हम लोग भाग्यशाली हैं जो हमें समझदार बहू मिली – क़े कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

वेंकट राव और पार्वती दोनों में वाद विवाद चल रहा था। वेंकट राव ने पार्वती से चाय माँगी तो पार्वती चाय लेकर आई उन्होंने चाय की एक घूँट पी और थूक कर कहने लगे कि तुम चाय में शक्कर क्यों नहीं डालती हो। पार्वती ने कहा कि आपको शुगर की बीमारी है कल ही तो टेस्ट कराया था और आपको शक्कर चाहिए। बडे आए शक्कर माँगने वाले मुँह को घुमाते हुए उनकी नकल उतारने लगी थी।

उनकी बातों को सुनते ही वेंकट राव ने गुस्से से चाय की कप टेबिल पर रख दिया और सीधे घर से बाहर निकल गए। दोपहर के खाने का समय हो गया था पर वे घर नहीं आए थे। पार्वती ने खाना खा लिया और बैठक में बैठकर टी वी देखने लगी। बहू शालिनी को चिंता होने लगी थी कि ससुर जी अभी तक घर नहीं पहुँचे हैं।

उसने पति देव को फोन करके सुबह की घटना को बताकर कहती है कि उसके बाद वे घर से जो निकले तो अब तक नहीं आएँ हैं। मुझे फिक्र हो रही है देव आप कुछ कीजिए ना। शालिनी जब तब उन दोनों की लडाई को अनदेखा न करते हुए उनके बीच सुलह कराने की कोशिश करती ही रहती थी।

वेंकट राव बैंक में तीस साल नौकरी करने के बाद रिटायर हुए थे। उनके दो बच्चे हैं बेटा देव,बहू शालिनी ,बेटी सविता और दामाद संजय एक ही शहर में रहते थे। रिटायर होने के बाद वेंकट राव बेटे के साथ ही रहने आ गए थे।

देव ने पूछा कि माँ क्या कर रही हैं। उन्होंने खाना खा लिया है क्या?

 शालिनी – हाँ माँ ने खाना खा लिया है और वे टीवी देख रहीं हैं। मुझे लगता है कि उन्हें फिक्र ही नहीं है यह कैसा रिश्ता है। देव – (सोचते हुए ) जब से पापा रिटायर हुए हैं मालूम नहीं इन दोनों को क्या हो गया है । सुबह से लेकर रात को सोने तक ये लोग लड़ते झगडते रहते हैं। कभी कभी तो छोटी सी बात का बतंगड बना देते हैं। तुम्हें याद है ना पिछले हफ्ते भी पापा ऐसे ही रूठ कर घर से चले गए थे। बडी मुश्किल से उन्हें हम ढूँढ कर लेकर आए थे।

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तुम माँ बनने वाली हो तुम्हारे बारे में एक बार भी उन्होंने नहीं सोचा। ठीक है तुम फोन रखो मैं आता हूँ।

देव ऑफिस से निकलकर घर आते हुए बहन सविता को फोन किया और उसे पिता के घर छोड़ कर जाने की बात बताई। सविता को भी माँ पिताजी पर गुस्सा आ रहा था।

उसने कहा मैं भी आती हूँ भैया आप फोन रखिए। देव घर पहुँचा उसके पहले ही सविता वहाँ पहुँच गई थी। उसने देव से कहा भैया अभी अभी पडोसी के बच्चे ने मुझे बताया है कि पापा पास के पार्क में बैठे हुए हैं। चलिए हम उन्हें मनाकर ले आते हैं। देव और सविता उन्हें मनाकर लाने के लिए पार्क में पहुँचे। वहाँ जाकर देखा तो वेंकट राव एक बेंच पर चुपचाप शून्य में देखते हुए बैठ हुए थे। अपने बच्चों को सामने देखकर उनकी आँखों से आँसू बहने लगे थे। उन दोनों ने पिता को बहला फुसलाकर घर लेकर आए।

सविता ने माँ पिता को समझाने की कोशिश की कि माँ पापा आप दोनों इस तरह लड़ते रहे तो भाभी के सेहत पर क्या असर पडेगा कभी तो घरवालों के बारे में सोच लिया कीजिए। पिता जी ने कहना शुरू किया कि तुझे नहीं मालूम है बिटिया तुम्हारी माँ मुझे कुछ भी खाने के लिए नहीं देती है। जब देखो तब बीमारियों को गिनाते हुए परहेज वाला खाना खाने के लिए देती है क्या करूँ बोल गुस्सा नहीं आएगा क्या?

कभी कभी लगता हैं मैं खुद बनाकर खा लूँ। तुम्हें याद है ना मैं पहले भी खाना बनाने की कोशिश करता था। मेरी बनाई हुई चाय की सब तारीफ भी करते थे। आज भी वो दिन याद आते हैं।

दीपावली के पहले दिन घर में बहुत सारे व्यंजन बनाए गए थे। इन लोगों ने देव के ऑफिस से आते ही उसे सब चखने के लिए दिया और मुझे ठेंगा दिखाकर तुम्हारी माँ चली गई थी। इस घर में शालिनी ही है जिसने मेरे लिए शुगर फ्री के लड्डू बनाकर खिलाए थे।

कल की ही बात है देव के लिए घी में तली पूरियां बनाकर दिए और मुझे सूखी रोटी पर घी चुपड कर खाने के लिए दिया था। सोच मुझे अच्छा लगेगा क्या?  बिचारी शालिनी ने मुझे घी में तली पूरियां खिलाया था । अभी पिता की बातें पूरी हुई भी कि नहीं वहाँ से माँ शुरू हो गई थी कि जब से शादी करके आई हूँ खाना ही बना रही हूँ ऊपर से इन्हें बी पी शुगर सब बीमारियाँ हैं परहेज नहीं करेंगे तो कैसे चलेगा।लेकिन ये हैं कि मेरी बात नहीं सुनते हैं।

तुम्हें मालूम है कल रात को मैं टी वी देख रही थी कि मेरे पास बैठकर कहते हैं कि मैं अगर तुमसे पहले मर गया तो क्या करोगी। मैंने मजाक में कहा कि क्या करूँगी आपका आधा पेंशन तो मिलेगा ही उससे आराम से जी लूँगी।

इसी बात से चिल्लाते हुए कहने लगे कि तुम मेरे मरने का इंतजार कर रही हो याने मेरे कारण तुम आराम नहीं कर पा रही हो यही कहना चाहती हो है ना। यही सब दिल में रखकर आज घर से भाग गए हैं।

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सविता ने दोनों की बातें सुनी दोनों को समझाया और चली गई। देव ने शालिनी से कहा कि मैं इन लोगों से तंग आ गया हूँ मुझे लगता है कि ऐसे ही चलता रहा तो हम अलग घर लेकर चले जाएँगे।

. शालिनी – देव आप यह क्या कह रहे हैं बचपन में आप और आपकी बहन भी लड़े होंगे तो माँ पापा ने ऐसा सोचा होता तो आप दोनों अभी कहाँ रहते थे। सोचिए!!!

आप उन दोनों की फिक्र मत कीजिए मैं उन्हें संभाल लूँगी। आप जैसा समझते हैं वे दोनों वैसे नहीं हैं उन दोनों में बहुत प्यार है समझे ना।

देव- हाँ तुमने यह सच ही कहा है कि हम दोनों बचपन में बहुत लड़ते थे। वे हमें कुछ नहीं कहते थे । परंतु यह तुम कैसे कह सकती हो कि उन दोनों में बहुत प्यार है।

. शालिनी ने कहा कि रहने दो देव मैं उन दोनों को सँभाल लूँगी आप बेफिक्र रहिए। देव ने कहा कि तुम्हारी मर्जी तुम्हें जैसे करना है वैसे ही करो अपनी तबियत का खयाल रखना बस।

दूसरे दिन देव नाश्ता करके ऑफिस चला गया वेंकट राव भी नाश्ता करके पेपर पढ़ने के लिए चले गए। . शालिनी और पार्वती नाश्ता कर रहे थे कि . शालिनी ने कहा कि माँ हम शापिंग के लिए चलते हैं। पार्वती ने कहा कि तुम लोग तो दोनों मिलकर शापिंग कर लेते हो फिर आज मैं क्यों? . शालिनी ने कहा कि माँ शापिंग के बहाने मुझे भी थोडा घूमने को मिल जाएगा। उसके बार बार कहने पर पार्वती तैयार होकर बहू के साथ बाजार चली गई थी।

. शालिनी ने उन्हें शापिंग करना ऑन लाइन पैसे ट्रांसफर करना सिखाया उसे मालूम है कि यह एक दिन में नहीं हो जाएगा। वहीं से उन्हें सिटी सेंट्रल लाइब्रेरी लेकर गई। वहाँ इतने सारे पुस्तकों को देखते ही पार्वती बच्चों के समान किल कारियाँ मारते हुए इधर उधर घूमने लगी I उन्हें इस तरह कूदते हुए देख . शालिनी को आश्चर्य हुआ। पार्वती ने कहा कि बहू पुस्तकों को देख सकती हूँ क्या ?

शालिनी ने पार्वती को वहाँ बिठाया और खुद वहाँ जाकर मेंबरशिप कार्ड लेकर आई और पार्वती से कहा आप अपने लिए पुस्तकों को चुन लीजिए। पार्वती जल्दी से अल्मारी के पास जाकर अपनी मन पसंद लेखिका की दो पुस्तकें ले आई। रास्ते में उसने बहू से कहा कि तुम्हें मालूम है मैं बचपन में बहुत सारी पुस्तक पढ़ती थी।

पार्वती घर पहुँचकर सीधे कमरे में चली गई और पुस्तक पढ़ना शुरू कर दिया था I

शाम के चार बजते ही वेंकट राव शालिनी के पास रसोई में आए और कहा कि बेटा एक कप चाय मिलेगी क्या ?

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शालिनी चाय बनाने के लिए आई तो वेंकट जी ने कहा कि बहू आज मैं चाय बनाऊँगा तुम हटो। उन्होंऩे बडी ही शिद्दत से चाय बनाई डाइनिंग टेबिल पर तीन कप चाय रखकर सबको बुलाया। शालिनी और पार्वती भी आ गए सबने साथ में मिल कर चाय पिया । पार्वती ने कहा बहू चाय अच्छी बनी है और वह कमरे में जाकर पुस्तक पढ़ने लगी।

शाम को शालिनी जब खाना बनाने आई तो वेंकट जी भी आ और कहा कि मैं खाना बनाने में तुम्हारी मदद करूँ। शालिनी खुशी खुशी तैयार हो गई।

उन्होंने कहा कि तुम सब्जियाँ काटकर देदो मैं आज बिरियानी बनाऊँगा। शालिनी खुश होकर उनके साथ मिलाकर सारी तैयारियाँ करवाई और वेंकट ने बिरियानी बनाई। आज उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था। देव के आने के बाद रात को सब डिनर के लिए आए और खाना खाने लगे। देव ने कहा वाह शालिनी आज बिरियानी बहुत अच्छी बनी है। पार्वती ने भी खाते हुए कहा कि हाँ शालिनी आज तुमने बिरियानी बहुत अच्छी बनी है।

शालिनी ने हँसते हुए कहा कि आज का खाना पापा जी ने बनाया है। देव और पार्वती दोनों आश्चर्य चकित हो गए। दूसरे दिन शालिनी पार्वती को लेकर बैंक गई वहाँ पैसे डिपोजिट कैसे करना है पैसे कैसे निकालना हैं यह सब सिखाया। उसने देखा कि पार्वती को बाहर के काम करना और पुस्तकें पढ़ना  बहुत पसंद है। उन्होंने बैंक के काम आसानी से समझ लिया था।

कुछ दिनों में ही पार्वती बाहर के सारे काम आसानी से करने लगी थी। वह ऑन लाइन पुस्तकें खरीदना सामान मंगाना सब करने लगी।  वेंकट जी यू ट्यूब में देखकर बहुत सारे व्यंजन . बनाऩे में व्यस्त हो गए। इस तरह घर में झगड़े खत्म हो गए दोनों ही अपने अपने कामों में खुश थे।

एक रविवार को बेटी सविता और दामाद को भी खाने के लिए बुलाया गया। सविता घर के हालात देखकर बहुत खुश होकर कहती हैं कि शालिनी तुमने तो कमाल कर दिया है।

शालिनी ने कहा कि मैंने तो कुछ नहीं किया है दीदी उन दोनों में प्यार बहुत है उस प्यार की वजह से ही वे एक दूसरे के लिए डरते थे। माँ को लगता था कि मैं नहीं रहूँ तो उनका क्या होगा क्योंकि उन्हें एक कप चाय बनानी भी नहीं आती है।

पापा जी को डर था कि माँ को बाजार के काम नहीं आते हैं उनके जाने के बाद वे कैसे सारे काम करेंगी बस यही बात है इसका ही मैंने निवारण कर दिया है इसलिए वे दोनों खुश हैं। उसी समय पार्वती और वेंकट जी आ गए और दोनों ने एक साथ कहा कि बहू हम लोग भाग्यशाली हैं जो हमें ऐसी समझदार बहू मिली है।

क़े कामेश्वरी

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