मायके में आपके रिश्ते बने होते हैं पर ससुराल में बनाने पड़ते हैं – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

सौरभ रिचा के साथ कॉफी पीने आया था । कॉफी पीना तो एक बहाना ही है वह रिचा के प्रश्नों का जवाब देने वाला था ।

उसने गहरी साँस ली और कहा रिचा मैं तुमसे शादी करूँ तो कैसे करूँ ? तुम मेरी माँ की ज़ुबान को नहीं जानती हो वह इतनी तीखी है कि उनकी बातें दिल के आरपार चली जाती हैं । मुझे कभी-कभी लगता है कि मैं ऐसे घर में अकेला लड़का बनकर क्यों पैदा हुआ हूँ ।

तुम नहीं जानती हो रिचा मेरी माँ के स्वभाव के कारण पहचान वाले कोई भी अपनी लड़की देना तो दूर किसी को हमारे यहाँ लड़की ब्याहने की सलाह भी नहीं देते थे ।

मेरे खुद के मामा भी माँ को रिश्ते बताने के लिए डरते हैं । मैंने भी सोच लिया था कि मैं शादी नहीं करूँगा ।

तुम जो मुझे मिल गई हो ना तो मैं तुम्हें छोड़ सकता हूँ और ना ही तुम्हें उस नर्क में ढकेल सकता हूँ ।

रिचा ने कहा कि क्या है सौरभ हमारे ऑफिस में जब बॉस हमें डाँटता है तो चुपचाप उसकी डाँट सुनकर भी हम अपना काम नहीं करते हैं क्या ? उसकी डाँट को हम पिज़्ज़ा बर्गर की तरह लेकर चेहरे पर हँसी लाते हुए काम कर लेते हैं । फिर यह तो माँ हैं । उनकी बातों का बुरा मानना क्यों?

एक बात बताऊँ सौरभ तुम जितना मुझे प्यार करते हो उससे ज़्यादा मैं तुम से प्यार करती हूँ ।

जब मैं छोटी थी उसी समय मेरे माता-पिता की मृत्यु एक बहुत बड़े हादसे में हो गई थी ।

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दादी के कारण बड़े पिताजी मुझे उनके साथ अपने घर ले गए थे । तुम नहीं जानते हो सौरभ वहाँ दीदी भाई और बड़ी माँ ने मेरी ज़िंदगी को नरक बना दिया था । मैं बहुत रोती थी एक बार तो मैंने घर से भागने की कोशिश भी की थी ।

उन सबसे बाहर निकलने का मूलमंत्र मुझे मेरी दादी ने दिया था ।

वह क्या है अभी बोलने की ज़रूरत नहीं है । तुम मुझसे शादी करलो मैं सब सँभाल लूँगी । इसका ही परिणाम यह निकला कि दुल्हन की तरह सजी हुई कार गेट के सामने आकर रूकी थी ।

उसी समय किसी ने कार का दरवाज़ा खोला कि नहीं एक बादल के गरजने की जैसी बुलंद आवाज़ सुनाई दी थी कि जल्दी से नीचे उतरो शुभ मुहर्त बीत जाएगा ।

सौरभ और रिचा दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़कर कार से बाहर आए । सौरभ ने रिचा की तरफ़ देखते हुए आँखों से ही कहा देखा शुरू हो गया है । उसने अपनी काजल लगी खूबसूरत आँखों से सौरभ की तरफ़ नजर घुमा कर हाथ को दबाया कि मैं हूँ ना ।

दोनों ऐसे ही हाथ पकड़कर हॉल में सोफे पर आकर बैठ गए थे । सुभद्रा की नज़र उन दोनों के पकड़े हुए हाथों पर पड़ी । उसे यह बात अच्छी नहीं लगी ।

उसने सौरभ के बगल में बैठते हुए रिचा से कहा कि मेरे बेटे को अपनी पल्लू से बाद में बाँध लेना अभी तो उसका हाथ छोड़ो कहते हुए सौरभ तुम अपने कमरे में जाकर आराम करो शादी के रस्मों में बहुत थक गए हो ।

किसी ने कहा कि अरे दीदी दोनों को चाय पिला दो फिर सौरभ चला जाएगा।

सुभद्रा ने कहा कि अगर मैं कुछ कहूँ तो तुम लोगों को बुरा लगता है । पति पत्नी बाहर से आते हैं तो पत्नी सीधे रसोई में जाकर चाय बनाती है जबकि पति बैठक में बैठकर हाथ पैर पसारकर टी वी देखते रहता है । इसका मतलब क्या है पत्नी भी थक गई है कहते हुए बैठी तो नहीं रहती है।

सौरभ ने रिचा की तरफ़ देखते हुए कहा कि मैंने कहा था ना । रिचा ने उसका हाथ को धीरे से दबाया और आँखों से ही सांत्वना देते हुए कहा कि अभी आप गए तो हम अलग तो नहीं हो जाएँगे ना । सुभद्रा देवी ने ज़ोर देकर कहा कि सौरभ तुम बहुत थक गए होगे अब अपने कमरे में जाकर आराम करो ।

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उसी समय किसी ने कहा कि अरे दीदी उन्हें चाय तो पीने दो। रिचा भी थक गई होगी यह बात किसी को भी बाहर बोलने की हिम्मत नहीं हुई थी । सुभद्रा ने कहा कि कोई ज़रूरत नहीं है सौरभ अपने कमरे में ही चाय पी लेगा ।

वैसे भी अभी मुझे नई बहू को घर दिखाना है उसके नहाकर आते ही भगवान के सामने दिया जलाना यह सब भी तो करना है फिर आप ही लोग मुझे ताने दोगे कि मैंने बहू को घर नहीं दिखाया है ।

सब लोगों ने अब अपना मुँह बंद करना ही ठीक है समझ गए थे । सौरभ कमरे में जाने के लिए सोफे से उठकर खड़ा हुआ था । रिचा ने भी उसका हाथ छोड़ दिया । सास अपनी तरफ़ देखते हुए पाकर हँसते हुए उनसे पूछा कि सासू माँ मैं चाय पीकर नहा लूँ या नहाकर चाय पियूँ ।

सुभद्रा बहू को हँसते हुए बातें करते देख सोचने लगी थी कि कैसी लड़की है यह मैंने इतनी बातें सुनाई फिर भी हँस रही है ।

 पहली बार बहू के प्रश्न का उत्तर देने में उन्हें समय लगा था । जिसे देख कर सौरभ को रिचा पर भरोसा हो गया । रिचा को प्यार से एक नज़र देख कर वह अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया था ।

सुभद्रा को अपनी बहू की कोई भी बात समझ में नहीं आ रहा था ।

वह सोच रही थी कि मुझे किसी भी तरह से उसे डाँटने का मौका ही नहीं देती है । मैं सुबह उठकर देखती हूँ तो कभी योगा करते हुए दिखती है और कभी योगा ख़त्म करके नहा भी लेती थी ।

उसकी शादी हुए अभी जुम्मा भी नहीं हुआ था परंतु एक पुरानी बहू के समान रसोई में आकर सारे कामकाज को सँभाल लिया था । सबकी पसंद पूछकर उसे बनाकर देती थी ।

वह कहाँ से लाई कैसे लाई थी पता नहीं परंतु एक पच्चीस छब्बीस साल की लड़की को हेल्पर बनाकर ले आई।

उसकी ही सहायता से नाश्ता और भोजन क्षणों में बना देती थी । लंच टेबल पर रखकर अपने पति के साथ ऑफिस चली जाती थी । वही हेल्पर शाम को हम पति पत्नी को चाय बनाकर देती थी और रात के लिए रोटी सब्ज़ी बनाकर हाट बॉक्स में रख कर चल देती थी ।

एक दिन शाम को जब हेल्पर जिसका नाम पायल था जा रही थी तो रिचा ने उसे बुलाया और कहा कि आज से तुम रोज़ माँ के पैरों पर यह आइंटमेंट दो बार लगा दिया करो ।

मेरी तरफ़ मुड़कर कहा कि माँ आपकी एड़ियाँ बहुत फट गई हैं । आपको शुगर है तो पैरों पर ज़्यादा ध्यान देना पड़ता है इसलिए यह दवाई दिन में दो बार लगवाइए ।

उसकी बातों को सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि पैरों के दर्द को मैं ही झेलती थी ।

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उसके बाद भी वह चुप नहीं बैठी ब्यूटी शियन को बुलाकर पेडी केयर भी करवाया । अब मेरे पैर बहुत अच्छे कोमल हो गए थे और पैरों का दर्द भी ग़ायब हो गया था ।

इतना सब कुछ करने के बाद भी मैं उसे कुछ ना कुछ कहती थी परंतु उस लड़की के चेहरे की हँसी वैसे ही बरकरार रहती थी ।

उसको मैंने ग़ुस्से में कभी देखा ही नहीं था । ऊपर से मेरे पति और मेरा बेटा मुझे ग़ुस्से से देखते रहते थे। जिसकी वजह से मैं उसे कुछ और कह भी नहीं पाती थी। जहाँ तक हो सके मैं चुप रहने लगी ।

एक दिन रिचा मायका जाने के लिए तैयार हो गई थी ।

मैंने उससे कहा देखो बहू तुम मायके जा रही हो यहाँ ससुराल की बातें मायके में मत कहना हम लोग इज़्ज़त से जीने वाले लोग हैं ।

रिचा ने कहा कि माँ मेरी एक आदत यह है कि मैं बातों को जब की तब भूल जाती हूँ । मुझे शांति से रहने की आदत है इसलिए आप बेफिक्र रहिए ।

मायके में बताने के लिए मेरे दिमाग़ में कुछ भी नहीं रहता है और ना ही मुझे कोई बताने की ज़रूरत होती है । उसकी बातों को सुनकर मेरे पति बेटा मुझे घूरने लगे और मुझे लगा कि जैसे उसने चप्पल से मुझे एक चपत दी है ।

मैं सोच रही थी कि यह लड़की कुछ बोलती क्यों नहीं है मैं अकेले ही बड़बड़ाती रहती हूँ उसे मुझ पर ग़ुस्सा नहीं आता है या उसमें शर्म हया ही नहीं है । मेरी बातों का जवाब नहीं देती है और ना ही मुझसे लड़ती है ।

मेरे बेटे के बराबर पढ़ी लिखी है नौकरी करती है सुंदर है । मेरे बेटे ने उससे प्यार करके शादी की है । आज भी अगर वह मेरे बेटे से कहे कि चलो हम दोनों अलग जाकर रहेंगे तो मेरा बेटा तो कूदते फांदते उसके पीछे चला जाएगा ।

इन हालातों के बीच वह एक बात भूल गई थी कि उसका बातें करना कम हो गया है । बाकी तीनों ने इस बात पर गौर कर लिया था ।

एक रविवार को पिछवाड़े में रिचा की आवाज़ें सुनाई दे रही थी । तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस तरह की बात कहने की चल निकलजा मेरे घर से फिर अपना चेहरा मुझे मत दिखाना ।

सुभद्रा भाग कर पिछवाड़े में पहुँची तो देखा कि कामवाली बाई सर झुकाए हुए खड़ी थी रिचा ग़ुस्से से उसे डाँट रही थी । उसके चेहरे को ग़ुस्से से भरे मैंने देखा फिर उससे पूछा क्या हुआ है रिचा ?

उसने कहा देखिए माँ मैंने आँगन को झाड़ने के लिए कहा तो कहती है कि मुझे क्या करना है यह अच्छे से मालूम है । आपकी सीख की ज़रूरत नहीं है ।

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हमारे यहाँ पैसे लेकर काम करने वाली औरत उसको इतना घमंड मैं यह पसंद नहीं करती हूँ । कहते हुए उससे कहा कि जा अब तुम मेरे सामने नहीं आना समझ गई है कहते हुए वहाँ से चली गई ।

मैं उसके पीछे चुपचाप चलते हुए सोचने लगी थी कि कामवाली बाई में इतनी हिम्मत मेरे कारण ही आई है । मैंने ही कई बार रिचा को उसके सामने नीचा दिखाया था ।

एक बात मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि कामवाली बाई को इतनी बातें सुनाने वाली रिचा जब मैं उसे इतनी खरी-खोटी सुनाती हूँ फिर भी अपना मुँह बंद रखती है क्यों?

मैं सास हूँ तो मेरी इज़्ज़त को ध्यान में रखते हुए या फिर मेरे बेटे ने धमकी दी होगी कि मेरी माँ को कुछ नहीं कहना है । क्या हो सकता है ? आज रविवार है आज ही वह फ़ुरसत से मिलेगी इसलिए उससे पूछ ही लिया जाए कि इतनी सहनशक्ति उसे कहाँ से मिली है ।

उनकी बातों को सुनकर रिचा हँसते हुए कहती है मेरी सहनशक्ति का कारण मेरी दादी है सासुमाँ । मैं उनका यह एहसान कभी नहीं चुका सकती हूँ ।

सासु माँ जब मेरे माता-पिता का एक बहुत बड़े हादसे में मृत्यु हो गई थी उस समय मेरी उम्र दस साल ही थी । दादी ने बड़े पिताजी से बात की और मुझे उनके घर पर ले गई थी ।

मेरे पिताजी के पास बहुत पैसा था साथ ही उनकी मृत्यु हादसे में होने के कारण इंन्श्यूरेंस का भी पैसा लाखों में आया था । दादी के कहने पर वह सारा पैसा मेरी शादी और पढ़ाई के लिए जमा करके बड़े पिताजी ही मेरे खाने पीने का खर्चा उठा रहे थे।

 यह बात मेरी बड़ी माँ को बिलकुल हज़म नहीं हो रहा था ।

मेरी बड़ी माँ भाई और बहन मुझे एक क्षण बैठने नहीं देते थे । इतना काम करने के बाद भी बातें सुनाते रहते थे। उनकी बातों को सुनना मेरे लिए असहनीय हो रहा था । उनसे कई बार लड़ाई करती थी तो कभी-कभी रोते हुए बिना खाना खाए सो जाती थी ।

एक दिन रात को किसी को बिना बताए घर से भाग रही थी कि पकडी गई थी ।

मेरी दादी ने ही मेरे मन में हिम्मत भरीं थी ।

उन्होंने कहा कि देख रिचा इस जीवन में तुम्हें कई ऐसे लोग मिलेंगे जो तुम्हें कई तरह से बातें सुनाकर तुम्हारे दिल को दुखाने की कोशिश करेंगे।

 उनकी बातों को सुनकर तुम रोना या खाना नहीं खाती हो ना इसका मतलब है कि वे अपने मक़सद में कामयाब हो गए हैं । वे इस काम में जीत गए हैं।

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तुम्हें शांति जैसे मूलमंत्र को अपनाना है । वे तुम्हें खरी खोटी सुना रहे हैं तो भी तुम उनकी बातों पर ध्यान नहीं देना । तुमने कुछ गलत किया ही नहीं है तो डर किस बात का है ।

एक बात याद करो ब्रिटिश वालों को भगाने के लिए गाँधी जी ने भी अहिंसा का हथियार ही चुना था । लोगों पर ग़ुस्सा करना चिल्लाना इन हरकतों से तुम्हें जो कामयाबी हासिल नहीं होगी वह तुम्हें चुप रहने पर मिलेगी ।

कल को तुम्हें ऑफिस में ससुराल में कई बातें सुननी पड़ेंगी । उनकी बातों को अनसुना कर दोगी तो ज़िंदगी में बहुत आगे बढ़ोगी ।

देखो बेटे रिश्तों को तोड़ना आसान है उन्हें बनाना ही मुश्किल है ।

रिचा आज नहीं तो कल तुम्हें ससुराल भी जाना पड़ेगा । मायके में तो रिश्ते पैदा होते ही बन जाते हैं परंतु ससुराल में रिश्तों को तुम्हें ही बनाना पड़ेगा । घर में बातों को बढ़ावा देकर अकेले जीने में क्या रखा है । आजकल के बच्चे अपनों को छोड़कर अलग गृहस्थी बसा रहे हैं । उससे उन्हें क्या मिल रहा है कुछ नहीं?

मेरी दादी ने कहा था कि तुम्हारे व्यवहार से ही सामने वालों में भी परिवर्तन आता है । उनके कहे अनुसार चलने पर ही आज मेरी बड़ी माँ भाई बहन सब मुझे चाहते हैं । वह तो मेरा मायका है ।

माँ आप मेरे पति के माता-पिता हैं मेरा भविष्य आपके साथ है । कल मेरे बच्चों को दादा दादी का प्यार मिले यह मेरी इच्छा है ।

आप बड़ी हैं आप कुछ भी कहें मुझे बुरा नहीं लगता है ।

सुभद्रा देवी के मुँह से कोई बात नहीं निकली । उसकी आँखों से आँसू की धारा बहने लगी । उन्होंने कहा कि तुम्हारी दादी की बातें तो गीतोपदेश के जैसे हैं । मैं जान गई हूँ कि अपने पति और बच्चों का साथ पाने के लिए अपनी ज़ुबान को लगाम कसने की ज़रूरत है ।

वह खड़ी होकर रिचा को गले लगा लेती है । कमरे के बाहर खड़े होकर सास बहू की बातों को सुन रहा सौरभ भी भागकर अंदर आकर माँ और रिचा को गले लगा लेता है ।

के कामेश्वरी

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