कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग-4) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा……

पचमढ़ी के निकट झिरपा ग्राम में ग्राम प्रधान महेश्वर तिवारी की बड़ी बेटी वंदना का विवाह गुड़गांव में कार्यरतपंकज गौतम के साथ सम्पन्न होता हैं, इसी विवाह समारोह में उर्वशी जो कि वंदना की छोटी बहन है, पंकज गौतम के एक मित्र के द्वारा विवाह समारोह में गाये सुमधुर गीत को सुनकर उसकी तरफ़ आकर्षित होती है, किंतु अब तक दोनों ही एक दूसरे का नाम तक नहीं जानतें.. विवाह कार्यक्रम सम्पन्न होते ही उर्वशी अपनी शिमला की नौकरी जॉइन करने के लिये ट्रैन से रवाना हो जाती है…

अब आगें..

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उवर्शी अंतर्मन में “बीते दिनों यादों की दौड़” उस  ट्रैन की गति से भी तेज़ चल रही थी…

पचमढ़ी के उस झिरपा गाँव मे महज़ चार वर्ष की बालिका, जब अपनी माँ की उंगलियों को थामे खेतों पर जाया करती तो गाँव के लोग उसके पैर पड़कर उससे आशीर्वाद लेते थे, माँ कितना मना करती थी उन सबको मग़र वह क़भी उर्वशी को कन्या कहकर कभी मालिक जी की बेटी कहकर पूजते थे।

वंदना अभी क्लास 1 में जाने लगी थी उसकी देखादेखी उवर्शी भी स्कूल जाने की ज़िद करने लगी इसलिए उवर्शी को पचमढ़ी के एक नर्सरी स्कूल में दाखिला करवाना पड़ा।

रोज़ ही उनके खेत में काम करने वाले युवक “भोले” की सायकिल पर पीछे बैठकर उर्वशी को स्कूल जानें में जो आनन्द आता था, वह तो आज प्लेन में बैठकर भी नहीं आता।

उर्वशी को स्कूल पर जब पिताजी मिलने आते थे तो स्कूल के प्रिंसिपल भी उनके सम्मान में खड़े हो जाते थे, आखिर क्यों न हो पिताजी उस स्कूल के ट्रस्टी भी थे  वह प्रतिवर्ष हज़ारों रुपये  स्कूल के छात्रों की किताबों, पुस्तको, यूनिफॉर्म और दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दान किया करते थे। पिताजी का रूतबा देखकर उर्वशी बहुत इठलाया करती थी।

उस शाम माँ और पिताजी अपनी स्कूटर से  पचमढ़ी से मार्केटिंग करके जब घर आ रहे थे तब न जाने कैसे स्कूटर का ब्रेक फेल हो गया और पिताजी और माँ दोनों स्कूटर समेत गहरी घाटी में गिर गये … पिताजी तो किसी तरह बाहर निकल आये मग़र माँ की तो लाश तक नहीं मिली।

वन विभाग एवम पुलिस दल ने हफ्तों उस जंगल की खाक छानी मग़र माँ का कुछ पता न चल सका। इधर पिताजी का इस सदमें से रो रोकर  बुरा हाल था।… वह इस घटना का जिम्मेदार स्वंय को ही मानते थे।  रोज रात को वंदना और उर्वशी माँ की सिरहाने की टेबल पर रखी तस्वीर देखकर सुबकते हुये एक दूसरे को सांत्वना देते हुये चिपकककर सो जाया करतीं थी।

उर्वशी को तो जब भी पहाड़ियां और ऊँचे दरख़्त दिखते तो उसे लगता था कि उन पेड़ों की ओट में छुपकर उसकी माँ उसे ही बुला रही हैं।  उसे उन पेड़ो से अज़ीब सा अपनापन लगता था, परन्तु  यह अपनापन उसे शिमला के उन जंगलों में बिल्कुल भी न लगता।

                                      ★

मैडम टिकिट दिखाना ज़रा, टिकिट निरीक्षक की आवाज़ सुनकर उर्वशी बरबस ही बचपन की यादों से निकलकर वर्तमान में आ पहुंची। टिकट निरीक्षक के जाने के बाद उर्वशी ने घड़ी देखी तो रात के 10 बज रहे थे, भोपाल स्टेशन आने वाला था, इसलिए वह भी जल्द ही अपना टिफ़िन खाने के बाद साथ बैठे सहयात्रियों की गतिविधियों को देखने लगी। कोई ताश खेलने में व्यस्त था, कोई माँ अपने बच्चे को सुला रही थी, तो कोई बुजुर्ग आप तक अपनी सीट पर निढाल हो चुके थे।

भोपाल स्टेशन निकल चुका था, सहयात्रियों के निवेदन पर उर्वशी ने भी अपनी बर्थ खोलकर उनके लिए नीचे की बर्थ खाली कर दी, वह बेड रोल लगाकर अपनी सीट पर लेट गई…

नींद तो अब भी कोसों दूर थी उर्वशी की आँखों से, एक बार  ट्रेन की “छुक छुक छुक छुक” की रिदम ने पुनः उवर्शी को बचपन की यादों में खींच कर धकेल दिया…

                                    ★★

उवर्शी तब 11th में थी और स्कूल की ट्रिप मसूरी के लिए जा रही थी, उसकी पूरी क्लास, पीटी वाले सर, क्लास टीचर् और दो अन्य दूसरी क्लास के टीचर्स के भी साथ में जा रहे थे, पिताजी ने पहली बार ही उर्वशी को पचमढ़ी से बाहर अकेले जाने की परमिशन दी थी। सभी शिक्षकों की सख़्त निगरानी में उनकी पूरी क्लास के बच्चे उस बोगी में साथ साथ बैठकर अंताक्षरी खेल रही थे, लड़कियां और  महिला शिक्षिका एक तरफ़ तथा लड़के पुरूष शिक्षक दूसरी तरफ़…

उर्वशी इतनी नादान भी न थी कि वह यह समझ न पाती की उसके पीटी वाले रोहित सर और साइंस की ऋचा मेडम के बीच रोमांस चल रहा है, ज्यादातर गीत वही दोनों एक दुसरे के लिए अंताक्षरी की आड़ लेकर गा रहें थे, जबकि सभी छात्र छात्राएं बाक़ी शिक्षकों के साथ मूक दर्शक बनकर यह तमाशा देख रहे थे।

जैसे ही ऋचा मैडम ने अपना गीत “आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे गीत  “समझा ” शब्द पर ख़त्म किया रोहित सर को  “झ” शब्द से गीत गाना था, जो कि उन्हें सूझ नहीं रहा था।

लड़कियों की टीम में “काउनडाउन” शुरू कर दिया..झ1, झ 2, झ 3, झ 4, झ 5, झ 6… लड़के बड़ी आस से रोहित सर की तरफ देख रहे थे, मगर रोहित सर को शायद कोई गीत सूझ ही नहीं रहा था।

लड़कों को अपनी पराजय नज़दीक लगने लगी थी, तभी कैप्टन अरविंद नायर का बेटा मृदुल नायर गा उठा.. “झूमती चली हवा… याद आ गया कोई” और लड़कों की टीम में नया जोश आ गया, अब तो अंताक्षरी सिर्फ छात्र छात्राओं के बीच होने लगी थी।

कितनी मस्ती कर रहे थे सब लोग, तभी रात लगभग 12.30 को किसी सहयात्री की शिकायत पर टिकिट निरीक्षक ने उन सभी छात्रों से सो जाने का अनुरोध किया और यह प्रोग्राम बन्द हुआ।

मृदुल बहुत शर्मिला लड़का था, मगर उर्वशी को वह बहुत पसंद था, इसलिए नहीं कि उर्वशी को उसकी कोई ख़ूबी पसन्द थी, बल्कि इसलिए कि वह “कैप्टन नायर अंकल” का बेटा था। उर्वशी कैप्टन नायर को देखकर जोश से भर जाती थी, और सोचती की बड़ी होकर वह भी एक दिन आर्मी जॉइन करेगी।

मृदुल क्लास में अक्सर ही उर्वशी से वह नोट्स ले जाया करता, उर्वशी को उसके पास आकर झिझकते हुये नोट्स के लिए रिक्वेस्ट करने की अदा बहुत पसंद आने लगी थी।

एक बार गलती से मृदुल का हाथ उर्वशी के हाथ को छू गया तो उसे जो “सिहरन” हुई थी , उसकी अनुभूति से उर्वशी का आज भी रोम रोम सिंहर उठता है।  मगर अफ़सोस इससे पहले कि यह स्पर्श की अनुभूति किसी प्रेमकथा में बदल पाती ,उससे पहले ही नायर अंकल का श्रीनगर ट्रांसफर हो गया और यह प्रेम कहानी पनपने के पहले ही ख़त्म हो चुकी थी।

                               ★ ★★

कॉलेज के दिनों में कितने ही लड़के युवा हो रही उर्वशी पर फ़िदा थे, मगर उर्वशी ने अपनी बातों अथवा हावभाव से किसी को इतनी इजाज़त ही न दी कि कोई उससे प्रेम प्रदर्शन कर सकता।

बिना माँ की बेटियाँ तो वक़्त से पहले ही “समझदार” हो जाती हैं। उर्वशी और वंदना भी समय के हिसाब से बहुत समझदार हो चुकी थी, वह पुरषों की नज़रों के फर्क को बख़ूबी समझने लगीं थी और उसी के हिसाब से ऐसे वहशियों से दूरी बनाकर चला करती थी।

वंदना की तो अरेंज मैरिज हुई थी, परन्तु शिमला में दो वर्षों से अकेले रहने के बाद भी उर्वशी को कोई ऐसा युवक पसन्द न आया जिसे वह अपना जीवनसाथी बना सकती।

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अविनाश स आठल्ये

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