रहिमन अति ना कीजिए – कविता झा ‘अविका’ : Moral Stories in Hindi

रेखा सोफे पर अपने पति राकेश के पास बैठी थी। राकेश उसकी सुंदरता पर कायल था। वो दिनभर उसे निहारता रहता। पर उसे यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि उसकी पत्नी की तरफ कोई आंख उठाकर भी देखे। वो सिर्फ उसके लिए बनी है। उसका सजना संवरना हंसना मुस्कुराना सिर्फ और सिर्फ राकेश अपने लिए ही चाहता था।

पति का प्यार और पूर्ण समर्पण पाकर भी वो खुश नहीं थी क्योंकि अति किसी भी चीज की हद होती है।

राकेश का प्यार कब शक के रूप में पैर पसारता गया इस बात से वो भी अंजान था। वो तो बस यही समझता था कि वो अपनी पत्नी से बेइंतहा प्यार करता है सिर्फ इसलिए चाहता है कि वो उसे छोड़कर किसी की तरफ ना देखे और कोई उसे ना देखे।

रेखा के फोन की घंटी बजी तो वो अपना फोन लेकर बालकनी में आ गई। राकेश के मन में हजारों सवाल कौंधने लगे…
‘आखिर किसका फोन होगा? जो यह मेरे सामने बात नहीं कर सकती थी।’ वो उसी की तरफ देखता रहा। रेखा हंस हंस कर बात कर रही थी।
‘जरूर इसके आशिक का फोन होगा। मेरे सामने तो हमेशा उदास सी बैठी

रहेगी चेहरे पर मुस्कान तक नहीं बिखेरती और अब देखो कितनी खुश नजर आ रही है।’
उससे रहा न गया तो वो भी उठकर उसके पास बालकनी में ही आ गया। तब तक रेखा ने फ़ोन काट दिया था।
“किससे इतना हंस हंस कर बात कर रही थी और मेरे आते ही फोन काट दिया। जरुर तुम्हारा कोई… खास होगा।”

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“हां बहुत खास है…।” उसने फोन दिखाते हुए कहा। उसके फोन पर पापा नाम से सेव नम्बर रिसेंट कॉल में दिख रहा था।

“तुम मेरे सामने बैठकर भी तो अपने पापा से बात कर सकती थी, यहां बालकनी में आने की क्या जरूरत थी। गली के लोग भी तुम्हें घूर रहे थे जिस तरह तुम हंस रही थी।”

यह रोज का हाल था। किसी का भी फोन आता राकेश को यही लगता उसके किसी आशिक का ही होगा। इतनी सुन्दर लड़की के तो शादी से पहले कई आशिक रहे होंगे।

उनकी शादी को अभी कुछ ही महीने तो हुए थे। राकेश उसे कहीं बाहर घूमाने के लिए भी नहीं ले जाता था और अपने ना ही दोस्तों को अपने घर बुलाता। उसे अपने दोस्तों पर भी विश्वास नहीं था। कोई जब राकेश से रेखा के बारे में पूछता कि वो कैसी है या उसके बारे में तो वो बौखला जाता।
‘तुम्हें क्या मतलब वो जैसी भी है। उसके बारे में क्यों पूछते हो। क्या काम है तुमको उससे।’
पूछने वाला भी पछताता और माफी मांगता।

धीरे धीरे राकेश की शक करने की बीमारी बढ़ती ही जा रही थी उसने रेखा पर हाथ उठाना और गाली गलौज करना भी शुरू कर दिया।
“मैं सिर्फ तुम्हारी हूं।मेरा कोई आशिक नहीं है। बेवजह क्यों मुझ पर शक करते हो।” रेखा उसे प्यार से कहती

“बेवजह नहीं है मेरा शक। ये शक नहीं यकीन है कि तुम्हारे बहुत सारे आशिक होंगे।तुम बहुत सुन्दर हो और तुम्हें चाहने वाले बहुत होंगे। मेरे आफिस जाते ही तुम उन्हें अपने घर पर भी  बुलाती होगी।”

“कोई नहीं है… मेरी बात समझो और मुझ पर विश्वास करो। मेरा तुम्हारे सिवाय कोई नहीं है।”

राकेश ने रेखा के सारे फोन कॉल टेप करने शुरू कर दिए।
वो अपने पति का सम्मान करती थी पर अपने आत्मसम्मान की रक्षा तो उसके खुद के ही हाथों में थी। जब मार पीट की घटनाएं बढ़ने लगी तो उसने एक दिन ठान लिया बहुत हुआ अब और नहीं। इंटरनेट पर आत्मरक्षा के तरीके सीखने लगी। उसकी एक  सहेली वकील थी तो उसे उसने राकेश के बारे में जब बताया कि किस तरह वो उसके साथ मारपीट करता है सिर्फ अपने शक के कारण तो उसने भी यही सलाह दी…
” इस तरह पूरी जिंदगी अपने आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने से अच्छा है तुम अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करो। राकेश को डायवोर्स दे दो।
जिस रिश्ते में रहकर तिल तिल मरना पड़े उससे अच्छा है वो रिश्ता ही हमेशा के लिए तोड़ दो। शक एक ऐसी बिमारी है जिसका कोई इलाज नहीं है।”

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“पर राकेश को छोड़कर अपने मायके वालों पर बोझ ही तो बन जाऊंगी। मेरे मां पापा ने कितने अरमानों से मेरी शादी राकेश से करवाई थी। लाखों का खर्च किया था इस शादी पर और अब इसे तोड़कर उन पर बोझ नहीं बनना मुझे।”

” पढ़ी लिखी हो किसी पर बोझ बनने से बेहतर होगा नौकरी करो।”
रेखा ने अपनी सहेली की बात पर अमल किया और अपने आत्मसम्मान को बरकरार रखते हुए वो राकेश का घर छोड़कर जा चुकी थी।
उसे रहिमन का वो दोहा राकेश के शक करने के कारण टूटे रिश्ते पर बिल्कुल फिट बैठता लग रहा था।


रहिमन अति न कीजिये, गहि रहिए निज कानि।
सैंजन अति फूलै तउ, डार पात की हानि।

अपनी मर्यादा में रहें। अति के साथ अंत जुड़ा है। जैसे जब कभी सहजन की फली ज़रूरत से अधिक फूल जाती है तो अपनी कोमल डालियों और पत्तों को ही तोड़ डालती है, वैसे ही मर्यादा का अतिक्रमण स्वयं के लिए ही घातक होता है |

कविता झा ‘अविका’ 

रांची, झारखंड 

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