दौर – कंचन श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

आज अपने पीछे भागते लोगों को देख सुनैना दंग है हां दंग क्योंकि ये वही लोग हैं जो कभी नज़रे चुराया करते थे ,कभी घर आने को कहूं तो ऐसा न हो कुछ मांगने आज जाऊं लोग कहीं जाने का बहाना बना दिया करते थे और तो और सामने पड़ जाऊं तो लोग कतराके ऐसे गुज़र जाते थे जैसे उसे देखा ही नही।

इस तरह के व्यवहार का कारण पहले तो उसे समझ में नही आया क्योंकि नई नई शादी हुई थी पर धीरे धीरे सब समझ में आने लगा।

दरसल वो पड़ी लिखी एक होनहार लड़की थी गरीब परिवार में जन्म लेने के कारण छोटी सी नौकरी करके अपना और घर का खर्च चलाया करती थी।

पर इन सबके बीच पिता को चिंता उसके ब्याह की होने लगी तो उन्होंने लड़का देखना शुरू कर दिया बिना इस लालच के कि उनका सहारा कौन बनेगा भाई  लड़की जात है ब्याह तो करना ही है कब तक घर में बिठाके रखेंगे। तो जो उनको समझ मैं आया उन्होंने अपने से ऊंचे खानदान का लड़का देख ताक कर ब्याह कर दिया।

उन्हें बताया गया था कि लड़का पढ़ा लिखा और अच्छा कमाता है।

वो बेचारे सीधे साधे ज्यादा खोद बिनोद न करके लड़की की देखा ताकी कराई और शादी पक्की कर ली।

होती भी क्यों ना ये भी तो बहुत खूबसूरत थी नैन नक्श बेहद खूबसूरत थे।

और फिर उसने उच्च शिक्षा लेते वक़्त पिता जी को वचन दिया था कि मुझे पढ़ने दीजिये शादी आप जहां करेंगे हम कर लेंगे।कोई नुख्ता चीनी नही निकालेंगे।

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 बस इसी बात पर शादी हो गई ।हो तो गई पर यहां आकर जो कुछ उसे पता चला उसके पैरों तले से ज़मीन खिसक गई कि घर वाले किसी तरह शादी कराके अपना पिंड छुड़ाना चाहते थे क्योंकि वो आलसी कामचोर और उदंड टाइप का था।किसी से उसकी बनाती नही थीऔर तो और वो कर्जदार भी बहुत था।

जिसकी भरपाई उसे करनी पड़ रही कि ब्याह के कुछ ही दिनों में घर के अंदर कलह किचाहिन शुरू हो गई।

सास ससुर ने भी अलग कर दिया ये कहकर कि तुम्हारा परिवार है तुम संभालो।

फिर क्या था उसने भी नया वीणा उठाया वो ये कि अब तो जो होना था वो हो गया पर  पति की इज़्ज़त भी उसकी इज़्ज़त है और वो अपने साथ साथ  उनको भी सम्मान दिलायेगी उन लोगों से जो इन सबको फूटी आंख देखना भी नही चाहते।

वो मायके गई और बिना किसी गिला शिकवा के कुछ कहे सुने  अपनी सारी मार्कशीट उठा लाई और पहले जैसे ही नौकरी करने लगी फिर एक नई गृहस्थी बसाई। जिसमें पैर रखने की ज़मीन से लेकर सूई तक पर सिर्फ़ और सिर्फ़ उन दोनों का हक था।

उसके बाद परिवार बढ़ाया।

ये देख लोगों की आंखे फटी की फटी रह गई।

इस बीच कुछ लोगों को अपनी गलती का अहसास हुआ तो कुछ को आत्मग्लानि पर उसकी सेहत पर अब कोई फर्क नही पड़ा ऐसा नही कि आने वाले का सम्मान नही करती  पर दिल में जगह भी नही दे पाती।

सिर्फ़ एक टीस के कारण कि थोड़ा तो साथ दिया होता संभल तो हम जाते ही।

अरे! इंसान कभी भूखों नही मरता। जरिया तो बहुत है कमाने के रोटी तो खा ही लेगा ।पर खराब वक़्त भूलता  नही।

आज लोगों को अपने पास आते देख उसे खुशी कम बुरे वक़्त का वो  दौर   ज्यादा याद आता है । जो उसने शादी के तुरंत बाद देखा था।

लेखिका : कंचन श्रीवास्तव

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