काश समझ पाते तेरी आहट का इंतज़ार रहता है – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ बहू निकुंज कब तक आएगा … कब से तुम कह रही हो वो आ रहा है वो आ रहा है… दस बजने वाले है.. अब कब आएगा?” सुनंदा जी बहू राशि से पूछे जा रही थी

“ माँ आप कब तक उनका इंतज़ार करेगी…खाना खा कर सो जाइए…उनके आने का कोई वक्त तय नहीं रहता…ऑफिस में बहुत काम होते हैं देरी हो जाती है ।” राशि उन्हें समझाते हुए बोली

“ निकुंज कहाँ हो तुम … मुझे तो बातें बना कर बहला देते हो..अब माँ को क्या बोल कर समझाओगे… काश तुम समझ पाते…. एक माँ बहू के साथ कितना वक्त भी गुजार ले …सारे काम बहु से ही क्यों ना करवा ले पर बाहर गए बेटे का इंतज़ार घर लौटने तक वो करती ही है ।” राशि मन ही मन सोच रही थी

तभी दरवाज़े पर दस्तक के साथ कॉल बेल बजी

” लीजिए आ गया आपका बेटा ।” कहते हुए राशि दरवाज़े की ओर बढ़ी पति के हाथ से बैग हेलमेट लेकर साइड में रखे टेबल पर रखते हुए बोली ,” जूते खोल कर जाओ माँ से मिल लो… तुम्हारे इंतज़ार में अब तक उन्होंने खाना भी नहीं खाया है ।”

 निकुंज जल्दी से माँ के कमरे में गया वो बेटे का ही बाट जोह रही थी

“ आ गया मेरा लाल… तू तो बोलता था आठ बजे तक घर आ जाता पर देख ग्यारह बज गए…।” सुनंदा जी ने बेटे के बालों पर हाथ फेरते हुए कहा

“ हाँ माँ लेट हो गया कल जल्दी आ जाऊँगा… चलो खाना खा लो।” निकुंज ने कहा और माँ का हाथ पकड़कर खाने की मेज के पास ला बैठने बोल खुद जल्दी से कपड़े बदल हाथ मुँह धोने चला गया

खाना खा कर सुनंदा जी को दवाइयाँ खाने बोल निकुंज सोने के लिए जब कमरे में आया राशि उसका ही इंतज़ार कर रही थी,“ निकुंज माँ पहली बार गाँव छोड़कर हमारे पास आई है… पिताजी के जाने के बाद…वो बड़े भैया के पास रह रही थी… तुमने सुना भाभी क्लेश कर रही तो यहाँ ले आए…. और माँ को ये क्यों बोल रहे जल्दी आ जाऊँगा… तुम भी जानते हो दो बड़े बच्चों की पढ़ाई का खर्च कितना है…

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मैं घर में ट्यूशन पढ़ा कर घर खर्च ही निकाल पाती हूँ… तुम ऑफिस में देर तक काम करते हो ताकि ज़्यादा पैसे बने… माँ को हमारी आर्थिक स्थिति का जरा भी अंदाज़ा नहीं है …. तुम एक बार माँ को सच बता दो….. आज तो पहला दिन था वो तुम्हारा इंतज़ार करती रही…पर कल?” राशि परेशान हो बोली

”मुझे खुद समझ नहीं आ रहा माँ को कैसे समझाऊँ कुछ भी… गाँव में तो ज़्यादा देर तक बाहर कभी रहते नहीं तो उसे तो वैसे भी आदत नहीं है…. फिर देर रात तक जागना और मेरा इंतज़ार करना फिर खाना खाना ये सब कही उसकी तबीयत ना ख़राब कर दे… कुछ दिन तो उसे बहलाकर रखना हो… दिल की मरीज़ है… मेरा देर तक बाहर रहना उसके मन में कई संशय को जन्म देगा ….. प्लीज़ तुम किसी तरह उसे आठ बजे तक खिला कर सुला देना …फिर वो मेरा इंतज़ार नहीं करेगी ।” निकुंज राशि की ओर उम्मीद की नज़र से देखा

 “ आज भी बहुत समझाया था मैंने पर वो मान ही नहीं रही थी… चलो अब सो जाओ फिर कल जल्दी उठकर काम पर भी जाना है तुम्हें ।”राशि कमरे की बत्ती बुझा सोने की कोशिश करने लगी

“ राशि कब हमारी ज़िन्दगी फिर पटरी पर आएगी…माँ को मैं अपनी परेशानी बता कर परेशान नहीं करना चाहता…. गाँव में थी तो आधी आधी ज़िम्मेदारी हम दोनों भाइयों ने बाँट लिया था पर यहाँ पर सब कुछ मुझे ही देखना होगा…. अब तो और ज़्यादा पैसे की ज़रूरत पड़ेगी तो काम भी ज़्यादा करना पड़ेगा ।” निकुंज लंबी साँस लेते हुए बोला

दो तीन दिन बहाने बना कर राशि सुनंदा जी को समझाने की कोशिश करने लगी.. जिससे सुनंदा जी को लगने लगा अब बेटा मुझे प्यार नहीं करता … मुझे मजबूरी में यहाँ लेकर आ गया…उसके पास मेरे लिए समय ही नहीं है।

सुनंदा जी खाना खा तो लेती पर उनका ध्यान बेटे के आने की आहट पर लगा रहता …. निकुंज भी आकर एक बार माँ को देखने ज़रूर आता… सुनंदा जी बेटे की आहट अपने दरवाज़े पर पाकर संतुष्ट हो जाती बेटा सही-सलामत घर आ गया है।

रविवार के दिन सुनंदा जी ने बहू की मदद से बेटे की पसंद का खाना बनाया… और उतने ही प्यार से बेटे को खाते देख प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए बोली,“ बेटा जब से आई हूँ तब से देख रही हूँ……तू बहुत परेशान है कुछ बात है तो बोल बेटा ।”

“ माँ काश मैं तुम्हें बता पाता ..।” मन ही मन निकुंज ने कहा

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 ” बेटा काश तुम समझ पाते तेरी माँ तेरे बिना कहे भी तेरी परेशानी समझ रही है… हर दिन तेरा थका हुआ चेहरा बिना देखे महसूस कर पाती हूँ…बहू को घर के सारे काम खुद करना फिर ट्यूशन पढ़ाना… बच्चों के लिए दिन भर परेशान रहना …. और अब मेरे आ जाने से मेरे लिए सेहत का ध्यान रख कर खाना पकाना ये सब करना पड़ता है और तू दिन रात काम कर रहा है ये सब मुझे तुम लोग नहीं बताओगे तो क्या मुझे कुछ समझ नहीं आएगा…. सब कर बेटा पर अपनी सेहत का भी ध्यान रख तू ठीक रहेगा तभी तेरी माँ ठीक रहेगी तेरी पत्नी और बच्चे ठीक रहेंगे।” सुनंदा जी ने बेटे को प्यार से समझाते हुए कहा

” मैं कह रही थी ना ….वो माँ है उन्हें सब समझ आ जाएगा… देखो बिना कहे बेटे की परेशानी समझ गई।“ राशि ने कहा

” सही कहा बहू… एक माँ अपने बच्चों की परेशानी बिना कहे भाँप लेती है …. काश यही बात बच्चे समझ पाए की उनकी माँ बच्चों से बहुत ज़्यादा नहीं खोजती बस उनका थोड़ा सा सानिध्य चाहती है ।” सुनंदा जी ने जैसे ही कहा निकुंज माँ के गले लग गया

दोस्तों हर माता-पिता अपने बच्चों की परेशानी बिना कहे भाँप लेते हैं …. काश बच्चे भी माता-पिता की परेशानी ऐसे ही समझ जाए तो किसी घर में कोई तकरार ही ना हो ।

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 धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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