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अब तक आपने पढ़ा- मेजर बृजभूषण पांडे की उर्वशी के साथ सगाई तय हो जाती है, 28 मई को उन दोनों का विवाह भी तय हो जाता है, सगाई और विवाह की तारीखों के मध्य मेजर पाण्डे और उर्वशी का रोमांस चरम पर ही था, कि तभी कारगिल युद्ध की सुगबुगाहट से मेजर पांडे सहित सभी सैनिकों की छुट्टियां रद्द हो जाती हैं, और उन्हें स्पेशल ट्रैन से जम्मू कटरा तक ले जाया जाता है..
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अब आगे..
कटरा पँहुचते ही मेज़र पांडे और उनकी टीम को रेलवे स्टेशन से ही सेना की बख्तरबंद गाड़ी से द्रास सेक्टर तक पहुंचाया जाता हैं.. यहाँ से NH-1 सड़कमार्ग से कारगिल तक पहुँचना फ़िलहाल असम्भव था, क्योंकि पाकिस्तानी सेना के जवानों ने पहले से ही तैयारी करके ऊँचाई की चोटियों पर बंकर बना रखे थे, सभी बंकर अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित थे, इसके अलावा उनके पास खाने पीने का रसद पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध था।
यह पाकिस्तानी सैनिक कारगिल तक पहुँचने के एकमात्र सड़क लेह लद्दाख मार्ग NH 1 पर जाने वाले प्रत्येक सेना के वाहन पर निशाना बनाकर गोलाबारी कर रहे थे, जिससे भारतीय फौज का प्रारंभिक चरण में बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा था।
जब तक पर्याप्त मात्रा में रसद पानी, गोला बारूद, हथियार नहीं पहुँच जाते, राजनीतिक स्तर पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने पर्याप्त अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाना शुरू कर दिया था.. कूटनीतिक स्तर पर भारत को सफलता मिलना भी प्रारंभ हो गई थी।
पाकिस्तान को हमेशा ही समर्थन करने वाले चीन ने इस विवाद में पूर्णतया तटस्थ रहने का निश्चय किया, वहीं अब तक के सभी युद्धों में पाकिस्तान का साथ देने वाली महाशक्ति अमेरिका ने इस युद्ध के लिए पाकिस्तान को ही जिम्मेदार मानते हुये किसी भी प्रकार की मदद करने से इंकार कर दिया। बिल क्लिंटन ने तो नवाज शरीफ को मिलने के लिए वक्त तक नहीं दिया।
भारतीय सेना के लिए इस युद्ध को जीतने का आसान रास्ता था कि वह बॉर्डर क्रॉस करके पाकिस्तान के बड़े भूभाग पर कब्जा कर ले, और उस कब्जे के बदले “निगोशिएशन” के एवज में कारगिल के इस क्षेत्र को उनसे मुक्त करवा ले, परन्तु चूंकि अबतक पाकिस्तान की सेना घुसपैठियों के रूप में वहां आयी थी इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे युद्ध की संज्ञा नहीं दे रहा था..और ऐसा करने से अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत को ही युद्ध भड़काने का दोषी मानता, जिससे अब तक मिला अंतराष्ट्रीय समर्थन व्यर्थ चला जाता। दूसरा हार की स्तिथि में पाकिस्तान अपने परमाणु हथियारों का प्रयोग भी कर सकता था।
भारतीय सेना को मई एवम जून मध्य तक कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी, बल्कि उसके दो विमान दुश्मन द्वारा गिराये जा चुके थे जिससे पाकिस्तानी सेना का मनोबल बहुत बढ़ा हुआ था, जबकि भारतीय खेमें में निराशा की लहर थी।
आखिरकार जून खत्म होते होते कमांडिंग ऑफ़िसर महेंद्र सोलंकी ने कारगिल क्षेत्र को दुश्मन से मुक्त करने का बीड़ा उठाया … “ऑपरेशन सर्वविजय के तहत” अब भारतीय फ़ौज ने भी पलटवार शुरू कर दिया था.. हेलीकॉप्टर की मदद से लाइट आर्मरी, मशीनगन, बोफ़ोर्स तोप द्रास तक पहुँचाई जाने लगी.. पर्याप्त मात्रा में गोला बारूद आने के बाद भारतीय फ़ौज ने सबसे पहले एक एक करके अपनी सभी चोटियों को वापस लेकर दुश्मन को खदेड़ने का प्लान बनाया.. टाइगर हिल, बटालिक की पहाड़ियां, और तोलोलिंग सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पहाड़ियां थी, लिहाजा भारतीय फ़ौज ने सबसे पहले इन्हीं चोटियों को मुक्त कराने का प्लान बनाया।
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कमांडिंग ऑफिसर महेंद्र सोलंकी ने मेज़र पांडे और उनकी टीम को द्रास सेक्टर के पॉइंट 5142 को वापस कब्जा करने के लिए बनी टीम में रखा गया था.. 18 लोगों की इस टीम को पुनः 6- 6 लोगों की टीम अल्फा, चार्ली और बीटा नाम से बांटकर एक दुसरे के बेकअप प्लान के रूप में काम करने की जवाबदेही दी गई थी अल्फा टीम की जवाबदेही कैप्टन अजय शर्मा को, बीटा टीम की जवाबदेही मेज़र पांडे और चार्ली टीम की जवाबदेही कैप्टन आनंद राठौड़ को दी गई थी..
प्लानिंग के हिसाब से रात में ही तीनों टीमों ने 100 मीटर के अंतराल की दूरी बनाते हुये, एक दूसरे की बेक-अप टीम के रूप में कार्य करना था, पहली टीम के विफ़ल होने पर दूसरी टीम मोर्चा सम्हालती, फिर तीसरी टीम.. सबसे दुष्कर कार्य उस सीधी पहाड़ी पर चढ़ना था और दुश्मन को मारकर अपने मिशन को अंजाम देना था..
कमांडिंग ऑफीसर महेंद्र सोलंकी से विशेष अनुमति लेकर मेज़र पांडे ने रात में अपने माता पिता को फोन करके उनसे आशीर्वाद लिया और फिर उर्वशी को फ़ोन लगाकर कहा..
“उर्वशी मैं अपने देश के लिए सबसे महत्वपूर्ण मिशन पर हूँ.. हो सकता है हम विजयी हो जायें.. पर यदि मुझे कुछ हो गया, या मैं वापस न लौटा तो तुम दूसरा ब्याह रचा लेना.”.
उर्वशी सिसक पड़ी.. वह कुछ बोले उससे पहले ही मेज़र पांडे ने फ़ोन कट कर दिया।
मेज़र पांडे अपनी “बीटा” टीम को लीड करतें हुये अल्फा टीम से 100 मीटर की दूरी पर चल रही थी.. उसके पीछे 100 मीटर की दूरी पर कैप्टन आनंद राठौड़ की चार्ली टीम चल रहीं थी..
चूंकि यह सीधी पहाड़ी चढ़ाई थी इसलिए अल्फा टीम ने अपने सारे हथियारों को नीचे ही छोड़कर धीरे-धीरे रस्सी के सहारे पहाड़ी चढ़ना शुरू कर दिया..उनके ऊपर सुरक्षित स्थान पहुचने के बाद उनकी फेंकी रस्सी पर अल्फ़ा टीम के हथियारों को नीचे बीटा टीम ने बांध दिया जो कि अल्फ़ा टीम ने ऊपर खींच लिये गये।
इसके बाद अल्फ़ा टीम ने बीटा टीम के भी सारे हथियार ऊपर रस्सी के सहारे खींचकर, उसी “सुरक्षित स्थान” पर रखकर रस्सियों को बीटा टीम के चढ़ने के लिए छोड़कर अल्फ़ा टीम ऊपर अगली चढ़ाई चढ़ने में लग गई।
इस प्रकार एक चैन की तरह वह तीनों टीमें धीरे-धीरे अपने निर्धारित लक्ष्य की तरफ पहुँचने का प्रयास करने लगी।
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अगले दिन टेलीविजन पर दोपहर के समाचारों में प्रमुख रूप से दो ही खबरें थी..
- भारतीय फ़ौज ने द्रास सेक्टर के पॉइंट 5142 को कैप्टन अजय शर्मा की टीम के अदम्य शौर्य और साहस की वजह से वापस पा लिया है।
- द्रास सेक्टर के किसी स्थान से पाकिस्तानी सेना द्वारा 6 भारतीय जवान “बंधक” बनाये गये।
जहां पहली ख़बर से पूरा देश गर्व से रोमांचित हो उठा था .. वहीं दूसरी ख़बर ने प्रधानमंत्री और सेनाधिकारियों सहित पूरे देश को चिंतित कर दिया था। मेज़र पांडे और उनकी पूरी “बीटा टीम’ को पाकिस्तान द्वारा बंधक बना लिया गया था।.
पूरा भारत देश किसी अनिष्ट की आशंका से कांप उठा था..सभी उनकी सकुशल वापसी के लिये ईश्वर से प्रार्थना कर रहें थे।
अखिरकार वही हुआ जिसकी आशंका थी.. दो दिन पश्चात द्रास सेक्टर कि एक चोटी से नीचे बीटा टीम के लापता 6 में से 5 जवानों के शव पाये गये..उनके साथ घनघोर अत्याचार किया गया, उन्हें इतनी अमानवीय यातनाएं दी गई थी कि लाशों को पहचान पाना भी मुश्किल हो रहा था।
जगह जगह सिगरेट से जलाने के निशान, आँख नाक, कान एवम अन्य अंगों को चाकू से गोद दिया गया था। अपने साथियों के साथ इस तरह का अमानवीय व्यवहार देखकर सैनिकों का खून ख़ौल उठा.. वह सभी पाकिस्तान से बदला लेने को और उसे कड़ा सबक सिखाने को लालायित थे।
उन लाशों पर कपड़े भी तक न थे, शारीरिक बनावट एवं गले में पड़े लॉकेट के आधार पर मेज़र पांडे सहित चार अन्य को “शहीद घोषित” कर दिया गया जबकि एक अन्य की जोर शोर से तलाश जारी थी।
फ़ोन के माध्यम से मेज़र पांडे के पिता मेज़र पांडे के “शहादत” की सूचना दी। पूरा उमरिया जिला शोक में डूब गया..
इधर न्यूज़ चैनल के माध्यम से जब उर्वशी को मेज़र की शहादत का पता चला तो वह न्यूज़ देखते देखते ही बेसुध हो गई..
अब तक उर्वशी को पिता का भी फ़ोन आ चुका था..वन्दना दीदी और पंकज जीजाजी ख़ुद आनन-फानन में अपनी कार से शिमला आ गये उर्वशी के पास, वह जानते थे कि उर्वशी इस खबर से टूट जायेगी..
जैसे तैसे उर्वशी ने हिम्मत करके मेज़र पांडे के पिता से इस बारें में बात की। उन्होंने बताया कि अगले दिन सेना के हेलीकॉप्टर से मेज़र पांडे का शव एक ताबूत में रखकर उमरिया लाया जाएगा..
मुख्यमंत्री सहित सभी प्रदेश के प्रसिद्ध महानुभावों के बीच पूरे राजकीय सम्मान के साथ मेज़र पांडे का अंतिम संस्कार किया जाएगा।
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उर्वशी को लेकर वन्दना दीदी और पंकज जीजाजी फ़िर से दिल्ली आकर दिल्ली- जबलपुर विमान से शाम को ही जबलपुर पहुँचते हैं, फिर वहाँ से एक टैक्सी करके सीधा उमरिया में मेज़र पांडे के पिता के घर पहुंचते हैं। उनके यहाँ मिलने-जुलने वालों का तांता लगा हुआ था। मेज़र पांडे के पिता अब तक निर्विकार भाव से उन सभी आने जाने वालों को देख रहें थे।
मग़र उर्वशी को देखते ही मेज़र पांडे के पिता फूटफूटकर रोने लगें.. बोले बेटी.. क्या सोच रहा था और क्या हो गया.. मैं तो स्वप्न देख रहा था कि तुम “ब्रज” की दुल्हन बनकर मेरे घर आओगी कितनी रौनक रहेगी हमारे घर में .. और देखो अब क्या हो गया ..
दूसरे दिन सुबह से ही मेज़र पांडे के घर में गहमागहमी थी..
देश के प्रतिष्ठित मीडिया पत्रकार तरह तरह से प्रश्न करके मेज़र पांडे के पिता, माँ, भाई-भाभी, भतीजों, उर्वशी और यहाँ तक कि उनके साथ पढ़े मित्रों के इंटरव्यू ले रहें थे। कुछ चैनल सीधा प्रसारण दिखा रहें थे।
स्थानीय कलेक्टर, तहसीलदार, विधायक सभी मेज़र पांडे के पिता घर के बाहर रूककर मेज़र पांडे के शव की प्रतीक्षा कर रहें थे.. विधायक के निर्देश पर उनके घर के बाहर टेंट कुर्सी टेबल लग चुके थे, विधि की विडंबना देखिए 28 मई को मेज़र पांडे के विवाह के लिए एडवांस बुकिंग कर चुके टेंट हाउस ने ही इसके लगभग पखवाड़े भर बाद उन्हीं की शोकसभा के लिए अपने पंडाल लगा रखें थे।
लगभग 11 बजे सेना के विशेष हेलीकॉप्टर से उमरिया में एक अस्थायी हेलीपैड पर हेलीकॉप्टर उतरा.. अबतक हज़ारों लोग उस जगह पर इकट्ठा हो चुके थे..उनके शव के ताबूत को एक ट्रक में रखकर सेना के जवान धीरे धीरे मेज़र पांडे के पिता के घर की तरफ़ ले जा रहें थे। लगभग 20 मिनटों बाद मुख्यमंत्री भी हेलीकॉप्टर से आ चुके थे..
उमरिया जिले में ऐसा पहली बार हो रहा था कि मुख्यमंत्री के काफ़िले से 100 गुना ज्यादा लोग किसी स्थानीय व्यक्ति के काफिले में आये हों..
और ऐसा हो भी क्यों नहीं वह कोई सामान्य व्यक्ति थोड़ी था … वह तो देश का हीरो बन चुका था। जल्द ही मुख्यमंत्री जी का काफिला मेज़र पांडे की शवयात्रा के काफिले से जा मिला..
पूरे रास्ते भर मेज़र पांडे अमर रहें..
भारत माता की जय..
वन्दे मातरम..
पाकिस्तान मुर्दाबाद..
हिंदुस्तान जिंदाबाद..
के नारे लग रहें थे..
स्थानीय लोगों में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा भड़क रहा था।
मेज़र पांडे के निवास स्थान के समीप बने पांडाल में उनके शव को रखा गया.. उस ताबूत पर तिरंगा ओढाया गया..मेज़र पांडे के पिता, माँ, उर्वशी, भाई- भाभी सभी ने उनके शव के बन्द ताबूत पर पुष्प हार अर्पित कर रहें थे..उन्होंने बहुत आग्रह किया कि अंतिम बार उनके पुत्र के चहरे के दर्शन करने दिये जायें ..
मगर सेना अधिकारियों ने यह कहकर मना कर दिया कि मेज़र पांडे का शव इतना विभत्स हो चुका है कि इस ताबूत को खोलते ही स्थानीय लोगों में गुस्से के मारे रोष फैल जायेगा.. जिससे इस समय अराजकता फ़ैल सकती हैं।
सभी गणमान्यों के अंतिम दर्शन एवम पुष्प गुच्छ अर्पित करनें के बाद शवयात्रा को श्मशान घाट की तरफ़ ले जाया गया।
अब पीछे वाले वाहनों में देशभक्ति गीत बजने लगे थे हज़ारों की भीड़ लाखों में तब्दील होने लगी थी.. सभी अपने लाडले को भावभीनी विदाई दें रहें थे।
नशा “वतनपरस्ती” का कुछ इस तरह था मुझमें.
लाश भी आये मेरी तो, बस “तिरंगे” के कफ़न में
चिता पर वह शव रखकर लकड़ियों से ढंक दिया गया था। सेना की सलामी के बाद मेज़र पांडे के पिताजी ने “दाहसंस्कार ” किया..
सभी लोग दुःखी मन से अपने अपने घरों में लौटने लगे..
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कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग-17) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi
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अविनाश स आठल्ये