आज सावित्री की बेटी कलेक्टर बन गई… कितनी तपस्या के बाद आज का दिन देखना नसीब हुआ… बेटी ने कलेक्टर बनते ही माँ को बोला, अब तुम काम नहीं करोगी। नहीं पारो एक घर में तो मुझे करना ही है.. कुसुम मैडम को मैं नहीं छोड़ सकती….उनकी बदौलत ही तुम आज कलेक्टर बन पाई हो।
उनकी मदद के बिना मैं तुझे इतना पढ़ा नहीं सकती थी…और आज बीमारी में उन्हें मेरी जरूरत है, तो कैसे छोड़ दूँ। बिटिया, “जहाँ प्रेम हैं वहीं मदद हैं”… उन्हें हमसे प्रेम था… तभी तो कभी मुझे दुखी नहीं होने देतीं थी।
परिवार के सदस्य जैसा प्यार करती थी…मदद करती थी। एक बार तुम बहुत बीमार थी, मैं दो-तीन दिन काम पर नहीं जा पाई… जहाँ दूसरी मैडम लोग नई कामवाली बाई लगा ली, कुसुम मैडम मुझे ढूढ़ती हुई घर आई। तुमको बुखार से तपते देख तुरंत गोद में ले डॉक्टर के पास दौड़ी।
मुझे बार-बार दिलासा देतीं रही.. चिंता मत करो ठीक हो जाएगी बिटिया। होली-दिवाली अपने बच्चों के कपड़ों के साथ तुम दोनों भाई-बहन के कपड़े भी लाती थी। मेरे लिए नई साड़ी और तुम्हारे बापू के लिए भी कुर्ता-पैजामा। जहाँ दूसरे घरों में मैडम लोग चिकचिक करती, वहीं कुसुम मैडम एक मुस्कान के साथ दरवाजा खोलती थी।
तुम दोनों की पढ़ाई का खर्च भी वहीं देतीं थी… उनकी मदद के बगैर मैं इतना ना कर पाती। उनके प्रेम और मदद को मैं कैसे भूल पाऊँगी। आज वो बिस्तर पर हैं.. तो आज मेरी बारी हैं उनकी मदद की। हम कितने भी अमीर हो जाये छुटकी, पर कुसुम मैडम.. हमेशा मेरे लिए मैडम ही रहेगी।
अरे माँ… उनके बच्चें भी हैं, करेंगे अपनी माँ की सेवा। हाँ, वो तो करते हैं..पर मैं खुद उन्हें नहीं छोड़ सकती हूँ…क्योंकि “जहाँ प्रेम है वहीं मदद है”… तू भी ये बात गांठ बांध ले। बिना प्रेम के कोई किसी की मदद नहीं करता। इसलिए सबसे प्रेम कर। उन सबका शुक्रिया अदा कर जिनकी बदौलत तू यहाँ पहुंची है।
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फिर सावित्री अपने टाइम पर कुसुम मैडम के घर पहुँच गई। पेपर हाथ में लिए कुसुम मैडम बोली…सावित्री तुम आज भी काम पर आई हो, अब तो बेटी कलेक्टर बन गई। हाँ, तो सब आपका ही आशीर्वाद है कुसुम मैडम। तभी बेटी..मिठाई का डिब्बा ले पहुंची। कुसुम मैडम के पैर छू बोली… मैडम आपकी वजह से मेरे सपनें पूरे हुए। नहीं बेटा तुम्हारी मेहनत रँग लाई… अब अपनी माँ को आराम दो। सावित्री बोली मैडम जी ये तो हमारा घर हैं, फिर अपने घर में काम करने में क्या बुराई है।
कुसुम जी और सावित्री दोनों आँखों से नीर बहाती, मुस्कुरा रही। प्रेम कभी छोटा बड़ा नहीं देखता… बस प्रेम ही देखता है। यहीं प्रेम सावित्री और कुसुम जी को दिल के रिश्ते से बांध रखी थी। दोनों एक-दूसरे की पूरक बन गई। सावित्री की सेवा से कुसुम मैडम बिस्तर से उठ खड़ी हुई और इसका श्रेय वो सावित्री को देती हैं।
संगीता त्रिपाठी