सौरभ तुम्हारी मम्मी का फ़ोन है पर ये मुझे फ़ोन क्यों कर रही है? कहीं तुमने बता तो नहीं दिया कि मैं तुमसे दो हफ़्ते पहले इंडिया जा रही हूँ ।
फ़ोन तो उठा लो, मैंने कुछ नहीं बताया….क्या मम्मी तुम्हें फ़ोन नहीं कर सकती…..लो फ़ोन कट गया ।
अच्छा हुआ, कट गया । मैंने क्या बात करनी थी उनसे ? प्लीज़ अपने घर मत बताना कि मैं तुमसे पहले दीक्षा की शादी के लिए इंडिया जा रही हूँ ।
दिशा, क्या तुम घर पर मिलने भी नहीं जाओगी ? मम्मी-पापा और जिया को कैसा लगेगा? ….. ये लो फिर से मम्मी का फ़ोन आ गया । मैं उठा लेता हूँ, पकड़ाना ज़रा ।
हाँ मम्मी…. असल में वो दिशा का फ़ोन चार्जिंग पर था और हम दूसरे रूम में बैठे थे । बताइए, मैं कनवे कर दूँगा ….. अच्छा, उसी से काम है। ठीक है…..जैसे ही वो फ़्री होगी , आपसे बात कर लेगी ।
रमा का बेटा सौरभ और बहू दिशा कनाडा में रहते थे । दो साल हो गए थे शादी को पर न जाने क्यूँ …. दिशा अभी तक ससुराल को अपना नहीं सकी थी । कितने मन से बहू लेकर आई थी, सोचा था कि कुछ दिनों तक हमारे साथ रहेंगी । पर संयोग था कि दिशा को मँगनी के चार- पाँच दिन दिन बाद कनाडा जाने की परमिशन मिल गई । और शादी के दस दिन बाद बेटा- बहू चले गए ।
रमा , उनके पति अजित तथा बेटी जिया हर रोज़ वीडियो कॉल करते पर दिशा नमस्ते से आगे ही नहीं बढ़ी । अजित ने तो इस बात को अधिक गंभीरता से नहीं लिया पर दोनों माँ- बेटी दिशा से बात करने को तरसती ही रह गई ।
दिशा , मम्मी तुमसे बात करना चाहती है तो फ़ोन कर लेना ।
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सौरभ एक- दो दिन तो याद दिलाता रहा पर दिशा ने अनसुना कर दिया । जब कई दिन तक दिशा ने रमा से बात नहीं की तो वह समझ गई कि बहू के मन में कोई बात तो ज़रूर है वरना बिना कारण कोई ऐसा व्यवहार क्यों करेगा ।
उसने चार दिन के बाद सौरभ से कहा—-
बेटा, दीक्षा की शादी के लिए तुम दोनों कब आ रहे हो, देखो थोड़ी ज़्यादा छुट्टी लेकर आना , ढाई साल हो गए तुम्हें गए , हम तो बहू को जी भरकर देख भी नहीं पाए ।
यह सुनते ही सौरभ को चिंता हो गई । दिशा तो घर का नाम भी नहीं लेना चाहती और मम्मी उसके साथ समय बिताना चाहती है। सौरभ ने एक- दो बार नाराज़गी का कारण भी जानना चाहा पर दिशा ने हमेशा बात टाल दी । मानो वह उस विषय पर चर्चा ही नहीं करना चाहती थी ।
—- दिशा , बिना बताए नाराज़गी कैसे दूर होगी , कुछ कहो तो..
मैं क्यों नाराज़ होने लगी किसी से … पर तुम्हारी मम्मी एकदम टीपिकल हैं ।
नहीं नहीं… तुम्हें कोई ग़लतफ़हमी हुई है, मम्मी तो बहुत सुलझी और एडजेसटेबल हैं ।
तभी तो मैं कोई बात नहीं करना चाहती क्योंकि तुम्हें अपनी मम्मी से परफ़ेक्ट कोई लगता ही नहीं….
आज जब सौरभ ने मम्मी के कहे शब्द दिशा के सामने दोहराए तो बुरा सा मुँह बनाकर बोली—-
मैं इतनी छुट्टियाँ एडजेसट नहीं कर पाऊँगी….. फिर मैं अपनी बहन की शादी अटेंड करने जा रही हूँ, तुमसे दो हफ़्ते पहले जा रही हूँ । मुझे उसी पर फ़ोकस करने दो ।
पर दिशा, मम्मी तो अपनी बहुरानी के साथ वक़्त बिताना चाहती है ।
प्लीज़, अभी मेरा मूड ख़राब मत करो ….. सोचेंगे बाद में ।
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दिशा की बुकिंग हो चुकी है, इस बात की जानकारी सौरभ के परिवार को नहीं थी । एक दिन रमा ने ऐसे समय फ़ोन किया जब दिशा फ़ोन पर बात न करने का कोई बहाना बना ही नहीं सकी ।
—-नमस्ते आँटी , कैसी है आप ? दरअसल इतनी बिजी रहती हूँ कि….
खुश रह , कब आ रहे हो तुम दोनों? ख़ैर अभी तो शादी में छह महीने हैं पर मैं ये कह रही थी कि मेहमानों की तरह मत आना । कम से कम डेढ़ दो महीने की छुट्टी लेकर आना …. शादी से पहले सैंकड़ों काम होते हैं । तुम दोनों के आ जाने से भाईसाहब और भाभीजी को सहारा और तसल्ली रहेगी । अच्छा….. मैं ये पूछ रही थी कि मैं दीक्षा को एक सेट देना चाहती हूँ । मेरे पास पुराने डिज़ाइन का सेट है, जिया कह रही है कि उसे तुड़वा कर हल्का सेट बनवा दूँ पर मैं ज्यों का त्यों देना चाहती हूँ । तुम दीक्षा की च्वाइस के बारे में बताओ ….
पर आप इतना महँगा सोने का सेट क्यों दोगी ?
अरे बेटा , एक ही तो बहन है तुम्हारी । भगवान की दया से किसी चीज़ की कमी थोड़े ही हैं, खूब अच्छे से…. जो भी देना चाहती हो … देना । जब तक तुम आओगी, मैं सोच रही ये काम कर लूँ , फिर जल्दबाज़ी में…. ना तो सुनार बनाता और बना- बनाया मेरी समझ में नहीं आता । चलो , सोचकर या दीक्षा से बात करके बता देना ।
रमा ने तो सामान्य तरीक़े से बात की और फ़ोन रख दिया पर दिशा तुरंत सौरभ से बोली —-
ये तुम्हारी मम्मी ने क्या नई नौटंकी शुरू कर दी? वो मेरी बहन की शादी में सोने का सेट देकर क्या जताना चाहती है? अरे , मैं तो दूँगी पर ये किस मतलब से इतना बड़ा गिफ़्ट देना चाहती है ताकि कल को अपनी बेटी की शादी में मेरी मम्मी पर प्रेशर बना सकें ।
दिशा, क्या अनाप-शनाप बोलती रहती हो , यार ! तुम पढ़ी-लिखी हो , कैसी बातें करती हो ? तुम इस बारे में मम्मी से खुलकर बात कर लो । मुझे बस इतना पता है कि मैं भी अपनी बुकिंग तुम्हारे साथ ही करवा रहा हूँ । मम्मी सही कह रही है कि अंकल- आँटी को हमारे जाने से अच्छा लगेगा ।
भाई ! पापा पूछ रहे हैं कि हवाई अड्डे से घर आओगे या महिपालपुर जाओगे ?
हाँ जिया , दो बजे की लैंडिंग है तो वहीं चले जाएँगे, दीक्षा आ जाएगी लेने । पापा को रात में परेशानी होगी और काफ़ी दूर भी पड़ेगा । ….. और सुनो , मम्मी से कहना कि चिंता ना करें मैं टाइम टू टाइम मैसेज करता रहूँगा ।
बहू- बेटे के सकुशल पहुँचने का मैसेज पढकर रमा और अजित को तसल्ली हो गई ।
—- रमा , अब बार-बार फ़ोन करके यह मत जराहना कि सौरभ को हमारे पास आना चाहिए । अपने हिसाब से आ जाएँगे क्योंकि इस समय वहाँ बच्चों की ज़रूरत है ।
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मम्मी, मैं रात तक पहुँचूँगा । सुबह चार साढ़े चार के क़रीब तो सोए , अभी उठे हैं, फिर शाम की चाय पर दीक्षा की ससुराल वाले आ रहे हैं । उनके जाने …..
अरे बेटा, कल सुबह आ जाना …. कहाँ रात में फिरेगा …. जगह-जगह फ्लाई ओवर बन गए हैं….. कभी कहीं भटक जाए। मैंने भी यह सोचकर फ़ोन नहीं किया कि तुम सोए होंगे ।
ख़ैर …. माँ के रोकने के बावजूद भी सौरभ अगले दिन अकेला ही घर पहुँचा । बहू को न देखकर रमा, अजित और जिया का मुँह उतर गया पर रमा ने वातावरण को सामान्य रखने की कोशिश करते हुए कहा——-
कोई बात नहीं……फिर आ जाएगी । ढाई साल बाद आई है ।
सगाई वाले दिन मेहमानों के जाने के बाद सौरभ ने कहा——
दिशा , चलो तुम भी, एक बार पूरा परिवार साथ बैठकर शादी में लेने- देने के बारे में भी डिस्कस कर लेगा और तुम अपना लँहगा मँगवा रही थी, उसे भी ले आना ……
छोड़ो लहँगा, मैंने नया ख़रीद लिया है और मुझे अपनी बहन को क्या देना है, क्यों तुम्हारे घरवालों के साथ डिस्कस करूँगी?
तभी दिशा के मम्मी- पापा सौरभ के माता-पिता के साथ बाहर निकले और बोले ——
दिशा, आज तुम भी सौरभ के साथ चली जाओ । अब तो कोई ज़्यादा काम बचा नहीं है । तुम्हारी बुआ और मौसी भी आ चुकी हैं । दो- तीन दिन आराम करके फ्रैश हो जाओ । जिस दिन से आए हो , पूरा- पूरा दिन काम करते रहे । तुम बड़ी क़िस्मत वाली हो जो सौरभ जैसा लड़का जीवनसाथी के रूप में मिला और इसका सारा क्रेडिट तुम्हारे सास-ससुर को जाता है । कितने सुलझे हुए लोग हैं, इतने दिनों में एक बार भी तुम्हें भेजने के लिए नहीं कहा ….बेटा , तुम शादी के बाद पहली बार आई हो …… उनका भी दिल करता होगा कि तुम उनके पास आओ , रहो । मायके में तो आपके रिश्ते बने होते हैं पर ससुराल में बनाने पड़ते हैं । तुम्हें क्या पता बस एक बार यूँ ही , कह दिया था कि पता नहीं, दीक्षा की शादी की भागदौड़ कैसे होगी?
—- कैसी बात करते हो अहलावत जी , हम तो यहाँ अपना ही घर समझते हैं । जब दिशा हमारी बेटी है तो सौरभ भी तो आपका बेटा हुआ ना ? देख लो बेटा , अगर कोई काम न हो तो चलो , घूम आओ , नहीं तो शादी से निपट कर चलना ।
—— आ रही हूँ । ज़रा बैग ले आऊँ । ठीक है पापा , कल तो आ जाएँगे ।
—- आराम से आना , शादी की रस्में चार दिन बाद शुरू होंगी ।
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पूरे रास्ते दिशा यही सोचती रही कि—
अगर सौरभ भी मेरे जैसा बर्ताव करता तो क्या वे दोनों बहनें इतनी आसानी से और सही समय पर सारा कार्य निपटा पाती …. वह खुद ढाई साल के अंतराल में बहुत सी बातें भूल चुकी है। मम्मी- पापा दोनों अस्थमा के मरीज़ हैं । ज़रा सी देर में साँस उखड़ने लगती है ।
घर पहुँच कर जब गाड़ी रुकी तो पुरानी दिशा कहीं पीछे छूट गई थी । अपने ससुर को बड़ा सूटकेस उतारते देख वह आगे आई और बोली——
अंक…..पापा आप इसे छोड़ दीजिए, सौरभ उठा लेंगे । आप यह बैग पकड़िए । जिया ! मम्मी ने जो बैग पकड़ा है, वो काफ़ी भारी है , चलो उसे हम दोनों उठाते हैं ।
अगले दिन दिशा और सौरभ नौ बजे उठे तो देखा कि मम्मी- पापा और जिया उनके ही उठने का इंतज़ार कर रहे थे ।
—- अरे मम्मी…. आज तो ऐसी नींद आई ….. पूछो मत , आँख ही नहीं खुली । आप लोगों ने अभी तक नाश्ता क्यों नहीं किया?
दिशा, आज तुमने मुझे पहली बार मम्मी कहा है । मैं तुम्हारे मुँह से इस शब्द को सुनने के लिए तरस गई थी । बेटा , सच बताना …. मम्मी कहने में इतनी देर क्यों लगाई?
पहले आपके हाथों से बने गर्मागर्म आलु के पराँठे खाएँगे ।
अब तो सबका नाश्ता हो चुका , बता ना ….अपनी नाराज़गी का कारण?
मम्मी! आपको याद है कि शादी वाले दिन, जब मेरे दोस्तों ने मुझे डांस करने के लिए स्टेज से खींचा तो आपने किस प्रकार आँखें निकालकर और कड़कती आवाज़ में कहा था —-
दिशा कोई डांस नहीं करेगी …. वहीं बैठी रहो ।
मेरे मन में आज तक उन डरावनी आँखों और कड़क आवाज़ का ख़ौफ़ बैठा था । ऊपर से मेरी सहेलियों ने कहा—-
दिशा, बचकर रहना …. पूरी ललिता पंवार है तेरी सास .. एकदम तोप । बच्चू इससे किनारा कर लेना वरना साँस लेना मुश्किल कर देंगी । … बस मैंने तो उसी दिन सोच लिया था कि मैं सौरभ के परिवार से दूरी बनाकर रखूँगी …. फिर मेरा क्या बिगाड़ लेंगी?
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अच्छा…. तब , उस समय मेरे मामा ससुर तुम्हें आशीर्वाद देने के लिए स्टेज की सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे । अगर मैं उस समय थोड़ी सख़्त ना होती तो तुम्हारे दोस्त तुम्हें स्टेज से खींचकर ले जातें।…. बेटा , पहली बात तो ये कि मामाजी बुजुर्ग थे दूसरी बात ये कि वे गाँव से आए थे जहाँ आज भी खुलेआम लड़का- लड़की अपनी शादी में नाचते गाते नहीं । और बेटा …. मैं नहीं चाहती थी कि कोई मेरी बहू या उसके मायके वालों पर टीका- टिप्पणी करे।…. तो ये थी नाराज़गी, पगली !
इतना कहकर रमा ने दिशा के गाल पर हल्की सी स्नेहमयी चपत लगाई ।
चल मेरे कमरे में…. तुम्हें वो सेट दिखाती हूँ जिसे दीक्षा को देने की सोच रही हूँ ।
और अगर वो मुझे अच्छा लगा तो बता रही हूँ, मम्मी! मैं दीक्षा को वो नहीं दूँगी ।
कोई बात नहीं, तुम पहन लेना । दीक्षा के लिए दूसरा ख़रीद लेंगे ।
इतना कहकर दोनों सास- बहू हँसती हुई कमरे की तरफ़ चल पड़ी, मन की गिरह खुल चुकी थी ।
#मायके में तो रिश्ते बने होते हैं पर ससुराल में बनाने पड़ते हैं
करुणा मलिक
VM