटे का नाम) की बहु आ जायेंगी तब तुम्हे इतने सारे आम काटने नही पड़ेंगे ।
हमारे साथ बैठ कर हसी ठिठोली करना कम्मो ने चाची को कोहनी मार कर बोला।
चाची मुस्कुराई और बोली ” हा,हा चाचा रिटायर हो जायेंगे तो चाची भी रिटायर हो जाएंगी।
चंद महीनों बाद ही चाचा के घर शहनाई बज गई।
शादी के धूमधाम खतम होते ही एक दिन बंटू बोला ” पापा
ये आम का पेड़ कटवा देते है।
पूरे दिन लोगो का ताता बंधा रहता है ऊपर से ये बच्चे?
आपकी बहू तो परेशान होने लगी है।
कचरा साफ करे हम और फायदा उठाते मोहल्ले वाले ऐसा थोड़ी ना होता है।
चाचा ने बात सुनी और बोले ” ये बाते तेरे जहन की तो नही है रही बात बहु की तो वो अभी यहां नई है
उसको समझने में देर लगेंगी।”
बात आई गई हो गई।
एक दिन चाचा,चाची दोनो चाची के मायके गए थे।
मोका देख बंटू की बहु ने हरियाल काका से कह पेड़ कटवा दिया।
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जब चाचा लोटे तो वीरान घर देख चौक गए।
मोहल्ले वाले भी अपने अपने घर में सिमट कर रहने लगे थे।
बहु ये आम का वृक्ष? इतना ही बोल पाए थे की बंटू बीच ही बोला ” पापा देखो ना कितना बड़ा घर हो गया है दूर तक सड़क दिख रही है मोहल्ले वाले भी एक ही तरह के आम खा
खा कर पक गए थे।
अब शहर जाकर लंगड़ा,हफूस … ना जाने कितनी वैरायटी ले आते है ।
चाचा ने चुप्पी साध ली।
सारा गुरुर ढह गया था।
चाचा,चाची ने समझ लिया ” हमारे घर में भी जनरेशन गैप
ने प्रवेश कर लिया है।
शायद यही जीवन की सच्चाई है।
हर पीढ़ी कुछ ना कुछ बदलाव लाती है और बदलाव के साथ
बदल जाने में ही समझदारी है।
दीपा माथुर