अब तक आपने पढ़ा- उर्वशी अपनी वंदना दीदी और पंकज जीजाजी के घर मेजबान बनकर आये मेजर बृजभूषण पांडे, को प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती, लज़ीज़ खाने के बाद संगीत का कार्यक्रम होता है जिसमें वह बॉम्बे फ़िल्म का चित्रा जी द्वारा गाया प्रसिद्ध गीत “कहना ही क्या” गाकर सुनाती हैं…
अब आगे..
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डिनर करके, सभी लोग फिर से गप्पें मारने लग गए, रात के 11.30 कब बज गये पता ही न चला, फिर अचानक मेज़र पांडे को याद आया कि उसका मित्र पंकज अब बैचलर नहीं है, इसलिए ज़्यादा देर रुकना उचित नही होगा।
उन सबसे विदा लेकर मेज़र पांडे अपने गंतव्य चले गये, इधर उर्वशी भी दूसरे रूम में सोने चली गई। वंदना और पंकज जी भी अपने कमरे में चले गये।
दूसरे दिन सुबह उठकर उर्वशी की दिनचर्या शुरू हो गई, नाश्ता करने के बाद वह टैक्सी से अपने ऑफिस का काम निपटाने चली गई, पंकज जीजाजी भी रेडी होकर अपनी कार से ऑफिस के लिये निकल गये।
उर्वशी ने सोचा कि उसे ऑफिस का काम निपटाने में ज़्यादा से ज़्यादा 1 बजेगा, उसके बाद वह घर पहुँच कर वंदना दीदी के साथ दिल्ली में ढेर सारी शॉपिंग करेगी, मग़र उसे लगभग 5 बज गये काम खत्म करते करते, फिर उस ट्रैफिक में टैक्सी से वंदना दीदी के घर पहुँचते पँहुचते 7.30 बज ही गया। घर पहुँच कर चाय पीकर उर्वशी बिस्तर पर ही निढ़ाल हो जाती हैं।
लगभग 8 बजे पंकज जीजाजी भी ऑफिस से आ गये थे। डिनर करके कुछ देर टीवी देखने के बाद सभी अपने रूम में सोने चले गये।
अगला दिन यानी 26 जनवरी उर्वशी का अवकाश था, इसलिए उसने सोचा कि वह आराम से उठेगी।
अगले दिन लगभग 8.30 बजे जब उर्वशी की नींद खुली तो देखा कि वंदना दीदी और पंकज जीजाजी टीवी पर गणतंत्र दिवस समारोह देख रहे हैं। न्यूज़ चैनल प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी का ओजस्वी भाषण दिखा रहे थे, अटल जी जब बोलतें हैं तो विरोधी भी उनको बस सुनते ही रहते थे, फ़िर तो वह उर्वशी के प्रिय नेता थे, वह उनके भाषण को भला कैसे दुर्लक्षित कर सकती थी।
उर्वशी झटपट बिना ब्रश किये ही टीवी न्यूज पर अटल जी के भाषण की रिकॉर्डिंग देखने लगी, जब न्यूज़ चैनल में कमर्शियल ब्रेक हुआ तब जाकर वह टुथब्रश करके, फ़्रेश-अप होने गई।
लगभग 10.30 तक टीवी पर गणतंत्र दिवस परेड की झांकी ही चलती रही, वहीं टीवी के सामने बैठे बैठे ही उर्वशी का नाश्ता हुआ, वह और पंकज जी तो टीवी के सामने से उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे, यह देखकर वंदना दीदी को बहुत गुस्सा आ रहा था। वह पंकज जीजाजी से बोली, वाह साली मिल गई तो बीबी को भूल गये क्या, आज तो मेड भी नहीं आई है, चलो किचन में मेरी मदद करो..
वंदना दीदी के मुँह से ऐसा सुनकर उर्वशी अचंभित रह गई, वह उठकर वंदना दीदी की मदद को किचन में जाने लगी तो पंकज जीजाजी ने उसे टोका और कहा, अरे तुम कुछ नहीं समझती हो, मेरी स्वीटी का मेरे बिना किचन में भी मन नहीं लगता, तुम यही बैठकर टीवी देखो , तब तक मै तुम्हारी दीदी की मदद करके आता हूँ।
वंदना दीदी किचन में आलू पराठे बना रही थी, जबकि पंकज जीजाजी बेसिन में पड़े कप, प्लेट, कटोरी, गिलास, चम्मच आदि धो रहे थे।
उर्वशी यह सब देखकर सोचते सोचते ही रोमांचित हो जाती हैं कि वह भी शादी के बाद “मेजर साब” से ऐसे ही हर सन्डे को बर्तन और झाड़ू पोछा लगवाने का काम करवायेगी।
खाना खाकर उर्वशी ने बैग पैक किया और लगभग 1 बजे नई दिल्ली रेल्वे स्टेशन के लिए निकल गई।
ट्रैन निर्धारित समय 3.30 को ही नई दिल्ली से छुटी और लगभग 8.15 को चंडीगढ़ पहुँच गई, वहाँ से उर्वशी ने अपने जिस परिचित टैक्सी वाले को पहले ही बताकर रखा था, उसके साथ बैठकर शिमला निकल गई।
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अगले दिन सुबह से उर्वशी की दिनचर्या शुरू हो गई घर से ऑफिस और ऑफिस से घर अब तो उर्वशी इसी रूटीन में ढलती जा रही थी, तभी रविवार सुबह उर्वशी को मेज़र पांडे का फोन आया।
कैसी हो उर्वशी?
ठीक हूँ, आप कैसे हो? मेरा नम्बर क्या जीजू से मिला? उस दिन डिनर से जाने के बाद से तो आपसे बात ही न हुई? उर्वशी ने तो झड़ी लगा दी मेजर पांडे से सवालों की..
हाँ पंकज से आपका नम्बर लिया, मैं ठीक हूँ, तब मैं ऑफिशियल ड्यूटी पर था दिल्ली में इसलिए वक़्त न दे सका आपको .. अब जब मैं अम्बाला आकर वापस ड्यूटी जॉइन कर चुका हूँ, थोड़ा फुर्सत में हूँ, इसलिए सोचा की आपसे बात कर लूँ..मेजर पांडे ने सफ़ाई देते हुए कहा।
एक बात पूछुं आपसे, “दिल” से जवाब दीजियेगा.. ?
उर्वशी ने भावुक होकर मेजर पांडे से कहा…
नहीं मैं फ़िलहाल तो “फ़ोन” से ही जवाब दूँगा दिल ने नहीं.. मेजर पांडे मस्ती के मूड में थे।
उफ़्फ़ आपको तो क़द्र ही नहीं मेरी फीलिंग्स की, उर्वशी ने उलाहना के स्वर में कहा..
सॉरी सॉरी.. मेजर पांडे ने अपनी गलती समझते हुये कहा, मैं कोई मौका नहीं छोड़ता किसी की भी बात को “खींचने” का.. यह मेरी बहुत बुरी आदत है। अच्छा कहिये क्या पूछ रही थी आप, एक बार फिर से मेजर पांडे बात को मुद्दे पर लाते हुए बोले।
जी उस दिन उर्मिला के यहाँ जो गाना मैने गाया था न “तू ही रे, तेरे बिना में कैसे जिऊँ” यह गाना आपको पसन्द तो आया था न?
जी सच कहूँ तो मैं पहली बार किसी का गीत सुनकर मंत्रमुग्ध हो गया था… अज़ीब सी कसक है आपकी आवाज़ में जो अपनी तरफ़ खिंचती है, मुझे लगा कि यह गाना ख़त्म ही न हो और मैं बस इसे सुनता ही रहूं।
दो निश्छल प्रेमियों में जब अनवरत प्रेम होता है तो निर्बाध रूप से चलता रहता है, मेजर पांडे और उर्वशी के बीच भी यही सबकुछ होता था, दोनों प्रत्येक रविवार को एक दूसरे को फ़ोन करके घण्टों बातें करतें रहतें थे मेज़र पांडे तो उर्वशी की बातों पर इस तरह फ़िदा थे कि उर्वशी की बातें ही सुनते रहतें, उन्हें लगता था कि जैसे कोई मधुर वीणा अपनी झन्कार सुना रही हो…
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उस रविवार भी उर्वशी फ़ोन के पास बैठकर , मेजर पांडे के फ़ोन आने की प्रतीक्षा कर रही थी, लगभग 11 बज चुके थे पर फ़ोन नहीं आया..अब हर रविवार को उर्वशी नहा धोकर, नाश्ता पानी करके मेज़र पांडे के फ़ोन की प्रतीक्षा करती रहती थी जो कि प्रायः सुबह 10 से 11 बजे तक तो आ ही जाता था। पर उस दिन 11.30 तक भी फोन न आया उर्वशी सशंकित मन से बार बार टेलीफोन देखती उसके कनेक्शन चैक करती, डायल टोन सुनती की कहीं फ़ोन “डेड” तो नहीं हो गया है। अब तक तो वह ही ख़ुद मेज़र पांडे को फ़ोन लगा लेती, मग़र अब तक मेजर पांडे ने उसे अपना फ़ोन नंबर ही न दिया था।
लगभग 12 बजने को आये उर्वशी के दिल की धड़कनें बढ़ चुकी थी, उसे न जाने कैसे दिल के अंदर से ही किसी अनहोनी का डर सताने लगा।
तभी उर्वशी की डोरबेल बजती हैं।
उर्वशी शंकित मन से अपने घर दरवाजा खोलती हैं तो ख़ुशी से पागल हो जाती हैं।
मेज़र पांडे दरवाजे पर खड़े थे।
उसका बस चलता तो वह दरवाजे पर ही मेजर पांडे से खुशी के मारे लिपट जाती.. मगर शिमला जैसे छोटे शहरों में आसपड़ोस के लोग प्रेम प्रसंग के मामलों पर बड़ी पैनी निगाह रखतें हैं।
ख़ासकर ऐसी अविवाहित या अकेली रहने वाली लड़कियों पर।
यूँ भी आजतक कोई भी पुरूष उर्वशी के घर क़भी मिलने तक नहीं आया इसलिए मेजर पांडे जैसे सजीले नौजवान का उर्वशी के घर पर आना उन सबको खटक रहा था।
उर्वशी के घर के अंदर आते ही मेजर पांडे ने अपने साथ लाये बैग से एक “लाल गुलाब निकाला” और घुटने के बल बैठकर उर्वशी को वह गुलाब देते हुये बोला ” हैप्पी वेलेंटाइंस डे”
ओह्ह आज वेलेंटाइन डे है क्या? अरे हाँ आज ही तो 14 फ़रवरी हैं ….प्रेमियों का दिन, उसे कैसे न याद रहा यह। उर्वशी मन ही मन सोच रही थी।
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कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग-13) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi
कल तक …
स्वलिखित
अविनाश स आठल्ये