मधु, कहां हो ??? मेरी शर्ट नहीं मिल रही है, कब से चिल्ला रहा हूं, तुम्हें कुछ समझ नहीं आता है क्या??
रोहित गुस्से से बड़बड़ाता हुआ, कमरे से बाहर आया और अंदर चला गया।
ड्राइंग रूम में बैठे मधु के सास- ससुर चाय पी रहे थे, ससुर जी के चेहरे पर कुटिल मुस्कान छा गई और सास तानें देने लगी, इससे तो कुछ काम ढंग से नहीं होता, अपने पति की देखभाल भी नहीं कर सकती, रोहित को तो रोज ही चिल्ला कर काम करवाना पड़ता है, ये खुद पहले कपड़े निकालकर नहीं आ सकती थी, पता नहीं कैसी बहू पल्ले पड़ गई? जाने कब तक इससे निभाना होगा, अभी तो बच्चे नहीं हुए तो ये हाल है, जाने बच्चे होने के बाद क्या होगा? मधु हमेशा की तरह कड़वे घूंट पीकर रह गई।
अभी शादी को छह महीने ही हुए थे, और रोहित मिजाज के गर्म थे, मम्मी-पापा ने अच्छी नौकरी देखकर रिश्ता तय कर दिया, लड़कियों की शादी लड़कों से नहीं उनकी नौकरी और कमाई से होती है, काश! लड़के का व्यवहार और संस्कार देखा जाएं तो कोई भी लड़की दुख तो नहीं पायें। मन ही मन सोचकर मधु दुखी हो रही थी।
तभी फिर से रोहित की आवाज से उसका ध्यान टूटा, ” मैडम जी नाश्ता मिलेगा? या भूखा ही कमाने निकल जाऊं? तुम तो घर पर रहती हो, सब पका- पकाया मिल जाता है, हमें तो हर मौसम में कमाने निकलना पड़ता है, और तुमसे समय पर नाश्ता और खाना भी बनाया नहीं जाता?? कैसी पत्नी हो पति के चिल्लाने का कोई असर भी नसीब होता है।’
मधु ने नाश्ता दिया और टिफिन पैक करके रख दिया और वो अंदर अपने कमरे में चली गई, आज तो उसके सब्र का घड़ा भर आया था, उसका मन पीड़ा से भर गया था, रोहित रोज सबके सामने उसे डांटकर उसके आत्मसम्मान की धज्जियां उड़ा देता था, और वो चुपचाप सब सहती रहती थी, अभी नई-नई शादी हुई थी तो ज्यादा बोल भी नहीं पाती थी।
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तभी घंटी बजती है और वो दरवाजा खोलने को जाती है, अपनी मौसी सास को अचानक से सामने देखकर खुश हो जाती है, और उन्हें प्रणाम करके आशीर्वाद लेती है।
अरे!! रेवती तू बहुत दिनों बाद आई, आने से पहले फोन भी नहीं किया, सरप्राइज देने की तेरी आदत अभी तक गई नहीं, और मधु की सास गोमती जी ने उन्हें गले लगा लिया, दोनों बहनें दिनभर गपशप करती रही और मधु उनके लिए चाय-नाश्ता, खाने का इंतजाम करती रही।
रात को रोहित ऑफिस से आया तो अपनी मौसी को देखकर खुश हो गया, मधु ने सबके लिए खाना लगा दिया, रेवती जी ने खाने की बहुत तारीफ की, लेकिन बाकी परिवार के सदस्य कुछ ना कमी निकालकर खाना खा रहे थे।
तभी रोहित ने गुस्से में दाल की कटोरी फेंक दी, जरा भी अक्ल नहीं है, कितनी बार कहा है, मुझे दाल में हरा धनिया पसंद नहीं है, और तूने जानबूझकर भर-भर कर हरा धनिया डाल दिया है, तू तो चाहती ही नहीं है कि मै दिनभर कमाने के बाद रात को चैन से खाना भी खा लूं, मधु सहम जाती है, और उसके मुंह से दो शब्द भी नहीं निकलते हैं।
तभी रेवती जी बोलती है, रोहित तेरे लिए दाल की कटोरी अलग बिना धनिये के रखी है, तूने जल्दबाजी में गलत कटोरी उठा ली और खाना शुरू कर दिया।’
रोहित का चेहरा फीका पड़ गया और वो चुपचाप खाने लगा। रेवती जी को घर का ये माहौल बड़ा ही अजीब लगा, पर उस वक्त उन्होंने कुछ भी नहीं कहा।
अगली सुबह जब वो उठी तो देखा घर में कोहराम मचा हुआ था, मधु दो सूटकेस लेकर खड़ी थी, और बाकी के लोग गुस्से से भरे चिल्ला रहे थे।
“रोहित, इतनी सी गलती के लिए तू मधु को घर से निकाल रहा है, बेटा ये तू ठीक नहीं कर रहा है, रेवती जी ने कहा।
मौसी जी, “ये मुझे घर से नहीं निकाल रहे हैं, बल्कि मै ये घर छोड़कर जा रही हूं, मधु ने कहा।
लेकिन बहू इतनी सी बात पर कोई घर नहीं छोड़ता, रिश्ता नहीं तोड़ता है, रेवती जी ने समझाना चाहा।
‘नहीं, मौसी जी ये इतनी सी बात नहीं है, और कोई कल रात की भी बात नहीं है, मै जब से शादी होकर इस घर में आई हूं, तब से सब सह रही हूं, रोज छोटी-छोटी बात पर झल्लाकर बोलते हैं, जब चाहें डांट देते हैं, कुछ भी सुना देते हैं, मै इस घर की बहू हूं, सदस्य हूं, पर ये लोग मेरे साथ नौकरानी से
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भी बुरा व्यवहार कर रहे हैं, मेरे पति ही मुझे नहीं समझते हैं, रोज मेरे आत्मसम्मान की धज्जियां उड़ाते हैं, इतने दिनों से चुप थी, मम्मी जी पापा जी भी कुछ नहीं बोलते हैं, मम्मी जी उल्टा मुझे सी सुनाते हैं और पापाजी मौन रहकर अपना फर्ज निभा रहे हैं।”
मधु की आंखों में आंसू थे, इनको कितनी बार कहा है, आपको मुझसे कुछ भी शिकायत हो बंद कमरे में आराम से कह लो, मै उसे दूर करने की कोशिश करूंगी, पर ये नहीं समझे, रोज मम्मी जी पापा जी के सामने गुस्सा करके मेरे आत्मसम्मान पर प्रहार करते रहें, मैंने ये भी सह लिया कि कोई बात नहीं, ये सब भी अपने ही है, पर कल रात को इन्होंने आपके सामने भी मुझ पर गुस्सा किया और मेरे अंतर्मन को फिर से लहुलुहान कर दिया।”
“अब ये सब मेरी बर्दाश्त से बाहर है, रोज-रोज का ये अपमान मुझसे सहन नहीं होता है, मेरा आत्मसम्मान मुझे प्यारा है, इसलिए मै ये घर छोड़कर जा रही हूं, मायके तो जा नहीं सकती, मेरी तीन छोटी बहनें और है, मुझे उनका भविष्य भी देखना है, मैंने अपनी एक दोस्त से नौकरी के लिए बात कर ली है,
उसी की स्कूल में मुझे टीचर की नौकरी मिल जायेगी रहने की व्यवस्था भी उसी के साथ हो जायेगी, मेरी बी.एड की डिग्री मुझे अब काम में आयेगी, अगले सप्ताह मेरा इंटरव्यू है, कम से कम अपने पैरों पर खड़ी रहूंगी तो रोज कमाने के तानें तो नहीं सुनने पड़ेंगे,
रोहित, ‘मैं तलाक के कागज हस्ताक्षर करके भेज दूंगी, तुम अपने लिए कोई दूसरी ढूंढ लेना, जो अपने आत्मसम्मान से रोज समझौता कर सकें, मै भी कोई संस्कारी व्यक्ति मिलेगा तो अपना घर बसा लूंगी, मेरी कैब आ गई है, और मधु रेवती जी का आशीर्वाद लेकर चली गई, गोमती जी और रोहित हाथ मलते रह गए।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
सर्वाधिकार सुरक्षित