कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग-9) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा……

उर्वशी अपने पंकज जीजाजी और वंदना दीदी को विदा करके अपने ऑफिस की दिनचर्या में व्यस्त हो जाती है, फिर उसका ऑफिस के किसी काम से शिमला से दिल्ली जाने का प्लान बनता है, तो वह दिल्ली के लिए शताब्दी एक्सप्रेस से निकलती है, जहां उसकी मुलाक़ात एक युवक से होती है, जो कुमार शानू का गीत हूबहू वंदना दीदी की शादी में गाना गाये युवक की तरह आवाज़ में मिल रहा था, जिससे आकर्षित होकर वह उस युवक के पास जाती है।

अब आगें..

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तुम तो …ओह्ह सॉरी आप तो… वंदना भाभी की बहन हो न … यहाँ कैसे ??

पलभर पहले जोश से इतना सुरीला गाने वाला नौजवान एक लड़की को सामने देखकर जिस तरह से हकलाने लग गया..देखकर उर्वशी को भी हँसी छूट गई।

ओह! तो आप आर्मी में हैं…?

उर्वशी ने यदि उस युवक की आवाज़ न सुनी होती और उसके द्वारा पहचानी न गई होती तो शायद वह युवक को उसकी इस आर्मी की यूनिफार्म में उसे देखकर कभी भी न पहचान पाती।

उस विवाह के परिधान और हावभाव से बिल्कुल अलग यह युवक एक चुस्त दुरुस्त “आकर्षक व्यकित्व” नज़र आ रहा था।

तो आप आर्मी में हो? उर्वशी ने उस युवक को आर्मी की यूनिफॉर्म में पूरी बटालियन के साथ देखकर भी यही सवाल दोहराया…

जी भाभी जी ये हैं “मेजर ब्रजभूषण पांडे” और मैं सूबेदार प्रीतम सिंह….रिपोर्टिंग फ्रॉम राजपूत रेजीमेंट.. कहते हुए वह बिल्कुल सेल्यूट की मुद्रा में आ गया।

उसकी इस हरकत पर सभी खिलखिलाकर हंस पड़े….

अव्वल तो उर्वशी “ब्रजभूषण पांडे ” का नाम ही पहली बार सुन रही हैं, उसपर से इस सूबेदार प्रीतम सिंह ने बिना पूछे या पता किये उसे भाभी जी यानी  इस मेजर ब्रजभूषण पांडे “पत्नी” बता दिया… बढियां तरीका है इन आर्मी वालों का प्रपोज़ करने का..

तभी अचानक जिस सीट से उर्वशी टिक कर खड़ी थी, उसकी सीट पर बैठे तीनों जवान उठकर खड़े हो गये और उर्वशी से बोलने लगें… भाभी जी आप यहाँ बैठ जाइये।

यह सुनते ही उर्वशी का पारा चढ़ चुका था, बोली अरे यह क्या सब लोग भाभीजी भाभीजी करके पीछे पड़ गये हो, मेरी इनसे शादी थोड़े हुई है…

सूबेदार प्रीतम सिंह बोल पड़ा.. अरे नहीं हुई तो हो जायेगी न.. हमारे लिए तो आप ही भाभी जी हो..कहकर उसने उर्वशी को सीट पर बैठने को कहा और लगभग ज़ोर देकर मेजर ब्रजभूषण पांडे को बिठा दिया, और बोला सर जी गुस्ताखी माफ़ हो.. बहुत घूम लिए आप हनुमानजी बनकर.. अब जब कुड़ी पास में खड़ी है तो कह डालो दिल की बात और आज ही दिल्ली जाकर सगाई भी कर ही लो…

मेजर ब्रजभूषण पांडे के उर्वशी के बगल में बैठते ही..सारा कोच..”बोल बजरंग बली की जय” के उद्घोष ये यूँ गूंज उठा, मानों कोइ जंग जीत ली हो..

उर्वशी मन ही मन सोच रही थी कि उसने सच ही सुना था कि इन आर्मी वालों का दिमाग घुटने में होता है, देखो जिस बंदे को उसे प्रपोज़ करके शादी की बात के लिए मुझे राज़ी करना था वह तो बगल में बैठकर चुपचाप तमाशा देख रहा है, और पूरा कोच भाभी जी भाभी जी कहकर यूँ रिश्तेदार बना हुआ है जैसे उन सबसे उसका जन्मों का नाता हो।

कैसी हो उर्वशी…? मेजर ब्रजभूषण पांडे जी के मुँह से पहली बार कुछ प्रवचन निकले।

क्या मैं तुम्हें ठीक लग रहीं हूँ.. उर्वशी ने अपने बिगड़े मूड का हवाला देकर दबाव बनाने की शुरुआत की..

मेजर पांडे बोले… सॉरी यह प्रीतम सिंह पूरा का पूरा पागल है, मेरे साथ किसी भी महिला को देखकर यह भाभी जी भाभी जी कहने लगता है, एक बार तो भटिंडा में हम सिविल ड्रेस में थे, तब मैने एक महिला से पता बस पूछा और यह उसे भी भाभी जी बोल दिया..बड़ी मुश्किल से उसके पति से हाथ जोड़ने और मान-मनुव्वल करने के बाद ही हमारी जान छूटी थी।

उर्वशी की परेशानी अब तो पहले से भी ज्यादा बढ़ गई.. वह मेजर पांडे की बातों से यह समझ ही न पाई कि जिस शख्स से वह बिना मिले ही मन ही मन इतना प्यार करने लगी है, वह दरअसल उससे प्यार भी करता है या नहीं?

उफ़्फ़ कितना असहज लग रहा था उर्वशी को उस कोच में, सारे के सारे पूरुष, और वह अकेली महिला.. और सब उसे यूँ टकी लगाकर देख रहे थे जैसे कि कोई फ़िल्म चल रही हो.. और उससे भी ज्यादा असहज तो मेजर पांडे हो रहे थे.. तीन लोगों की सीट पर वह दोनों तथाकथित प्रेमी-प्रेमिका ही बैठे थे.. एक विंडो सीट पर और दूसरा बीच की सीट छोड़कर किनारे की सीट पर मेजर साहेब बैठे हुए हैं। भला ऐसे में कैसे प्रेम भरी बातों का सिलसिला शुरू हो सकता था।

अबतक तो करनाल भी आ गया था, उर्वशी समझ चुकी थी कि मेजर साहब तो सिर्फ़ नाम के सेना में मेज़र हैं, प्यार की जंग जीतने के लिए उसे ही पूरी कोशिश करनी पड़ेगी।

लिहाजा उसने सबसे पहले उस सीट से उठते हुये मेजर पांडे से कहा, करनाल आ गया है मेरा सामान मेरी सीट पर लावारिस पड़ा है, ऐसा न हो कि कोई मेरा सामान लेकर निकल ले और मै यहाँ बैठी ही रह जाऊँ।

कोई नहीं मै लांस नायक बांकेलाल को भेज देता हूँ न आपकी जगह पर, आप यहाँ बैठे रहिये इत्मिनान से.. मेज़र बाबू अपनी पोजिशन का रौब झाड़ते हुये पीछे बैठे लांस नायक बांकेलाल की तरफ देखने लगे, जो अब सीट से उठकर  मेजर बाबू के अगले ऑर्डर की प्रतीक्षा में था।

सचमुच ही कम से कम प्रेम के मामले में तो घुटने में ही दिमाग है इन लोगों का… भला इन 100 आर्मी के जवानों के बीच बिठाकर कौन सी प्रेम भरी बात कर लेंगे यह मेज़र साब.. उर्वशी सोचते हुये उठकर बिना कुछ कहे ही अपनी सीट की तरफ जाने लगी  … और सभी लोग उसे बस देखते रहे।

साहब फिर क्या करूँ… लांस नायक बांकेलाल ने असमंजस की स्तिथि में मेजर ब्रजभूषण पांडे की तरफ़ देखा..

अब तक उर्वशी स्लाइडिंग वाले डोर को सरकाकर अपनी सीट की तरफ बढ़ गई।

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उर्वशी का सामान अपनी सीट के ऊपर वाले शेल्फ़ में सुरक्षित रखा हुआ था, अलबत्ता उसके बगल की सीटें खाली हो चुकी थी, शायद वह सब करनाल उतर गये होंगें।

अब उर्वशी इत्मीनान से विंडो सीट पर बैठे हुये मेजर पांडे के बारें में ही सोच रही थी, कितना अव्यवहारिक है यह शख़्स प्रेम के मामले में, भला प्रेम भी कोई सार्वजनिक प्रदर्शन करने की वस्तु है क्या, वह चाहते तो मेरे साथ मेरी सीट के बगल में बैठकर आराम से दिल्ली तक का सफ़र मेरे साथ ही कर सकते थे, मगर नहीं न जाने कितने अनाड़ी हैं वह… उर्वशी को मेज़र पांडे पर बहुत गुस्सा आ रहा था.. तभी दिमाग के दूसरे कोने से आवाज़ आई, अरे प्रेम में अव्यवहारिक है तो अच्छा ही तो है इससे पता चलता है कि उसका इससे पहले किसी और लड़की से प्रेम संबंध तो नहीं होगा, वरना आजकल के लड़के, सुंदर लड़की दिखी नहीं कि फ्लर्टिंग करना शुरू कर देतें हैं।

उर्वशी मेजर पांडे के बारे में ही सोच रही थी कि तभी सूबेदार प्रीतम सिंह आकर उसे बोला.. मैडम जी मेरे से कोई गलती हुई हो तो मुझे माफ़ कर देना, दरअसल मेज़र साब को हमनें आजतक किसी लड़की से बात करते नहीं देखा, बहुत शर्मीले हैं वह, मगर जिस तरह आप उनका गाना सुनकर उनके पीछे खड़ी हो गई तो मुझे लगा कि आपका पुराना परिचय होगा, इसलिए मैं उसी ग़लती में आपको भाभी बोल उठा..

एक बार आप मेरे साथ चलकर मेजर साब को कह दो न कि आप मेरी “भाभी” वाली बात से नाराज नहीं हो.. सूबेदार प्रीतम सिंह काफी डरा हुआ सा था..

उर्वशी के दिमाग में विचार कौंधा, उसने कहा… हाँ में उस बात से बहुत नाराज़ हूँ, परन्तु यदि आप मेज़र साहब को किसी तरह यहाँ भेज दो तो मैं उनसे कह दूँगी कि मैं आपसे बिल्कुल भी नाराज़ नहीं हूँ।

उर्वशी का चलाया तीर सही निशाने पर लगा,  लगभग दो मिनट में ही मेजर बृजभूषण पांडे  बड़ी विनम्रता से उसकी सीट के बगल में आकर खड़े हो गये और बोले सूबेदार प्रीतम सिंह ने कहा कि आपको यहाँ अकेले अच्छा नहीं लग रहा , तो चलिए न हम लोगों के साथ, हम सब एन्जॉय करते हुए जाते हैं, आप को बिल्कुल बोरियत महसूस नहीं होगी।

उर्वशी का मन किया कि वह मेजर  पांडे का हाथ पकड़कर खिंचकर अपनी सीट पर बिठा ले और कहे कि चुपचाप यहीं बैठो मेरे पास, मुझे तुम्हारा साथ अच्छा लगता है, मुझे तुम बहुत पसंद हो..

परन्तु इतनी जल्दी ऐसा कहना जल्दबाजी होगा… इसलिए उर्वशी थोड़ा सहमकर मेज़र पांडे से बोली, “आपको कोई परेशानी न हो तो बैठ जाइये न यहां मेरे साथ कुछ वक्त के लिए”….

उर्वशी की बात सुनकर  मेज़र पांडे सहमते हुये उर्वशी के बगल में बैठ गये..

उर्वशी ने ही बात करने की पहल करते हुए कहा, उर्मिला की शादी में आपने जो गीत गाया था, उसे तो जिसने भी सुना वह तो बस सुनता ही रह गया…. बहुत शानदार आवाज है आपकी ..किसी को भी अपना दीवाना बना सकती है यह आवाज़…

किसी को भी दीवाना बना सकती है मेरी आवाज़? मेज़र पांडे ने उर्वशी के शब्दों की पुनरावृत्ति प्रश्नवाचक शब्दों में कर दी।

उर्वशी चहककर बोली..जी बिल्कुल.. किसी को भी दीवाना बना सकती है।

तो क्या आपको भी? मेज़र पांडे ने उर्वशी को बातों में उलझा लिया था।

उर्वशी ने उस सवाल का जवाब दिए बिना शर्माते हुये अपने “मुँह को हाथों से छुपा” लिया।

मेज़र पांडे ने फ़िर से पूछा, उर्वशी क्या आपको भी मेरा गाना पसन्द आया…

उर्वशी ने इठलाते हुये कहा हाँ.. गाने वाले का थोड़ा बहुत तो उत्साहवर्धन करना ही पड़ता हैं न, सुन लिया था मैने भी थोड़ा थोड़ा आपका गाना।

मेज़र पांडे थोड़ा सा नर्वस लगने लगे थे..

तभी उर्वशी ने पूछा, जी अगर आपको कोई परेशानी न हो तो थोड़ा अपने बारे में बताईये.. हम जानना चाहते हैं आपके बारें में..

                               ★★

मेज़र पांडे ने कहा तुमने पूरे विश्व में एक मात्र ‘सफ़ेद शेरों” के लिए मशहूर मध्यप्रदेश के “बांधवगढ़” का नाम तो सुना होगा आपने, मैं उसके पास के ही उमरिया जिले से हूँ..

मुझसे बड़े भाई प्रमोद भईय्या का विवाह हो चुका है, वह उमरिया के ही स्कूल में प्रधानाध्यापक हैं। पिताजी पुश्तैनी खेती देखतें हैं, जबकि माँ एक गृहणी है।

ओह्ह तो फिर आप पंकज जीजू को कैसे जानते हो? उर्वशी ने अगला सवाल किया…

अरे यार.. उमरिया जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में इंजीनियरिंग की शिक्षा कहां मिलती.. इसलिए मैंने भोपाल के प्रसिद्ध “लक्ष्मी नारायण कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी ” LNCT कॉलेज भोपाल में एडमिशन लिया, बस यहीं से मुझे पंकज गौतम मिला और उससे दोस्ती हो गई…

वह दुनियां के लिए अंतर्मुखी व्यक्ति लगता था मग़र उसकी सारी ख़ुराफ़ात मुझे ही पता रहती थी, इंजीनियरिंग होते होते उसका कैम्पस सिलेक्शन हो गया और वह गुड़गांव में शिफ्ट हो गया, जबकि मैंने  NDA की परीक्षा देकर आर्मी में जॉइन कर लिया। जब भी मैं दिल्ली से गुजरता हूँ एक न एक शाम मेरी पंकज के साथ ही फिक्स रहती है… देखो आज शाम ही हमारा साथ में डिनर का प्लान है…

ओह्ह मतलब जीजाजी सब जानतें थे और अनजान बनने का नाटक कर रहें हैं, उर्वशी ने मन ही मन सोचा।

वैसे आप दिल्ली किसी काम से जा रहें हैं या यूँ ही सिर्फ अपने मित्र से मिलने जा रहें हैं… उर्वशी ने मेज़र साब को टटोला..

नहीं भांगड़ा करने जा रहा हूँ यार के साथ पूरी बटालियन लेकर… मेजर साब ने उर्वशी के सवाल का जवाब तंज मारते हुए दिया।

उफ़्फ़ कितना स्टुपिड सा सवाल पूछ लिया था मैने भी..देख तो रही हूँ न कि पूरा डिब्बा आर्मी वालों से भरा पड़ा है ऐसे में वह व्यकिगत यात्रा कैसे कर सकता है दिल्ली की, और वह भी वर्दी में..उर्वशी को अपनी मूर्खता पर क्रोध आ रहा था।

तभी मेज़र पांडे ने गम्भीरता से कहा, राट्रीय सुरक्षा का मामला है इसलिए खुलकर नहीं कह सकता कुछ भी… बस यह समझ लो कि 26 जनवरी के गणतंत्र दिवस समारोह के समय पूरी दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था को बनाये रखने में अपना सहयोग दे रहें हैं।

                                ★★★

अच्छा आप क्यों जा रही हो दिल्ली?, मेजर पांडे ने  उर्वशी की ख़ामोशी को दूर करने के लिए सवाल किया…

जी आपके मित्र पंकज जी इत्तेफाक से अब मेरे जीजाजी है, उन्होंने जब एक मेजर को खाना खाने घर बुलाया है ऐसे में मुझे तो अपनी वंदना दीदी की मदद करने तो जाना ही पड़ेगा न ..उर्वशी ने व्यंग्य कसने में कोई कसर न छोड़ी..

ओह्ह तो यह वजह है आपकी दिल्ली जाने की? मेजर पांडे ने खिलखिलाकर कहा..

हूँ… और क्या तो… उर्वशी ने तुनकते हुये कहा ..

उर्वशी को समझ नहीं आ रहा था कि जिससे मिलने के वह ख्वाब देखा करती थी, जब वह खुद ही उसके बगल में बैठा है तो वह उससे प्यार मोहोब्बत से बातें करनें को बजाय झगड़ा क्यों कर रही हैं।

जैसे जैसे दिल्ली नज़दीक आ रहा था, उर्वशी की बेसब्री बढ़ती जा रही थी। वह अपने दिल को काबू में रखते हुए बोली.. एक बात पूछुं आपसे?

मेजर पांडे ने बेफिक्री से कहा, जी शौक से पूछिए.. मुझे आपकी कोई बात बुरी नहीं लगती।

जी आपने अब तक शादी क्यों नहीं की? उर्वशी ने मुद्दे पर आते हुए मेजर पांडे से प्रश्न किया।

यह किसने कह दिया आपसे कि मेरी शादी नहीं हुई? मेजर पांडे ने मुस्कुराते हुए उर्वशी की  तरफ़ देखकर कहा…

उर्वशी ने दुःखी होकर कहा.. उस दिन आप उर्मिला की शादी में गा रहें थे न

“तू मेरी जिंदगी है”??आशिक़ी फ़िल्म का..

जी वह तो मैं यूँ ही गाता रहता हूँ, मेरा फेवरेट गीत है, देखो अभी भी गा ही रहा था जब आप आई थी। मेजर पांडे ने कहा..

और इसका क्या मतलब हुआ कि मैं वह गीत गा रहा था… तो क्या जिनकी शादी हो जाती हैं.. वह क्या गाना नहीं गाते?

मेजर पांडे की बात सुनकर उर्वशी की आँख भर आईं, उसने दुखी मन से कहा.. तो कब हुई थी आपकी शादी? और किससे हुई हैं?

मेजर पांडे ने कहा जी लगभग 4 वर्ष हो गये इस बात को तो..

उर्वशी इतना सुनते ही फफककर रो पड़ी.. और मेजर पांडे की बात पूरी सुने बिना ही उससे बोली..बेहतर होगा कि आप अपने कोच में चले जायें, आपके साथी आपका इंतज़ार कर रहें होंगे..

ओह्ह.. शुक्रिया याद दिलाने के लिए, मैं अभी अपने कोच पर जा रहा हूँ,  वैसे आप मेरी पत्नी के बारे में पूछ रही थी न उसका जवाब तो सुन लीजिए न..

जी कहिये जल्दी फिर, उर्वशी ने बेमन से मेजर पांडे की बात सुनने के लिए सिर हिलाया…

तो सुनो उर्वशी… हर भरतीय सैनिक की पहली बीबी उसकी वर्दी होती हैं, जिसे वह सबसे ज्यादा प्यार करता है,  इसलिए लगभग 4 साल से जब से मैने सेना की नौकरी की है, इस वर्दी को मैं बीबी की तरह प्यार करता हूँ।

मेजर पांडे की बात सुनकर उर्वशी की जान में जान आई, वह मुस्कुराकर बोली आपकी इस बीबी से तो अब हमें भी प्यार हो गया है। मगर ऐसा मजाक मुझे बिल्कुल पसंद नहीं.. तभी मेज़र पांडे बोले ठीक है तो मैं अपने कोच चलूं, आप कह रही थी कि मेरे साथी मेरा इंतज़ार कर रहें होंगे न।

उर्वशी ने मेजर पांडे की बांह खींचते हुये अपने बगल की सीट पर बिठाया और अधिकार पूर्वक कहा, अब से बिना मुझसे पूछे कहीं नहीं जाओगे आप… बहुत परेशान करके रख दिया मुझे।

मेजर पांडे और उर्वशी एक दूसरे की हथेलियों को हथेलियों से दबाये हुये बिना कुछ कहे निर्विकार बैठे हुए थे। उन्हें  इस प्रथम स्पर्श का बहुत ही सुखद अहसास हो रहा था।

दिल्ली आने को था इसलिए ट्रैन की गति में लगातार कमी होती जा रही थी, जबकि उर्वशी सोच रही थी कि ट्रैन बिना रुके यूँ ही अनवरत चलती रहे, और वह  मेज़र पांडे के साथ हाथों को यूँ ही हथेलियों से दबाये बैठी रहे।

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