सुख-दुख है हमारे साथी – मंजू ओमर  : Moral Stories in Hindi

रितेश जी आपकी मम्मी का ब्रेन डेड हो गया है और बस वेंटिलेटर के सहारे से चल रही है , जैसे ही वेंटिलेटर हटाएंगे सब खत्म हो जाएगा अब कुछ नहीं बचा है इनके शरीर में आप घर ले जाइए डाक्टर बोला। सुनकर रितेश और प्रीतेश दोनों भाइयों को धक्का सा लगा ।प्रितेश बोला भइया पापा तो हमें पहले ही छोड़कर जा चुके थे और अब मम्मी भी ,,,,,,,,

और वो ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। रितेश जो बड़ा भाई था प्रितेश को गले लगा कर ढांढस बंधा रहा था। क्या कर सकते हैं भाई हम ईलाज तो करा ही रहे हैं न अब डाक्टरों ने जवाब दे दिया तो हम क्या कर सकते हैं।

               रितेश के पापा राजेन्द्र जी चार भाई थे । सभी अपने अपने परिवार में हंसी खुशी रहते थे । सभी में आपस में मेल मिलाप अच्छा था । राजेन्द्र से दो भाई बड़े थे और एक भाई छोटा था जिससे भतीजों का बहुत लगाव था। चाचा भी भतीजों को बहुत चाहते थे।सभी मिलजुल कर खूब आनंद उठाते थे । अभी 10 साल पहले राजेन्द्र जी के बड़े बेटे की शादी हुई थी पांच साल हो गए शादी को लेकिन रितेश को कोई औलाद नहीं हुई

सब परेशान थे लेकिन फिर  बहू का इलाज कराया गया और साल भर बाद उसके बेटी पैदा हुई ।घर में बेटी नहीं थी तो बेटी के पैदा होने पर खुब खुशियां मनाई गई। राजेन्द्र जी का छोटा बेटा प्रितेश अमेरिका में रहकर पढ़ाई कर रहा था पढ़ाई पूरी करके जब वो वापस आया तो उसने अपने सहकर्मी से विवाह करने की इच्छा जाहिर की , लड़की अच्छी थी तो उसका विवाह भी कर दिया गया ।दो साल बाद उसके भी एक बेटी हुई।बस घर में खुशियों का माहौल रहा ।

                  लेकिन कहते हैं न खुशी ज्यादा दिन नहीं रहती ।सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख आते रहते हैं यही प्रकृति का नियम है।एक दिन राजेन्द्र जी को सीने में दर्द उठा डाक्टर के पास ले गए लेकिन वो बच नहीं पाए उनका देहांत हो गया ।पूरे घर में शोक की लहर दौड़ गई खुशियों से भरे घर में गमगीन माहौल हो गया । लेकिन क्या कर सकते हैं जो आया है वो जाएगा भी ।ये स्थिति तो सबके सामने आनी है एक दिन।

अब रीतेश की मम्मी किरण जी अकेली रह गई ।बहू बेटे दोनों अपने अलग-अलग रहते थे और किरण जी और राजेंद्र जी अपने गृहनगर में रहते थे।सबकी अपनी-अपनी जिंदगी थी कोई किसी के जिंदगी भी दखलंदाजी नहीं करता था ।अब मजबूरन किरण जी को बेटों के पास जाना पड़ा ।एक साल एक बेटे के पास और दूसरे साल दूसरे बेटे के पास रहती थी ।

                किरण जी के जीवन में बहुत अकेला पन छा 

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 गया था । यहां अपने गृहनगर में राजेंद्र जी और किरण जी आराम से रहते थे घूमते फिरते अपना जीवन हंसी खुशी व्यतीत कर रहे थे। वहीं अब बेटे के पास रहकर किरण जी ऊब जाती थी ‌‌‌आज कल बच्चों के पास इतना समय ही नहीं होता कि वो मां-बाप के पास दस मिनट को बैठ जाएं ।एक तो प्राइवेट कंपनी में नौकरी भी इस तरह की होती हुई फुर्सत ही नहीं मिलती और आफिस के बाद दो दिन की छुट्टी है तो उनका अपना भी बहुत सा

काम घूमना फिरना उनके पास समय ही नहीं होता आजकल बच्चों के पास। फिर बहू भी नौकरी वाली थी किसके पास इतना समय है कि आपके पास बैठे। यही कमी किरण जी को बहुत सताती थी। क्या करें करने को कुछ होता नहीं है कैसे समय कटे। फिर बिमारियों ने घेर लिया तो शरीर भी लाचार ।हर समय अपने घर की याद आती रहती थी। वहां देवर देवरानी थे किरण के और हम उम्र भी थे तो साथ साथ समय कट जाता था।

अक्सर किरण जी देवरानी सीमा को फोन करती थी और बातें करते करते रूंआसी हो जाती थी क्या करें सीमा यहां मन नहीं लगता ।बड़ा अकेला पन है बच्चों के पास समय नहीं होता फिर हर समय बच्चे भी क्या बात करेंगे । मेरे ख्याल से जीवन का सबसे कठिन समय यही है जब एक इंसान अकेला रह जाता है । इंसान को जीवन साथी की जरूरत जितनी जवानी के दिनों में नहीं होती उतनी इस समय ज्यादा होती है । जवानी में तो आपके पास हजार काम होते हैं घर गृहस्थी की जिम्मेदारी बच्चों की देखभाल ,पढ़ाई लिखाई  उस समय नहीं मिलता था अपने लिए भी और आज समय ही समय है ।

                 किरण जी ने आज रितेश को डांटा कि इतना भी समय नहीं है कि दस मिनट मम्मी के पास बैठ जाओ । लेकिन क्या होता है बुढ़ापे में तो सबके साथ यही स्थिति आती है।और जब आप अकेले हो गए हैं तो बच्चों के पास जाकर रहना ही पड़ेगा।एक लाचार और बेबस इंसान हो जाता है ।

            इसी अकेले पन का शिकार होकर किरण जी बीमार होती जा रही थी।शुगर और भाई वीपी की मरीज़ और फिर सोचते सोचते आज किरण जी का वीपी हाई हो गया और ब्रेन स्ट्रोक आ गया जिसमें उनकी ये स्थिति आ गई।

              आज रितेश ने अपने चाचा को फोन किया चाचा मम्मी को डाक्टरों ने जवाब दे दिया ।कह रहे हैं घर ले जाओ वेंटिलेटर पर है कह रहे हैं वेंटिलेटर हटा दो तो सब खत्म हो कुछ बचा नहीं है इनके शरीर में। इतना कहकर रितेश रोने लगा। फिर चाचा ने समझाया देखो बेटा सुख दुख तो आते-जाते रहते हैं ।एक दिन इस स्थिति का सामना तो सबको करना है ।अबतक मां बाप बैठे रहेंगे एक दिन तो सभी को जाना है

न और जाने का कोई न कोई कारण तो बनता हैं । बेटा मम्मी को मुक्त करों जाने दो अब रोकने से कोई फायदा नहीं है । लेकिन चाचा कैसे वेंटिलेटर हटा दें सांसे चल रही है । लेकिन बेटा वो तो नकली सांसे है बाहर से आक्सीजन दी जा रही है तो सांसें चल रही है । उनके अंदर कुछ नहीं बचा है । चाचा आप आ जाओ हमारे कुछ समझ में नहीं आ रहा है।

            फिर सीमा और नरेश (चाचा चाची) आज रितेश के पास गए ।किरण भाभी की ये हालत देखकर वो भी रो पड़े । लेकिन फिर हिम्मत करके रितेश को समझाया बेटा मुक्त कर दो मम्मी को बहुत कष्ट में है लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हो रही है वेंटिलेटर हटाने की चाचा। जबतक सांस चल रही है चाहे नकली ही मैं कैसे हटा दूं मैं मम्मी को घर पर रखना चाहता हूं अपने आप कुछ हो जाए तो ठीक है । ठीक है बेटा रख लो घर पर ।

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          आज घर पर पूरी तैयारी करके किरण जी को घर लाया गया।घर आने पर पांच दिन तक रही किरण जी फिर छठे दिन सुबह-सुबह मानीटर की सारी लाइनें सीधी हो गई किरण जी जा चुकी थी ।

              आज उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।वापस आते आते चाचा रितेश और प्रितेश को समझा रहे थे देखो बेटा ये घड़ी तो हर बच्चे के जीवन में एक दिन आती है किसी की अभी तो किसी की बाद में ।जो आया है उसे जाना है ।सुख दुख का संगम ही तो जीवन है ।ये तो भोगना ही पड़ता है और फिर वही ऊपर वाला दुख सहने की हिम्मत भी देता है ।बस मेरा यही मानना है कि सुख है तो फूलों नहीं दुख है तो अपनों को भूलों नहीं।

सबसे अच्छे संबंध बनाकर रखो ।और मम्मी पापा नहीं है तो क्या हुआ हम लोग तो है न चाचा चाची मम्मी पापा से कम नहीं होते । आते-जाते रहना घर फोन करते रहना । धीरे धीरे समय बीत ही जाता है ।समय हर घाव भर देता है । बेटा ठीक है न । हां रितेश ने गर्दन हिलाई । चाचा चाची को पराया मत समझना जब चाहे आते रहना ।हमें भी अच्छा लगेगा और तुम्हें भी ।और दोनों भतीजे चाचा के गले लग गए । यही है सुख दुख का संगम ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

16 सितम्बर 

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