कभी खुशी -कभी गम – कुमुद मोहन : Moral Stories in Hindi

“सुनो जी एक बात कहूं!विभा ने डरते डरते अपने पति महेश से कहा!”

“जल्दी कहो जो कहना है टाइम नहीं है मेरे पास?”झुंझलाकर. महेश ने जवाब दिया!

“वो सिया की सहेली मीना है ना उसके चाचा का लड़का मुम्बई की एक कंपनी में इंजीनीयर है!”

विभा के आगे कुछ कहने से पहले महेश गुर्रा कर बोले “तोऽऽ”

“वह अपनी सिया को पसंद करता है जाने पहचाने लोग हैं” विभा एक सांस में सब बोल गई !

“होश में तो हो क्या कह रही हो?पसंद करता है इस का मतलब मैं अपनी बेटी का ब्याह कर दूं एक टटपूंजिये से!अरे ये बंधी बंधाई महीने की तनख़्वाह पाने वालों से मुझे कितनी चिढ़ है तुम अच्छी तरह जानती हो!मेरी बेटी महीने भर बजट बना बना कर घर चलाएगी क्या?तुमने सोचा भी कैसे?” मैं अपनी बेटी को किसी बड़े बिज़नेस वाले को ही ब्याहूंगा,कान खोल कर सुन लो और आइंदा ऐसे उल जलूल रिश्ते मेरे सामने मत लाना!गुस्से से तमतमाऐ हुए महेश कमरे से निकल गए! 

 सिया एक चंचल,मस्त बेफ़िक्र लड़की थी!पढ़लिखकर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी !बचपन से अपने दबंग पिता के आगे मां को अपमानित होते देख उसे बहुत दुख होता!वह विवश हो मन मसोस कर रह जाती!वह हमेशा सोचती वह नौकरी करेगी और अपनी मां को अपने साथ रखकर उन्हें बहुत सुख देगी!

पर महेश जी ने तो जैसे ठान ली थी कि वे बी.ए. पास करते ही सिया का ब्याह कर देंगे!

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उन के ठाठ-बाट और समाज में उनका रूतबा देख कर अच्छे अच्छे घरानों से सिया के रिश्ते आने शुरू हो गए! 

सबकुछ देख दाख कर महेश जी ने एक छोटे शहर के प्रतिष्ठित परिवार में सिया का रिश्ता तय कर दिया!सिया के ससुर शंभु नाथ शहर के जाने माने रईस थे!शहर के बीचों बीच उनकी बड़ी सी हवेली,नौकर-चाकर कोई ऐसी सुविधा नहीं जो उनके घर में ना हो! उनका बेटा मनु इंजीनीयर होते हुए भी पिता के बिज़नेस में ही रत था!

शंभु नाथ सिया को देखने आऐ तो महेश जी ने उनकी आवभगत में कोई कोर कसर न छोड़ी! शहर के सबसे महंगे होटल में रुकाया! सब एक टांग पर खड़े रहे!

शंभु जी सिया के लिए कई जोड़े कपड़े लाऐ थे उनके साथ मैचिंग जेवर भी!

सामान देखकर सबकी आंखें चौंधिया गई! सब रिश्तेदार सिया के भाग्य पर रश्क कर रहे थे!सिया की बुआ तो मीना से बोली “भाभी जरूर तुमने पिछले जनम में मोती दान किए होंगे जो बिटिया को ऐसा घर-वर मिला”!

महेश जी के घर वालों को बड़ा आश्चर्य हुआ था क्योंकि शंभु नाथ जी बिना अपनी पत्नी के लड़की देखने आऐ थे! पूछने पर पता चला कि उनके घर में औरतें घर में ही रहती हैं!

खैर! 

 सिया अपने अरमानों का गला घोंट दुल्हन बन शंभु नाथ जी की हवेली पहुंच गई! 

एक नौकरानी सिया की खिदमत करने को लगा दी गई !

वहां कोई काम नहीं था बस सज संवर कर आराम करो!

पैसा और दिखावा शंभु नाथ जी की ज़िन्दगी का बस यही शगल था!

पूरे बिज़नेस और घर पर शंभु नाथ जी का राज था!

शाम को शंभु नाथ जी की ताशों की महफ़िल जमती!जाम पर जाम छलकते!सिया और उसकी सास जनान खाने से नाश्ते-खाने का इंतजाम करातीं! 

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शुरु में सिया को बहुत अटपटा सा लगता!उसे ससुराल उम्र कैद सा लगता!बिना किसी काम के वह बोर होने लगती!मनु से कहती तो वह यही समझाता कि अब ऐसे ही रहने की आदत डालो!

शराब पीना और सट्टा खेलना रईसी की निशानी थी उस घर में!

समय बीता सिया बेटे मयंक की मां बन गई!मनु का प्यार उसकी आज़ादी का समझौता था जैसे!

उसकी दुनिया मयंक के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गई! उसने ठान लिया दादा और पिता की रईसी का साया वह अपने बेटे पर नहीं पड़ने देगी!

 मयंक बड़ा होकर पढ़ने चला गया! 

एक दिन एकाएक शंभु नाथ जी को दिल का दौरा पड़ा और हास्पिटल जाने से पहले ही वे बिना कुछ कहे सुने इस दुनिया से चले गए! 

उनकी मृत्यु का शोक मनाने शहर भर के लोगों का तांता लग गया!

तेरहवीं के बाद घर में जैसे सन्नाटा छा गया!

घर में मनु, एक छोटी बहन और मां बचे!

शंभु नाथ जी वसीयत भी नहीं कर गए थे!

कागज पत्तर देखते हुए मनु को पता चला कि शंभु नाथ जी सर से पैर तक कर्ज में डूबे थे!

सब घर वालों को बहुत आश्चर्य हुआ कि ये सारी शानो-शौकत कर्जे लेकर थी!

धीरे धीरे कर्जदार तकाजा करने लगे!फिर एक दिन हवेली की कुर्की की खबर सुनकर मनु रातों-रात कीमती सामान के साथ सिया,मां और बहन को लेकर वहाँ से निकल कर दिल्ली आ गए!

महेश जी ने उन्हें अपने पास बुलाया पर मनु को ससुराल में जाकर रहना गवारा नहीं था !

रईसी चली गई पर अकड़ नहीं!

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अपनी बेटी की तकलीफ महेश जी से देखी न गई उन्होने जबरदस्ती रुपयों से उनकी सहायता की जिससे मनु और सिया ने दो कमरों का छोटा सा फ्लैट किराए पर ले लिया!बाकी बचे पैसे बैंक में डाल कर ब्याज से गुजारा करने लगे!

कहां शंभु नाथ जी की बड़ी सी हवेली कहां ये छोटा फ्लैट?

बहन की पढ़ाई ,दूसरी तरफ बेटे की फीस का दानव मुँह बाऐ खड़ा था!

मनु के पास इंजीनियरिंग की डिग्री तो थी पर न तो अनुभव न ही किसी के मातहत काम करने का जज़्बा! 

सिया बचपन से पेंटिंग बनाया करती!उसने आसपास के बच्चों को पेंटिंग सिखाना शुरु कर दिया! थोड़ा-बहुत घर का खर्च उससे निकलने लगा!वह किसी तरह पाई-पाई बचाती!

जिसके आगे पीछे नौकर-चाकर घूमते वह बेचारी चुपचाप बर्तन मांजती और सारे घर का काम करती!तब कहीं जाकर दो वक्त की रोटी नसीब होती!

हर वक्त खिलखिलाकर हंसना वाली सिया तो जैसे हंसना ही भूल गई थी!

जिस बेटी की धूम धाम से शादी करने का सपना शंभु नाथ जी ने देखा था उस की पढ़ाई छुटा मां के गहने बेचकर उसका ब्याह मंदिर में फेरे फिरावाकर निपटा दिया गया!

पिता की ही तरह मनु की रईसी आदतें जैसे शराब और शेयर में पैसा बर्बाद करने की वजह से परेशान सिया और उसकी सास ही एक दूजे का सहारा थीं!पर भगवान को यह भी मंजूर नहीं था!सास दमे की मरीज थीं महंगी दवाई न मिलने से एक दिन वह भी चल बसीं!सिया फिर अकेली हो गई! 

पैसों की तंगी के कारण मनु चिड़चिड़ा रहने लगा!अपनी नाकामी का गुस्सा बेचारी सिया पर उतारता!सिया खून का घूंट पीकर रह जाती क्योंकि जानती थी पलटकर जवाब देने से कोई फायदा नहीं!

दिन बीतते रहे!

कहते हैं कि धूरे के भी दिन फिरते हैं!भगवान को भी शायद सिया के हालात पर तरस आ गया!

मयंक की मेहनत रंग लाई उसे अपनी मेरिट के दम पर स्कॉलरशिप मिल गई! इंजीनियरिंग पास करते ही उसे मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई! 

सिया ने मयंक को बहुत अच्छे संस्कार दिये थे!अपनी मां का दुख उसने बचपन से देखा था!वह सिया और मनु को अपने साथ ले गया!उसकी बस यही कोशिश रहती किसी तरह सिया पिछले कई बरसों से उठाई गई तकलीफें भूल कर फिर से नई ज़िन्दगी शुरु कर सके!वह अपनी मां को वो सारे सुख दे सके जिसकी वह हकदार है!

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धन्य है सिया जिसने मुश्किल से मुश्किल परिस्थतियों में बिना घबराऐ सब्र और धैर्य का दामन नहीं छोड़ा अपने सारे रिश्ते बाखूबी निभाए! भगवान ने मयंक के रुप में उसके सब्र का फल भी दिया!

सुख दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं!

हर व्यक्ति के जीवन में सुख दुख आने जाने हैं!

रात कितनी भी काली दुख भरी हो सुबह जरूर होती है!सूरज का उजाला दुख के बादलों को छांटकर सुख की किरणें फैलाता ही है!

पैसे से सुख नहीं खरीदा जा सकता!महेश जी की यही गल्ती उनकी बेटी के भाग्य का ग्रहण बन गई! 

यह एक कहानी ही नहीं सच्ची घटना पर आधारित ब्लॉग भी है !भगवान न करे किसी को सिया जैसे इम्तिहान से गुजरना पड़े! 

कुमुद मोहन

 स्वरचित-मौलिक 

#सुख दुख का संगम

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