मायका:बेटियों का आसरा – ऋतु अग्रवाल

अरुणिमा एक उच्च वर्गीय संपन्न परिवार की लड़की थी।ताऊ-चाचाओं का बहुत बड़ा संयुक्त परिवार, हाई क्लास बिजनेस और नौकर चाकरों का रेला तो परिवार में बहू बेटियों को ज्यादा काम करने की आदत नहीं थी। अरुणिमा देखने में औसत ही थी

और पढ़ाई में भी औसत। पर परिवार वाले चाहते थे कि दामाद खूबसूरत होने के साथ-साथ पढ़ा लिखा भी हो तो पूरा परिवार अपने जान पहचान वालों से एक अच्छे घर वर की तलाश के लिए कहने लगे। 

डेढ़ साल की भागदौड़ के बाद नोएडा के एक अच्छे परिवार का लड़का उनकी कसौटी पर खरा उतरा।लड़का बहुत ही खूबसूरत और इंजीनियर था। बस परिवार पैसों के मामले में अरुणिमा के परिवार की बराबरी का न था।हम सब सहेलियों ने अरुणिमा से कहा भी कि अपने परिवार को समझाएँ कि यह रिश्ता भविष्य में मुसीबतें ही खड़ी करेगा पर अरुणिमा की आँखें तो उस हीरो जैसे लड़के को देखकर मानो चौंधाया गई थीं।

 उसने हमारे सुझाव को ईर्ष्याजनित प्रतिक्रिया कहकर हम सबसे किनारा कर लिया। मेरी शादी उसकी शादी के एक साल पहले हो चुकी थी तो उसकी शादी में किसी कारणवश जाना नहीं हो पाया पर मम्मी ने बताया कि जोड़ी बिल्कुल बेमेल है।लड़के के सामने अरुणिमा बिल्कुल ऐसी लग रही थी मानो राजा के सामने दासी। पर सब जोड़ी का संजोग है। 


शादी से पहले ही महँगे महँगे उपहारों से अरुणिमा के परिवार वालों ने उसके ससुराल वालों का घर भरना शुरू कर दिया था और इसी अभिमान के चलते अरुणिमा का बड़ा भाई दीवाली के त्योहार पर कुछ बदतमीजी भी कर आया था जिसे उन भले मानसों ने बचपना कहकर भुला दिया। पर शादी के बाद अरुणिमा की हरकतों ने उन लोगों का दिल तोड़ दिया। 

धनी परिवार की लड़की होने के अभिमान और काम न करने की आदत की वजह से आए दिन घर में कलेश होने लगा। अंकल बार-बार अरुणिमा के ससुराल जाते। कभी अरुणिमा को समझाते तो कभी उसके ससुराल वालों।पर बात बन ही नहीं पा रही थी। और उस पर जब लड़का अपने दोस्तों की हर तरह से गुण संपन्न, सुंदर पत्नियों को देखता तो कुंठा से भर जाता पर अरुणिमा खुद में सुधार लाने की कोशिश ही नहीं कर रही थी।

 फिर पता चला कि लड़के ने अपना तबादला कंपनी की मारीशस शाखा में करा लिया और अरुणिमा को तलाक का नोटिस भेज दिया। काफी सलाह मशविरे और बातचीत के बाद भी लड़के ने अरूणिमा को अपनाने से इंकार कर दिया। थक हार कर अंकल,अरुणिमा को मायके ले आए।जल्दी ही दोनों का तलाक हो गया।

 लड़के से बात करने पर उसने कहा,”दीदी, मुझे अरुणिमा के रंग रूप से कोई परेशानी नहीं और ना ही मैं उसके पापा के पैसों का भूखा हूँ पर उसका व्यवहार,आलसीपन और खुद को न बदलने की प्रवृत्ति मुझसे बर्दाश्त नहीं होती।” मैं क्या कहती?हमने पहले ही अरुणिमा को समझाया था

पर वह तो हमसे ही नाराज हो गई थी। आज भी वह अपने मायके में ही रह रही है। हमेशा लड़के वाले गलत हो, जरूरी नहीं। कभी-कभी हम अपनी हदों को भूल जाते हैं और उसकी सजा हमें जीवन भर भुगतनी पड़ती है। बहरहाल जो भी हो, हालात जो भी हो, मायका ही बेटियों का आसरा बनता है। यह मेरे जीवन का बहुत ही दर्दनाक किस्सा है   क्योंकि यह मेरे ही मायके में पड़ोस में रहने वाली, हमारे ही ग्रुप की एक सहेली की सच्ची आप बीती है।

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