“आज शाम को जरा ढंग से तैयार हो जाना बड़ी बुआ आऐंगी लड़के वालों को लेकर”
मां मीना ने फरमान सुनाया!
सुनकर सांवरी का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा!फिर वही नुमाईश फिर वही आवभगत,लडके की मां-बहन की एक्सरे के समान चीरती नज़रें,उनके व्यंग्य बाण”चेहरे का फेशियल वगैरह करवाया करो,उबटन लगाया करो थोड़ा-बहुत रंग निखरेगा”
और खा पीकर अंत में यह कहकर चल देना कि जाकर जवाब देंगे!वही घिसा पिटा वाक्य!
ऊपर से बड़ी बुआ के व्यंगों के बाण ” भगवान जी मैं एक सौ एक रुपए का परसाद चढाउंगी बस इस बार बात बन जाऐ तो मेरे भाई के सर से ये बोझ उतर जाए,बेचारा अधमरा हो गया इसके ब्याह को लेके”!
सांवरी था नाम उसका!
सांवली सलोनी,शुक सी नाक,कमल के समान झील सी कजरारी आंखें,बूटा सा बदन,लहराते घने काले बाल,बस कमी थी तो एक!भगवान ने जाने क्यूं गोरा रंग देने में कंजूसी कर दी!
तकरीबन हर दूसरे तीसरे दिन चाची-मामी या जान-पहचान वाला सांवरी के लिए रिश्ता सुझाता और मीना और उनके पति फौरन सांवरी को दिखाने के लिए तैयार हो जाते,इस उम्मीद में कि शायद यहां बात बन जाए,पर ले देके बात सांवरी के रंग को लेकरअटक जाती!कुछ लोग जो सांवरी के रंग पर समझौता करने को राजी हो भी जाते बदले में वे दहेज की मोटी रकम की मांग करते जिसे पूरा करना सांवरी के पिता के लिए असंभव होता!
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रोज रोज इसी तरह के नाटक की वजह से सांवरी उकता गई थी!वह अपने मां-बाप से कहती कि उसके ब्याह की बात छोडें और उसे आगे पढ़ने दें!बार बार लोगों के सामने सज संवर कर परेड करना, उनकी खातिर तवज्जो में खाने नाश्ते पर खर्च का बेकार जाना सांवरी को बहुत अखरता!उसके आत्मसम्मान को हर दूसरे दिन पैरों तले रौंदा जाता!
उस दिन नियत समय पर बड़ी बुआ लड़का मुकेश,उसकी मां,बहन,भाभी और मौसी को लेकर आ पहुंचीं!
आते ही बुआ ने सी बी आई सी नजरों से सांवरी को ऊपर से नीचे तक घूरा!”ये क्या?हरे रंग की साड़ी क्यूं पहन ली,भाभी आपको तो अकल होनी चाहिए थी हरे रंग में इसका रंग और भी दबा दिख रहा,चल जल्दी से कोई गुलाबी रंग की साड़ी पहन ले और जल्दी से बाहर आ!अच्छा हुआ मीना तूने सबेरे इसका फेसियल करा दिया था,
छोरी का रंग कुछ तो ठीक हुआ!”बुआ का बड़बड़ाना सांवरी के दिल पर नश्तर सा चुभ रहा था,बाहर वालों को क्या कहें यहां तो घरवाले ही इज्ज़त की धज्जियां उड़ाने पर तुले थे!मां-बाप की खातिर सांवरी अपमान का घूंट पीकर रह जाती!
चाय की ट्रे लेकर वह ड्राइंग रूम में आई तो उसने महसूस किया जैसे कई जोड़ी आंखें उसके तन-मन को ऐसे भेद रही थीं मानो वो कोई अजूबा हो!
देखते ही मुकेश की मां बुआ से बोली आप जो फोटो लाई थीं उसमें तो लड़की का रंग ठीक ही लग रहा था पर ये तोऽऽऽ!
उसी वक्त मुकेश और उसकी बहन ने मां को चुप रहने का इशारा किया!बात वहीं खत्म हो गई! मां और मौसी की तो जैसे सांवरी को देखकर बत्ती ही बुझ गई!बस मुकेश के पिता,बहन और मुकेश सहज व्यवहार कर रहे थे!
मुकेश देखने में बहुत सुन्दर तो नहीं बस ठीक-ठाक था!प्राइवेट कम्पनी में लगा था ,अच्छा कमा रहा था!
खा पीकर अंत में जाते हुए मुकेश के पिता ने कहा कि वे आपस में सलाह मशवरा करके शाम तक बता देंगे!
शाम को मुकेश के पिता ने फोन पर बताया मुकेश एक बार सांवरी से मिलना चाहता है,सांवरी के पिता को लगा कि उन लोगों को शायद बाकी सब पसंद आ गया इसलिए मुकेश एक बार और बात करना चाह रहा है !यह सोचकर कि शायद यहां बात बन जाए उन्होंने सांवरी की मर्जी के खिलाफ भी उसे मुकेश से मिलने भेजा!
पहली मुलाकात में मुकेश सांवरी को बहुत सुलझा हुआ व्यक्ति लगा!उसके तमीज़दार रवैये और सौम्य स्वभाव से वह बहुत प्रभावित हुई!
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पहली बार किसी लड़के ने उसका रंग रूप न देखकर उसके गुणों को सराहा था!
तीन-चार बार ऐसे ही मुकेश हर वीकेंड पर सांवरी से मिलता रहा!सांवरी के पिता ने मुकेश को पूछा भी कि अगर वो कहे तो मुकेश के मां-बाप से आगे बात बढाएं!पर मुकेश कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देता!मुकेश को बुरा न लग जाए और वो रिश्ते को मना ही न कर दे इसलिए वे शांत रहते!
एक दिन मुकेश का असली चेहरा सांवरी के सामने आ गया जब उसने झूठ बोल कर सांवरी को अपने घर बुलाया जब उसके सारे घरवाले कहीं शादी में गऐ हुए थे!
उसके अंदर का शैतान बाहर आ गया उसने सांवरी के साथ
बदतमीज़ी करने की कोशिश की!
सांवरी कमज़ोर नहीं थी उसने मुकेश को जोर से धक्का देकर कहा”तुमने मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई है ,मेरी भावनाओं से खेला है!उसने शोर मचाकर मुकेश के मोहल्ले को जमा करके उसका भांडा फोड़कर सबके सामने खूब जलील किया!
घर आकर सांवरी ने अपने मां-बाप को साफ-साफ कह दिया कि वे उसके ब्याह का सपना देखना छोड़ दें,वह उनपर बोझ नहीं बनेगी ,वह अपनी मेहनत और लगन से पढ़ाई करके सिविल सर्विस की तैयारी करेगी!
और एक दिन सांवरी की मेहनत रंग लाई और उसने सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर ऊंचा रैंक प्राप्त किया!आज सांवरी जिले के ऊंचे प्रतिष्ठित ओहदे पर बैठी है!
एक से एक अच्छे घरानों के लोग अपने बेटों के लिए उसका हाथ मांगने को तैयार बैठें थे!उसके पद की वजह से किसी को उसके सांवले रंग पर कोई एतराज नहीं!आज उसके सम्मान में कितने ही लोग हाथ बांधे खड़े रहते!
उसके मां-बाप को सांवरी पर गर्व था!
सांवरी ने सोच लिया था वह शादी-ब्याह के झमेले में नहीं पडेगी ,अपनी ज़िन्दगी अपनी शर्तों पर जियेगी!
जब कभी उसे मन के लायक जीवन साथी मिलेगा जिसके लिए उसका आत्मसम्मान सबसे ऊपर होगा तब सोचेगी!
बहुत अफसोस होता है जब बेटियों को कमज़ोर समझकर उनके आत्मसम्मान से खिलवाड़ किया जाता है!जरूरत है इस सोच में बदलाव की!
कुमुद मोहन
स्वरचित-मौलिक