जिंदगी अजब पहेली है – डॉ  संगीता अग्रवाल  : Moral Stories in Hindi

“अजी सुनती हो!!” सुरेश ने अपनी पत्नी दया को आवाज़ लगाई ..”हमारी पायल के लिए मुकेश बाबू ने अपने सुपुत्र दीपक का रिश्ता भेजा है।”

“क्या? वो ही दीपक , जिसकी पिछले ही साल सरकारी नौकरी लगी थी,उसके लिए तो काफी अमीर घर के रिश्ते आ रहे होंगे…हमारी पायल को कैसे मांग लिया उन्होंने?”

“बेटी किसकी है…?”सुरेश खुश होते बोले,”इतनी सुंदर,सुशील फिर मुकेश जी से मेरी दोस्ती भी तो बहुत पुरानी है।”

चलो!ये खुशखबरी पायल को देते हैं। जल्दी ही बात बढ़ी और एक माह के भीतर ही पायल ,दीपक की दुल्हन बन गई।

पायल एक पढ़ी लिखी,खूबसूरत लड़की थी जिसके अरमान थे कि पढ़ लिख कर कोई नौकरी करेगी लेकिन पिता के आदेश के आगे उसकी एक न चली थी।

“राज करेगी दीपक के साथ महानगर में…वो कोई छोटा शहर नहीं यहां की तरह,पूरा दिन घूमने,फिरने,मौज मस्ती में निकल जायेगा और फिर परिवार बढ़ेगा तो वक्त निकालना भारी हो जायेगा।”

शादी के कुछ दिन वाकई में कैसे कटे,पायल को पता ही नहीं चला,उसके मां बाप उसके चेहरे की चमक से जान जाते वो कितनी खुश है।

दीपक सुबह आठ बजे घर से निकल जाता और शाम को सात साढ़े सात ही घर आ पाता,कोई बीस किलोमीटर की दूरी थी उसकी ऑफिस की घर से।

इतने लंबे दिन में पायल बुरी तरह बोर होने लगी थी,दीपक को फ्रेश होते,खाना खाते नींद आने लगती और पायल सारे दिन की उससे बात करने की भूखी सी हुई रहती,वो उसके साथ होता जरूर पर जैसे होकर भी नहीं होता बल्कि उसके जोरदार खर्राटे पायल का रहा सहा चैन भी छीन लेते।

अक्सर सुबह सवेरे दीपक बिस्तर से उठता तो पायल गायब मिलती,वो चुपचाप बालकनी में खड़ी शून्य निहारती रहती।वो कुछ पूछना भी चाहता तो फीकी सी हंसी से कहती…”मुझे क्या होना है?मौज कर रही हूं मैं तो!”

दीपक समझ नहीं पाता कि इसके दुखों का क्या कारण है?वो पूछता भी…”तुम आजकल पूरी नींद नहीं ले पाती क्या?”

“किसने कहा आपसे? मैं पूरे दिन सोने के अलावा और करती ही क्या हूं?”वो व्यंग से बोलती और दीपक चुप रह जाता।

जहां तक बात दीपक की अच्छी नौकरी और आमदनी की थी,वो तो ठीक ही थे लेकिन ये महानगर था और यहां खर्चे भी उसीकेे अनुरूप ज्यादा थे तो दीपक की कमाई में खींचतान के ही खर्चे चलते उनके।

दीपक अक्सर ये बातें अपने दोस्त आयुष से करता जो एक विज्ञापन कंपनी में  काम करता हूथा,उसने पायल के बारे में जितना दीपक से सुना था,एक दिन वो बोला,”मुझे लगता है भाभी मेरी कंपनी के लिए काम कर सकती हैं,कभी मिलवा उनसे,फिर ये बात करेंगे।”

“वो एकदम घरेलू है,वो कैमरा फेस नहीं कर पाएगी यार!छोड़ ये सब काम उसके बस के नहीं।”दीपक ने टालना चाहा था उसे।

पर आयुष ने जब उससे होने वाली मोटी कमाई का हवाला दिया,बोरियत खत्म होने का फायदा सुझाया तो दीपक को बात जच गई…”अभी तो हमारे कोई औलाद भी नहीं तब तक तो मैनेज कर ही लेगी वो।”

पायल के दुखी मन के रेगिस्तान में ये काम वाली खबर, झरने दिखने की खुशी  के समान प्रतीत हुई।फिर भी उसने दीपक से कहा,”अगर आप खुशी खुशी करने दोगे तभी हां करना नहीं तो मेरी आदत पड़ हो चुकी है घर में रहने की।”

बिल्कुल डार्लिंग! मै पूरी खुशी से कह रहा हूं,तुम चार पैसे घर में ही लाओगी,उससे कुछ अच्छा ही होगा और सबसे बड़ी बात तुम्हारा मन लगने लगेगा।

पायल बिजी हो गई थी,उसकी पहली विज्ञापन फिल्म हिट हो गई थी,फिर तो उसकी कई  छोटी छोटी फिल्में सफल हुई और वो रातों रात स्टार बन गई।

कल तक पायल दुखी थी कि समय कैसे काटे पर आज दीपक दुखी था कि पायल का साथ कैसे मिले?अब पायल,दीपक से भी देर से घर में आ पाती,पहले शूटिंग,कभी पार्टी,कभी मीटिंग  तो कभी कुछ और।

“तुम आजकल खुश नहीं दिखते दीपक?”एक दिन पायल ने पूछा था उससे।तुम कहो तो छोड़ दूं ये काम?”

“नहीं..क्यों छोडोगी…लोग कहेंगे इसका पति इसकी सफलता को पचा नहीं पाया,सारा दोष मुझ पर लगवाओगी?”

“नहीं कह दूंगी,मेरे बस का नहीं और लोगों का क्या है उन्हें जो कहना है वो तो कहेंगे ही।”

“फिर भी…मैं उन मर्दों में नहीं जो अपनी बीबी की उन्नति ने रोड़ा बनते हैं…” दीपक ने शेखी मारते कह दिया।

सच्ची!!पायल ने अविश्वास से कहा।

“और नहीं तो क्या?”दीपक को कहना पड़ रहा था।

बहरहाल पायल निश्चिंत हो गई और काम जारी रखा।उसे लेकिन, उस सुख की अनुभूति कभी नहीं हुई जिसकी उम्मीद में उसने ये काम शुरू किया था।काम करने से रुपए जरूर आए थे उन दोनो के बीच लेकिन दूरियां भी साथ आई थीं।अब वो बात करते तो औपचारिकता से,दीपक हर समय पायल पर शक करता कि कहीं ये मेरी नजरों से दूर रहती है तो किसी से चक्कर तो नहीं चल गया इसका।

इन्हीं सब कारणों से उनके बीच कई बार बिल्कुल बातचीत भी नहीं होती।

एक दिन दीपक जल्दी घर आ गया,वो बहुत निराश था कि पायल तो घर में मिलेगी नहीं इसलिए जा कर बस सो जाऊंगा लेकिन घर पहले से ही खुला हुआ था।जल्दी से अंदर घुसा तो सामने पायल खड़ी थी,वो बहुत सुंदर लग रही थी…हल्की गुलाबी साड़ी और ढीला सा जूडा बनाए वहीं खड़ी मुस्करा रही थी,रसोई से बड़ी भीनी खुशबू आ रही थी पकवानों की।

“आज यहां कैसे?”दीपक ने पूछा।

“मैंने वो जॉब छोड़ दी…”पायल बोली।

“लेकिन क्यों?”आश्चर्य से पूछा उसने।

क्योंकि जिस सुख को तलाशने घर से बाहर निकली थी वो वहां मिला ही नहीं, मै तो और ज्यादा दुखी हो गई यार!!पायल ने कहा तो दीपक ने बढ़कर उसे अपनी बाहों में भर लिया..सच कहा तुमने.. वैसे ये जीवन सुख दुख का संगम ही है लेकिन हम अपने पास प्राप्त सुख को समझ नहीं पाते और जनबूझके ऐसे काम करते हैं जिससे दुखी हो,बस ये जिंदगी फिर एक पहेली बन जाती है  लेकिन अच्छा हुआ समय रहते हमें समझ आ गया…ये कहते हुए वो दोनो हंस पड़े।

समाप्त

डॉ  संगीता अग्रवाल

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!