औपचारिकता – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

संध्या जी की दोनो बेटियाँ जया और प्रिया एक ही शहर बनारस में ब्याही हुई थीं । ईश्वर की दया से दोनो दामाद वैभव और नितिन स्वभाव से बहुत अच्छे थे । एक बेटा शिवम जो दोनों बहनों से छोटा है ।  उसकी पत्नी साक्षी जो बहुत ही मेहनती और स्वभाव व विचारों से बिल्कुल शालीन थी ।

शिवम की छोटी सी स्टेशनरी की दुकान थी म  और आमदनी भी इतनी अच्छी नहीं थी कि घर खर्च सुचारू रूप से चल सके । बस..साक्षी की समझदारी और हुनर की वजह से उस घर में पूरी रौनक थी । साक्षी सिलाई और पेंटिंग का काम करती थी ।कुल मिलाकर

अच्छा घर – परिवार दोनों बेटियों को मिल गया था । पर जया की नज़रों में किसी चीज का कोई मोल नहीं था । न सामान न रिश्ते – नातों की ।कारण की प्रिया से काफी अच्छी आमदनी थी जया के पति वैभव की ।

वो कई बार कमल जी से इन बातों पर चर्चा करती थीं पर वो टाल जाते थे ।

आज साक्षी शादी में अपने मायके गयी हुई थी । जया और प्रिया ने एक साथ मायके जाने की योजना बनाई । संध्या जी को कॉल करके कहा कि..हम दोनों आना चाहते हैं ।.”ये भी पूछने की बात है, आओ न बेटा ! प्रिया ने जल्दी से बाजार जाकर सूखे मेवे , फल और मिठाई  खरीद लिया ।

प्रिया को देखकर जया ने कहा..”घर वाले बिल्कुल बदल गए हैं, घर जाने में ये सब ले जाने के लिए क्यों सोचना ? इतनी शॉपिंग करने की क्या जरूरत है तुम्हें ? प्रिया ने मुस्कुराते हुए कहा..”नहीं दीदी ! कोई जबरदस्ती थोड़ी न है, ये तो ले जाने वाले और पाने वाले दोनो को अच्छा लगता है कि किसी ने उनके लिए सोचा । जया आँखें घुमाकर आराम से अब टैक्सी में बैठ गयी ।चार घण्टे की दूरी तय करने के बाद दोनों मायके में पहुँची ।

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संध्या जी ने लस्सी पीने और हाथ के बने हुए पकौड़े और स्नैक्स खाने को दिया । पेट भर खाने के बाद दोनों मम्मी के कमरे में आराम करने चली गईं । संध्या जी के यहाँ कोई कामवाली नहीं लगी हुई थी । रसोई साफ करने के बाद वो बेटियों के पास आकर बैठीं तो संध्या जी ने कहा । अब आ ही गयी हो तो तीन दिन रुककर जाना । परसों पूजा रखा है । नहीं आती तो कल तुमलोगों को निमंत्रण ही भेजवाती ।

प्रिया ने कहा..”भाभी हैं नहीं मम्मी । तो क्या बिना भाभी के ही पूजा होगी ? जया ने मुँह बिचकाते हुए कहा..”ऐसा कहाँ लिखा है कि भाभी के बगैर पूजा नहीं हो सकती  । 

प्रिया ने कहा..”अच्छा है मम्मी भाभी आ जाएंगी तो मै त्योहारों वाले दो – तीन ब्लाउज भी सिलने दे दूँगी ।

संध्या जी को चुप देखकर प्रिया ने उनके कंधे पर हाथ रखकर पूछा..क्या हुआ मम्मी ? संध्या जी बिना जवाब दिए बालकनी में आ गईं । पीछे पीछे प्रिया भी पहुँच गयी । दुबारा से पूछने पर संध्या जी ने कहा…देखा तुमने जया के चेहरे का भाव और उसकी बातें सुनी तुमने ? साक्षी इतना तो करती है सबके लिए फिर जया हर वक़्त क्यों उसके पीछे पड़ी रहती है ।

कमल जी बाजार से सब्जी लेकर आ गए थे और चुपचाप बालकनी में खड़े होकर दोनों माँ – बेटी की बातें सुन रहे थे । 

संध्या जी के पास में आकर उन्होंने कहा..”क्या समस्या है जया को , घर के किसी एक व्यक्ति से सम्बन्ध नहीं है उसका, उसकी शिकायत है कि साक्षी उसे नहीं पूछती है, तो जया कौन सा साक्षी को पूछती है । ऐसे इस  तरह से चलता रहा तब तो बातें बढ़ती ही जाएंगी ।

प्रिया ने कहा..”छोड़िए न पापा ! दीदी की तो ऐसी ही आदत है ।

“नहीं बेटा ! ऐसे क्यों छोड़िए न बार – बार । जया को समझना होगा कि एक तरफ से रिश्तेदारी नहीं निभती है । वो सामने से नहीं निभाएगी तो साक्षी से ये मैं कैसे उम्मीद करूँ ?

अगले दिन सुबह उठते ही दरवाजे पर घण्टी बजी तो देखा साक्षी शिवम के साथ खड़ी थी । कमल जी और संध्या के पैर छूकर साक्षी प्रिया से गले मिली और रसोई में जाकर चाय चढ़ा दी । संध्या जी ने मना किया तो भी साक्षी नहीं मानी और चाय बनाकर टेबल पर ला दिया ।

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फिर कमरे में जाकर जया को उठाने गयी । जया अभी नींद से ही जागी थी और अपनी चाय कमरे में ही मंगवा ली । साथ बैठकर चाय पीते – पीते प्रिया ने कहा..”भाभी ! तीन ब्लाउज सिलने के लिए लायी, कब तक सिल दोगी । साक्षी ने मुस्कुराते हुए कहा..जैसे ही सिल जाएगा कॉल करूँगी । जया भी अपनी चाय को एक किनारे रखी और बैग से ब्लाउज पीस निकालकर साक्षी को ये कहते हुए थमा दिया कि अभी दो दिन बाद चाहिए ।

साक्षी ने मना कर दिया ये कहकर कि दीदी..कम से कम दस दिन लगेंगे उसके बाद लेना । अब जया को तेज गुस्सा आयी । उसने बिना सोचे साक्षी को खरी – खोटी सुनाना शुरू कर दिया..”जब से आयी हो पूरा घर बर्बाद कर दिया है, हम दोनों बहनों में लड़ाई लगवा रही हो एक को ज्यादा और दूसरे को कम मान देकर  । कपड़े सिल – सिलकर तुम्हारे इतने नखरे बढ़ गए हैं, घर – खानदान पढ़ा होता तो जाने क्या करती ?

अब बहुत हो चुका था । आज जया ने इतना मुँह खोलकर कमल जी को अंदर से दुःखी कर दिया था । जया जैसे ही बोलकर कमरे में जाने लगी कमल जी की तेज आवाज कानों में गूँजी ..”जया ! इस तरह से बर्ताव नहीं कर सकती तुम अपनी भाभी के साथ ।  भाभी पर उंगली उठाने से पहले ये भी देख लो

कि तुम्हारे भाई के पास सिर्फ डिग्री थी बी. टेक की, जॉब तो नहीं ही कर रहा था, भाभी कैसे बहुत पढ़ी लिखी मिलेगी। और उसके खानदान तक जाने का तुम्हारा अधिकार नहीं ।   भूलो मत, तुम भी इसी घर से निकलकर ही पैसे वाली बनी हो ।लेकिन खुशी है

कि साक्षी घर को सँवारने में कोई कसर नहीं छोड़ रही ।जया ने भी गुस्से में कहा..”भाभी को देखा आपने ? प्रिया के कपड़े सिल देती है तुरन्त और मेरे कपड़े अपनी मनमर्जी से सिलती है । संध्या जी ने कहा..”बेटा ! ये उसके आय का साधन है, तुम्हें तो शुरू में ही बोल दिया था कि कुछ पैसे देकर सिलवाओ । रिश्ते अपनी जगह और पैसे अपनी जगह । जो पैसे वाले बाहर के काम आते हैं वो करके निश्चिंत रहेगी तभी तो घर का सिलेगी ।

जया ने कहा..”लालच भाभी का है और आपलोग मुझे जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । संध्या जी ने कहा..”बात को समझ बेटा, कोई लालच नहीं । पर सामने वाले को  एक उम्मीद एक खुशी और मेहनताना का इंतज़ार रहता है ।

जया के अंदर का गुबार शांत होने का नाम नहीं ले रहा था । वह बैग उठायी और साक्षी के हाथ से कपड़े छीनकर अपने बैग में डाल ली और टैक्सी बुलाने लगी । संध्या जी ने उसे शर्बत देते हुए कहा..”बेटा ! गुस्सा ठंडा करके सोचो । जब हम पैसे देकर सिलवाएँगे तो न सिलने वाले को ज़ोर पड़ेगा

न सिलवाने वाले को, और उसकी तो रोज़ी – रोटी भी यही है । जया जूती पहनते हुए आँखों मे आँसू भरकर बोली..”अन्याय है आपलोगों का । रूक जाओ बेटा ! पूजा में नहीं रहोगी तो अच्छा लगेगा ? लोग क्या कहेंगे । अब संध्या जी भी मायूस हो रही थीं ।

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कमल जी ने सख्ती भरे स्वर में कहा..”छोड़ दो संध्या जाने दो । किसी के लिए न कोई जीता है न किसी के बगैर कोई मरता है । जब इसे ये बात समझ आ जाए कि औपचारिकता भी जरूरी है रिश्तों में और एकतरफा रिश्ते नहीं निभते तभी ये यहाँ  कदम  रखेगी ।

मौलिक, स्वरचित

 अर्चना सिंह

#घर वापसी

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