रोहन आपने दोस्त के जन्मदिन की पार्टी
में गया था। वहां उसने देखा कि पर्व के नाना-नानी के साथ -साथ दादा-दादी भी आये थे। वे उसे बहुत प्यार कर रहे थे एवं एक सुन्दर सी साईकिल उसे उपहार में दी। रोहन यह सब देखकर सोचने लगा कि उसके तो केवल नाना- नानी ही आते हैं, दादा-दादी को तो कभी देखा ही नहीं। क्या उसके दादा -दादी नहीं है। और यदि हैं तो हमारे पास क्यों नहीं आते न हम उनके पास जाते हैं।
पार्टी में खूब मस्ती करने के बाद जब यह अपने घर आया तो बड़ी उलझन में था सो आते ही उसने अपनी मम्मी से पूछा मम्मी मेरे दादा-दादी नहीं हैं क्या?
क्यों आज ये कैसा सवाल पूछ रहे हो। मम्मी मैंने पर्व के दादा-दादी को देखा। उसके तो नाना-नानी भी आये थे और दादा-दादी भी। पर मेरे तो केवल नाना-नानी आते हैं दादा-दादी तो कभी नहीं आते इसलिए सोचा कि हैं या नहीं?
उसकी बात सुनकर सपना अचम्भीत रह गई ये कैसा सवाल कर दिया रोहन ने ।क्या जवाब दूं। मम्मी बताओ न मेरे दादा-दादी कहाँ है। अमृत सोफे पर बैठा पेपर तो हाथ में था पर ध्यान मम्मी बेटे की बातों की ओर था।
सपना बोली हैं न बेटा दादा-दादी वे गाँव में रहते हैं ।
तो कभी आते क्यों नहीं हमारे पास न हम कभी उनके पास जाते हैं। पापा को अपने मम्मी-पापा की याद नहीं आती।
ऐसी बात नहीं है, दरअसल वे यहाँ रहने में अच्छा अनुभव नहीं करते, गांव में रहने की उन्हें आदत है। इसीलिए नहीं आते।
पर मम्मी ज्यादा दिन न रहें कभी हमसे मिलने तो आ सकते हैं। मैं तो इतना बड़ा हो गया कभी उन्हें नहीं देखा। न हम कभी उनके पास गए। कैसे हैं वे ,कोई फोटो भी नहीं है उनकी हमारे घर में।
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अब तो सपना को उसके प्रश्नों का उत्तर देना भारी पड रहा था क्या कहे कि मैं ही उन्हे यहाँ नहीं आने देती और न कभी उनके पास जाती हूँ।
मम्मा बताओ न कोई फोटो है क्या उनकी।
बेटा अभी तुम अपना होमवर्क करो फिर कभी बताऊँगी उसने रोहन को टालने के लिहाज से कहा।
किन्तु बाल हठ के सामने किसकी चलती है। वह फिर बोला मम्मी क्या गाँव में रहने वाले इतने खराब होते हैं कि वे हमारे साथ नहीं रह सकते ।
ऐसा नहीं है बेटा वे पढ़े लिखे नहीं हैं उनकी भाषा, बोलने चालने का ढंग अलग होता हे सो वे हमारी सोसाइटी में फिट नहीं बैठते। इसीलिए नहीं आते।
पर मम्मा पापा तो पहले वहीं रहते होंगे।
वह पढ लिख गये तो मम्मी-पापा के साथ नहीं रह सकते। फिर तो मम्मी मैं भी आप लोगों से ज्यादा पढ लिख गया और मैंने विदेश में नौकरी कर ली तो आप दोनों भी हमारी सोसायटी में फिट नहीं हो पायेगें तो मैं भी आपको ऐसे ही अकेला छोड़ दूंगा।
यह सुन सपना और अमृत दोनों ही विचारमग्न हो गए। क्या जबाव दें बेटे को सही ही तो कह रहा है रोहन ।
मैं कितना कृतघ्न इंसान हूं जिन मां-बाप ने हाथ पकड चलना सिखाया, कंधे पर
बिठा दुनियां दिखाई , खुद अपनी जरुरतों को दर किनार कर मुझे उच्च शिक्षा दिलाई इस आस में कि बेटा पढ-लिख ऊंचे पद पर आसीन हो जाएगा तो हमारे सारे दुःख दर्द खत्म हो जायेंगे। मेरी पढ़ाई के लिए खेत गिरवी रख जो कर्ज लिया था उसे वे आज भी चुका रहे हैं।
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नौकरी लगते ही धनाढ्य घर की लड़की से शादी कर पैसों और सुसराल की चमक में, मैं उन्हें भूल ही गया। मैं कितना एहसान फरामोश हूं कि कर्ज चुकाने के लिए उन्हें पैसे तक नहीं भेजे और स्वयं ऐशो आराम की जिदगी जी रहा हूं। आज अमृत की आंखों में पश्चाताप के आंसू थे। छः वर्ष हो गए पलट कर मैंने यह भी नहीं देखा की वे किस हाल में रह रहे हैं। आज रोहन के द्वारा हमें छोडने की बात ने हमें इतना विचलीत कर दिया तो मुझसे दूरी वे कैसे सह पा रहे होंगे। मैने उनके मन को कभी समझने की कोशिश ही नहीं की।
सपना भी सोच रही थी कि मैंने एक बेटे को उसके माँ-बाप से अलग कर दिया। उन्हें कैसा लगता होगा मैं तो रोहन से दूर रहने की कल्पना मात्र से सिहर गई। नहीं अनजाने में ही सही मुझसे एक मां से उसका बेटा दूर करने का अपराध हुआ है। कैसे भी थे आखिर वे अमृत के माता- पिता थे। उन्हीं की बदौलत अमृत इतना योग्य बन पाया। मैंने अमृत को उसकी जड़ों से काट दिया यह अपराध अक्षम्य है अब मैं ही इस दूरी को खत्म करुंगी । वह अमृत से बोल़ी छुट्टी ले लो हम मां -पिता को लेने चलते हैं । कल ही चलने की तैयारी कर लो ।वे कार से गाँव फहुंचे।
उनकी हालत देख कर अमृत फूट-फूट कर रो पडा। दोनों बीमारी से जूझ रहे थे। गांव में सही इलाज न होने के कारण वे ठीक नहीं हो पा रहे थे।और उनमें इतनी क्षमता नहीं थी कि अकेले शहर जाकर डाक्टर को दिखा आयें और इतना मंहगा इलाज करने के लिए पैसे भी नहीं थे। अमृत और सपना ने उनके पैरों में गिर कर अपने किए की माफी मांगी और बोले हम आपको लेने आए हैं अपने घर चलो। आज आपकी अपने घर वापसी कराने हम आये हैं। सपना भी उनका घर सहज चलने की तैयारी कर रही थी। रोहन की खुशी का तो ठिकाना नहीं था अपने दादा-दादी से मिलकर।
उसने घूम कर गांव भी देखा, खेत भी देखे उसे यहां का वातावरण देख कर अच्छा लगा वह बोला पापा हम छुट्टियो में यहाँ जरूर आया करेंगे। आप बचपन में यहीं रहते थे। हाँ बेटा मेरे बचपन की यादें यहाँ बिखरी पडी हैं ।फिर कभी तुम्हें बताउंगा फिलहाल तो हम तुम्हारे दादा-दादी की घर वापसी कराते हैं। वहाँ ले जाकर सपना उनका बहुत ध्यान रखती डाक्टर को दिखाया सही उपचार से वे शीघ्र ही ठीक हो गये। रोहन उनके साथ बहुत खुश रहता। दादाजी से नित्य नये-नये किस्से सुनता गाँव के बारे में पूछता वे बड़े प्रेम से उसे बताते । उसके पापा के बचपन की बातें दादा-दादी से सुन खूब हंसता।
घर वापसी का सुख, बच्चों का साथ उन्हें नया जीवन दे गया।
शिव कुमारी शुक्ला
7-9-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
शब्द प्रतियोगिता****घर वापसी