बेटा है नही था – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

विवेक अपने पिता का पहला श्राद्ध बहुत धूमधाम से कर रहा था । सभी नाते रिश्तेदारों को बुलाया था पिता की पसंद के भोजन से घर आंगन महक रहा था । पंडितों की पूरी जमात अपने आसन पर पधार चुकी थी । विभिन्न किस्म के पकवान उन्हे परोसे जा रहे थे और विवेक अपनी पत्नी चारु के साथ हाथ जोड़ सबको अच्छे से भोजन ग्रहण करने को बोल रहा था जिससे स्वर्ग मे बैठे उसके पिता प्रसन्न हो ।

” पंडित जी और लीजिये ना अगर आप पेट भर नही।खायेंगे तो स्वर्ग मे बैठे पिताजी कैसे तृप्त होंगे !” विवेक पंडित जी को पूड़ी परोसते हुए बोला।

” जुग जुग जियो बेटा तुम्हारे जैसा कुलदीपक अगर घर मे है तो घर के बूढ़े ना यहाँ अतृप्त रह सकते है ना स्वर्ग मे !” पंडितजी आशीर्वाद देते हुए बोले । पंडित जी की बात सुन विवेक की छाती फूल कर कुप्पा हो गई। सभी लोग विवेक और चारु की तारीफ कर रहे थे …ईश्वर ऐसा बेटा बहू सबको दे जिन्हे पिता की मृत्यु के बाद भी उनकी इतनी चिंता है । 

उधर स्वर्ग मे एक दम से ठहाकों की आवाज़ गूँजी…

“हाहाहाहा !”

” अरे क्यो हँस रहे हो इस तरह से अचानक !” विवेक के पिता की आत्मा से एक दूसरी आत्मा ने पूछा ( चुंकि विवेक के पिता दिवाकर एक धार्मिक प्रवृति के इंसान थे उन्होंने बहुत अच्छे अच्छे काम किये थे इसलिए उन्हे जन्म मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर ईश्वर के चरणों मे जगह दी गई थी । 

” हंस रहा हूँ ये देख कि मानव कितना स्वार्थी होता है तारीफ़ पाने के लिए माता पिता की मृत्यु बाद छप्पन भोग बनवाता है पर उन्ही के जीतेजी चैन की रोटी तक देना जरूरी नही समझता इंसान !” दिवाकर की आत्मा बोली।

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” ये तो तुम्हारा बेटा है ना इसके लिए तुम ऐसा क्यो बोल रहे हो देखो कितने अच्छे से तुम्हारे श्राद्ध की रस्म कर रहा है वो  !!” दूसरी आत्मा ने कहा।

” बेटा है नही था …अब तो मैं इन बंधनों से मुक्त हो चुका हूँ । पर जब तक बेटा रहा इसके राज मे चैन की रोटी भी नही मिली मुझे कभी और अब देखो छप्पन भोग बनवा रखे है किसके लिए …मेरी आत्मा को तृप्त करने को ..अरे जिस पिता को तुम जीतेजी तृप्त नही कर पाये उसे मरने के बाद तृप्त कैसे कर लोगे । अब तो तुम सिर्फ दिखावा कर रहे हो दिखावा !” दिवाकर की आत्मा कड़वाहट के साथ बोली।

” ना ना ऐसा ना कहो श्राद्ध तो हमारे समाज का हिस्सा है जिसे हर बेटे को करना ही होता है । कोई उसे धूमधाम से करता है कोई घर मे पर करते सभी बच्चे है !” दूसरी आत्मा बोली।

” श्राद्ध का मतलब होता है मृत्यु उपरान्त माता पिता के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाहन करने को तुम्हे कुछ दिन दिये जाते है कहते है उस वक्त पितृ धरती पर जाते है । पर जिस बेटे ने जीतेजी कर्तव्य नही निभाया , बहू के कहने पर चला उसके घर पितृ जाएगे भोजन करने ? नही ना बहू को मैं कुछ नही कहूंगा वो दूसरे घर से आई थी

किन्तु ये तो मेरा खून था इसने देखा कितने संघर्षो से इसे बड़ा अफसर बनाया । लेकिन जब पिता इस पर आश्रित हुए तो इसको उनकी रोटी भारी पड़ने लगी। कितनी बार बाहर चले जाते थे दोनो मैं बूढा दिन की रोटी पानी मे भिगो खाता था । रविवार को सब अच्छे खाने का लुत्फ़ उठाते थे

और मैं कमरे मे पड़ा बाट देखता था कोई मुझे भी बुलाये पर मेरे हिस्से चाय बिस्कुट आते थे । कोई मेरे पास बैठना तक पसंद नही करता था मुझे पता है कैसे जिया हूँ मैं इसके घर । फिर अब ये ढकोसला क्यो क्या अब इसे मेरा आशीर्वाद मिल जायेगा इन सबसे !” दिवाकर जी बोले ।

” ओह बहुत बुरा हुआ यार तेरे साथ मैं बिन औलाद था हमेशा ईश्वर से शिकायत रही पर अगर औलाद ऐसी होती है तो अच्छा है मैं बिन औलाद ही रहा कम से कम कोई ढकोसला तो नही कर रहा मेरे नाम से !” दूसरी आत्मा कुछ सोचते हुए बोली। 

” यार ऐसी औलादे क्यो भूल जाती है जिंदगी सुख दुख का संगम है आज तुम बेटे हो सुखी हो हर तरह से पर कल तुम्हे भी हमारी जगह आना है तुम्हारा किया तुम्हे पाना है जो दुख तुमने अपने जन्मदाताओं को दिया वो तुम्हे भी मिलना है । ” दिवाकर जी गुस्से से बोले।

” चल यार बेटा है तेरा भूल जा सब ऐसा मत बोल !” दूसरी आत्मा ने समझाया ।

” बेटा है नही था … और वो जीतेजी ये बात भूल गया तो मैं तो इन बंधनों से मुक्त हूँ । अरे मत करो माँ बाप के मरने के बाद श्राद्ध मत बनवाओ छप्पन भोग बस उनके जीते जी इज्जत की दो रोटी दे दो वो खुद ब खुद तृप्त होकर धरती से जाएगे और स्वर्ग से भी तुम्हे आशीर्वाद देंगे । पर नही कुछ औलादों को माँ

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बाप जीतेजी याद नही आते बाद मे दिखावा करना है आज ये दिखावा कर रहे कल इनके बच्चे भी इनसे सीख यही करेंगे पर तब ये यहाँ बैठे शिकायत नही कर पाएंगे क्योकि जो बोया वही काटेंगे ये !” दिवाकर जी ने ये बोल मुंह फेर लिया । 

दूसरी आत्मा समझ गई चोट कही गहरी लगी है वरना कोई पिता ऐसा नही बोलता अपने बच्चो को मरने के बाद भी नही ।…..नीचे धरती पर आडम्बर जारी था पर जिस पिता ने बेटे से मुंह ही फेर लिया क्या उसे आशीर्वाद मिलेगा ? 

दोस्तों क्या राय है आपकी ? सब बेटे एक से नही होते मैं जानती हूँ पर मैने ऐसे भी बेटे देखे है जो पिता के अंतिम समय डॉक्टर बुलाने की जगह उनसे चेक पर अंगूठा लगवा रहे होते है । ऐसे भी बेटे होते है जिनको माता पिता की दो रोटी भारी पड़ती है क्या ऐसे बेटों को श्राद्ध का अधिकार है ?

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

#सुख दुख का संगम

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