अब क्या गहना पहनना – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

“ले बहू अपने गहने, बहुत दिनों तक मैंने इसे संभाल कर रखा “सासु माँ सावित्री जी ने अपनी बहू ऊषा को देते हुये कहा। गहने के नाम पर एक सेट पकड़ा दिया।हाथ में पकडे हार को ले, ऊषा ने विरक्ति से कहा -“अब क्या करुँगी माँ इसे लेकर…। “ये लो जब मेरे पास था तब तुझे लेने की पड़ी रहती अब जब दे रही हूँ तो कह रही अब क्या करुँगी, जो करना हो कर, मुझे बक्श दे “।

नितिन ने ऊषा से कहा -अरे माँ कब तक तुम्हारे गहनों को संभालेगी “
गहने संभाली थी या कब्जे में रखी थी, चाहने के बावजूद कह नहीं पाई ऊषा। ऐसा नहीं कि नितिन ने कुछ समझा नहीं, सब समझते थे पर प्रतिवाद कैसे करें, बीवी के लिये बोलेंगे तो जोरू का गुलाम कहलायेंगे। हार सामने पड़ा झिलमिलाते हुये अपनी छटा बिखेर रहा। अतीत की किताब ना चाहते भी खुल गई। मानों कल की बात है।

 विवाह के दो दिन बाद ही सास ने नववधु ऊषा को आदेश दिया सारे गहने मेरे पास रख दो, तुमसे इधर -उधर हो जायेगा, मैं संभाल कर रख दूंगी। ऊषा ने सारे गहने सावित्री जी को दे दिया, सिर्फ एक झुमका उसके हाथ में रह गया । सावित्री जी की निगाहें उस दो तोले के झुमके पर पड़ीं जो ऊषा के हाथ में ही रह गया।

“अरे बहू, झुमका क्यों हाथ में लिये हो, दो इसे भी संभाल कर रख दूँ “सावित्री जी ने ऊषा के हाथ से वो झुमके भी ले लिये, जो बड़ी चाव से उसकी माँ ने अलग से बनवाया था।सासु माँ ने गहने इतना संभाल कर रखा कि किसी त्यौहार तो दूर, किसी शादी में भी पहनने को ना दिया।पहली बिदाई में जब मायके पहुंची तो माँ ने गले में सिर्फ एक पतली चेन देख कर कहा -ऊषा तुम पहली बार मायके आई हो अपना हार और झुमका पहन लो, कुछ रिश्तेदार तुमसे मिलने आयेंगे।

“माँ, मैं तो सब वहीं भूल आई हूँ, इस चेन और बाली के सिवा कुछ नहीं लाई “कह बहाना बना दी, जानती थी सच जान माँ को तकलीफ होगी। “कोई बात नहीं ऊषा तुम मेरा हार पहन लो “बड़ी भाभी अपना हार ला कर उसे पहना दी। अनुभवी माँ समझ गई, कोई बात है जो बेटी उदास है। गहनों की शौक़ीन ऊषा गहने कैसे भूल आई।बात ना बिगड़े इसीलिये बेटी को समझा दिया सासु माँ भूल गई होंगी तुझे देना।

कुछ दिन बाद नितिन आकर ऊषा को ले गये। इस बार ऊषा बुझे दिल से ससुराल आई।नितिन ने ऊषा की उदास का कारण पूछा। संकोची ऊषा ने बड़ी मुश्किल से नितिन को बता पाई उसे गहने पहनना बहुत पसंद है, बिना गहने के मायके जाना उसे अच्छा नहीं लगा। देखो गहने कीमती हैं इस लिये माँ ने संभाल कर रख दिया। जब तुम्हारा दिल करें माँ से मांग पहन लिया करो। बात आई -गई हो गई। कुछ समय बाद ऊषा के भाई की

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शादी पड़ी। माँ ने ऊषा को ताकीद कर दी थी, अपने गहने लेती आना, कई प्रोग्राम हैं यहाँ। ऊषा ने सासु माँ से भाई की शादी में पहनने के लिये गहने मांगे तब सासु माँ बोलीं तेरे ससुर जी शादी में जायेंगे तो उनके हाथ भेज दूंगी, तुझसे इधर -उधर हो जायेगा।”पर माँ और फंक्शन भी है, उसमें भी तो पहनने है “ऊषा ने कहा तो सासु माँ बोली -“उस समय तू नकली गहने पहन लेना “। ऊषा मायके आ गई, पर समझ ना पाई आखिर उसके गहने

सासु माँ उसे पहनने को क्यों नहीं देती। शादी वाले दिन ससुर जी आये एक गहने का सेट पकड़ा दिये, ऊषा अपनी झुमकी देख खुश हो गई। अगली सुबह नितिन आये बोले पापा, सारे गहने वापस मांग रहे। ऊषा ने झुमकी उतारी नहीं थी सो बाकी सब दे दिया, झुमकी नहीं दी। ससुर जी ने सारे गहने गिने एक कम था उन्होंने तुरंत ऊषा को बुलाया -“एक गहना कम है इसमें “।

“हाँ पापा जी झुमकी में उतार नहीं पाई इसलिये एक कम है, इसे छोड़ दीजिये मैं लेती आऊंगी “ऊषा ने कहा।

“ना बेटा तुम्हारी सास नाराज होंगी, इसलिये इसे भी दे दो। नितिन वहीं खड़े सुन रहे थे एक बार उन्होंने बोलने का प्रयास किया भी पर ससुर जी ने उनको चुप करा दिया ऊषा ने झुमकी उतार कर दे दी। पर उसके मन में एक गांठ बन गई। नितिन ने समझाया मैं तुम्हे और झुमकी बनवा दूंगा। ऊषा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। दो दिन बाद ऊषा ससुराल लौट आई। फिर उसने कभी गहने मांगे ही नहीं। बाद में पता चला सासु माँ,

कभी जिठानी तो कभी ननद को वो गहने, शादी ब्याह पर पहनने को दे देती थी। जब ऊषा मांगती तो कई बार गहने उनके पास नहीं होते।ऊषा के गहने बाकी सब पहनते और ऊषा को पहनने नहीं मिलता।

कमरे में आ बेटी ने पूछा “माँ अब दादी गहने दे रही तो आप क्यों नहीं ले रही हो “।

“इच्छाओं को मारते -मारते अब इच्छा ही नहीं रही, उम्र भी तो ढ़ल रही, अब क्या करुँगी हार और झुमकी ले कर, जिम्मेदारी तले दबे तेरे पापा कोई गहना नहीं बनवा पाये थे, समझते सब थे पर माँ के विरुद्ध कैसे जाये तो चुप रहते थे, अब क्या झुमकी पहनना “ऊषा ने उदासी से कहा।

“ऊषा, माना मैंने माँ का विरोध ना कर गलती की, पर घर जुड़ा रहे इसके लिये कई बार ख़ामोशी भी जरुरी होती है, थोड़ा देर से ही सही पर देखो आज मैं तुम्हारे लिये क्या लाया हूँ, शौक की कोई उम्र नहीं होती, और हर उम्र की अपनी खूबसूरती होती है।

डिब्बा खोलते ही हीरों का हार जगमगा उठा।ऊषा ने मुँह फेर लिया। नितिन ने उसका हाथ पकड़ बोला -“प्लीज “, कई बार लफ्ज खामोश होते जज्बात बोल उठते। ऊषा ने हार उठा कर नितिन को पकड़ाया, नितिन ने ऊषा को हार पहना दिया।तुम साथ हो इससे बड़ा मेरा और कोई गहना नहीं, ऊषा ने भावुक हो कर कहा।

 दो महीने बाद ऊषा के बेटे साहिल की शादी थी। ऊषा हीरे का हार और झुमकी से सजी बेहद सुन्दर लग रही थी। विवाह संपन्न हो जब बहू घर आई तो ऊषा को अपने गहने सँभालने को दिया। गहने वापस करते ऊषा बोली -बेटे इसे तुम अपने पास रखों, ताकि जब तुम्हारा मन करें तुम पहन सको। मैं नहीं चाहती फिर एक कहानी दुहराई जाये।

—संगीता त्रिपाठी

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