श्रद्धा नहीं तो श्राद्ध कैसा – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

कल भादो की पूर्णिमा है और दो दिन बाद मम्मी जी का श्राद्ध वाला दिन है । सामान की लिस्ट बना दी हूँ आप ऑफिस से आते वक्त सारे सामान लेते आइयेगा या मैं तैयार रहूँगी आप मोड़ पर पहुँच कर कॉल करिएगा तो दोनों साथ में चल के ले आएँगे, ये भी सही ही रहेगा” ।

सीमा के पति महेश ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहे थे और वह लगातार बिना कुछ सुने बड़बड़ाती जा रही थी । महेश बिना कुछ बोले डायनिंग टेबल से अपना लंच उठाए और दरवाजे से निकलने ही लगे तो सीमा ने उनका हाथ पकड़कर टोकते हुए कहा.” ज्यादा जल्दी में हैं क्या, कब से बकी जा रही हूँ आप न कुछ बोल रहे न ही जवाब दे रहे हैं । अब महेश ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा..”जाने दो मुझे, देर हो रही है , तुम्हें भी इन बातों का जवाब पता है फिर भी लगता है बहाना ढूँढती हो लड़ने का या घर में क्लेश करने का ।

अपने ऊपर आरोप सुनकर थोड़ा चौंकी सीमा और फिर बोली ..समझी नहीं मैं, आप क्या कहना चाह रहे ? आपसे कितने बड़े हैं आपके विवेक भैया ? लेकिन विवेक भैया नीलम भाभी के साथ जाकर सब खरीदारी कर लिए और हमारा कुछ नहीं हुआ अभी तक । आप दोनों की सोच देखकर लगता ही नहीं आप दोनों भाई हैं, और आप कहना क्या चाह रहे खुलकर बताइए ।

अब महेश को गुस्सा आ रहा था । उन्होंने अपना लंच बॉक्स वापस रखा और बोलने लगे..”हम दोनों भाई एक जैसे तो नहीं है तुम्हें समझ आ गया सीमा । पर तुमने ये देखा कि नीलम भाभी भी तुम्हारे जैसी नहीं हैं । उनका अधिकार है माँ का श्राद्ध करने का ।  मम्मी की कितनी सेवा उन्होंने की है । तुमने क्या किया, एक बार भी नहीं कहा कि थोड़े दिन हमलोग रख लेते हैं और तो और मैंने भी रखना चाहा तो तुमने मना कर दिया ।चुपके से मुझे माँ से मिलना पड़ता था ।बच्चों को भी तुमने मना कर दिया कि बीमारी लग जाएगी छूना नहीं दादी को । जब कि लीवर की बीमारी छूत नहीं है ।

पिताजी गुजर गए तब से तुमने माँ की दुर्दशा कर दी । भूला नहीं मैं वो दिन जब भाभी का हाथ फ्रैक्चर हो गया था तो भी भाभी ने एक हाथ से किसी तरह करके, कभी भैया तो कभी बच्चों ने मिलकर सब किया था और हम तब भी दूर थे । 

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जब माँ स्वस्थ थीं तब भी घूमने आती थीं तो तुम हम सबके लिए अलग पकवान और माँ को रूखा- सूखा बनाकर दे देती थी । मैं खिलाता था अपने हिस्से से माँ को तो तुम पूरा घर सिर पर उठा लेती थी । फिर माँ बोलती थीं मेरी वजह से तुमलोग घर का माहौल खराब मत करो और वो चली जाती थीं । नहीं भूल सकता इन बातों को । कुछ याद आया या और याद दिलाऊँ ? 

सीमा का सिर महेश की बातों से अब दुखने लगा था, उसे लगा वो चक्कर खाकर गिर जाएगी । वो सोफे पर निढाल सी बैठ गयी और आँखें बंद कर ली । पाँच मिनट के लिए जैसे बिल्कुल सन्नाटा छा गया ।

अब चुप्पी तोड़ते हुए महेश बोले ..”ढोंग करने की जरूरत नहीं है सीमा ! किसके आँख में धूल झोंकना चाह रही हो ? अकेले में बैठकर खुद से सवाल करना माँ ने तुम्हारे लिए क्या किया था और तुमने माँ के लिए क्या किया ? जीते जी जब हम उनके सुख का कारण नहीं बन सके तो बाद में इन औपचारिकताओं का कोई मतलब नहीं है । “श्रद्धा नहीं तो श्राद्ध कैसा ? बोलते हुए लंच बॉक्स उठाकर महेश दरवाजा पटक कर निकल गए ।

एकटक सीमा दरवाजे के सामने देखती रही  । महेश की कही बातें टीस सी चुभ रही थीं उसे ।सिर दर्द उसे बहुत सता रहा था । उसने अदरक वाली चाय बनाकर डायनिंग टेबल पर रखा और घूँट भरने लगी । टेबल के सामने ही उसकी सास अम्बा जी की तस्वीर लगी थी ।

चाय पीते – पीते मानो पुराने दिनों  में सीमा की सास जीवंत दिखने लगीं ….

एक साथ कई बातें उसके जेहन में घूम रही थीं । शुरू से ही मैं अपनी सुंदरता को लेकर घमंड में चूर रही । मायके में पैसे का अभाव था और ससुराल में पैसे परिपूर्ण थे । बस अपना दबदबा बनाने के लिए मैं  सब पर एक क्षत्र राज करना चाहती थी ताकि अपने मनमानी से जी सकूँ । माँ जी स्वभाव से बहुत अच्छी और दयालु थीं पर मैंने खुद से सिर्फ उन्हें इसलिए दूर रखा कि मुझे उनकी सेवा न करनी पड़े । मेरे बेटे चीकू के जन्म पर भी माँ जी आयी थीं तो मुझे अपने घर के नियम – कायदे बताना चाहती थीं और मैं अपने मायके के नियम रिवाज से ही चलना चाहती थी । बेटी चारु होने वाली थी तब भी मम्मी जी ने मेरी इतनी देख – रेख की लेकिन मैं सिर्फ उन्हें एक कामवाली का दर्जा देती थी । 

प्रेम विवाह करके एक तरह से मैंने उनके बेटे को छीन लिया । महेश को हमेशा ब्लैकमेल करती रही और वो मजबूर होकर बच्चे – परिवार की खातिर मुझे झेलते रहे ।

जब पापाजी होते थे और दोनो साथ आते थे हमारे घर कभी ऐसा होता था कि सुबह जल्दी उठकर ये लोग अपनी दिनचर्या में लग जाते थे और पानी चलने की आवाज़ तक से मैं चिढ़कर बोलती थी ये लोग तो नींद भी पूरी नहीं होने देते, जीना हराम कर देते हैं । मम्मी – पापा जी चुप हो जाते थे और बेटा सब कुछ भांपने की कोशिश करता । जितनी बातें बेटे से बचाकर छिपाकर उसके लिए किया उसने मेरे कठोर स्वभाव को समझ लिया और ऐसे ही मैं उससे दूर होती चली गयी और वो अपनी दादी से नजदीक होता गया ।

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जो बर्ताव मैं करती थी माँ जी के साथ अब वही मेरे बच्चे करने लगे हैं ।दो साल से हैदराबाद में जॉब कर रहे दोनो बच्चे, कितना बुलाती हूँ आना ही नहीं चाहते । जैसे किसी उत्सव व अवसर पर मैं महेश और बच्चों  को रोक लेती थी । ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सारे कर्म मुझे सूद समेत वापस मिल रहे हैं ।

हद तो तब हुई जब मम्मी जी यहाँ लीवर के ईलाज के लिए आईं और मैंने सीधा मना कर दिया कि मैं नहीं रखूँगी । मुश्किल से मेरे पास छः दिन रहीं और शरीर से कमजोर लाचार वो अपने देह पर ध्यान नहीं दे पाती थीं । बाल, नाखून, कपड़े सब गंदे छोड़कर उन्हें घर के बाहर कुर्सी पर बिठाकर  घूमने निकल जाती थी दोस्तों के संग । एक दिन लौट कर आई तो देखा मेरी पडोसन सुधा भाभी उनके बालों में तेल लगाकर चोटी बना रही थीं और नाखून काटकर नेलपॉलिश लगा दिया था । मम्मी जी मेरा गुस्से से तमतमाया चेहरा देखकर  सहमी हुई सी थीं । 

मैं नियंत्रण खो दी और अपनी गलती न देखकर सुधा भाभी पर चीखने लगी …”सुधा भाभी ! ये क्या कर रही हैं आप , ये सब काम करके मुझे नीचा क्यों दिखाना चाह रही हैं ?

क्या मैं इनकी देखभाल नहीं करती ? सुधा भाभी ने भी हिचकिचाते हुए कहा…”न..न ..नहीं सीमा ! ऐसी बात नहीं है, आंटी जी ने नाखून काटने कहा था तो मैंने काट दिया फिर बाल रूखे हो रहे थे तो तेल लगा दिया । दिल पर क्यों ले रही हो तुम ? जैसे ये तुम्हारी मम्मी जी हैं वैसे ही मेरे लिए हैं बस इसलिए थोड़ा कर दिया ।

उस दिन मम्मी जी नज़रों में मैंने अपना डर देखा था, वो हाथों को छिपाते हुए मुझसे नज़रें चुराने में लगी थीं । मुझ पर न जाने क्या पागलपन का धुन सवार था मैंने चीखते हुए कहा..”इतना सेवा का शौक है न तो अपने पास ही रख लो । अब सुधा भाभी चुपचाप अपने घर के अंदर जाकर बिना बोले दरवाजा बंद कर चुकी थीं ।

सोचते – सोचते सीमा लीन हो गयी तभी दरवाजे की घण्टी बजी, वर्तमान में जैसे लौटी वो, उसकी आँखें पश्चाताप से भीगी हुई थीं । उसने दरवाजा खोला तो उसकी कामवाली शीला थी ।

शीला काम पर लग गयी तभी चीकू का फोन आया । सीमा ने सोचा शायद दादी का श्राद्ध करने बोले परसों तो जल्दी से फोन उठाकर वो बोली ..हाँ बेटा ! फिर सारी बातें शुरू से आखिरी तक सीमा ने बताया तो चीकू बोला..”जीते जी आपने दादी को इतनी तकलीफ दी माँ , वो आपके भोग को स्वीकार भी नहीं करेंगी क्या फायदा मरने के बाद लाख भोग बनाकर दो इसका ।

अगर आपको इतना ही बुरा लगा है मम्मी तो बस आप दादी से उस दिन अपने किये की माफी मांगिए और ये सब करने की कोई जरूरत नहीं ।

एक खुशी की बात ये बतानी है कि मेरा एक बहुत अच्छे कम्पनी में प्रमोशन हो गया और दादी की पुण्य तिथि पर ही उस जॉब को जॉइन करना है । 

सीमा का मन सुनकर गदगद हो गया । उसने सासू माँ अम्बा जी की तरफ आँखों में भरे आँसुओं सहित भर नज़र देखा और अंदर ही अंदर बुदबुदाई..”मम्मी जी ! बेटा मेरा होकर भी नहीं है लेकिन   पोता तो दिल से आपका है । अपना आशीर्वाद हमारे घर पर यूँ ही बनाए रखिए  ।

मौलिक, स्वरचित

अर्चना सिंह

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