” दादी…कहानी छुनाओ(सुनाओ)…।” नन्हीं पीहू प्रभा जी के गले में अपनी बाँहें डालती हुई बोली तो उन्होंने उसके हाथों को हटाते हुए झिड़क दिया,” जा..अपनी पढ़ी-लिखी माँ से सुन..।” पीहू रोती हुई अपनी माँ के पास चली गई। उनके पति अंबिका बाबू वहीं खड़े थे, बोले,” प्रभा…उस बच्ची का दिल दुखाकर तुम्हें क्या मिला..एक कहानी सुना देती तो..।”
” फिर से अपनी लाडली बहू की तरफ़दारी करनी शुरु कर दी..।” आँखें तरेर कर उन्होंने अपने पति की ओर देखा तो अंबिका बाबू चुपचाप दुकान चले गये।
प्रभा जी की दो संतानें थीं।बेटा दीपक अपनी शिक्षा पूरी करके पिता के दुकान को संभाल रहा था।बेटी दीप्ति के विवाह के बाद वो बेटे के लिये एक घरेलू लड़की लाना चाहती थीं जो चूल्हा-चौका संभाले।उनके अनुसार पढ़ी-लिखी बहू घर का ख्याल नहीं रखती और सास-ससुर पर हुकुम चलाती है।दरअसल उनकी भजन-मंडली में महिलाएँ यही बातें करतीं थीं
कि बेटा पढ़ी-लिखी बीवी ले आता है और बहू सास-ससुर को नौकर बना देती है।बस तभी से उनके मन में पढी-लिखी बहू का डर बैठ गया था।लेकिन उनके बेटे ने अपने मित्र की बहन रिद्धि को पसंद कर लिया जो बीएड पास थी।वो तो खिलाफ़ थीं लेकिन घर में पिता-पुत्र एक हो गये तो उन्हें भी बेमन-से राजी होना पड़ा।
यद्यपि रिद्धि हर तरह से कोशिश करती कि उसकी सास को कोई शिकायत न हो लेकिन घर का काम जल्दी खत्म करके वो अखबार लेकर जैसे ही बैठती, प्रभा जी उसे कुछ ना कुछ सुना देती।फिर पोते की जगह पोती का जनम हुआ तो उनका मुँह और भी सूज गया।बहू को तो कोसती ही थीं, अब पोती को भी पास नहीं आने देती।लेकिन बच्चे तो बच्चे ही होते हैं।नन्हीं पीहू फिर से दादी के पास आई तो प्रभा जी ने उसे झिड़क दिया।
रिद्धि और पीहू के प्रति प्रभा जी के उग्र व्यवहार से दीपक का मन बहुत आहत होता था, वो पत्नी से कहता कि माँ जब तुम्हें पसंद नहीं करती तो हम यहाँ से चले जाते हैं।तब रिद्धि हँसकर कहतीं,” वृक्ष से अलग होकर डाली कभी हरा-भरा नहीं रह सकती।रही बात मम्मी जी की..तो मुझे उनकी कोई बात बुरी नहीं लगती।” तब दीपक चुप रह जाता।
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अंबिका बाबू और दीप्ति के समझाने पर भी प्रभा जी के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया और समय अपनी गति से चलता रहा।
एक दिन पीहू को स्कूल छोड़ कर रिद्धि सामान लाने के लिये मार्केट चली गई।उसके गये हुए दो घंटे से ऊपर हो गये तब प्रभा जी ने उसे फ़ोन लगाया।फ़ोन स्वीच ऑफ़ आने पर तो उनका पारा गरम हो गया।दीपक घर आया तो उस पर बरस पड़ीं,” यही होता है पढ़ी-लिखी लड़की लाने से…स्कूल के बहाने न जाने कहाँ…।
” दरवाज़े पर अचानक आई पुलिस को देखकर वो चौंक गईं।दीपक किसी अनहोनी की आशंका से घबरा गया तभी रिद्धि भी आ गई।प्रभा जी कुछ कहतीं तभी इंस्पेक्टर अशोक बोले,” रिद्धि जी, आप फ़्रेश हो जाइये।” फिर दीपक को अपना परिचय देते हुए बोले,” आप बहुत भाग्यशाली जो आपको इतनी समझदार पत्नी मिली है।”
” क्या मतलब?” प्रभा जी ने आश्चर्य-से पूछा।तभी रिद्धि चाय ले आई।चाय पीते हुए इंस्पेक्टर अशोक बोले,” कमला मार्केट में अचानक दो बदमाश आये और एक महिला से उसका बच्चा छीन कर भागने लगे।रिद्धि जी वहीं खड़ी थीं, उन्होंने तुरंत एक बदमाश को अपना पैर अड़ाकर गिरा दिया और उसका काॅलर पकड़कर दो
तमाचे जड़ दिये।साथी को गिरता देख दूसरा बदमाश घबरा गया।बच्चा छोड़ कर जाने लगा तो रिद्धि जी उस पर झपट पड़ीं।फिर तो लोगों ने भी हिम्मत दिखाई, बच्चे की जान बच गई।अब दोनों बदमाश हमारे गिरफ़्त में है।”
” लेकिन रिद्धि ने फ़ोन क्यों नहीं किया?” प्रभा जी अभी भी गुस्से में थी।
” वो इसलिए कि उनके फ़ोन की बैटरी खत्म हो गई थी।फिर थोड़ा भी समय गँवाती तो बदमाश हाथ से निकल जाते।माताजी..आपकी बहू ने तो बहुत समझदारी दिखाई है।इसीलिये तो लड़कियों का शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है ताकि समय आने पर वो अपनी और दूसरों की रक्षा कर सके।
” कहकर इंस्पेक्टर अशोक चले गये।तब तक तो रिद्धि टेलीविजन पर आ चुकी थी।हर चैनल पर यही खबर थी कि रिद्धि ने बच्चे की जान बचाई और दो बदमाशों को पकड़वाया।मोहल्ले वाले प्रभा जी को बधाई देने आने लगे।
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रात को खाने के बाद रिद्धि अपनी सास को दूध का गिलास देकर चली गई तब प्रभा जी अपने पति से कहने लगीं,” सच में जी, हमलोग भाग्यशाली हैं जो हमें समझदार बहू मिली।मैं भी कितनी मूर्ख थी जो हीरे को पत्थर समझ रही थी…।” वो बोलती जा रहीं थीं और अंबिका बाबू हाँ- हूँ ‘ करते जा रहें थें।उन्होंने मुस्कुरा कर अपने बेटे की तरफ़ देखा जो वहीं बैठकर दुकान का हिसाब मिला रहा था।पिता को देखकर दीपक भी हौले-से मुस्कुराया।
अगली सुबह रिद्धि जब सास को चाय देने आई तब प्रभा जी बोलीं,” रिद्धि बेटी.. तुम स्कूल ज़्वाइन करना चाहती थी ना…कर लो…।”
” लेकिन पीहू को फिर…।”
” क्यों..मैंने दो बच्चों को नहीं संभाला है..पीहू आज से मेरे साथ स्कूल जायेगी।” तभी पीहू ‘दादी ‘ कहकर उनसे लिपट गई।रिद्धि ने दीपक को देखा जैसे कह रही हो,” मैं कहती थी ना…।” दादी-पोती का स्नेह देखकर अंबिका बाबू तो खुशी-से फूले नहीं समा रहे थे।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
# हमलोग भाग्यशाली हैं जो हमें समझदार बहू मिली