“अन्नू तुम घर में बैठी हो, क्या नमानी एकादशी के नाम का शरबत गरीबों को पिला आयी या अभी जायेगी ?” संतोष ने अन्नू के घर में घुसते ही अन्नू पर कई प्रश्न दाग दिए।
” नहीं , पर आज ही क्यों संतोष ? अन्नू ने सहज भाव में पूछा।
” आज के दिन का पंडितों ने बहुत महात्म बता रखा है क्यूंकि जेष्ठ के महीने की एकादशी को बहुत गर्मी होती है। आज के दिन जो मीठा पानी लोगों को पिलायेगा उसके सब पाप धुल जायेंगे। ” संतोष ने अन्नू को समझाते हुए कहा।
“पर गर्मी पड़ते तो कई दिन हो गए। ” अन्नू ने फिर टोका।
” तुम समझती नहीं अन्नू , आज के दिन का धार्मिक महत्व है। ” संतोष ने थोड़ा झुंझलाते हुए कहा।
” गर्मी में ठंडा पानी प्यासे को किसी दिन भी पिला दो।उतना ही पुण्य है। मेरे ख्याल से तो आज के दिन से भी कहीं ज्यादा।”
” अन्नू को बीच में ही टोकते हुए संतोष बोली , ” वह कैसे ?”
“क्यूंकि आज तो जगह जगह लोग ज़बरदस्ती लोगों को पकड़ पकड़ कर पिला रहे हैं। बाकी दिन तो किसी गरीब और मजदूर को कोई गेट भी नही खोलता , गुस्सा और करते है कि नीँद खराब कर दी या कहते है समय असमय डिस्टर्ब कर देते हो अगर वह गलती से सड़क पर काम करता पानी के लिए किसी की बेल बजा दे। संतोष हमें पूरा साल ही अपने आस पास काम करने वाले गरीब लोगों का ध्यान रखना चाहिए। सर्दी है तो एक कप चाय , गर्मी है तो एक गिलास ठंडा शर्बत पिला दो , गेट के चौकीदार को , लिफ्ट वाले भैया को , सर्दी की बारिश में अखबार डालने वाले को , सड़क साफ़ करने वाले को न जाने कितने है जिनको ये एक कप चाय या आपका एक गिलास शरबत बहुत राहत देगा। सब लोग जो सामर्थ हैं अपने आस पास के लोगो का पूरा साल इतना सा ध्यान रखें तो फिर कहीं दूसरी बस्ती या दूर जाकर पानी पिलाने की ज़रुरत ही नहीं रहेगी। एकादशी वाले दिन दस किलो चीनी , बाकी दिन चार चम्मच भी नहीं। ऐसे पुण्य कैसे मिल सकता है। ” अन्नू ने विस्तार से संतोष को समझाया।
” अन्नू ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं। बस बचपन से ऐसा करते आ रहे हैं। मैं भी उस लकीर की फ़कीर बन गयी। अब मैं औरों को भी जागरूक करुँगी। ” कहती हुई संतोष खुश खुश वाय वाय कह कर अपने घर की और चल पड़ी।
डॉ अंजना गर्ग