बेरोजगार तरुण की आगे की कहानी…
कुछ देर यहां वहां फांके करने के बाद…. तरुण घूम कर वापस घर आ गया…. स्वागत दरवाजे पर निशा ने किया…. निशा पड़ोस में रहने वाले अंकल सिंह जी की बेटी थी…” अरे भैया छोटे की शादी है अगले हफ्ते ,जरूर आइएगा… मैं कार्ड देने ही आई थी…” सुनकर तरुण ने एक हल्की हंसी हंसने का प्रयास किया…।
अंदर घुसते घुसते मां की आवाज सुनाई दी… “बताइए छोटे अपने अनुज से भी छोटा है… उसकी भी शादी हो रही है… और एक हमारे बच्चे हैं, पता नहीं कब मेरे घर शहनाई बजेगी…”
तरुण को दरवाजे पर देख कर मां बात पलटकर बोली… “कहां चला गया था…. देर लगा दी आने में…” तरुण बिना कुछ बोले जाने को हुआ तो पापा ने पुकारा…” तरुण! सुनो तुमसे बात करनी है…. देखो, आज निशा कार्ड लेकर आई थी…. कितना छोटा है छोटे….!
पापा की बात बीच में ही काट कर तरुण बोला…” हां पापा पता है…. तो क्या करूं….!
” तुम नहीं करोगे तो कौन करेगा..? बहुत हुआ यह परीक्षा… रिजल्ट… तैयारी… अब देखो कहीं प्राइवेट में…” “अरे भाई, शुरुआत तो करो…. तुम्हारे चक्कर में अनुज की भी जिंदगी सेटल नहीं हो रही…”
तरुण थोड़ा चिढ़ते हुए बोला…” पापा मैंने तो नहीं कहा अनुज की जिंदगी खराब करने…. उसकी शादी कर दीजिए…. उसे सेटल कर दीजिए…. मुझे अभी इन सब बातों में नहीं उलझना…. प्लीज पापा… मैं कुछ दिन और कम से कम 1 साल और कोशिश करना चाहता हूं….अनुज की शादी करवा दीजिए…. आप लोगों को भी कोई दूसरा काम मिलेगा…. मुझे छोड़ दीजिए…….”
इतना कह कर वह तेज कदमों से अपने कमरे में चला गया….।
सुरेश जी और जानकी जी एक दूसरे का मुंह देखते रह गए….!
ऐसा करना भी तो सही नहीं लग रहा था…. क्या कहेंगे लोग….।
लोग क्या कहेंगे…. यही सोच सोच कर तो मध्यम वर्ग की आबादी ना कभी आगे बढ़ पाती है अपनी ठहरी सोच से…. ना दूसरों को बढ़ता देखना चाहती है….!
तरुण कमरे में जाकर खिड़की के पास खड़ा हो गया… इसी खिड़की से तो लता दिखा करती थी… अपनी बालकनी में खड़ी… एक अरसा बीत गया… पर लगता है जैसे कल की ही बात हो…. जब लतिका ने उसके हाथों में अपना हाथ डालकर कस के पकड़ा था… और कहा था… क्यों तरुण… क्या लड़कियों से दोस्ती नहीं कर सकते…! मैं हूं लतिका श्रीवास्तव…. तुम्हारे घर के पास ही रहती हूं…. यार… कभी-कभी खिड़की से झांक भी लिया करो… कभी नजर ही नहीं आते… पता ही नहीं चलता कि घर में कोई रहता भी है….।
तरुण धीरे से हाथ छुड़ा कर बोला… ओके..!
और झेंप कर निकल गया…. लता तो जैसे उसके पीछे ही पड़ गई थी…. दोनों कॉलेज में एक ही साथ एक ही सब्जेक्ट पढ़ रहे थे…. इसलिए रोज का मिलना हो जा रहा था… यह मिलना कब दोस्ती में बदला और कब कुछ उससे आगे बढ़ने लगा पता ही नहीं चला…. अब लता किसी न किसी बहाने घर भी आने लगी थी… मां के साथ कभी गप्पें लड़ाती…. तो कभी अनुज को छेड़ जाती…. बड़ी मस्त, अल्हड़ लड़की थी…!
इसी अल्हड़ लड़की ने एक दिन यूं ही तरुण का हाथ थामे कहा था….” यार तरुण प्राइवेट नौकरी भी कोई नौकरी होती है…. दिनभर कोल्हू के बैल की तरह लगे रहो…. ना घर की चिंता…. ना बीवी की फिक्र…. तुम ऐसी नौकरी कभी मत करना….
तरुण ने भी पूछ लिया और अगर सरकारी नौकरी नहीं मिली तो…. तो…! तो क्या तो मैं नहीं रहने वाली साथ तुम्हारे… तुम दिन भर काम करो और मैं तुम्हारे इंतजार में दिन काटूं…. यह मुझसे नहीं होगा….!
तब तरुण ने कहा था…. लेकिन प्राइवेट नौकरी का तो आजकल बहुत क्रेज है… बढ़िया सैलरी… वर्क आवर भी ज्यादा नहीं रहता…. वह सब पुराने जमाने की बात है…।
उसकी बात पर लता मुंह बनाकर हाथ छुड़ाते हुए बोली…” अच्छी बात है…. तो कर लो जो करना है… पर मैं तो किसी सरकारी नौकरी वाले से ही शादी करूंगी…. और ठाठ की जिंदगी बिताऊंगी….!
आज से करीब दस ग्यारह साल पहले की यह बात…. तरुण के दिमाग में इस कदर बैठ गई कि वह इसी एक बात के पीछे बावला हो गया था……!
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स्वलिखित
रश्मि झा मिश्रा