कुटील चाल (भाग-18) अंतिम भाग – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi

गाज़ियाबाद पंहुच कर अनुराधा ने फ़ोन करके “जेमकेम” कंपनी के बारें में सारी बात अरविंद विस्तार से बताई और उससे इस बारे में सलाह मांगी, अरविंद ने काफ़ी सोच समझकर अनुराधा से कहा कि, अगर वह इस बारे में कमिश्नर बी के श्रीवास्तव सर से बात करेगी तो वह अब भी कोई भी पुख्ता सबूत न होने की बात कहकर आगे कोई कार्यवाही नहीं करने देंगें, जेमकेम कम्पनी का मुख्यालय बैल्जियम में होने की वजह से अब यह अंतरराष्ट्रीय मामला हो चुका है, श्रीवास्तव सर को बायपास करके तुम कोई काम करोगी, तो यह तुम्हारे लिए निर्देशित नियमावली के विरुद्ध होगा, इस दशा में तो तुम्हें कमिश्नर सर निलंबित कर सकते हैं।

अनुराधा ने मायूस होकर पूछा, तो क्या हम इतनी मेहनत से सारी छानबीन करके पूर्णतः स्पष्ट हो चुके इस केस को ऐसे ही छोड़ देंगे?  कितनी मज़बूर है हमारी ये नौकरी…? कितना बड़ा ओहदा मिला है, पर इन दो टके के नेताओं ने हमारा जीना हराम कर रखा है, सारे कांड ये लोग करें, और इन पर एक्शन लेने के लिये इन्हीं से परमिशन लो, उफ़्फ़ कैसा अंधा क़ानून है अपने देश का ?

अनुराधा की बात सुनकर अरविंद ने कहा, चंद भ्रष्ट नेताओं के चक्कर में अपने सारे देश के लोगों के लिए बुरी सोच मत बनाओ अनुराधा, अभी भी देश मे बहुत से ईमानदार नेता मौजूद हैं जिनकी बदौलत ही यह देश इतनी तरक्की कर रहा है, तुम्हें बहुत ज़्यादा हताश होने की ज़रूरत नहीं है, मैं कल सोच कर कोई दूसरा रास्ता बताता हूं।

अरविंद की बात से आश्वस्त होकर अनुराधा खाना खाकर सोने चली गई, दिन भर की थकी होने के कारण उसे नींद भी जल्दी आ गयी।

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सुबह ऑफिस जाते वक़्त ही अनुराधा को अरविंद का फ़ोन आ गया, वह बोला अनुराधा, ऐसी दशा में सिर्फ एक तरीका है, तुम ऑफिस में पहुँच कर अपनी पर्सनल ईमेल आईडी से “प्रधानमंत्री कार्यालय की ईमेल आईडी” पर सीधा ईमेल कर सकती हो, उसमें उनसे सारी बातें गोपनीय रखने का निवेदन करके पूरी डिटेल्स के साथ ईमेल कर देना, अगर उन्हें लगता है कि तुम्हारी जानकारी उनके लिए उपयोगी है तो वे तुरंत ही एक टीम भेज कर तुमसे संपर्क कर सकते हैं।

अनुराधा को अरविंद की बात से आशा की किरण दिखाई दी, उसने ऑफिस पहुचते ही अरविंद द्वारा दी गई ईमेल एड्रेस पर विस्तार पूर्वक “जेमकेम” कंपनी के घोटालों के बारे में लिखा और साथ ही निवेदन किया कि सारी बातें गोपनीय रखी जायें।

इस बात का अनुराधा की उम्मीद से बेहतर असर हुआ, एक हफ़्ते के अंदर ही “इंटेलिजेंस ब्यूरो” के दो अधिकारी अनुराधा को फ़ोन करके एक रेस्टोरेंट में मिले।

उस रेस्टोरेंट में अनुराधा से उन्होंने पूरी जानकारी ली, और आश्वस्त किया कि इस मामले को अब सीधा प्रधानमंत्री कार्यालय गुप्त तरीक़े से हेंडल करेगा, आपका नाम कहीं भी नहीं आएगा, आप निश्चिंत रहें, हमें कोई और जानकारी चाहिए होगी तो हम आपसे इसी तरह मिलकर सूचित करेंगे, आप भी इस बात को गुप्त ही रखें।

उनके जाने के बाद अनुराधा को अहसास हुआ कि उसने देशहित में कितना बड़ा काम किया है, अरविंद ने भी सच ही कहा था, सारे दल या सारे नेता भ्रष्ट नहीं होते, अन्यथा उसकी कंप्लेंट पर इतनी जल्दी एक्शन तो नही लेता कोई।

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खैर अगले सप्ताह के वीकेंड पर जब अरविंद गाज़ियाबाद आया तो उसके माता पिता और वीरेश्वर मिश्रा ने घर में ही एक साधे समारोह में अरविंद और अनुराधा की सगाई तय कर दी, इस समारोह में दोनों परिवारों के सगे संबंधियों और मित्रों को भी बुलाया गया। अरविंद ने कमिश्नर बी के श्रीवास्तव सर को भी बुलाया। सभी की मौजूदगी में उनका सगाई समारोह हंसीखुशी सम्पन्न हुआ।

बाद में कमिश्नर सर अनुराधा और अरविंद को आशीर्वाद देने के साथ ही अनुराधा को विवाहोपरांत मेरठ में ही किसी अन्य समकक्ष विभाग में स्थानांतरण करवा लेने की सलाह देकर चले गए।

अगले दो तीन दिन में इंटेलिजेंस ब्यूरो ने सीबीआई, इनकम टैक्स विभाग, एक्साइज डिपार्टमेंट आदि की टीमों ने एक साथ ही अकस्मात रूप से “जेमकेम” फैक्टरी में छापा मारा।

तीन दिन तक चली कार्यवाही से कई बातें उजागर हुई……..

दरअसल जेमकेम कंपनी जिसका मुख्यालय बैल्जियम में था, इस कंपनी के सीनियर मैनेजर रितेश ठाकुर के पिता रंजन ठाकुर ही थे, उन्होंने धीरेन्द्र पाटिल जो कि तत्कालीन उद्योग मंत्री था, के सहयोग से कानपुर में जेमकेम की एक बड़ी उर्वरक फ़ैक्टरी खुलवाई, धीरेन्द्र पाटिल ने फ़ैक्टरी को लाइसेंस, सस्ती ज़मीन और विभिन्न विभागों की अनुमति दिलाने के नाम पर जेमकेम कंपनी से करोड़ों  “यूरो” की रिश्वत ली थी।

इधर भारत कानपुर से लोकल चमड़ा और मटन व्यापारियों से फ़ैक्टरी को उर्वरक बनाने के लिए आवश्यक हड्डियां सप्लाई  करने का कॉन्ट्रैक्ट भी धीरेन्द्र  पाटिल ने ले रखा था।

इतना ही नहीं, इन हड्डियों से मिला जिलेटिन जेमकेम कंपनी के स्थानीय अधिकारी फ़ैक्टरी के जनरल मैनेजर प्रवीण खत्री के साथ मिलकर रितेश ठाकुर की ही एक जेलेटिन फ़ैक्टरी में बिना किसी डॉक्यूमेंटेशन के भेज दिया जाता, और जेमकेम कंपनी के रिकॉर्ड में जेलेटिन को नष्ट कर दिया करके बता दिया जाता। रितेश ठाकुर के पिता रंजन ठाकुर, जेमकेम कम्पनी को जिलेटिन नष्ट करने का भी बिल भेजा करतें थे, जिससे साबित हो

रहा था कि जेमकेम कम्पनी का इन सब टैक्स चोरी और भ्रष्टाचार के मामलों में सीधा हाथ नहीं है। रंजन ठाकुर ही जेमकेम कम्पनी की कानपुर फैक्ट्री और उनके बैल्जियम स्थित मुख्यालय के मध्य एकमात्र सीधी लिंक थे, इसलिए कम्पनी प्रबंधन ने उनके रिटायरमेंट के बावजूद भी एक कॉन्ट्रैक्ट के तहत उनकी तथाकथित सेवाएं ले रही थी।

चूंकि जेमकेम फ़ैक्टरी का लाइसेंस सिर्फ उर्वरक की मैन्यूफैक्चरिंग का ही था, इसलिए उस कंपनी के बेल्जियम स्थित हेडक्वार्टर को कंपनी के अवैध जिलेटीन कारोबार की कोई खबर भी नहीं थी।

इस तरह से धीरेन्द्र पाटिल अपने साले रितेश ठाकुर के साथ दोनो हाथों से मलाई खा रहा था, रितेश ठाकुर की जिलेटिन फ़ैक्टरी में जिलेटिन की खरीदी के फर्जी दस्तावेजों को भी जब्त किया गया। अब तक कि कार्यवाही से ही 15 वर्षो में लगभग 1800 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आ चुका था।

प्रधानमंत्री कार्यालय से एक टीम बेल्जियम भेजी गई, जिसने जेमकेम कंपनी के हेडक्वार्टर में जाकर कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर “चार्ल्स स्टीफेंस” से मुलाक़ात करके उन्हें जेमकेम कंपनी की भारत में कंपनी में स्थित उर्वरक फ़ैक्टरी पर की गई सारी कार्यवाही की सूचना दी।

और यह भी बताया कि यदि जेमकेम कंपनी उन्हें सहयोग नहीं करेगी तो उनकी भारत में स्थित कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है।

चार्ल्स स्टीफेंस ने उन भारतीय अधिकारियों को पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन दिया, और उनकी भारत स्थित कंपनी के जिलेटिन के अवैध कारोबार पर अनभिज्ञता ज़ाहिर की, यही नहीं उन्होंने अपने कानपुर फ़ैक्टरी के जनरल मैनेजर प्रवीण खत्री के जिलेटिन नष्ट करने के नाम पर प्रतिमाह भेजे जाने वाले बिल्स भी दिखाए, इससे साबित होता था कि जिलेटिन के कारोबार से जेमकेम कंपनी को सच में कुछ भी नहीं पता था।

चार्ल्स स्टीफेंस ने उन अधिकारियों को मंत्री धीरेन्द्र पाटिल को “बिज़नेस प्रमोशन एक्सपेंस” के नाम पर उस समय 670 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी, चूंकि बैल्जियम में अपना बिज़नेस बढ़ाने के लिए रिश्वत देना भी वैध था, इसलिए उस कंपनी ने वह सारी 670 करोड़ रुपए की रकम धीरेन्द्र पाटिल के एक “स्वीस बैंक” के अकाउंट में जमा करा दी थी। उन भारतीय अधिकारियों ने उस स्विस बैंक के उस अकॉउंट का भी डिटेल्स लिया, इसके अलावा जेमकेम कंपनी से लिखित में धीरेन्द्र पाटिल को दी गई रिश्वत और सारे ट्रांजिक्शन की डिटेल्स ले ली।

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उन अधिकारियों ने भारत मे आकर प्रधानमंत्री कार्यालय में सारी डिटेल्स दे दी।

इसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से स्विस बैंक के अधिकारियों को धीरेन्द्र पाटिल के अकाउंट नंबर में स्थित सारे पैसों का ब्यौरा देने को कहा गया।

शुरु में तो स्विस बैंक ने कोई डिटेल्स देने को मना कर दिया, परन्तु जब स्वयं वित्तमंत्री ने इस बारे में प्रधानमंत्री से आग्रह करके स्विर्ज़रलैंड के राष्ट्रपति से संपर्क किया गया। तो “अतिविशेष परिस्थितियों’ का हवाला देकर स्विस बैंक ने धीरेन्द्र पाटिल से अकाउंट डिटेल्स का ब्योरा दिया।

उस डिटेल्स को देखकर तो वित्तमंत्रालय भी हक्काबक्का रह गया था, पूरे 8000 करोड़ के करीब की राशि थी धीरेन्द्र पाटिल के खाते में।

अब धीरेन्द्र पाटिल को गिरफ्तार करने के सारे सबूत इंटीएजेंस ब्यूरो को टीम के पास थे, उसे रातोरात गिरफ्तार करके उसके स्विज बैंक अकाउंट में जमा रुपये के बारे में पूछा गया, पहले तो धीरेन्द्र पाटिल ने अपने किसी अन्य खाते में जमा रुपयों से इनकार किया परन्तु जब उसे जेमकेम कंपनी के लिखित दस्तावेज की कॉपी औऱ उसके स्विस बैंक में जमा रुपयों की डिटेल्स दिखाई गई तो उसने कबुल किया कि यह रकम उसके उद्योग मंत्री रहते हुए किये गए भ्र्ष्टाचार की है, इसके अलावा वह इस अकॉउंट में रितेश ठाकुर की कंपनी को जिलेटिन के विक्रय से मिले रुपये भी समय समय पर जमा करता रहता था।

अगले दिन पूरे विस्तार के साथ धीरेन्द्र पाटिल की गिरफ्तारी, उसके और मंत्री कुंदन महतो के बीच के कनेक्शन, और रितेश ठाकुर की जिलेटिन फ़ैक्टरी के घोटालों से संबंधित सारी जानकारी विस्तार से छपी। जेमकेम कम्पनी ने रितेश ठाकुर के पिता रंजन ठाकुर के सभी कॉन्ट्रैक्ट निरस्त करके उनके खिलाफ बैल्जियम में आपराधिक मामला दर्ज करके स्थानीय पुलिस से गिरफ्तार करवा लिया।

अनुराधा की बुद्धिमानी और अरविंद के साहस से बाहुबली धीरेन्द पाटिल की सारी “कुटिल चाल” अब पूरी तरह से नाकामयाब हो चुकी थी।

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भारत में धीरेंद्र पाटिल और कुंदन महतो जैसे भृष्ट राजनेताओं को पकड़वाने में अहम भूमिका निभाने के कारण प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा अनुराधा द्वारा किये कार्य की विशेष अनुशंसा की गई।

जल्द ही अनुराधा का विवाह अरविंद के साथ पूरे धूमधाम से हुआ जिसमें प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री भी उसे आशीर्वाद देने को आये थे।

अनुराधा के निवेदन व कमिश्नर बी के श्रीवास्तव सर के अनुमोदन के बाद अनुराधा का विभागीय स्थानांतरण करके उसे राजस्व विभाग में मेरठ में ट्रांसफर कर दिया गया, जहां पर अब वह और उनका पूरा परिवार अरविंद के साथ विवाहोपरांत सुखी वैवाहिक जीवन व्यतीत करनें लगें।

अविनाश स आठल्ये

स्वलिखित, सर्वाधिकार सुरक्षित

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