Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

सामाजिक बंधन – तृप्ती  देव 

कृष्णा एक छोटे से गाँव में रहता था, जहाँ समाज के नियम और परंपराएँ गहराई से जुड़ी थीं। एक दिन गाँव में एक बुजुर्ग महिला की मृत्यु हो गई, जिनके परिवार का कोई सदस्य नहीं था। गाँव के लोग अपने कामों में व्यस्त थे, लेकिन कृष्णा ने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझी। उसने न केवल अंतिम संस्कार की पूरी व्यवस्था की, बल्कि गाँववालों को भी एकत्र किया। कृष्णा के इस कृत्य ने सभी के दिलों को छू लिया। उस दिन, सभी ने महसूस किया कि सामाजिक “बंधन” सिर्फ नियमों का पालन नहीं, बल्कि मानवता और संवेदनशीलता का प्रतीक भी है।

तृप्ती  देव 

भिलाई छत्तीसगड 

 

*अधूरापन* – बालेश्वर गुप्ता

      अरे सुधा तुम तो बिल्कुल मशीन हो गयी हो।तीन दिन से देख रही हूं तुम्हारी दिनचर्या-सुबह जल्द उठकर दोनो बच्चो को तैयार कर उनका लंच बॉक्स दे स्कूल भेजना, उसके बाद अपने हसबैंड का लंच बॉक्स तैयार करना।शाम से रात्रि सोने तक तुम चकरी बनी रहती हो।मुझे लगता है मैंने शादी न करके ठीक ही किया है।

       शीला छोड़ो मेरी बात तुम बस एक बात बताओ जब रात को बिस्तर पर जाती हो तो क्या तुम्हें अपने अधूरेपन का अहसास नही होता?

      अचकचा कर सुधा की सहेली 45 वर्षीया अविवाहित शीला,सुधा का मुँह देखती रह गयी।उसे अंदर कही लगा कि बंधन में भी सुख होता है।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित।

 

बंधन – श्वेता विशाल झा

बंधन हां ये बंधन है

मोहक निर्मल सा

आम्र कुंज में गुंजन करती 

कोयल के स्वर सा

केवल कुछ रस्मों से ही

 पूरी कब होती शादी?

गठबंधन पूरा होता..

जब मन से मन जुड़ता।

करे तुम्हारे जीवन को..

निज अरमानों से सज्जित।

यही हृदय की चाहत है..

यही ध्येय उसका।

लाख मिलें बाधाएं ..

आए  कोई भी अड़चन;

कभी टूटने मत देना…

तुम ये पावन रिश्ता।

अग्नि,सूर्य,चंद्रमा ,तारे..

 वही आज भी है;

जिनके सम्मुख तुमने..

फेरे कर रिश्ता जोड़ा।

प्रेम,सहज विश्वास और

हो मान परस्पर तो..

फिर अटूट रह पाएगा..

हर इक बंधन ऐसा।।

श्वेता विशाल झा,

गुरुग्राम

 

बंधन – के कामेश्वरी

राघव जी और सरस्वती के चार बेटे और चार बेटियाँ थीं । उनका घर हमेशा भरा हुआ रहता था । कालांतर में उनकी लड़कियों की शादियाँ हो गई थी । पिता के रिटायर्ड होते ही बड़े भाई और भाभी ने पूरे घर को सँभाल लिया था । इस व्यस्त जीवन के चलते उन्होंने अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दिया था ।

उनके दूसरे भाई अलग जाकर रहने लगे किसी ने भी अपने बड़े भाई और बच्चों के बारे में नहीं सोचा । ऐसा लगता था जैसे वे अपने भाई भाभी के एहसानों को भूल चुके हैं । जो परिवार रिश्तों के बंधन में बंधकर रहता था आज उस बंधन से मुक्ति पा चुके थे ।

के कामेश्वरी

 

बंधन – संगीता अग्रवाल

” बंधन मे ही सच्चा सुख है !” अक्सर दादी ये बात कहती जिसका मतलब नीति को आज समझ आया । 

ससुराल के बड़े परिवार मे ना रहना पड़े इसके लिए नीति ने क्या क्या जतन किये थे और आज जब अलग हो गई तो खुश नही थी वो । क्योकि इस आज़ादी से अच्छा उसे वो बंधन लग रहा था जहाँ सास की थोड़ी रोक टोक थी तो बीमार पड़ने पर देखभाल भी थी । बच्चे को छोड़ कर जाने की चिंता नही थी क्योकि बुआ , चाचा थे । साथ ही हर शाम सबके ठहाको की आवाजे थी जो उस वक्त नीति को पसंद नही आती थी । पर यहाँ अकेलापन और चुप्पी उसे भीतर तक ड्स रही थी । यहाँ ना पति खुश थे ना बेटा पहले की तरह चहक रहा था। अब नीति तरस रही थी उस बंधन मे लौट जाने को पर इस आज़ादी को पाने के लिए जो प्रपंच किये उन्हे याद कर हिम्मत नही हो रही थी । 

संगीता अग्रवाल

बंधन – मनीषा सिंह

 आपके पिताजी को होश आ चुका है! वो आपसे मिलना चाहते हैं। सर पर चोट लगने की वजह से रामानंद बाबू कई घंटों तक बेहोश रहे।

 सुनकर शिल्पी के खुशी का ठिकाना ना रहा ।

कुछ खाया- पिया भी नहीं होगा

 अब –घर –जा ! 

“पिताजी कन्यादान” करके भले ही आप” बंधन मुक्त” हो गए होंगे परंतु हम बेटियां अपने फर्ज से पीछे नहीं हटेंगी!

 आप –निश्चिंत रहें! दीदी के आते ही मैं चली जाऊंगी आप बस –जल्द से जल्द ठीक हो जाए !

 इस समर्पण तथा साहस को देखकर रामानंद बाबू अपने आप को “बेटियों के पिता “होने का “गर्व “महसूस कर रहे थे।

धन्यवाद! 

मनीषा सिंह

राखी – महजबीं 

सुमीत ने  पोस्टमैन से  राखी का पैकेट  लेकर खोला ।अंदर राखी और एक लेटर था। भेजने वाली का नाम पुष्पा था। पुष्पा नाम पढ़ते ही उसकी आँखों में आँसू आ गए। “पुष्पा दीदी” कह कर उसने लेटर खोला। लिखा था “मेरे प्यारे सुमीत भैया। तुम लोगों ने पिछले 6 साल में मुझे खोजने की कोई कोशिश नहीं की। अपनी पसंद से शादी करने की अच्छी सजा दी पिता जी ने मुझे। पर तुम्हारी पत्नी नेहा और मेरी ननद  सपना फेसबुक दोस्त हैं और एक ही ऑफिस में काम करती हैं।नेहा की प्रोफाइल फोटो  सपना ने दिखाई। फोटो में तुम्हें नेहा के साथ देखते ही  मैंने तुरंत तुम्हें पहचान लिया। सपना से नेहा का पता लेकर तुम्हें राखी भेज रही हूं। मैं दिल्ली शहर में तुम्हारे जीजाजी के साथ अभी कुछ दिन पहले ही शिफ़्ट हुई हूँ। तुम्हारे जीजाजी बहुत अच्छे हैं उम्मीद है मिलने आओगे।” पढ़ कर सुमीत अपने आप को रोक नहीं पाया। और रक्षाबंधन के दिन नेहा के साथ पुष्पा दीदी के घर पहुंच गया राखी बँधवाने। दोनों भाई बहन गले मिल कर खूब रोये। और सब शिकवे दूर हो गए। सुमीत जानता था कि पापा भी मन ही मन दीदी को  माफ़ कर चुके हैं।

लेखिका : महजबीं 

 

“देर आऐ -दुरुस्त आऐ” – कुमुद मोहन

शमा अपने भाई शलभ की इकलौती बहन होने के कारण नकचढी और बदतमीज थी!गुस्सा तो जैसे उसकी नाक पर रखा रहता!इसीलिए उसे अपनी हर बात मनवाने की आदत हो गई थी!किसी का दिया कुछ भी उसे पसंद नहीं आता!यहां तक कि राखी -दूज पर शलभ का दिया नेग भी वह मुंह सूजाऐ “बस इतना सा”का ताना मारकर लेती!उसकी वजह से घर का माहौल तनावपूर्ण रहता!

वक्त गुजरा शीना का ब्याह मयंक से हुआ! ससुराल में भी उसका वही रवैया रहा!राखी पर शीना ने शलभ के दिये नेग और भाभी की खातिरदारी पर फिर बवाल मचाया!शाम को शीना की तीनों ननदें भी राखी पर आईं!शीना ने उनकी आवभगत में कुछ नहीं बनाया!वे अपने साथ शीना के लिए उसकी पसंद की मिठाई और तोहफ़े लाई थीं!खुशी खुशी तीनों ने अपने भाई-भाभी को राखी बांधी,जो कुछ था खाया पिया!जाते समय मयंक ने बहनों को नेग देना चाहा तो तीनों बहनों ने एक स्वर में कहा”भैया हमें कुछ नहीं चाहिए,बस तुम दोनों हमें प्यार से बुलाते रहो,खुश रहो,हमारा मायका आबाद रहे”!

शीना का सर शर्म से झुक गया!उसे अपने व्यवहार पर ग्लानि होने लगी! 

कुमुद मोहन

 स्वरचित-मौलिक 

 

राखी – डाॅक्टर संजु झा

रक्षाबंधन के दिन रीता का परिवार खुशियों में डूबा रहता।रीता के दोनों भाई  राखी बंधवाने आ जातें तथा रीता  की बेटी निवा  भी अपने भाई नमन को राखी बाँध देती,परन्तु अपनी जेठानी के बेटों को लेकर रीता के मन मे कसक-सी उठती।

इस दिन कुछ वर्ष पूर्व घटित घटना प्रायः रीता को झकझोर जाती।जेठानी के चार बेटे होने के कारण रक्षाबंधन दिन उनकी  कलाई सूनी रह जाती।इस कारण रीता अपनी छोटी-सी बेटी को लेकर उन्हें राखी बंधवाने चली जाती।एक-दो वर्ष तो उन्हें अच्छा महसूस हुआ, परन्तु बाद  में उनके व्यवहार में परिवर्त्तन आ गया।

कुछ वर्ष पूर्व जब रीता अपनी बेटी को लेकर चचेरे भाईयों को राखी बंधवाने गई, तो उसने जेठानी को कहते हुए सुना-“निवा राखी बाँधने आती होगी।सब भाई मिलकर उसे पचास रुपये दे देना।मुझे  पैसे के लिए ये झूठ-मूठ बहन  का ढ़कोसला पसन्द नहीं आता है।”

यह सुनकर रीता बेटी को लेकर दबे पाँव वापस आ गई। बेटी के पूछने पर रीता ने कहा -” बेटी!जहाँ रिश्तों का सम्मान न हो,राखी के  अनमोल धागों को पैसों की कीमत से तौला जाएँ,वहाँ राखी  बाँधने  नहीं जाना चाहिए!

बस बहनों को भाईयों के लिए दुआ करनी चाहिए। “

  समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा।

 

राखी – रश्मि प्रकाश

“ दीदी इस बार राखी क्यों भेज दिया… कहा तो था इस बार राखी पर तुम्हारे पास आऊँगा ।”नयन ने रति से कहा

“ हाँ तुमने कहा तो था पर भाई मैं इस बार ननद के घर जाने वाली इसलिए तेरे आने से कोई फ़ायदा होता नहीं… बस तुम राखी बाँध लेना और अपनी पसंद की मिठाई खा लेना।” रति ने कहा और फ़ोन रख कर सुबक पड़ी 

एक दिन पहले ही माँ ने बताया…इस बार नयन तेरे पास जाने को बहुत उतावला हो रहा है…कह रहा दीदी को ये दूँगा वो दूँगा.. पर बेटा मेरी बीमारी ने उसे बाँध कर रखा हुआ है वो जाना भी चाहता और मेरी फ़िक्र भी उसको वैसे एक दिन की ही बात है…

बिस्तर पर पड़ी अपनी माँ के ये शब्द उसे कचोट गए भाभी का छठा महीना चल रहा ऐसे में अगर वो मेरे पास आया भी तो ख़ुश नहीं रहेगा फिर कभी आ जाएगा इस बार तेरी ज़रूरत घर पर है… मेरा मायका सलामत रहे तू खुश रहे इससे बढ़कर एक बहन और कुछ नहीं चाहती ।

 रश्मि प्रकाश

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