कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग-2) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi

अब तक आपने पढ़ा……

मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध हिल स्टेशन पचमढ़ी के निकट झिरपा ग्राम में ग्राम प्रधान महेश्वर तिवारी की बड़ी बेटी वंदना का विवाह गुड़गांव के पंकज गौतम से हो रहा था, तिवारी जी की वंदना से 2 वर्ष छोटी दूसरी बेटी उर्वशी शिमला में किसी नामी फलों के जूस की कम्पनी “प्रोडक्शन हेड” थी।  अपनी दीदी वंदना के विवाह में उत्साहित उर्वशी ने महसूस किया कि एक जोड़ी आँखें बड़ी देर से उसका पीछा कर रही है.. जिससे वह असहज हो रही थी..

अब आगे…

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शादी के मंगल गीत गाये जा रहे थे, गाँव की महिलाएं ढोलकी की ताल पर थिरक रही थी, कुछ महिलाएं स्वयं ढोलकी बजाकर उनका उत्साह वर्धन कर रहीं थी..

सभी को उत्साह और उमंग में डूबा देख उर्वशी ने सबकी नज़र बचाकर उसे अपलक निहारते युवक की तरफ़ तिरछी नज़र से देखा…

छोटे छोटे कैची से कटे बाल, लगभग 6 फुट ऊंचाई, गठीला बदन, माथे पर तिलक लगाये उस सांवले से युवक को देखकर उर्वशी को उसमें ऐसी कोई बात नज़र नहीं आई कि वह उसे दुबारा नज़र उठाकर भी देख सकें।

मग़र इन सबसे बेखबर वह युवक उर्वशी को देखने का कोई मौका नहीं गवांना चाहता था,

अब तक उर्वशी की दूर के रिश्ते की भाभियों ने भी अपनी पैनी नज़र से उस युवक की हरकतों को भांप लिया था, इसलिए वह सब जुट गई उसकी खोज खबर पता करनें को..वह लड़का इससे पहले क़भी वहाँ नहीं देखा गया था, यानी वह स्थानीय अथवा आसपास के गाँव का तो बिल्कुल भी न था.. इसका अर्थ यह हुआ कि वह युवक बारात के साथ ही आया होगा… शायद दूल्हे के भाई या दोस्त…

उन भाभियों को उर्वशी को छेड़ने का बैठे- बिठाये मसाला मिल गया था.. और बेचारी उर्वशी कुछ न होने के बाद भी इस तरह की चुहलबाजी सुनने को मजबूर थी। खैर शादी-ब्याह के मौकों पर ननद और भाभी में  इस तरह की मज़ाक मस्ती न हो तो फिर भला कब होगी।

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दोपहर की पंगत में जब उस युवक को दूल्हे पंकज गौतम के बिल्कुल बग़ल में बैठकर खाना खाते देखा तो थोड़ा अंदाज़ा लग गया कि वह युवक दूल्हे के भाई या मित्र जो भी हो, ज़रा करीब का है, इसलिए भाभियों ने भी दूल्हे के साथ साथ उस युवक को भी विशेष आग्रह से भोजन परोसा.. वह थोड़ा शर्मीला क़िस्म का था, इसलिए परोसने वालो की तरफ़ आँख उठाकर भी नहीं देख रहा था.. इस बीच अपने पिताजी जी के कहने पर होने वाले

जीजाजी को विशेष आग्रह करके रसगुल्ले परोसने उर्वशी भी गई, अपने नये नवेले जीजाजी को उर्वशी ने बहुत आग्रह और जबर्दस्ती करके चार रसगुल्ले परोसने के बाद दो रसगुल्ले उस युवक को भी परोस दिये, मग़र वह तो नज़र उठाकर यह भी न देख सका कि, जिसके दीदार के लिए वह सुबह से तरस रहा था वह ख़ुद उसके सामने ही खड़ी है।

दिन भर यूँ ही विवाह की गहमागहमी में बीत गया, सारे फ़ंक्शन होने के बाद शाम को ही  उसी स्थल पर रिसेप्शन प्रोग्राम का आयोजन था… उस आयोजन के पश्चात रात्रिभोज और अंत मे संगीत का प्रोग्राम था।

फोटोग्रॉफर कैमरे में रील भर भर कर फोटोज़ लिये जा रहा था, जबकि पंकज और वंदना किसी भी  परिचित हो या अपरिचित सभी के सामने एक कुशल अदाकार की तरह मुस्कुराते हुए फोटोज खिंचवाने में व्यस्त थे।

कुछ बच्चे और बुजुर्ग रात्रिभोज के स्टॉल के सामने खड़े होकर आइसक्रीम और पानीपुरी का स्वाद ले रहे थे। उस गाँव में शायद यह पहला बुफे यानी स्वंय सेवा वाला प्रीती भोज था, इसलिए गाँव के लोगों की भीड़ अभी भी पंगत लगने की बांट जोह रही थी।

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रात 10 बजते बजते आर्केस्ट्रा वालों ने मोर्चा सम्हाल लिया था.. स्थानीय कलाकार अपनी आवाज़ का बेसुरापन छुपाने के लिए तेज़ संगीत का सहारा ले रहे थे और कुछ बेवड़े लड़के उसी संगीत की धुन पर थिरकना शुरू कर दिये थे.…..

संगीत प्रोग्राम पूरे शबाब पर था, ऑकेस्ट्रा वालों की प्रस्तुति के बाद दोनों ही पक्षों के गायन का शौक रखने वाले भी जोश में आकर अपनी प्रस्तुति देने लगे थे…

तभी एक उस प्रोग्राम में जो अगली प्रस्तुति  हुई उस दिलकश आवाज़ सहसा सभी को स्तब्ध कर दिया….

वही युवक हाथ में माइक लिए हूबहू कुमार शानू की आवाज़ में फ़िल्म “आशिक़ी” का प्रसिद्ध गीत गा रहा था।

तू मेरी ज़िन्दगी है

तू मेरी हर ख़ुशी है

तू ही प्यार, तू ही चाहत

तू ही आशिकी है

तू मेरी ज़िन्दगी है…

पहली मोहब्बत का एहसास है तू…

बुझके जो बुझ ना पाई, वो प्यास है तू…

तू ही मेरी पहली ख्वाहिश, तू ही आखिरी है..

तू मेरी ज़िन्दगी है…

उर्वशी को लगा कि इसका एक एक शब्द वह युवक उसी के लिए गा रहा था.. इतनी मधुर अवाज़ तो उर्वशी तो क्या उस मंडप में मौजूद किसी भी शख़्स ने सुनी भी न थी। सभी अपने हाथों में खाने की प्लेट का खाना हाथों में ही लिये संगीत खत्म होने तक रुके हुये थे।

उर्वशी के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थी। उसे लगा कि वह स्टेज पर दौड़कर उस युवक का साथ देते हुये अनुराधा पोंडवाल की आवाज़ में सुर से सुर मिलाते हुए गाना पूर्ण कर दे.. परन्तु वह लोकलाज़ के डर से वह ऐसा कर न सकी।

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