कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग-13) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi

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अब तक आपने पढ़ा- संयोग से दिल्ली जाते समय उर्वशी को उसका प्रेमी मेजर बृजभूषण पांडे शताब्दी एक्सप्रेस में ही मिल जातें हैं, वंदना दीदी एवम पंकज जीजाजी के यहाँ उनका डिनर पर स्वागत होता है, उसके बाद हर रविवार उन दोनों की फ़ोन पर ढेरों बातें होने लगी, आज 14 फ़रवरी “वेलेंटाइन डे” है, इसलिए मेजर बृजभूषण पांडे अपनी प्रेमिका उर्वशी को प्रेम का इज़हार करने अंबाला से शिमला बाइक से आया है।

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अब आगे..

उर्वशी के लिए बहुत रोमांचित करनें वाला पल था वह, उसे जीवन में पहली बार किसी ने वेलेंटाइन डे की शुभकामनाएं देकर “प्रपोज़” किया था, और वह भी इस अंदाज में सरप्राइज देते हुए.. उर्वशी ने तो इसकी कल्पना भी न की थी। उसने घुटनों के बल गुलाब लिये हुये मेज़र पांडे को अपने हाथों का सहारा देकर उठाया और मुस्कुराते हुए वह गुलाब स्वीकार किया और कहा “हैप्पी वेलेंटाइन्स डे यू टू”…

मेज़र  पांडे की इच्छा हो रही थी कि वह उसी वक़्त उर्वशी को अपनी बाहों में भर ले, मग़र उसकी हिम्मत ही न हुई।

यहाँ तक कैसे आये.. ? उर्वशी ने मेज़र पांडे के मनोभावों को पढ़ते हुये रोमांटिक माहौल बदलने की चेष्टा की..

एक फ्रेंड की “रॉयल एनफील्ड” बाइक  है, बस उसी को उठाकर चला आया।  लगभग 150 किलोमीटर का सफ़र मात्र चार घण्टे में पूरा हो गया… मेज़र पांडे ने कहा..

क्या? तुम 150 किलोमीटर का सफ़र बाइक से करके आये हो? उर्वशी ने अचंभित होकर पूछा।

अरे पहाड़ियों पर घूमने का जो मज़ा “रॉयल एनफील्ड” में हैं वह मज़ा तो बीएमडब्ल्यू या फ़रारी में भी नहीं है, बिल्कुल रॉयल लुक लगता है, तुम भी चलो मेरे साथ, हम बाहर घूमकर आते हैं, मेजर पांडे ने कहा.

कमाल का आशिक़ हैं यह तो 150 किलोमीटर बाइक चलाकर आया है और माथे पर शिकन तक नहीं है।  इसे इसका जुनून कहूँ या पागलपन मग़र यह तो तय है कि मेजर पांडे मुझसे प्यार बड़ी शिद्दत से करतें हैं।  उर्वशी मन ही मन सोच रही थी..

तभी मेज़र पांडे ने उर्वशी को फिर से पूछा.. किस सोच में डूबी हो, झटपट तैय्यार हो जाओ हम बाहर घूमकर आतें है।

उर्वशी ने कहा, अरे सोच नहीं रही कुछ,बस यह पूछना था, पहली बार घर आये हो, इतनी दूर से बाइक चलाकर आये हो, थोड़ा रेस्ट कर लो, मैं चाय नाश्ता बनाती हूँ तब तक।

अरे कुछ भी औपचारिकता करनें की जरूरत नहीं, मैं तो तुम्हारे इस खिले हुये चेहरे को देखकर ही तरोताजा हो गया हूँ, तुम चाय नाश्ता वगैरह मेरे साथ किसी रेस्टोरेंट में कर लेना….मेजर पांडे ने कहा

Ok मैं रेडी होकर आती हूँ, तुम इंतज़ार करो यहीं…उर्वशी ने कहा

जब से उर्वशी उस घर में रह रही थी , पहली बार कोई आदमी उसके घर के अंदर तक आया था, इसलिए उर्वशी अपनी प्राइवेसी को लेकर बहुत ही ज्यादा सतर्क रहा करती थी। मगर मेज़र पांडे पर तो वह भरोसा करती थी, आखिर वह उसके लिए कोई “पराया” नहीं, उसका ‘अपना” होने वाला था।

यार कितना वक़्त लगा रही हो, वैसे ही इतनी सुंदर हो.. बमुश्किल 10 मिनट ही हुआ होगा उर्वशी को तैयार होने के लिए और मेजर साब ने अलार्म बजाना शुरू कर दिया था।

एक तो जनाब बिना बताये ही चले आये और ऊपर से सोच रहे हैं कि मैं पहले से तैयार बैठी मिलूं, उर्वशी को तैयार होते समय टोकाटाकी बिल्कुल पसंद नहीं थी, इसलिए वह गुस्सा हो रही थी।

उर्वशी ने अपना फेवरेट लाल रंग का ड्रेस पहना था, बस उसी की मैचिंग का लिपस्टिक ही लगा पाई और मेज़र साब जल्दी मचाने लग गये थे, उसके मैचिंग के कंगन, झुमके और हार तो उर्वशी ने पहना ही न था अब तक…

वह ऐसे ही चली आई बाहर और मेजर पांडे से बोली 10 मिनट और रुको, मैं पूरी तरह से तैयार हो जाती हूँ।

मेज़र पांडे उर्वशी को देखता है तो बस देखता ही रह जाता हैं। बोला उफ़्फ़ क्या लग रही हो तुम इस लाल ड्रेस में, पूरी कयामत लग रही हो तुम, अब इससे ज्यादा और क्या कोई सुंदर हो भी सकता है..

मेज़र पांडे की बातों से ही उर्वशी के गालों पर शर्म से लालिमा छा गई, उसे जिसके लिए नख शिख श्रृंगार करना था, जब वहीं उसके बिना ही यूँ लट्टू हुये जा रहा था तो और श्रृंगार की क्या जरूरत थी उर्वशी को।

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मेज़र पांडे नीली जीन्स और सफेद शर्ट में बिल्कुल “कूल” नज़र आ रहे थे, उर्वशी उनके पीछे रॉयल एनफील्ड पर बैठ गई..  वह शिमला से थोड़ा ऊंचाई पर पहाड़ी पर चले जा रहे थे, रॉयल एनफील्ड की “धुक-धुक-धुक” की रिदम से आती हुई अवाज़ उर्वशी के दिल की धड़कनें बढ़ा रही थी।

जैसे ही मेज़र पांडे ब्रेक लगाते, उर्वशी का शरीर गाड़ी के गति आवेग में उनसे टकरा रहा था, उर्वशी को पहली बार इस प्रकार का अनुभव सुखद लग रहा था।

रास्ते में ही शिमला के एक रेस्टोरेंट में चाय नाश्ता करके वह दोनों पुनः शिमला के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने लगे। शिमला से दूर निकलते ही उर्वशी ने मेजर पांडे से बाइक रोकने को कहा, और उसके बाद वह दोनों तरह पैर करके उस रॉयल एनफील्ड में बैठ गई, इधर मेज़र पांडे ने भी बाइक की रफ़्तार बढ़ा दी, उस पहाड़ी घुमावदार रास्तों पर इतनी रफ़्तार से रॉयल एनफील्ड में घूमना मानो हवा से बातें करना होता है।

आगे सड़क थोड़ी भीगी सी नज़र आ रही थी, ज़मीन की सोंधी खुशबू उर्वशी को दीवाना बनाये जा रही थी, वह मेजर  पांडे के कंधों को पकड़कर और पास आकर बैठ गई.. उसका मन कर रहा था कि वह अपनी दोनों बाहें फैलाकर मेज़र पांडे को उनमें समेट ले।

मेजर पांडे ने आगे चलकर एक जगह बाइक रोकी और उर्वशी का हाथ पकड़कर छोटी सी पहाड़ी के पार एक सुंदर सी झील तक ले गया।

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दोपहर में सूरज की सीधी किरणों से उस झील का पानी चाँदी के दर्पण जैसा चमक रहा था। उसके किनारे चीड़, देवदार के वृक्षों की छाया की किसी चित्रकार की अनुपम कृति का बोध करा रही थी।

उर्वशी मंत्रमुग्ध सी उस दृश्य को देखे जा रही थी।

उर्वशी… मेज़र पांडे की आवाज़ से उर्वशी युँ चौकी जैसे किसी ने उसे नींद से जगा दिया हो।

हूँ…उर्वशी ने उस प्राकृतिक सौंदर्य को निहारना छोड़कर, अपने प्रियतम की आँखों में झाँका, निश्छल प्रेम से ओतप्रोत वह आँखें किसी का भी मन मोह सकती थी, फिर मेज़र पांडे ने हज़ारों लड़कियों को ठुकराकर उसमें ऐसा क्या देख लिया जो उसका ही होकर रह गया.. ऊर्वशी ने उस झील से तो खुद को बचा ली मग़र उन झील से भी गहरी आँखों में डूबने से ख़ुद को न रोक सकी।

उर्वशी मुझे तुमसे कुछ कहना है.. मेज़र पांडे ने उर्वशी का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा..

उर्वशी सच कहूं तो मैं यह वेलेंटाइन.. दिवस वगैरह नहीं मानता.. यह सब इंग्लिशतानी चोचले हैं … एक दिन कस्में वादें करने के बाद वर्ष भर तक भी एक दूसरे से बंधे नहीं रह पाते यह प्रेमी.. दरअसल इन्हें प्रेम का अर्थ ही नहीं पता.. यह लोग सिर्फ ज़िस्म को पा लेना ही प्रेम समझतें हैं।

उर्वशी मैं तुम्हें महादेव की तरह प्रेम करता हूँ, युगों युगांतर तक मैं रहूँ या न रहूँ, तुम रहो या न रहो मग़र हमारा प्रेम सदा जीवित रहेगा.. हमारा प्रेम अमरत्व को प्राप्त करेगा।

मैने तुम्हें वन्दना भाभी की शादी में देखते ही पसन्द कर लिया था, मग़र तुम्हारी रजामंदी जाने बिना अपनी तरफ़ से प्रेमप्रदर्शन करना मुझे एक तरफा सा प्यार लगा इसलिए मैं ख़ामोश रहा, मगर मैं आज तुमको अपने दिल के जज़्बात कहना चाहता हूँ।

मैं एक फौजी हूँ, और फौजी सबसे पहले अपने वतन को चाहता है, इसके बाद में किसी को सबसे ज्यादा चाहता हूँ तो वह तुम हो उर्वशी..

मग़र फौज़ी की जिंदगी बहुत संघर्षमय होती हैं, यहाँ पग-पग पर “मौत मुँह बाएं करके” खड़ी रहती है, न जाने किस वक्त दुश्मन की गोली “मौत” बनकर सामने आ जाये.. न जाने किस पहाड़ी से फिसलकर मौत आ जाये या कब किसी बर्फीले तूफान में फंसकर सदा के लिए ठंडे हो जाये।

उर्वशी बोलों, क्या तुम इतने ख़तरों के बाद भी मुझसे विवाह करनें को तैयार हो?

तुम्हारा जवाब “ना” में हो तो भी मुझे बेझिझक कहना, मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि इससे हमारी दोस्ती पर कोई आँच नही आएगी।

उर्वशी स्तब्ध होकर मेज़र पांडे की बातें  सुनती रही…

उर्वशी का निर्विकार चेहरा देखकर मेज़र पांडे ने कहा, मैं जानता था कि शायद मेरा प्रेम कभी भी परिपूर्णता को नहीं प्राप्त कर सकेगा, इसलिए मैं तुमसे प्रेम प्रदर्शन करने से बचता रहा।

लेकिन ईश्वर की सौगंध तुम ही मेरा पहला प्रेम थी, और तुम ही मेरा अंतिम प्रेम रहोगी, मैं किसी अन्य से विवाह नहीं करूंगा।

चलो अब देर हो रही है, मैं तुम्हें घर पर छोड़ देता हूँ.. मेजर पांडे ने खुद को नियंत्रित करते हुये कहा।

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